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Sunday, August 23, 2015

उफा के बाद उफ!!

भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत शुरू होने की सम्भावना जन्म ले रही थी कि उसकी अकाल मौत हो गई। यह मामला अब वर्षों नहीं तो कम से कम महीनों के लिए टल गया। भारत की तरफ से अलबत्ता पिछले साल अगस्त में जो लाल रेखा खींची गई थी, वह और गाढ़ी हो गई है। इसका मतलब है कि भविष्य में बात तभी होगी जब पाकिस्तान बातचीत के पहले और बाद में हुर्रियत के नेताओं से बात न करने की गारंटी देगा। या भारत को अपनी यह शर्त हटानी होगी।

शनिवार को विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि यह कहना गलत है कि पाकिस्तान लम्बे अरसे से कश्मीर के अलगाववादियों से बात करता रहा है। उनका कहना था कि हमें उनकी अलगाववादियों से मुलाकात पर आपत्ति नहीं है। हमें बातचीत के पहले सलाह करने और बाद में ब्रीफ करने की औपचारिकता पर आपत्ति है, जो प्रकारांतर से अलगाववादियों को तीसरा पक्ष बना देती है।
सन 1998 के बाद से जब-जब दोनों देश बातचीत की दिशा में बढ़ते दिखाई दिए हैं तब-तब कोई न कोई अड़ंगा लगता रहा है। यह अड़ंगा बयान या शर्त के रूप में लगता रहा है या आतंकवादी गतिविधि के रूप में। सवाल है कि 24 अगस्त को प्रस्तावित एनएसए वार्ता के ठीक पहले हुर्रियत के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत क्यों करना चाहता था, जबकि पिछले साल इसी बात पर बातचीत टूटी थी?
नई लक्ष्मण रेखा
उफा में जारी संयुक्त बयान के ऑपरेटिव हिस्से में साफ-साफ कहा गया था कि एनएसए बात केवल आतंकी गतिविधियों तक सीमित होगी, तब कश्मीरी अलगाववादियों को बीच में लाने की जरूरत क्या थी? वस्तुतः उफा के बयान पर दस्तखत करने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को अपने देश में कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा। उनसे कहा गया कि इसमें कश्मीर का नाम नहीं है। इसलिए उफा का बयान जारी होने के तीन दिन के भीतर 13 जुलाई को सरताज़ अज़ीज़ ने बयान दिया कि कश्मीर को एजेंडा में शामिल किए बगैर कोई बात सम्भव नहीं है।
यह बयान पाकिस्तान के कट्टरपंथी तत्वों और सेना के दबाव में दिया गया था। पाकिस्तान में कहा जा रहा था कि उफा का संयुक्त बयान भारतीय विदेश सचिव ने तैयार किया है। पाकिस्तान में इस बात को समझने की कोशिश नहीं की गई थी कि एनएसए वार्ता कम्पोज़िट बातचीत का हिस्सा नहीं है। यह केवल आतंकवाद तक केंद्रित वार्ता है। पर इतनी बात के लिए भी पाकिस्तान राज़ी नहीं है। इसलिए इस बातचीत को टूटना ही था। बहरहाल अब दोनों देशों की तरफ से लाल रेखाएं खिंच गई हैं। भविष्य में वार्ता होगी या नहीं यह इन रेखाओं से भी निर्धारित होगा।
इसके पहले पाकिस्तान में 30 सितम्बर से हो रहे कॉमनवैल्थ देशों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अध्यक्ष को निमंत्रण ने मिलने के कारण भारत ने उस सम्मेलन के बहिष्कार का फैसला किया। यह सम्मेलन अब पाकिस्तान के बजाय न्यूयॉर्क में होगा। अब सलाहकार स्तर की बातचीत भी टल गई है, तो स्थितियाँ बेहतर होने की सम्भावनाएं और कम हो गईं हैं।  
दाऊद इब्राहीम
जिस वक्त एनएसए वार्ता का विवाद चल रहा था दाऊद इब्राहीम के कराची के फोन बिल से जुड़ी खबर मीडिया में प्रचारित हो रही थी। भारत के एक-दो चैनलों ने उन नम्बरों पर फोन करके बात भी की। एक चैनल का दावा है कि दाऊद की पत्नी ने इसकी स्वीकारोक्ति भी की। उधर सरताज़ अज़ीज़ ने शनिवार के अपने संवाददाता सम्मेलन में लहराकर रॉ की गतिविधियों से जुड़े तीन डोज़ियरों का जिक्र किया। चूंकि यह बैठक नहीं हो रही है, पर लगता है कि पाकिस्तान ने पेशबंदी के लिए भारत के खिलाफ प्रचार को बढ़ाने का फैसला किया है।
ये संदेश भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे को ही नहीं, अपनी आंतरिक राजनीति को भी दिए हैं। भारत सरकार के संदेश देश की जनता और कांग्रेस पार्टी दोनों के लिए हैं। पाक उच्चायोग के हुर्रियत को दिए गए न्योते को लेकर सबसे तेज प्रतिक्रिया कांग्रेस की ही हुई। कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार ने हुर्रियत को लेकर नई शर्त लगाकर भारत-पाक वार्ता की सम्भावना को खत्म कर दिया है। सवाल है कि अब क्या होगा। उफा के वक्तव्य का आखिरी बिन्दु था कि नरेंद्र मोदी ने अगले साल पाकिस्तान में होने वाले दक्षेस सम्मेलन में जाने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। क्या वह बिन्दु अभी प्रासंगिक है? क्या इन स्थितियों में वे पाकिस्तान यात्रा कर सकेंगे?
भारत और पाकिस्तान के बीच प्रत्यक्ष रूप से बढ़ते तनाव के बावजूद पिछले कुछ महीनों से अनौपचारिक स्तर पर संवाद कायम होने लगा था। इस साल मार्च में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मेजर जनरल (सेनि) महमूद दुर्रानी भारत आए थे और उन्होंने अजित डोभाल से मुलाकात की थी। जनरल दुर्रानी ने उस दौरान चेन्नई के दैनिक हिन्दू से कहा था कि नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान के साथ संवाद को आगे बढ़ाना चाहते हैं, पर शायद वे कम्पोज़िट डायलॉग के पुराने फॉर्मेट पर बात नहीं करना चाहते। वे शायद अपने तरीके से बात करेंगे। मार्च में ही हमारे विदेश सचिव एस जयशंकर पाकिस्तान गए। हालांकि वह यात्रा सार्क देशों की औपचारिक यात्रा का हिस्सा थी, पर उनकी पाकिस्तान के सम्बद्ध अधिकारियों से बातचीत हुई थी।
हुर्रियत से संवाद
ऐसा नहीं कि अतीत में बीजेपी सरकार ने हुर्रियत से बात नहीं की। अगस्त 2002 में हुर्रियत के नरमपंथी धड़ों के साथ अनौपचारिक वार्ता एक बार ऐसे स्तर तक पहुँच गई थी कि उस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में हुर्रियत के हिस्सा लेने की सम्भावनाएं तक पैदा हो गईं। उस पहल के बाद मीरवाइज़ उमर फारूक और सैयद अली शाह गिलानी के बीच तभी मतभेद उभरे और हुर्रियत दो धड़ों में बँट गई। उस वक्त दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और राम जेठमलानी के नेतृत्व में कश्मीर कमेटी ने इस दिशा में पहल की थी।
कश्मीर कमेटी एक गैर-सरकारी समिति थीपर माना जाता था कि उसे केंद्र सरकार का समर्थन प्राप्त था। सरकार हुर्रियत की काफी शर्तें मानने को तैयार थीफिर भी समझौता नहीं हो पाया। पर इतना ज़ाहिर हुआ कि अलगाववादी खेमे के भीतर भी मतभेद हैं।
किसकी पहल पर बात?
इस बीच कुछ सवाल उभर कर आए हैं। क्या उफा में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात भारत के आग्रह पर हुई थी? क्या वह संयुक्त घोषणापत्र भारत ने तैयार किया था, जैसाकि पाकिस्तानी मीडिया साबित कर रहा है? क्या वहाँ की सेना ने इस बातचीत को टालने की कोशिश की? या यह भारतीय कयास है कि वहाँ की सेना नागरिक सरकार पर हावी है? यह बात भी कही जा रही है कि नवाज शरीफ का आग्रह है कि भारत के साथ वार्ता में उनकी सेना भी शामिल हो।
अभी यह बात समझ में नहीं आ रही है कि पाकिस्तान में सत्ता किसके पास है। क्या नवाज़ शरीफ अपनी विदेश नीति तय कर रहे हैं या यह सेना के हाथ में है? बेशक पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान में कोई ताकत ऐसी है जो भारत के साथ रिश्ते सामान्य करने में दिलचस्पी नहीं रखती। जब भी बात शुरू होती है कहीं न कहीं से अड़ंगा लगता है।
बातचीत में अड़ंगा
पिछले एक दशक से ज्यादा का अनुभव रहा है कि बात करने का जब भी मौका आता है कहीं न कहीं कुछ होता है। 25 अगस्त 2003 को मुम्बई में धमाके हुए, सन 2007 में लखनऊ और वाराणसी में हुए धमाके हुए, जुलाई 2008 में काबुल के भारतीय दूतावास पर हमला हुआ। इसी तरह सन 2008 में जयपुर और अहमदाबाद के धमाकों के बाद 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई में हमला हुआ। इस दौरान पाकिस्तान में भी धमाके हुए। मुम्बई  पर हमले के बाद रुकी बातचीत को आगे बढ़ाने की कोशिशें शुरू होते ही 2011 में मुम्बई में फिर धमाके हुए।
पिछले साल भारत और पाकिस्तान की सचिव स्तर की बातचीत इस बात पर टूटी कि पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने हुर्रियत के प्रतिनिधियों से बात की थी। पाकिस्तान इस बार भी उनसे बात करने की घोषणा कर चुका है। ऐसा भी नहीं कि यह जानकारी बातचीत के ठीक पहले सामने आई है। पिछले महीने पाक उच्चायोग में आयोजित ईद मिलन के मौक़े पर पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित से मुलाक़ात के बाद मीरवाइज़ उमर फारूक ने यह जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जब बातचीत के लिए भारत आएंगे तो हुर्रियत नेताओं से भी मिलेंगे। मीरवाइज़ ने कहा था कि उन्हें पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने भरोसा दिया है कि भारत से कोई भी बातचीत कश्मीर के बिना नहीं हो सकती।
कश्मीर पर बात
भारत की किसी सरकार ने आज तक कभी नहीं कहा कि कश्मीर पर बात नहीं होगी। शनिवार को सुषमा स्वराज ने भी कहा कि हम कश्मीर समेत सभी मुद्दों पर बात करने के लिए तैयार हैं, पर एनएसए वार्ता उसका माहौल तैयार करने के लिए थी। नब्बे के दशक के शुरू में जब कश्मीर में पाकिस्तान की शह पर हिंसा की लहर चल रही थी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनज़ीर ने कई बार कहा कि कश्मीर का मसला विभाजन के बाद बचा अधूरा काम है। इस पर भारत के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने कहा कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की भारत में वापसी ही अधूरा रह गया काम  है। बढ़ती हुई आतंकवादी हिंसा के मद्देनज़र भारतीय संसद के दोनों सदनों ने 22 फरवरी 1994 को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और इस बात पर जोर दिया कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसलिए पाकिस्तान को अपने कब्जे वाले राज्य के हिस्सों को खाली करना होगा ।
उफा में दोनों प्रधानमंत्रियों की बैठक के बाद एक संयुक्त बयान रूस के उफा शहर में 10 जुलाई  2015 को जारी किया. उसका शुरुआती वाक्य था, ' शांति सुनिश्चित करना और विकास को प्रोत्साहन देना भारत और पाकिस्तान की सामूहिक जिम्मेदारी है। ऐसा करने के लिएवे सभी लम्बित मामलों पर चर्चा करने को तैयार हैं।यानी कश्मीर का मामला इससे बाहर नहीं है। पर क्या सुरक्षा सलाहकारों की बैठक सारे विषयों पर हो रही हैउफा के संयुक्त वक्तव्य में इसके बाद लिखा गया 'दोनों नेताओं ने दोनों पक्षों द्वारा निम्नलिखित कदम उठाए जाने पर भी सहमति प्रकट की : क. आतंकवाद से जुड़े सभी मामलों पर चर्चा के लिए दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच नई दिल्ली में बैठक।'
इस प्रकार पूरी बात पर ध्यान दें तो पता लगेगा कि इसकी प्रस्तावना में यह बात जरूर कही गई है कि दोनों देश सभी लम्बित मामलों पर बात करने को तैयार हैपर दिल्ली की वार्ता आतंकवाद से जुड़े सभी मामलों पर होगी।
दोनों विदेश सचिवों द्वारा जारी बयान के अनुसार-
• इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि शांति सुनिश्चित करना और विकास को प्रोत्साहन देना भारत और पाकिस्तान की सामूहिक जिम्मेदारी है. ऐसा करने के लिएवे सभी लम्बित मामलों पर चर्चा करने को तैयार हैं.
• दोनों नेताओं ने आतंकवाद के सभी स्वरूपों की निंदा की और दक्षिण एशिया से इस बुराई का सफाया करने के लिए एक-दूसरे से सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की.
• दोनों नेताओं ने दोनों पक्षों द्वारा निम्नलिखित कदम उठाए जाने पर भी सहमति प्रकट की:
क. आतंकवाद से जुड़े सभी मामलों पर चर्चा के लिए दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच नयी दिल्ली में बैठक.
ख. सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के महानिदेशक एवं पाकिस्तान रेंजर्स के महानिदेशक के बीच और उसके बाद डीजीएमओ की बैठकें जल्द.
ग.एक-दूसरे की हिरासत में मौजूद मछुआरों की उनकी नौकाओं सहित रिहाई के बारे में पंद्रह दिन के भीतर फैसला.
घ. धार्मिक पर्यटन को सुगम बनाने के लिए व्यवस्था.
च. दोनों पक्षों ने आवाज के नमूने मुहैया कराने जैसी अतिरिक्त सूचना सहित मुंबई मामले के मुकदमे की सुनवाई में तेजी लाने के तरीकों और साधनों पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की.

प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 2016 में होने वाले दक्षेस सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बार फिर पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया.

1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, 'छोटे' से 'बड़े' - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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