पिछले कुछ महीनों से
कांग्रेस पार्टी के आक्रामक तेवर और विपक्षी दलों के साथ उसके बेहतर तालमेल के कारण भारतीय राजनीति में बदलाव का संकेत
मिल रहा है. पिछले एक साल में नरेंद्र मोदी की सरकार की लोकप्रियता में गिरावट के
संकेत मिल रहे हैं.
बीजेपी सरकार की रीति-नीति
के अलावा कांग्रेस की बढ़ती आक्रामकता भी इस गिरावट का कारण है. पर यह आभासी
राजनीति है. इसे राजनीतिक यथार्थ यानी चुनावी सफलता में तब्दील होना चाहिए. क्या अगले
कुछ वर्षों में यह पार्टी कोई बड़ी सफलता हासिल कर सकती है?
कैसे होगा बाउंसबैक?
फिलहाल कांग्रेस
इतिहास के सबसे नाज़ुक दौर में है. देश के दस से ज्यादा राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से लोकसभा
में उसका कोई प्रतिनिधि नहीं है. सन
1967, 1977, 1989, 1991 और 1996 के साल कांग्रेस की चुनावी लोकप्रिय में गिरावट के
महत्वपूर्ण पड़ाव थे. पर 2014 में उसे अब तक की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा.
पिछले साल लोकसभा
चुनाव में हार के बाद कांग्रेस
कार्यसमिति की बैठक में कहा गया था कि पार्टी के सामने इससे पहले भी चुनौतियाँ आईं
हैं और उसका पुनरोदय हुआ है. इस बार भी वह ‘बाउंसबैक’ करेगी. सवाल है कि ‘बाउंसबैक’
कैसे और कहाँ होगा?
कार्यसमिति
की उस बैठक के बाद पार्टी की हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू-कश्मीर और
दिल्ली विधानसभा चुनावों में हार
हुई. अब यह देखें कि सन 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले जिन विधानसभाओं के चुनाव
होने वाले हैं, उनमें कांग्रेस की सम्भावना क्या है.
राज्यों में धार
कहाँ है?
सबसे पहले इस साल
बिहार में चुनाव होंगे. इन चुनावों के लिए पार्टी ने राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल
(युनाइटेड) के साथ ‘महागठबंधन’ बनाया है. इस
गठबंधन की जीत होने पर भी इस बात की उम्मीद नहीं है कि कांग्रेस को कोई विशेष लाभ
मिलेगा. फायदा या तो नीतीश कुमार को मिलेगा या लालू यादव को.
इसके बाद अप्रैल-मई 2016
में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और असम में चुनाव होंगे. इन चार में से केवल
केरल और असम में कांग्रेस मुकाबले में है. तमिलनाडु और बंगाल के मुकाबले ये छोटे
राज्य हैं. केरल में हरेक चुनाव में सरकार बदलते की परम्परा है. इस वक्त वहाँ
कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार है. यानी वाम मोर्चे का नम्बर है.
असम में लगातार तीन
बार से कांग्रेस की सरकार है. इस बार बीजेपी मुकाबले में आना चाहती है. पिछले लोकसभा चुनाव में उसे असम की
चौदह में से सात सीटें हासिल हुई थीं. फिर भी कांग्रेस की सम्भावना मानी जा सकती
है.
सबसे
महत्वपूर्ण साल होगा 2017
चुनावी
राजनीति के लिहाज से सन 2017 बहुत महत्वपूर्ण वर्ष होगा. उस साल हिमाचल, गुजरात, उत्तर
प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा विधानसभाओं के चुनाव होंगे. इनमें से पंजाब में
कांग्रेस की बेहतर सम्भावना है, पर राजनीति लिहाज से उत्तर प्रदेश और गुजरात के
चुनाव होंगे.
उत्तर
प्रदेश में कांग्रेस को बड़ी उम्मीद नहीं करनी चाहिए, पर यदि वह गुजरात में बीजेपी
को शिकस्त दे सके तो उसकी बड़ी सफलता माना जाएगा. क्या ऐसा सम्भव है?
उस
साल राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति पद के चुनाव भी होंगे. कांग्रेस अपने प्रत्याशी
खड़े करेगी या अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर कोई रणनीति बनाएगी? यह बहुत कुछ विधानसभा चुनाव परिणामों
पर निर्भर करेगा. उस साल राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव भी होंगे.
राज्यसभा
की बढ़त भी खत्म होगी
अनुमान
है कि उसके बाद राज्यसभा में कांग्रेस की बढ़त कायम नहीं रहेगी, क्योंकि इस बीच
विधानसभाओं के सदस्यों की संख्या में बदलाव आ चुका है. संसदीय कार्यों में
राज्यसभा की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती जा रही है. इस लिहाज से वे चुनाव
महत्वपूर्ण होंगे.
सन
2019 के लोकसभा चुनाव के पहले 2018 में जिन राज्यों के विधानसभा चुनाव होंगे, उन
सब में कांग्रेस की परीक्षा है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक इन
चारों राज्यों से में बीजेपी और कांग्रेस दोनों की इज्जत दाँव पर होगी.
तीन
राज्यों में सीधा मुकाबला
इन
दिनों कांग्रेस जिन चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों को निशाना बना रही है, उनमें से
तीन राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव उस साल होंगे. तीनों राज्य में दो पार्टियों
के बीच सीधा मुकाबला होता है और कर्नाटक में त्रिकोणीय.
इन
चुनावों के बाद सन 2019 के लोकसभा चुनावों के साथ ही आंध्र, तेलंगाना और उड़ीसा के
चुनाव होने की सम्भावना है. इन चार वर्षों में कांग्रेस को पाने और खोने दोनों के
अवसर मिलेंगे.
कांग्रेस
के लिए यह समय संगठनात्मक बदलाव का भी है. इस साल आशा थी कि पार्टी राहुल गांधी के
हाथ में पूरी तरह बागडोर सौंप देगी, पर अभी तक ऐसा हुआ नहीं है. देखना यह भी है कि
क्या पार्टी क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करेगी. और क्या इसका फायदा उसे मिलेगा?
2019 तक
होने वाले चुनाव और कांग्रेस की सम्भावनाएं
विधानसभा
|
वर्ष
|
लोस सीटें
|
रासभा
सीटें
|
कांग्रेस की सम्भावना
|
बिहार
|
2015
|
40
|
16
|
भाजपा हारी भी तो फायदा कांग्रेस का नहीं
|
असम
|
2016
|
14
|
07
|
एंटी इनकम्बैंसी का साया, बावजूद इसके बराबरी
की स्थिति
|
बंगाल
|
2016
|
42
|
16
|
कोई सम्भावना नहीं
|
तमिलनाडु
|
2016
|
39
|
18
|
कोई सम्भावना नहीं
|
केरल
|
2016
|
20
|
09
|
एंटी इनकम्बैंसी के कारण विपरीत स्थिति
|
हिमाचल
|
2017
|
04
|
03
|
एंटी इनकम्बैंसी के कारण विपरीत स्थिति
|
गुजरात
|
2017
|
26
|
11
|
उत्साहजनक स्थिति नहीं
|
उत्तर प्रदेश
|
2017
|
80
|
31
|
विशेष सम्भावना नहीं
|
उत्तराखंड
|
2017
|
05
|
03
|
एंटी इनकम्बैंसी के कारण विपरीत स्थिति
|
पंजाब
|
2017
|
13
|
07
|
अकाली दल की बदनामी और एंटी इनकम्बैंसी के कारण
कांग्रेस की बेहतर सम्भावना
|
गोवा
|
2017
|
02
|
01
|
भाजपा के साथ बराबरी का मुकाबला सम्भव
|
छत्तीसगढ़
|
2018
|
11
|
05
|
बराबरी का मुकाबला, पर कांग्रेस की बेहतर सम्भावना. एनडीए पर एंटी इनकम्बैंसी का साया
|
कर्नाटक
|
2018
|
28
|
12
|
एंटी इनकम्बैंसी का साया
|
मध्य प्रदेश
|
2018
|
29
|
11
|
भाजपा पर एंटी इनकम्बैंसी का साया. कांग्रेस की सम्भावना
|
राजस्थान
|
2018
|
25
|
10
|
भाजपा पर एंटी इनकम्बैंसी का साया. कांग्रेस की सम्भावना
|
आंध्र प्रदेश
|
2019
|
25
|
11
|
विशेष सम्भावना नहीं
|
तेलंगाना
|
2019
|
17
|
07
|
टीआरएस को हराने की स्थिति में कांग्रेस नहीं
|
ओडिशा
|
2019
|
21
|
10
|
बीजद के सामने कांग्रेस की सम्भावना नहीं
|
हरियाणा
|
2019
|
10
|
05
|
सम्भावना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद
चुनाव होंगे.
|
महाराष्ट्र
|
2019
|
48
|
19
|
सम्भावना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद
चुनाव होंगे.
|
जम्मू-कश्मीर
|
2019
|
06
|
04
|
सम्भावना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद
चुनाव होंगे.
|
झारखंड
|
2019
|
14
|
06
|
सम्भावना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद
चुनाव होंगे.
|
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