तमिलनाडु
बड़े राजनीतिक गतिरोध से होकर गुजर रहा है. सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के भीतर घमासान
मचा है. अदालत के हस्तक्षेप के कारण वहाँ विधानसभा में इस बात का फैसला भी नहीं हो
पा रहा है कि बहुमत किसके साथ है. दूसरी तरफ द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम इस स्थिति में
नहीं है कि वह इस लड़ाई का फायदा उठा सके. जयललिता के निधन के बाद राज्य में बड़ा
शून्य पैदा हो गया है. द्रमुक पुरोधा करुणानिधि का युग बीत चुका है. उनके बेटे
एमके स्टालिन नए हैं और उन्हें परखा भी नहीं गया है. अलावा राज्य में ऐसा कोई नेता
नहीं है, जिसकी विलक्षण पहचान हो. ऐसे में दो बड़े सिने-कलाकारों की राजनीतिक
महत्वाकांक्षा का धीरे-धीरे खुलना बदलाव के संकेत दे रहा है.
दोनों
कलाकारों के राजनीतिक दृष्टिकोण अपेक्षाकृत सुस्पष्ट होंगे. दोनों के पीछे मजबूत जनाधार है. दोनों के तार स्थानीय और
राष्ट्रीय राजनीति के साथ पहले से या तो जुड़े हुए हैं या जुड़ने लगे हैं. देखना
सिर्फ यह है कि नई राजनीति किस रूप में सामने आएगी और किस करवट बैठेगी. धन-शक्ति,
लाठी, धर्म और जाति के भावनात्मक नारों से उकताई तमिलनाडु ही नहीं देश की जनता को
एक नई राजनीति का इंतजार है. क्या ये दो कलाकार उस राजनीति को जन्म देंगे? क्या यह राजनीति केवल तमिलनाडु तक सीमित
होगी या उसकी अपील राष्ट्रीय होगी? इतना साफ है
कि राजनीति में प्रवेश के लिए यह सबसे उपयुक्त समय है.
तमिलनाडु की राजनीति की एक विशेषता ‘कटआउट’ राजनेताओं की है. वहाँ के नेताओं का कद
बहुत बड़ा बन जाता रहा है. वर्तमान नेतृत्व का संकट इसी वजह से पैदा हुआ है,
क्योंकि वह राजनीति ‘आसमानी कद’ के मुकाबले सामान्य कद के नेताओं को किसी
गिनती में नहीं रखती. तमिलनाडु की दूसरी खासियत है सिनेमा के साथ राजनीति का
जबर्दस्त रिश्ता. प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री के पहले लगातार पाँच मुख्यमंत्री
सिनेमा जगत से आए थे. इसके पीछे द्रविड़ राजनीतिक-सांस्कृतिक आंदोलन की भूमिका थी,
जिसमें थिएटर ने काफी काम किया.
फिल्मों की स्क्रिप्ट में द्रविड़ विचारधारा को डालने का
काम पचास के दशक से पहले ही शुरू हो गया था. सन 1952 की फिल्म ‘पराशक्ति’ ने द्रविड़ राजनीतिक संदेश जनता तक
पहुँचाया था. इस फिल्म का स्क्रीनप्ले और संवाद के करुणानिधि ने लिखे थे, जो बाद
में राज्य के मुख्यमंत्री बने. उनके पहले सीएन अन्नादुरै ने भी कई फिल्मों की
पटकथाएं लिखीं.
हाल
में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ चेन्नई में हुई मुलाकात के बाद
कमल हासन की ओर राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान गया है. कमल हासन ने हाल में कुछ टीवी
साक्षात्कारों में कहा है कि मैं राज्य के हालात से दुःखी हूँ और एक राजनीतिक दल
बनाना चाहता हूँ. उन्होंने इसकी न तो समय सीमा बताई है और न यह स्पष्ट किया है कि
उनकी राजनीतिक वरीयता क्या होगी. अरविंद केजरीवाल के साथ मुलाकात के बावजूद
उन्होंने आम आदमी पार्टी के साथ रिश्तों को भी परिभाषित नहीं किया है. पिछले दिनों
वे डीएमके के साथ सम्पर्क स्थापित करते हुए भी नजर आए.
तमिलनाडु
के स्थानीय निकाय चुनाव 17 और 19 अक्तूबर को होने वाले हैं. अटकलें हैं कि इन चुनावों
के साथ ही वे डीएमके में शामिल हो सकते हैं. हाल में चेन्नई में एक संवाददाता
सम्मेलन में उन्होंने कहा, ‘मैं जल्दबाजी में कोई पार्टी नहीं
बनाना चाहता.’ उन्होंने
दो बातें स्पष्ट की हैं. पहली यह कि वे अद्रमुक के आलोचक हैं और दूसरे वे किसी
दक्षिणपंथी पार्टी के साथ नहीं जाएंगे. दक्षिणपंथी माने भारतीय जनता पार्टी. उन्होंने
यह भी कहा,‘मैं 40 साल से फिल्मों में काम कर रहा हूँ. उनमें मेरा
रंग भी दिखाई देता है पर निःसंदेह मेरा रंग भगवा नहीं है.’
पिछले
दिनों उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री पिनारी विजयन से मुलाकात की और यह भी कहा कि
मैं 16 सितम्बर को कोझीकोड में ‘साम्प्रदायिक
फासीवाद’ के खिलाफ होने वाले
सम्मेलन में हिस्सा लूँगा. पर वे इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुए, क्योंकि उनका
कहना था कि मुझे सम्मेलन का निमंत्रण नहीं मिला. इसके पीछे जो भी कारण रहा हो, पर
इतना स्पष्ट हो रहा है कि उनकी राजनीति मध्यमार्गी होगी और घोषित रूप से सेक्युलर
रास्ते पर चलेगी.
यह सच है कि तमिलनाडु की जनता सिनेमा के कलाकारों के भीतर
अपने मुक्तिदाता को देखती है, इसलिए उन्हें जल्दी अपनाती है, पर वक्त में बदलाव भी
आया है. द्रविड़ जातीय चेतना में भी बदलाव आया है. द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम से
टूटकर एक नए दल का बन जाना बताता है कि निचले स्तर पर नए नेताओं के शामिल होने के
कारण कई प्रकार के ग्रुप भी बन गए हैं. बहुत से नए जातीय समूह भी खड़े होते जा रहे
हैं और यह प्रक्रिया जारी है.
समुद्र मंथन की तरह भारतीय समाज के भीतर से तमाम तरह के
नए उपकरण सामने आते जा रहे हैं. एमजी रामचंद्रन और जे जयललिता की राजनीति द्रविड़
बुनियाद पर थी. पर दोनों
की पृष्ठभूमि पार्टी के सामाजिक आधार से मेल नहीं खाती थी. एमजी रामचंद्रन मलयाली
मूल के थे और जयललिता अयंगार ब्राह्मण. कमल हासन भी कुलीन अयंगार ब्राह्मण परिवार
से वास्ता रखते हैं. इस लिहाज से वे ओबीसी-मुखी द्रविड़ पार्टियों से मेल नहीं
खाते. उधर
रजनीकांत मराठी मूल के हैं, पर तमिल जनता के दिल पर राज करते हैं.
सुपर
स्टार रजनीकांत के समर्थकों का कहना है कि वे राजनीति में आएंगे. पर कैसे? नई पार्टी लांच करेंगे या किसी में शामिल
होंगे? रजनीकांत ने राजनीति में दिलचस्पी
दिखाई जरूर है, पर अपनी इच्छा को सार्वजनिक नहीं किया है. संकेत हैं कि बीजेपी अद्रमुक
के साथ जाना चाहती है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का तमिलनाडु दौरा कई बार स्थगित हो
चुका है. भाजपा और अद्रमुक दोनों दलों के नेताओं को उम्मीद है कि वे रजनीकांत को
अपने साथ जोड़ लेंगे. पर उसके पहले अद्रमुक के गतिरोध को टूटना होगा. शशिकला कैम्प
ने इस तार्किक परिणति को रोक रखा है.
inext में प्रकाशित
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