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Sunday, April 17, 2016

बाधा दौड़ में मोदी

मोदी सरकार आने के बाद से असहिष्णुता बढ़ी है, अल्पसंख्यकों का जीना हराम है, विश्वविद्यालयों में छात्र परेशान हैं और गाँवों में किसान। यह बात सही है या गलत, विपक्ष ने इस बात को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बावजूद इसके नरेन्द्र मोदी के प्रशंसक अभी तक उनके साथ हैं। उनकी खुशी के लिए पिछले हफ्ते राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मोर्चों से एकसाथ कई खबरें मिलीं हैं, जो सरकार का हौसला भी बढ़ाएंगी। पहली खबर यह कि इस साल मॉनसून सामान्य से बेहतर रहेगा। यह घोषणा मौसम दफ्तर ने की है। दूसरी खबर यह है कि खनन, बिजली तथा उपभोक्ता सामान के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन से औद्योगिक उत्पादन में फरवरी के दौरान 2.0% की वृद्धि हुई है। इससे पिछले तीन महीनों में इसमें गिरावट चल रही थी।
इधर पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के लिए सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। पार्टी को सफलता नहीं भी मिले, यदि कांग्रेस पार्टी को धक्का लगेगा तो सरकार का मनोबल बढ़ेगा। उधर राज्यसभा में दलीय संरचना इस साल जून-जुलाई तक बदलने जा रही है, जो सरकार की समस्याओं को पूरी तरह नहीं तो आंशिक रूप से कम करेगी। उधर अगले साल उत्तर प्रदेश के चुनाव हैं, जो सन 2019 के चुनाव की पृष्ठ पीठ तैयार करेंगे।

आर्थिक मोर्चे पर औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ खबर यह भी है कि महंगाई दर घटकर 6 महीने के निम्न स्तर 4.83% पर पहुंच गई। यदि मौसम अच्छा रहा तो इस साल ग्रामीण क्षेत्र में माँग बढ़ेगी जो औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाने में मददगार साबित होगी। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी का कहना है कि ग्रामीण मांग बढ़ने से निवेश का चक्र भी बदलेगा। इससे देश की विकास दर बढ़कर आठ फीसदी तक पहुंच सकती है। विश्व बैंक के अनुसार भारत की मजबूत वृद्धि से दक्षिण एशिया विश्व में सबसे तेजी से विकास करने वाला क्षेत्र बन जाएगा।

विश्व बैंक ने दक्षिण एशिया पर केंद्रित अपनी छमाही रिपोर्ट 'साउथ एशिया इकोनॉमिक फोकस' के ताजा संस्करण में कहा है कि इस क्षेत्र में अपनी अर्थव्यवस्था के आकार के आधार पर भारत पूरे क्षेत्र की गति तय करेगा। भारत की आर्थिक वृद्धि वित्तीय वर्ष 2016 में 7.5 प्रतिशत और 2017 में बढ़कर 7.7 प्रतिशत होने की संभावना है। अलबत्ता रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में कुछ महत्वपूर्ण नीतिगत सुधारों की मंजूरी और क्रियान्वयन में देरी हुई तो निवेशकों का मन खट्टा हो सकता है।

कुल मिला कर बड़ी तस्वीर अच्छी है। पर शहरी और ग्रामीण विकास, घरेलू और निर्यात मांग तथा सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के पूंजी व्यय में अंतर दूर होना चाहिए। वित्तमंत्री अरुण जेटली भी पिछले हफ्ते अमेरिका में थे। उनके अनुसार वैश्विक परिदृश्य कमजोर होने के बावजूद भारत की वृद्धि दर मजबूत है। रिजर्व बैंक ने ब्याज की दरों को और घटाने की दिशा में और कदम बढ़ाए हैं। एक अरसे से राजकोषीय अनुशासन से दबी भारत सरकार सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की बात करने लगी है।

वॉशिंगटन में जी-20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक में अरुण जेटली ने कहा कि अब राजकोषीय नीति पर फिर से निगाह डालने का समय है। ताकि सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जा सके। उधर वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने वाशिंगटन में कहा, कोई संदेह नहीं है कि भारत को विश्व की प्रमुख शक्ति बनने के लिए बेहद तेजी से वृद्धि दर्ज करने की जरूरत है। वे मानते हैं कि भारत की संभावित वृद्धि 8-10 प्रतिशत के बीच है।

सवाल है कि क्या यह वृद्धि सन 2019 तक हासिल हो जाएगी? उस साल इन बातों का राजनीतिक रिजल्ट आउट होगा। पर उसके पहले एनडीए सरकार को संसद के भीतर और बाहर इतना मजबूत होना पड़ेगा कि वह आर्थिक सुधार से जुड़े बड़े फैसले कर सके और उन्हें लागू भी करा सके। सरकार जीएसटी और दिवालिया कानून अभी पास नहीं करा पाई है। आधार को धन विधेयक का नाम देकर पास कराया गया है, पर कांग्रेस उसे अदालत में चुनौती देने वाली है। बैंकों के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू हो रही है। औद्योगिक सूचकांक सुधरा जरूर है, पर विनिर्माण के क्षेत्र में अब भी ठंडा है। रोजगार इसी क्षेत्र में बनते हैं। निवेशकों का विश्वास अभी तक कायम नहीं हो पाया है। पर उससे बड़ा सवाल है कि क्या वोटर का विश्वास मोदी सरकार में अभी कायम है?

हाल में इकोनॉमिक टाइम्स और टाइम्स न्यूज नेटवर्क के एक ताजा सर्वे का निष्कर्ष है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार को देश के मध्य वर्ग का समर्थन अब भी हासिल है। लोगों ने मोदी को सबसे ज्यादा आर्थिक मोर्चे पर ही पसंद किया है। आर्थिक मोर्चे पर 86 प्रतिशत की रेटिंग उन्हें मिली है। रोजगार के अवसर सृजन मामले में उन्हें 62 प्रतिशत रेटिंग मिली है। सर्वे में 58 प्रतिशत लोगों ने माना कि अच्छे दिन आने वाले हैं। यह सर्वे मूलत: देश के सात महानगरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु, हैदराबाद और अहमदाबाद में किया गया सर्वे में जवाब देने वालों में आधी आबादी महिलाओं की है।

इस सर्वे से सारे निष्कर्ष नहीं निकाले जा सकते, इतना जरूर समझ में आता है कि देश के युवा और महिलाओं को मोदी सरकार का विकास का मुद्दा अपनी तरफ खींचता है। पार्टी का हिन्दुत्व एजेंडा, घर वापसी, भारत माता की जय, गोहत्या निषेध जैसे मसलों पर जनता का समर्थन उस प्रकार का नहीं है जैसा आर्थिक विकास, रोजगार, स्टार्टअप और स्टैंडअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों को है।

भारतीय जनता पार्टी के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती अपनी सार्वदेशिक अपील बनाने की है। ईटी के सर्वेक्षण में भी एक बात जाहिर हो रही है कि मोदी को जो समर्थन दिल्ली और बेंगलुरु में हासिल है वह कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद में नहीं है। मुम्बई में उन्हें प्राप्त लोकप्रियता संतुलित है। फिर यह सर्वे शहरी वोटरों के बीच है। महानगरों में डॉ मनमोहन सिंह भी लोकप्रिय थे। ग्रामीण वोटरों के बीच मोदी की छवि का आकलन करने के लिए हमारे पास कोई पैमाना नहीं है। अगले महीने मई में सरकार के दो साल पूरे हो जाएंगे। यह देखना होगा कि सरकार अपनी कौन सी उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच जाएगी। उन्हीं दिनों पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम भी आएंगे जो सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ पेश करेंगे।

पर उसके पहले संसद के बजट सत्र के उत्तरार्ध को देखना होगा। सत्र का यह दूसरा हिस्सा 25 अप्रैल से शुरू होकर 13 मई तक चलेगा। सरकार जीएसटी सहित प्रमुख विधेयकों को पास कराने की कोशिश करेगी। सरकार के पास मौका है। कितना, कब और कैसे? जवाब अगले दो-एक महीनों में मिलेंगे।

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