समाचार एजेंसी रायटर्स ने खबर दी है कि चीन ने भूटान के साथ विवादित-क्षेत्र में इमारतें बनाने का काम तेज गति से शुरू कर दिया है। एजेंसी के लिए किए गए सैटेलाइट फोटो के विश्लेषण से पता लगा है कि छह जगहों पर 200 से ज्यादा इमारतों के निर्माण का काम चल रहा है। इन निर्माणों के पीछे की चीनी मंशा को समझने की जरूरत है। चूंकि अब चीन और भूटान के बीच सीधी बातचीत होती है, इसलिए अंदेशा पैदा होता है कि कहीं वह भूटान को किसी किस्म का लालच देकर ऐसी जमीन को हासिल करना तो नहीं चाहता, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करे।
ये तस्वीरें और उनका विश्लेषण अमेरिका की डेटा
एनालिटिक्स फर्म हॉकआई360 (HawkEye 360) ने उपलब्ध कराया है। सैटेलाइट
चित्र कैपेला स्पेस और प्लेनेट लैब्स नाम की फर्मों ने उपलब्ध कराए हैं। चीन जिन
गाँवों का निर्माण कर रहा है, वे डोकलाम पठार से 30 किमी से भी कम दूरी पर हैं। सूत्रों ने कहा कि भूटान में विवादित
क्षेत्र के भीतर चीनी गांवों का इस्तेमाल सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों के लिए
किए जाने की संभावना है।
भूटान की पश्चिमी सीमा पर चीनी निर्माण की गतिविधियाँ 2020 के शुरुआती दिनों से ही चल रही हैं। शुरू में रास्ते बनाए गए और जमीन समतल की गई। 2021 में काम तेज किया गया, इमारतों की बुनियाद डाली गई और फिर इमारतें खड़ी की गईं। इन सभी छह जगहों को लेकर भूटान और चीन के बीच विवाद है। जब रायटर्स ने इस सिलसिले में भूटान के विदेश मंत्रालय से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि हम अपने सीमा विवाद की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं करते हैं। उधर चीन के विदेश मंत्रालय का कहना है कि ये निर्माण स्थानीय निवासियों की सुविधा के लिए किए जा रहे हैं। यह चीनी क्षेत्र है और हमें अपनी जमीन पर निर्माण करने का अधिकार है।
डोकलाम पठार 2017
में सुर्खियों में था, जब भारतीय सेना और चीनी पीपुल्स
लिबरेशन आर्मी (पीएलए) 70 दिनों से अधिक समय तक आमने-सामने थी।
भारतीय सैनिकों की ओर से इस क्षेत्र में डटे रहने के बाद चीनियों को अंतत: क्षेत्र
से पीछे हटना पड़ा था। डोकलाम भारत, चीन और भूटान के
बीच ट्राइजंक्शन पर एक पठार और एक घाटी से युक्त 100
वर्ग किमी का क्षेत्र है। पठार तिब्बत की चुम्बी घाटी, भूटान
की हा घाटी और भारत के सिक्किम से घिरा हुआ है।
2017 में चीन डोकलाम में ढांचागत विकास
कार्य कर रहा था, जिस पर भारत ने आपत्ति जताई थी। चीन ने
तब दावा किया था कि भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद है और जिस पर भारत का कोई दावा
नहीं है।
हालांकि, भारत
ने 73 दिनों तक चीनी सैनिकों की तैनाती की बराबरी
करते हुए इसका खंडन किया और अपनी जमीन पर खड़ा रहा।
चीन द्वारा यह कहते हुए गतिरोध शुरू किया गया
था कि वह अपने क्षेत्र में एक सड़क का निर्माण कर रहा है। इसका भारत द्वारा विरोध
किया गया था, जिसने कहा था कि चीनी सड़क निर्माण स्थल भूटानी
क्षेत्र है।
पिछले साल अक्टूबर में, चीन
और भूटान ने अपने सीमा विवादों को हल करने के लिए तीन-चरणीय रोडमैप पर एक समझौते
पर हस्ताक्षर किए थे। भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि वह इस घटनाक्रम पर
नजर बनाए हुए है।
भूटान और चीन के बीच सीमा वार्ता 1984 में शुरू हुई थी और दोनों पक्षों ने विशेषज्ञ समूह स्तर पर 24 दौर की बातचीत और 10 दौर की बैठक की जा चुकी है।
इससे पहले भूटान अपनी जमीन पर चीनी घुसपैठ को
लेकर कई बार आपत्ति जता चुका है।
भारत और चीन के बीच सीमा-विवाद को लेकर हाल की
तीन घटनाएं ध्यान खींचती हैं। पूर्वी लद्दाख में एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण
रेखा पर जारी सीमा विवाद को सुलझाने के लिए कोर कमांडर स्तर पर 12 जनवरी को हुई 14वें
दौर की बातचीत में भी कुछ नतीजा निकला नहीं। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन अप्रेल
2020 से पहले की स्थित बहाल करने को तैयार नहीं है। यानी पूर्वी लद्दाख में हॉट
स्प्रिंग, देपसांग बल्ज और चार्डिंग नाला या देमचोक
क्षेत्र में चीन पीछे हटने को तैयार नहीं है।
इस बीच चीनी सैनिकों की घुसपैठ की कोशिशें जारी
हैं। नए साल की शुरुआत में चीनी सरकारी मीडिया ने गलवान क्षेत्र में चीनी झंडा
फहराने की तस्वीरें जारी कीं। उधर गत 23 अक्तूबर को 14 देशों के साथ लगी अपनी
22,100 किलोमीटर लम्बी ज़मीनी सीमा की पहरेदारी को लेकर एक कानून को पास किया है।
कानून का लब्बो-लुबाव है कि किसी भी प्रकार के अतिक्रमण का चीनी सेना तगड़ा जवाब
देगी। इसके अंतर्गत सीमा पर रहने वाले नागरिकों को भी कुछ अधिकार और दायित्व सौंपे
गए हैं।
खासतौर से तिब्बत की सीमा से लगे भारत, भूटान और नेपाल के गाँवों के नागरिकों को पहली रक्षा-पंक्ति के रूप
में काम करने की जिम्मेदारी दी गई है। यह कानून 1 जनवरी 2022 से लागू हो गया है।
कानून का मंतव्य है कि चीन की अखंडता को चुनौती
देने वाली किसी भी गतिविधि के खिलाफ राज्य और सेना कार्रवाई करे। कानून की धारा 22
में चीनी सेना के कर्तव्यों को गिनाया गया है। चीनी संसद दिखावटी संस्था है। मूलतः
यह प्रस्ताव वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार के इरादों को व्यक्त करता है।
हाल में दक्षिण चीन सागर पर सीनाजोरी दिखाते
हुए और ताइवान की हवाई सीमा का बार-बार उल्लंघन करके चीन लगातार अपने आक्रामक
इरादों को व्यक्त कर रहा है।
पहली नज़र में चीन के इस नए कानून के पीछे
सदाशयता नज़र आती है कि वह अपने पड़ोसियों के साथ विवादों को निपटाना चाहता है,
पर इसे व्यापक संदर्भों में देखें, तो
इसके पीछे की आक्रामकता साफ नजर आती है। इसके पीछे भाव यही है कि हम हर कीमत पर
अपनी बात मनवाएंगे।
इसमें अपनी अखंडता की रक्षा और उसके पीछे चीनी
सेना की ताकत को रेखांकित किया गया है। इस कानून में जनमुक्ति सेना (पीएलए) और
सशस्त्र जन पुलिस (पीएपी) की भूमिकाओं को रेखांकित किया गया है।
इस कानून में चार स्थितियों को बताया गया है,
जब सीमा और बंदरगाहों को बंद किया जा सकता है या आपातकालीन कदम उठाए
जा सकते हैं। एक, सीमा पर युद्ध की स्थिति में, जब चीन की स्थिरता और सुरक्षा पर खतरा है।
दो, जब कोई ऐसी घटना
हो जाए, जिससे सीमा पर रहने वाले नागरिकों का जीवन खतरे
में आ जाए। तीन, प्राकृतिक आपदा, सार्वजनिक
स्वास्थ्य या नाभिकीय, जैविक और रासायनिक प्रदूषण के कारण
खतरा पैदा हो जाए। चार, कोई और स्थिति जिससे सीमा-क्षेत्र या
उसकी सुरक्षा पर खतरा पैदा हो जाए।
कानून में सीमा-क्षेत्र की नागरिक सुविधाओं की
बातें भी हैं, पर मूल-स्वर सुरक्षा का है। चीन ने
इसके काफी समय पहले समुद्री सीमा की सुरक्षा से जुड़ा तटरक्षक कानून भी पास किया
था, पर अब जमीनी सीमा से जुड़े कानून पर खासतौर से
भारत को ध्यान देना चाहिए।
चीन ने काफी देशों के साथ अपने सीमा-विवाद
निपटा लिए हैं, पर भारत के साथ विवाद को निपटाने की
दिशा में खास प्रगति नहीं हुई है। भारत के अलावा इस समय उसकी चिंता शिनजियांग
प्रांत को लेकर भी है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद से
अफगानिस्तान में अनिश्चय है।
हिमालय क्षेत्र में भारत के अलावा भूटान के साथ
भी चीन का विवाद है, जिसके लिए उसने फुसलाने का रास्ता
अपनाया है। भारत की सीमा पर चीन ने हाल में अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाया है,
नए हवाई अड्डे तैयार किए हैं। पैंगांग त्सो पर पुल भी बनाया जा रहा
है।चीनी निर्माण की सैटेलाइट तस्वीरें
भूटान से समझौता
भूटान की सीमा पर उसने एक नया गाँव ही बसा दिया
है। लगता है कि चीन अब भूटान का इस्तेमाल करने का प्रयास करेगा। गुरुवार 14
अक्टूबर को चीन और भूटान के विदेश मंत्रियों ने एक वर्चुअल बैठक में दोनों देशों
के बीच कई वर्षों से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए तीन चरणों में समाधान
(थ्री-स्टेप रोडमैप) के एक ज्ञापन पर दस्तख़त किए हैं।
रोडमैप क्या है, यह
अभी स्पष्ट नहीं है। यह समझौता डोकलाम त्रिकोण पर भारत और चीन के बीच चले गतिरोध
के चार साल बाद हुआ है। डोकलाम में गतिरोध 2017 में तब शुरू हुआ था जब चीन ने उस
इलाक़े में एक ऐसी जगह सड़क बनाने की कोशिश की थी, जिस
पर भूटान का दावा था।
जिन दो इलाक़ों को लेकर अपेक्षाकृत जटिल विवाद
है, उनमें से एक भारत-चीन-भूटान त्रिकोण के पास 269
वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा और दूसरा भूटान के उत्तर में 495 वर्ग किलोमीटर का
जकारलुंग और पासमलुंग घाटियों का इलाक़ा है।
चीन चाहता है कि भूटान उसे 495 वर्ग किलोमीटर
वाला इलाक़ा देकर बदले में 269 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा ले ले। चीन जो इलाक़ा मांग
रहा है, वह भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के क़रीब है,
जिसे चिकेंस-नैक कहा जाता है। पूर्वोत्तर के राज्यों तक पहुँचने के
लिए वह भारत का मुख्य मार्ग है।
चीन की योजना चुम्बी घाटी तक रेल लाइन बनाने की
है। उसने यातुंग तक रेल लाइन की योजना है और यातुंग चुम्बी घाटी के मुहाने पर है।
सिलीगुड़ी कॉरिडोर के क़रीब तक चीनी आ गए, तो यह भारत के
लिए चिंता का विषय होगा।
महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भूटान की अब चीन के
साथ सीधे बातचीत हो रही है। इस बातचीत या ज्ञापन से ज्यादा महत्वपूर्ण बात है चीन
के सरकारी मीडिया में भारत की खिल्ली उड़ाने और भूटान सरकार को भड़काने की कोशिश।
सोशल मीडिया पर चीनी हैंडल भारत को अपमानित करने वाले वीडियो अपलोड कर रहे हैं।
भारतीय चिंता
समझौते की खबर आने पर भारत के विदेश मंत्रालय
के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा, हमने समझौता ज्ञापन को नोट किया है। आप जानते हैं कि भूटान और चीन
1984 से सीमा वार्ता कर रहे हैं। भारत भी इसी तरह चीन के साथ सीमा वार्ता कर रहा
है। भूटान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि समझौता-ज्ञापन सीमा वार्ता को एक नई गति
प्रदान करेगा। दोनों देश 1984 से अब तक 24 दौर की सीमा-वार्ता कर चुके हैं।
इसके बाद बुधवार 27 अक्तूबर को बागची ने कहा,
चीन की ओर से कानून लाने का एकतरफा निर्णय बॉर्डर मैनेजमेंट के
साथ-साथ सीमा के सवाल पर हमारी मौजूदा द्विपक्षीय व्यवस्था पर प्रभाव डाल सकता है।
यह हमारे लिए चिंता का विषय है। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच अभी तक
सीमा के मामला हल नहीं हुआ है। इस नए कानून का पारित होना हमारे विचार में 1963 के
तथाकथित चीन-पाकिस्तान ‘सीमा समझौते’ को वैधता प्रदान नहीं करता है, जिस पर भारत सरकार कायम रही है और वह एक अवैध व अमान्य समझौता है।
उन्होंने कहा कि चीन के सीमा-कानून से दोनों
देशों के बीच द्विपक्षीय सीमा प्रबंधन समझौतों पर प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे 'एकतरफा कदम' का दोनों पक्षों के बीच पूर्व में हुई
व्यवस्थाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा पर
अमन एवं शांति बनाये रखने के लिए कई द्विपक्षीय समझौते, प्रोटोकॉल
एवं व्यवस्थाएं चुके हैं। नए कानून में सीमावर्ती क्षेत्रों में जिलों का पुनर्गठन
करने का भी प्रावधान है।
सच है कि चीन और भूटान 1984 के आसपास से सम्पर्क
में है, पर हाल के वर्षों में भूटान के रुख में भी
बदलाव नजर आ रहा है। जो भी है, हम इस घटनाक्रम को नजरंदाज भी नहीं कर
सकते हैं, क्योंकि इस सीमा के साथ भारतीय
सुरक्षा-व्यवस्था जुड़ी है।
भूटान को लुभाया
भारत और भूटान के रिश्ते बहुत गहरे हैं,
जिनमें बुनियादी छेड़छाड़ की कोशिशें अब हो रही हैं। इन सम्बन्धों की
शुरूआत 1865 की सिनचुला संधि से हुई है,
जिसके तहत भूटान को एक तरह से भारत की एक
रियासत का दर्जा मिल गया था। यह संधि अंग्रेज सरकार ने की थी। इसके बाद 1910 में
पुनरवा की संधि हुई, जिसमें तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने
भूटान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने का आश्वासन दिया और भूटान ने अपने
विदेशी मामलों को भारत के निर्देशन में चलाना स्वीकार किया।
अंग्रेजों के जाने के बाद 1949 में दार्जिलिंग
संधि हुई, जिसमें दोनों देशों ने स्थायी शान्ति और मैत्री
को सुनिश्चित करने का फैसला किया। भारत ने भूटान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप
नहीं करने का वाचन दिया| संधि के अनुच्छेद 2 के अनुसार भूटान
सरकार अपने विदेशी मामलों को भारत सरकार की सलाह से संचालित करेगी| अनुच्छेद 6 के अनुसार भारत की भूटान अन्य देशों से सैन्य उपकरण आयात
के पहले भारतीय स्वीकृति लेगा।
संधि के ये दोनों अनुच्छेद विवाद के विषय बनी
हुए थे। भूटान सरकार संधि में संशोधन के लिए भारत पर दबाव बना रही थी। भूटान का
कहना था कि हमारा स्वतंत्र देश है, जो संयुक्त राष्ट्र का सदस्य भी है। कब
तक हमारे विदेशी मामले संधि की व्यवस्था से संचालित होंगे। अंततः 2007 में
दार्जिलिंग संधि की जगह पर नई संधि हुई। इसमें खासतौर से अनुच्छेद 2 और 6 में
संशोधन हो गया। अब भारत की भूमिका सलाहकार या मार्गदर्शक की नहीं है, बल्कि दोनों देश एक-दूसरे से सहयोग (कोऑपरेट) करेंगे। अनुच्छेद 6 की जगह
अनुच्छेद 4 में कहा गया है कि भूटान अब सैन्य उपकरणों का आयात कर सकेगा, बशर्ते भारत इस बात से संतुष्ट हो कि भूटान सरकार का इरादा
मैत्रीपूर्ण है।
डोकलाम टकराव के बाद चीन ने भूटान से सम्पर्क
किया। उसकी कोशिश है कि भूटान के साथ कोई समझौता हो जाए। इसके बाद कहा जाएगा कि
चीन ने हिमालय के सब देशों से समझौता कर लिया है, अब
केवल भारत ही बचा है। इस तरह से भारत पर दबाव बनेगा। बहरहाल चीन सरकार के इन दो
फैसलों को भारत-चीन रिश्तों की दृष्टि से देखना होगा।
चीनी दाँव-पेच
ऐसा नहीं है कि भूटान एकतरफा तरीके से भारत के
हितों की अनदेखी कर सकेगा। भूटान के तमाम हित भारत के साथ जुड़े हैं। आर्थिक रूप
से वह काफी हद तक भारत के साथ जुड़ा है। भूटान पूरी तरह जमीन से घिरा हुआ देश है।
वह चीन से रिश्ते सुधारना चाहेगा, भारत से बिगाड़े बगैर। उसका चीन से
सीमा-समझौता अभी नहीं हुआ है। समझौता क्या हो सकता है, यही
देखना है। भारत को भी भूटान की भावनाओं को ध्यान में रखना होगा। इसके लिए दोनों के
बीच निरंतर परामर्श की जरूरत है।
इस ज्ञापन को चीनी मीडिया ने बहुत महत्व दिया
है। चीन के सरकारी अख़बार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने लिखा है, भारतीय
हस्तक्षेप के बगैर भूटान के साथ सीधी बातचीत से अच्छे परिणाम मिलेंगे। उसने आगे
लिखा है कि चीन ने उत्तर में रूस के साथ, दक्षिण में
वियतनाम के साथ और मध्य एशिया के देशों के साथ अपने विवादों को सुलझा लिया है।
हमें यकीन है कि भूटान के साथ भी मामले का भी समाधान हो जाएगा, क्योंकि समस्या भारत की थी, जो बीच में
अड़ंगा डाल रहा था।
अखबार के अनुसार भारत ने पहले तो भूटान की तरफ
से खुद बात करने की कोशिश की, उसमें विफल होने के बाद चीन-भूटान
वार्ता में हस्तक्षेप शुरू कर दिया। यह मसला चीन और भूटान के बीच था, पर उसने अपनी सेना भेज दी। ग्लोबल टाइम्स के एक दूसरे लेख में लिखा
गया है, भूटान के चीन के साथ राजनयिक रिश्ते नहीं हैं
और न उसके संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के किसी स्थायी सदस्य के साथ राजनयिक
रिश्ते हैं। यानी इशारा इस बात का है कि भूटान को चीन के साथ राजनयिक-सम्बन्ध
बनाने चाहिए। अखबार ने भारतीय मीडिया पर भी प्रहार किए हैं, जो
उसके अनुसार सरकारी इशारे पर विचार व्यक्त करता है। अखबार के एक और लेख में बताया
गया है कि भूटान के लोग भारत के दबाव में हैं, पर
अब हालात बदल रहे हैं।
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