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Thursday, January 2, 2014

टेक्नोट्रॉनिक क्रांति 2014

हर रोज़ कुछ नया, कुछ अनोखा
 हाल में दिल्ली में हुए इंडो-अमेरिकन फ्रंटियर्स ऑफ इंजीनियरिंग सिंपोज़ियम में कहा गया कि सन 2014 में बिगडेटा, बायोमैटीरियल, ग्रीन कम्युनिकेशंस और सिविल इंजीनियरी में कुछ बड़े काम होंगे. बिगडेटा यानी ऐसी जानकारियाँ जिनका विवरण रख पाना ही मनुष्य के काबू के बाहर है. मसलन अंतरिक्ष से जुड़ी और धरती के मौसम से जुड़ी जानकारियाँ. इनके विश्लेषण के व्यावहारिक रास्ते इस साल खुलेंगे. सन 2014 में साइंस और टेक्नॉलजी की दुनिया में क्या होने वाला है, इसपर नज़र डालते हैं.

सत्तर के दशक में अमेरिका के सुरक्षा सलाहकार जिग्न्यू ब्रजेंस्की ने शब्द दिया था टेक्नोट्रॉनिक रिवॉल्यूशन, जो आज का सच है. सन 2014 में दुनिया के वैज्ञानिक तकनीकी विकास की ओर नज़र डालें तो लगेगा कि तकनीक हमारे जीवन और संस्कृति में आए क्रांतिकारी बदलावों को इस साल कई गुना बढ़ाने वाली है. हाल में दिल्ली में चुनाव जीतकर आई आम आदमी पार्टी को अपनी सफलता का श्रेय सोशल मीडिया को देना चाहिए, जो नई तकनीक की देन है. टेक टायकून एक नया शब्द है. वे लोग देखते ही देखते अरबपति-खरबपति बन गए, सिर्फ टेक्नॉलजी के कारण. फेसबुक के मार्क जुकेनबर्ग, ऑरेकल के लैरी एलिसन या माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स. स्मार्टफोन को कारोबार ने मोटरगाड़ियों के बिजनेस को पीछे छोड़ दिया है. 290 अरब डॉलर का कारोबार करने वाली कंपनी गूगल अब जनरल मोटर्स से छह गुना बड़ी है. पर उसके कर्मचारियों की तादाद जनरल मोटर्स का पंचमांश भी नहीं. अमेरिका में इन टेक टायकूनों को लेकर नाराज़गी है. इन्हें सब्सिडी मिलती है, टैक्स से छूट मिलती है. जबकि ये डॉलरों के ढेर पर ऐश करते हैं.

थ्री-डी प्रिंटेड अंग
बायोमैटीरियल और सिंथेटिक बायलॉजी का मतलब है जीवन को अपने अनुकूल ढालना. इस साल विज्ञान डीएनए में बदलाव करके बीमारियों के इलाज के नए रास्ते खुलेंगे. इसे जेनोम संपादन भी कह सकते हैं. कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज शरीर खुद कर सके. जीन थिरैपी के लिहाज से यह साल महत्वपूर्ण हो सकता है. इस साल ऐसे छोटे उपकरण बाज़ार में आएंगे जिन्हें मोबाइल फोन की तरह साथ में रखा जा सकेगा या मोबाइल फोन का ही हिस्सा होगा. इनके मार्फत ब्लड शुगर, हृदय की धड़कनों से लेकर शरीर की तमाम क्रियाओं पर नज़र रखेंगे और ज़रूरी इलाज भी करेंगे. माइक्रोचिप के सस्ता होते जाने के कारण इंटरनेट अब आपके शरीर पर भी ध्यान रखेगा. अमेरिका के सैन डियागो में स्थित बायो थ्री-डी प्रिंटिंग फर्म ऑर्गनोवो ने दावा किया है कि 2014 में प्रिंटेड कृत्रिम लिवर तैयार मिलने लगेंगे. यह लिवर अभी इंसान के शरीर में लगाया नहीं जा सकेगा. अभी इसका इस्तेमाल औषधियों के विकास में किया जाएगा, पर इतना तय है कि इनसान ने लिवर टिश्यूज़ का इस्तेमाल करके एक पूरा लिवर बनाने में सफलता हासिल कर ली है. थ्री-डी प्रिटेंड ट्रांसप्लांट अंगों का दौर शुरू होने ही वाला है.

फैशन और तकनीक
इस साल गूगल ग्लास को बाजार में उतारने जा रहा है. गूगल ग्लास न सिर्फ मोबाइल फोन की तकनीक में बुनियादी बदलाव लाने वाला है, बल्कि फैशन के भी नए मुहावरे लाने वाला है. हालांकि गूगल ग्लास देखने में चश्मे जैसा है, पर उसमें लेंस नहीं है. अब गूगल वाले सनग्लास बनाने वाली रे बैन और वार्बी पार्कर के साथ बात कर रहे हैं. गूगल ग्लास की कीमत 300 से 600 डॉलर के बीच रखने की आशा है. यानी एपल फोन से भी कम. हाथ में पहनने वाले ऐसे रिस्टबैंड इस साल बाज़ार में आने वाले हैं जो मोबाइल फोन, कंप्यूटर का काम करने के अलावा आपकी सेहत का हिसाब-किताब भी रखेंगे. फोन और कंप्यूटर अब आवाज़ पर काम करेंगे.

आपकी वर्च्युअल उपस्थिति
पिछले कुछ वर्षों में वीडियो कम्युनिकेशन क्रांतिकारी अवधारणा साबित हुई. दुनियाभर के व्यावसायिक, राजनीतिक और राजनयिक संवाद अब वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हो रहे हैं. सन 2012 में इप्सॉस-रायटर्स के पोल से पता लगा था कि अब दुनिया के पाँच में से एक व्यक्ति टेलीकम्यूट करता है. स्काइप के 30 करोड़ यूज़र हैं. पर इस साल एक नया चमत्कार होने वाला है. यह है होलोग्राफिक टेलिप्रेज़ेंस. एक जगह से दूरी जगह थ्री-डी तस्वीर का प्रसारण. आप जिस व्यक्ति से बात कर रहे हैं, वह वास्तव में सामने बैठा दिखाई देगा. यह तकनीक तैयार है केवल इंतज़ार है कि कौन सी कंपनी इसके व्यावसायिक मॉडल को सामने लेकर आती है.

अंतरिक्ष पर्यटन
रिचर्ड ब्रैंनसन की कंपनी वर्जिन आम लोगों के लिए अंतरिक्ष की सैर का कार्यक्रम तैयार कर रही है. आपकी जेब में पैसा है तो इस साल गर्मियों की छुट्टियाँ अंतरिक्ष में बिताने की तैयारी कीजिए। रिचर्ड ब्रॉनसन की कम्पनी वर्जिन एयरलाइंस ने पिछले साल सितंबर में अपने स्पेसक्राफ्ट वर्जिन गैलेक्टिकका दूसरा सफल परीक्षण कर लिया। वर्जिन गैलेक्टिक पर सवार होकर अंतरिक्ष में जाने वालों की बुकिंग शुरू हो गई है। एक टिकट की कीमत ढाई लाख डॉलर यानी कि तकरीबन डेढ़-पौने दो करोड़ रुपए है, जो डॉलर की कीमत के साथ कम-ज्यादा कुछ भी हो सकती है। नवंबर 2013 में घोषणा की गई कि सन 2014 में किसी दिन जब न्यू मैक्सिको से पहली प्राइवेट अंतरिक्ष सेवा शुरू होगी तब टीवी नेटवर्क एनबीसी उसका सीधा प्रसारण करेगा. उम्मीद है इस साल तकरीबन 500 लोग अंतरिक्ष यात्री बन जाएंगे. वर्जिन गैलेक्टिक आपको किसी दूसरे ग्रह पर नहीं ले जाएगा। बस आपको सब ऑर्बिटल स्पेस यानी कि पृथ्वी की कक्षा के निचले वाले हिस्से तक ले जाकर वापस ले आएगा। कुल जमा दो घंटे की यात्रा में आप छह मिनट की भारहीनता महसूस करेंगे। जिस स्पेसशिप-2 में आप विराजेंगे उसमें दो पायलट होंगे और आप जैसे छह यात्री। वर्जिन गैलेक्टिक की तरह कैलिफोर्निया की कम्पनी एक्सकोर ने लिंक्स रॉकेट प्लेन तैयार किया है। यह भी धरती से तकरीबन 100 किलोमीटर की ऊँचाई तक यात्री को ले जाएगा। इस साल नासा सितंबर में सुदूर अंतरिक्ष में समानव स्पेस शटल भेजने के लिए परीक्षण फ्लाइट टेस्ट-1 नाम से का प्रक्षेपण करेगा.
कार्डों का बाप
अभी तक परेशानी यह थी आपके पास कई तरह के कार्ड होते थे. क्रेडिट कार्ड, डैबिट कार्ड, आई कार्ड, लाइब्रेरी कार्ड, सुपर स्टोरों के ग्राहक कार्ड, कार की इमर्जेंसी सेवा के कार्ड, रिसॉर्ट्स के और होटलों के कार्ड. यानी कार्डों को संभालना मुश्किल था. अब अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को की कंपनी कॉइन ने कार्ड की शक्ल की ऐसी डिवाइस तैयार की है, जिसमें आठ लॉयल्टी, डैबिट, क्रेडिट और गिफ्ट कार्ड की जानकारी दर्ज होती है. ग्राहक को सिर्फ बटन दबाना होगा कि किस कार्ड का इस्तेमाल करना है. यह कार्ड खो जाए तब भी कोई बात नहीं. यह आपके स्मार्टफोन से सिंक होगा.

शंघाई का अंडरग्राउंड होटल
चीन के शंघाई शहर से तकरीबन 35 किलोमीटर दूर बन रहा है इंटर कॉंटिनेंटल ग्रुप का होटल. तियानमेनशान पहाड़ी में बन रहे इस होटल की दो मंजिलें 330 फुट की पहाड़ी के शिखर के बाहर होंगी, 17 मंजिलें ज़मीन के नीचे और दो मंजिलें पानी के अंदर. सन 2014 के अंत तक यह होटल काम शुरू कर देगा. यह होटल इंजीनियरी का चमत्कार होगा. इंजीनियरी के चमत्कार इस साल लगातार देखने को मिलेंगे, खासतौर से विकासशील देशों में.

भारतीय विज्ञान और तकनीक
हर साल की शुरूआत भारतीय विज्ञान कांग्रेस के साथ होती है. पिछले साल भारतीय विज्ञान कांग्रेस ने 100 साल पूरे किए थे. इंडियन साइंस एसोसिएशन सन 1914 से काम कर रही है. पिछले साल जनवरी में कोलकाता में राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस के साथ इसका शताब्दी-वर्ष शुरू हुआ था. उससे पहले भुवनेश्वर में राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री ने कहा था कि हम विज्ञान और तकनीक में चीन से पिछड़ गए हैं. कोलकाता में राष्ट्रीय विज्ञान, तकनीक और नवोन्मेष की नई नीति की घोषणा भी की गई. अब 101 वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन इस साल 3 से 7 फरवरी तक जम्मू विश्वविद्यालय में किया जाएगा. सामान्यतः पाँच दिन का यह सम्मेलन 3 जनवरी से शुरू होता है, पर उत्तर भारत में ठंडे मौसम को देखते हुए इस बार यह बदलाव किया गया है. इस साल के कांग्रेस का फोकस है समावेशी विकास के लिए विज्ञान और तकनीक में नवोन्मेष.इस साइंस कांग्रेस में 12000 से 15000 के बीच प्रतिनिधि भाग लेंगे. इनमें कई नोबेल विजेता और वरिष्ठ भारतीय वैज्ञानिक भी होंगे. इस साल लोकसभा चुनाव के बाद नई सरकार आएगी, जिसे विज्ञान र तकनीक के मामले में नीतिगत फैसले करने हैं. अलबत्ता नए राजमार्गों और बुलेट ट्रेनों का दौर शुरू होने वाला है. देश के छह मार्गों पर हाईस्पीड यानी 300 किलोमीटर की गति से ज्यादा तेजी से रेलगाड़ियाँ चलाने की स्टडी चल रही है. रेल विकास निगम के अंतर्गत हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन के नाम से एक नई कम्पनी बनाई गई है. सफलताएं अपनी जगह हैं पर पिछले साल उत्तराखंड में आई आपदा और हमारे वैज्ञानिक अधिष्ठान की विफलता अपनी जगह है. तमाम रिमोट सेंसिंग तकनीकें पास में होने के बावजूद पिछले साल मई के महीने में बस्तर में और फिर झारखंड में नक्सली हमलों का पता हम नहीं लगा पाए. देश के बच्चों को सस्ता टेबलेट आकाश बांटने की महत्वाकांक्षी योजना फ्लॉप हो गई. सूचना एवं प्रोद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल को तकलीफ है कि आकाश टैबलेट सबको मुहैया कराने का सपना पूरा नहीं कर पाए. पर अब इस योजना को 2014 में दूरसंचार विभाग के जरिए पूरा करने का विचार है. कपिल सिब्बल ने कहा कि जनवरी में आकाश 4 के लिए निविदा प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि देश में 10 लाख से ज्यादा लोगों को इंटरनेट साक्षर बनाने के लिए सरकार 100 करोड़ रुपए खर्च करेगी.

जीएसएलवी का परीक्षण
इसी 4 जनवरी को हमारे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी-डी5 के प्रक्षेपण की उलटी गिनती शुरू हो जाएगी. सब ठीक रहा तो 5 जनवरी को दिन के 4 बजकर 18 मिनट पर चेन्नई से 100 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से यह रॉकेट उड़ान भरेगा और अगले कुछ मिनट में ही पता लग जाएगा कि यह सफल रहा या नहीं. जीएसएलवी अपने साथ 1982 किलोग्राम वज़न के उपग्रह जीसैट-14 को ले जाएगा. इस उपग्रह में 6 केयू बैंड और छह एक्सटेंडेड सी बैंड ट्रांसपोंडर होंगे, जो देश भर में चल रहे प्रसारण कार्यों को और बेहतर बनाएंगे. इसका जीवनकाल 12 साल का होगा और इसका उपयोग टेली-मेडिसन और टेली-एजुकेशन सेवाओं के लिए भी होगा. इस रॉकेट और उपग्रह का प्रक्षेपण 19 अगस्त 2013 को अंतरिक्ष में रवाना होने के पहले उलटी गिनती के दौरान रोक दिया गया था. रॉकेट के दूसरे चरण के इंजन से तरल ईंधन के रिसाव का पता चलने के बाद प्रक्षेपण कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया था. जीएसएलवी से ज्यादा यह उसके क्रायोजेनिक इंजन का परीक्षण है. रूसी क्रायोजेनिक इंजन के साथ भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (जीएसएलवी) मार्क I II,  इन्सैट-2 श्रेणी के उपग्रहों (2000-2500 किग्रा) को भू-तुल्यकाली अंतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित करने में सक्षम है. जीएसएलवी की पहली उड़ान 1540 कि.ग्रा. भार वाले जीसैट-1 के प्रमोचन द्वारा 18 अप्रैल, 2001 को हुई थी। इसके बाद इसके छह परीक्षण और हुए हैं। इनमें से चार सफल और तीन विफल रहे. रॉकेट के तीसरे चरण के क्रायोजेनिक इंजन का निर्माण और डिज़ाइन इसरो ने किया है. क्रायोजेनिक इंजन अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली होता है. भारतीय क्रायोजेनिक इंजन की सफलता ऐसे रॉकेटों के निर्माण की दिशा में पहला सफल कदम होगा, जो अधिक वजन उठाने यानी, चार टन तक के भार वाले उपग्रह को ले जाने में सक्षम हो. भविष्य में भारत को दूसरे ग्रहों की यात्रा करने लिए या अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए चार टन से भी ज्यादा वज़न ले जाने वाले रॉकेटों की जरूरत होगी. जीसैट-14 के फौरन बाद इसी साल जीसैट-15 भी छोड़ा जाएगा. इसके लिए यूरोपियन एरियान रॉकेट चुना गया है. इस समय इसरो के पास नौ इंसैट-जीसैट संचार उपग्रह हैं जो लगभग 195 ट्रांसपोंडरों को विभिन्न प्रकार की फ्रीक्वेंसी बैंड मुहैया कराते हैं. जीसैट-15 दसवाँ उपग्रह होगा, जिसमें 24 केयू बैंड ट्रांसपोंडर और दो गगन नेवीगेशन पेलोड होंगे.

मंगलयान
पिछले साल 5 नवंबर को भारत ने जो मंगलयान छोड़ा था, उसकी सफलता या विफलता का पता इस साल लगेगा। इस यान के लिए हमें खासतौर से जीएसएलवी की हमें ज़रूरत थी. पर वह समय से तैयार नहीं हो पाया. मंगल पर पिछले साल हम यान न भेजते तो फिर दो साल बाद वह मौका मिलता. इसके कारण हमें मंगलयान का वज़न कम करना पड़ा. सके उपकरणों की संख्या कम हुई. साथ ही इसका यात्रा पथ अपेक्षाकृत लंबा और समय साध्य हो गया. भारत के मंगलयान के प्रक्षेपण के दो हफ्ते बाद अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने मंगल ग्रह के लिए अपना मावेन (मार्स ऐट्मस्फियर एंड वोलाटाइल एवोल्यूशन) यान भेजा है. हमारा मंगलयान इस साल 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा और उसके के दो दिन पहले अमेरिकी मावेन. इसकी वजह यह है कि हमारा मंगलयान धरती के प्रभाव क्षेत्र से 30 नवंबर और 1 दिसंबर की रात में बाहर आ पाया. उसके पहले वह इस यान में लगे थ्रस्टरों की मदद से इसे धीरे-धीरे ऊँची कक्षा में लाया गया. इसके विपरीत अमेरिकी यान सीधे ही ऊँची कक्षा में भेज दिया गया था. बहरहाल हमारे वैज्ञानिकों एक जटिल काम को पूरा करके दिखाया है. मंगल ग्रह पर पहुंचने के बाद मंगलयान और मावेन के बीच आपस में सहयोग होगा. मावेन के मुकाबले मंगलयान मिशन भारत की ओर से एक 'छोटा और साधारण' प्रयास है. हम ज्यादा से ज्यादा इसे मंगल की 380 किलोमीटर गुणा 80,000 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित कर पाएंगे.

गगन प्रणाली
इस साल भारत कम से कम बारह उपग्रहों के प्रक्षेपण करेगा. इनमें सबसे महत्वपूर्ण काम है वायु मार्ग की दिशासूचक प्रणाली गगन को चालू करना. गगन का पूरा नाम है जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड नेवीगेशन. यह प्रणाली भारतीय आकाश मार्ग से गुजर रहे विमानों के पायलटों को तीन मीटर तक का अचूक दिशा ज्ञान देगी. पिछले साल भारत ने 1 जुलाई को अपने नेवीगेशन सैटेलाइट (आईआरएनएसएस) का प्रक्षेपण करके विज्ञान और तकनीक के मामले में काफी लम्बा कदम रखा था. इस नेटवर्क को पूरा करने के लिए अभी छह और सैटेलाइट भेजे जाएंगे. यह काम 2014 में ज़ारी रहेगा और उम्मीद है कि इससे जुड़े अधिकतर उपग्रह इस साल ही छोड़े जाएंगे. चूंकि चार सैटेलाइटों के कक्षा में पहुँच जाने के बाद यह प्रणाली काम शुरू कर देगी, इसलिए आशा है कि इस साल यह काम शुरू हो जाएगा. अलबत्ता सातों सैटेलाइटों का काम 2015 तक पूरा होना है. ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम का इस्तेमाल हवाई और समुद्री यात्राओं के अलावा सुदूर इलाकों से सम्पर्क रखने में होता है. काफी ज़रूरत सेना को होती है. खासतौर से मिसाइल प्रणालियों के वास्ते. 

विक्रमादित्य, तेजस और अरिहंत

तकरीबन दो महीने की यात्रा पूरी करके इसे विमानवाहक पोत विक्रमादित्य अब जनवरी के महीने में भारत पहुँचने की आशा है. भारत पहुंचने के बाद इसे अरब सागर में नौसेना के करवार स्थित अड्डे पर लाया जाएगा. 284 मीटर लंबे इस युद्ध पोत पर मिग-29के, कामोव 31 और कामोव 28 पनडुब्बी रोधी युद्धक और समुद्री निगरानी हेलिकॉप्टर तैनात होंगे. रक्षामंत्री एके एंटनी ने पिछले महीने स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस को आरंभिक संचालन स्वीकृति (आईओसी) दे दी. इस औपचारिक घोषणा के बाद 2014 में 48 तेजस-मार्क-1 विमान भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत्त हो रहे 77 मिग-21 विमानों का स्थान लेंगे. उम्मीद है इस साल के अंत तक इस विमान को फाइनल ऑपरेटिंग क्लियरेंस भी मिलेगी. इसके साथ-साथ इस विमान के मार्क-2 का काम भी इसी साल चलेगा. परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बी अरिहंत का परमाणु रिएक्टर पिछले साल अगस्त में चालू किया गया. अभी इसका परीक्षण चल रहा है. अब इस साल इसके हथियारों का परीक्षण होगा. पिछले साल भारत के रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अपने के-15 सागरिका मिसाइल का पानी के नीचे बनाए गए पॉण्टून से परीक्षण किया था. अब इस साल इसे अरिहंत पर तैनात करके वास्तविक परीक्षण किया जाएगा. इसके बाद भारत को जमीन, आकाश और पानी के भीतर से परमाणु आयुध छोड़ने की क्षमता हासिल हो जाएगी.  
प्रभात खबर में प्रकाशित
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