इन लोगों ने उन जगहों के बारे में जानकारी दी है, जिनका जिक्र भारतीय सेना ने किया है, पर जिनका विवरण नहीं दिया। अलबत्ता इनसे जो विवरण प्राप्त हुआ है उससे लगता है कि मरने वालों की तादाद भारत की अनुमानित संख्या 38-50 से कम है और जेहादियों के ढाँचे को उतना नुकसान नहीं हुआ, जितना बताया जा रहा है।
इंडियन एक्सप्रेस ने पाँच ऐसे चश्मदीद गवाहों से सम्पर्क किया, जिनके रिश्तेदार एलओसी के इस तरफ रहते हैं। उनसे सम्पर्क करने के लिए व्यावसायिक रूप से उपलब्ध एनक्रिप्टेड चैट सिस्टम की मदद ली गई और उनके पास सवाल भेजे गए। इन गवाहों की पहचान छिपाई गई है ताकि उनके जीवन को खतरा पैदा न हो। एलओसी के उस पार भारतीय पत्रकारों की पहुँच नहीं है। केवल विदेशी मीडिया ने वहाँ से खबरें भेजी हैं, जिन्हें पाकिस्तानी सेना वहाँ लेकर गई थी।
सबसे विस्तृत विवरण छोटी सी बस्ती दूधनियाल गए दो लोगों ने दिया है। यह जगह कुपवाड़ा में एलओसी पर भारतीय पोस्ट गुलाब से चार किलोमीटर दूर है। इन लोगों ने दूधनियाल के बाजार से अल-हावी पुल के पार जली हुई बिल्डिंग तो देखा। इस जगह से पाकिस्तानी सेना की चौकी और लश्कर द्वारा इस्तेमाल होने वाला कम्पाउंड नजर आता है।
स्थानीय नागरिकों ने एक प्रत्यक्षदर्शी को बताया कि देर रात में अल-हावी पुल के पार तेज विस्फोट और कुछ छोटे हथियारों के चलने की आवाजें आईं थीं। लोगों ने रात में बाहर निकल कर नहीं देखा, पर सुबह लश्कर के लोगों ने बताया कि उनपर हमला हुआ था।
चश्मदीद गवाहों ने बताया कि स्थानीय नागरिकों से जानकारी मिली कि अगली सुबह तड़के पाँच या छह लाशें एक ट्रक पर सम्भवतः सबसे नजदीक के चलहाना के लश्कर कैम्प में ले जाई गईं। यह कैम्प भारत की और स्थित टिथवाल से गुजरने वाली नीलम नदी के उस पार है।
भारतीय सेना ने हताहतों की कोई संख्या नहीं बताई थी। डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस ले जन रणबीर सिंह ने कहा था कि इस स्ट्राइक से आतंकवादियों और उन्हें मदद करने वालों में काफी हताहत हुए हैं।
एक और प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि चलहाना में लश्कर से जुड़ी मस्जिद में हुई जुमे की नमाज़ में एक मौलाना ने कहा कि कल रात हुई मौतों का बदला लिया जाएगा। एक संदेश में उसने कहा कि वहाँ जमा हुए लश्कर के लोग पाकिस्तानी सेना की इस बात के लिए आलोचना कर रहे थे कि वह उनकी रक्षा नहीं कर पाई। वे यह भी कह रहे थे कि वे भारत को इसका जवाब जल्द देंगे, जिसे वह भूल नहीं पाएगा।
इंडियन एक्सप्रेस ने जिन गोपनीय खुफिया दस्तावेजों को देखा है उनसे लगता है कि यह हमला आतंकियों के लिए विस्मयकारी था। 30 सितम्बर के इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक रिकॉर्ड के अनुसार भारत के माचिल सेक्टर के सामने स्थित केल में 40 जेहादी जमा हो गए थे। इस असामान्य संख्या में लोगों के जमा होने का मतलब है कि वे सर्दियों के शुरू में घुसपैठ की कोशिश करने वाले हैं।
इसके अलावा दूसरे इलाकों से जुड़ी खुफिया सूचनाओं के अनुसार इन कथित लांच पैडों पर 5 से 10 घुसपैठियों के छोटे-छोटे समूह जमा हैं। ज्यादातर लांच पैड सीमा से लगे देहाती मकान हैं, जहाँ से उन्हें भारत की और भेजा जाता है।
इंटेलिजेंस से वाकिफ एक अधिकारी ने बताया कि ये लोग आराम से बैठे थे कि सब कुछ सामान्य है। नियंत्रण रेखा पार करते समय कई लोग मारे जाते हैं, पर इस स्ट्राइक ने उन्हें असुरक्षित बना दिया है।
एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि एलओसी पर भारतीय इलाके नौगाम की पहाड़ी से निकलने वाली काज़ी नाग धारा के किनारे तकरीबन 25 बस्तियों के समुच्चय लीपा के लांच पैड भारत के हमले का मुख्य निशाना बने। हालांकि यह प्रत्यक्षदर्शी खुद उस इलाके में नहीं गया, पर उसकी बात उन ग्राणीणों से हुई थी, जिन्होंने बताया कि खैराती बाग़ के पास एक तीन मंजिला लकड़ी की इमारत भारतीय सेना ने ध्वस्त कर दी, जिसपर लश्कर का कब्जा था।
खैराती बाग़ सन 2003 तक लश्कर का महत्वपूर्ण अड्डा था। पर जैसे-जैसे एलओसी पर फायरिंग बंद हुई वैसे-वैसे लश्कर की गतिविधियाँ कम होती गईं। अलबत्ता यह जगह लश्कर के लिए महत्वपूर्ण बनी रही, क्योंकि चौकीबल और बंगस बोल होकर उत्तरी कश्मीर तक आना-जाना सम्भव है।
प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि स्थानीय निवासियों के अनुसार यहाँ हुए हमले में लश्कर के तीन या चार लोग मारे गए, जबकि बाकी लोग फायरिंग शुरू होने पर भागकर पास के जंगल में छिप गए।
इस चश्मदीद गवाह ने एक रोचक बात बताई कि जमात-उद-दावा की दातव्य शाखा फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन ने अगस्त में खैरात बाग़ में एक बड़ा आँख की सर्जरी का कैम्प लगाया था। इस दौरान मौके का फायदा उठाकर भारतीय अधिकृत कश्मीर में सेना के कथित अत्याचारों के बारे में तकरीरें हुईं।
एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि इस इलाके के जिला मुख्यालय अठमुकाम में नीलम नदी के पूर्वी तट से फायरिंग और धमाकों की आवाजें आईं थीं। गवाहों को अनुसार ऐसा लगता है कि लड़ाई नीलम नदी में मिलने वाली काठा नार धारा के किनारे बने फौजी कैम्प के पास हुई थी। पर्यटन और व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध अठमुकाम में नदी के पूर्वी तट पर पहाड़ी ढलान पर सेना के अनेक बंदोबस्त हैं।
सन 1990 में कश्मीर में शुरू हुए जेहाद के बाद बिछवाल और बुगना के निवासी छोड़कर भाग गए और अब इन जगहों पर सन्नाटा है। यह जगह एलओसी पर पाकिस्तान अधिकृत इलाके के पहले गाँव सलखन्ना से बमुश्किल 2 किलोमीटर दूर है और अब यह जेहादी घुसपैठियों का लोडिंग पॉइंट है। एक प्रत्यक्षदर्शी ने, जो अठमुकाम के नीलम डिस्ट्रिक्ट अस्पताल तक गया था, बताया कि उसने सुना कि गुरुवार को हुए हमले में लश्कर के कई लोग मारे गए हैं या घायल हुए हैं। उसने यह भी बताया कि लाशों को वहीं दफन नहीं किया गया। नीलम घाटी के निवासियों की रिश्तेदारी एलओसी के दूसरी तरफ भारतीय अधिकृत इलाके के लोगों के साथ है। वे जेहादियों के नाम से घबराते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि दोनों देशों के रिश्ते खराब होंगे तो फिर से गोलाबारी शुरू हो जाएगी, जिसके सन 2003 में बंद होने के पहले सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी।
सन 2011 में हुए भारत-पाक संघर्ष में अठमुकाम से भारी संख्या में महिलाओं और बच्चों ने सेना की लोकल यूनिट में जाकर माँग की थी कि जेहादियों की सीमा-पार आवक-जावक बंद की जाए।
इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने जेहादियों के लांच पैड सीमा के और करीब बना दिए थे ताकि उनका स्थानीय लोगों से सम्पर्क कम से कम हो। अब कश्मीर की सड़कों पर आंदोलन होने के बाद से नीलम घाटी में जेहादी फिर से नजर आने लगे हैं।
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