अमेरिका के अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट में दिल्ली के चाँदनी चौक की एक मिठाई की
दुकान के मालिक के हवाले से बड़ी सी खबर छपी है ‘मेरे लिए इससे पहले कोई
साल इतना खराब नहीं रहा।’ इस व्यापारी का कहना है कि जो लोग पिछले वर्षों
तक एक हजार रुपया खर्च करते थे, इस साल उन्होंने 600-700 ही खर्च किए। अख़बार की
रिपोर्ट का रुख उसके बाद मोदी सरकार के वायदों और जनता के मोहभंग की ओर घूम गया।
नोटबंदी के कारण छोटे कारोबारियों को हुए नुकसान और अंततः इस वित्त वर्ष की
पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 5.7 फीसदी आ जाने की जिक्र करते हुए रिपोर्ट
भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर छाई नकारात्मकता को रेखांकित करती है। खबर में मोदी सरकार
की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य सुरजीत भल्ला का भी एक उद्धरण है, पर पूरी खबर
का संदेश है कि मोदी की चमक फीकी पड़ने लगी है।
अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, ब्रिटिश अख़बार गार्डियन
और साप्ताहिक इकोनॉमिस्ट मोदी सरकार के समर्थक कभी नहीं रहे। इकोनॉमिस्ट ने तो सन
2014 के चुनाव के ठीक पहले अपने पाठकों से अपील भी की थी कि वे मोदी की पार्टी को
हराएं। यह खबर राजनीति से प्रेरित है या बाजार की भावनाओं की समझने की ईमानदार
कोशिश?
देश
के एक बड़े बिजनेस अख़बार ने मुम्बई से खबर दी है कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण
पिछले एक साल से ग्राहकों के लिए तरसे आभूषण कारोबारियों की दुकानों पर इस साल धनतेरस
के दिन खरीदारों की भारी भीड़ नजर आई। सरकार ने आभूषण कारोबार की खस्ता हालत देखते
हुए हाल में इसे धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) कानून से राहत दी थी, जिसका सीधा फायदा धनतेरस पर जमकर हुई खरीदारी
के रूप में दिखा। उत्साह से लबरेज आभूषण कारोबारियों का कहना है कि पिछले साल के
मुकाबले इस साल धनतेरस पर बिक्री 25 प्रतिशत तक अधिक रही।
दीवाली
के पहले सरकार ने 50,000 रुपये से अधिक मूल्य के सोने की खरीदारी पर स्थायी खाता
संख्या (पैन) की अनिवार्यता समाप्त कर दी थी। धनतेरस के दिन सोने के दाम गिरकर
29615 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गए, जबकि
पिछले साल इसी दिन सोना 29,995 रुपये प्रति 10 ग्राम था। पिछले साल धनतेरस पर
महाराष्ट्र में करीब 350 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था, जो इस बार 425 करोड़ रुपये से अधिक रहा।
पटना
से खबर है कि जीएसटी पर भ्रम और ऑनलाइन कंपनियों की प्रतिस्पर्धा के कारण बिहार
में धनतेरस में चमक नहीं थी। राज्य के ग्रामीण इलाकों में बिक्री पिछले साल से 20
प्रतिशत तक कम रही। दूसरी तरफ शहरी इलाकों में दोपहिया वाहनों और उपभोक्ता सामग्री
की बिक्री अच्छी हुई है। दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, जयपुर, कोलकाता, अहमदाबाद और दूसरे शहरों से
अलग-अलग किस्म की खबरें हैं। पर बाजार की भीड़ से सारे निष्कर्ष नहीं निकाले जा
सकते और न व्यापारियों की नकारात्मक टिप्पणियों से किसी गम्भीर फैसले पर पहुँचा जा
सकता है। व्यापारी जीएसटी की लिखा-पढ़ी से नाराज है। यों भी वह हर साल कहता है,
मैं तो घाटे में हूँ।
पिछले
15 दिन के अखबारों पर नजर डालें तो पाएंगे कि अब एक पेज का जैकेट नहीं होता।
चार-पाँच और कई बार इससे भी ज्यादा पेज विज्ञापनों को समर्पित होते हैं। ज्यादातर
विज्ञापन, मोबाइल फोन, कार, रिटेल बाजार और ऑनलाइन सेल्स के होते हैं। सन 2014 में
फ्लिपकार्ट की ‘बिग-बैंग’ सेल के बाद भारत के ई-रिटेल को लेकर कई बातें रोशनी में
आईं हैं। इस बाजार की ताकत है कि एमेज़ॉन जैसी कम्पनी भारत में लगातार निवेश
बढ़ाती जा रही है। इस बाजार ने लॉजिस्टिक्स के कारोबार को नया आयाम दिया है। दिल्ली
के चाँदनी चौक, कनॉट
प्लेस और लाजपत नगर, लखनऊ के हजरतगंज और अमीनाबाद बेंगलुरु के एमजी रोड के बाज़ारों की
रौनक अब उतनी नहीं लगती जितनी इस त्योहारी मौसम में होती थी।
हालांकि
डेटा अभी उपलब्ध नहीं है, पर मोटा अनुमान है कि इस साल त्योहारों के दौरान देश की
ई-कॉमर्स कम्पनियों की बिक्री पिछले साल के मुकाबले 50 फीसदी ज्यादा रही। इस
खरीदारी में हाथ की घड़ियों और मोबाइल फोनों से लेकर बर्तन, जूते, परिधान, सजावट
का सामान और टेलीविजन और एयरकंडीशनर तक शामिल हैं। मिठाइयाँ भी अब ऑनलाइन खरीदी जा
रहीं हैं। एक अनुमान है कि अक्तूबर के पूरे महीने में 20,000 रुपये से ज्यादा का
ई-कारोबार होगा।
अर्थ-व्यवस्था
का एक और संकेतक है ऑटोमोबाइल्स। इस वक्त भी इसमें तकरीबन 10 फीसदी की संवृद्धि
है। सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चर्स के अनुसार इस साल सितम्बर में देश
में 24 लाख 90 हजार 34 गाड़ियाँ बिकीं। यानी 25 लाख के करीब। खास बात यह है कि
ग्रामीण क्षेत्र से माँग बढ़ रही है। एक और संकेतक है शेयर बाजार। दीवाली के दिन
शेयर बाजार में खासतौर से मुहूरत ट्रेडिंग होती है। इस साल उसमें 134 अंक की
गिरावट आई है। संवत 2074 के लिए यह खराब शुरुआत मानी जा रही है।
शेयर
बाजार भावनाओं के सहारे उठता-चढ़ता है। ऐसा माहौल बनने पर कि हालात खराब हैं, सबसे
पहले शेयर बाजार ही परेशान होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार अक्सर हमें
गलत भी साबित करता है। पिछले साल भी शुरुआत नकारात्मक थी, पर पूरे साल में
सेंसेक्स करीब 4,700 अंक चढ़ा। शेयर बाजार के जानकारों का कहना है कि मुद्रास्फीति
में गिरावट, राजकोषीय घाटे में स्थिरता, निर्यात में वृद्धि और कम्पनियों के बेहतर
परिणाम बता रहे हैं कि अर्थ-व्यवस्था का स्वास्थ्य अच्छा है।
शेयर
बाजार की प्रवृत्तियों पर गौर करें तो पाएंगे कि रिटेल कंपनियों जैसे फ्यूचर रिटेल, एवेन्यू सुपरमार्ट्स, शॉपर्स स्टॉप आदि के शेयरों का प्रदर्शन इस साल
स्टॉक एक्सचेंज पर दूसरे क्षेत्रों के शेयरों के मुकाबले बेहतर रहा है। बीएस रिटेल
सूचकांक में इस साल शुरुआत से अब तक 167.3 फीसदी की तेजी आई है, जो सभी क्षेत्र के सूचकांकों में सर्वाधिक है। यानी
उपभोक्ता बाजार अभी मजबूत है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 1850वीं ब्लॉग बुलेटिन - आर. के. लक्ष्मण में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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