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Monday, December 27, 2021

क्रूर वर्ष, जो उम्मीदें भी छोड़ गया


इक्कीसवीं सदी का इक्कीसवाँ साल पिछले सौ वर्षों का सबसे क्रूर वर्ष साबित हुआ। महामारी ने जैसा भयानक रूप इस साल दिखाया, वैसा पिछले साल भी नहीं दिखाया था, जब वह तेजी से फैली थी। खासतौर से हमारे देश ने बेबसी के सबसे मुश्किल क्षण देखे। इसी तरह हेलीकॉप्टर दुर्घटना में सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी समेत कुल 14 लोगों को खोना सबसे दुखद घटनाओं में से एक था। साल जितना क्रूर था, लड़ने के हौसलों की शिद्दत भी इसी साल देखने को मिली। अर्थव्यवस्था पटरी पर वापस आ रही है, वैक्सीनेशन नई ऊँचाई पर है। उम्मीद है बच्चों की पढ़ाई पूरी होगी। राजद्रोह बनाम देशद्रोह मामले पर नई बहस इस साल शुरू हुई, जिसकी परिणति आने वाले वर्ष में देखने को मिलेगी। राजनीतिक जासूसी और टैक्स चोरी से जुड़े दो मामले इस साल उछले। एक पेगासस और दूसरा पैंडोरा पेपर लीक। इन सब बातों के बावजूद साल का अंत निराशाजनक नहीं है। उम्मीदें जगाकर ही जा रहा है यह साल।

महामारी

महामारी इस साल भी सबसे बड़ी परिघटना थी। पिछले दो वर्षों में देश में करीब साढ़े तीन करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं। करीब 4.80 लाख लोगों की मौत हुई है। तीन करोड़ 42 लाख से ज्यादा ठीक भी हो चुके हैं, पर अप्रेल के पहले हफ्ते से लेकर जून के दूसरे हफ्ते तक जो लहर चली, उसने देश को हिलाकर रख दिया। अलबत्ता 2 जनवरी को भारत ने दो वैक्सीनों के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दी और 16 जनवरी से वैक्सीनेशन शुरू हो गया। शनिवार की सुबह आठ बजे तक देश में 140 करोड़ 31 लाख से ज्यादा टीके लग चुके हैं। आईसीएमआर के अनुसार देश में इस समय  पॉज़िटिविटी रेट एक फीसदी से भी कम है। मृत्यु दर 1.38 फीसदी है और रिकवरी रेट 98.40 फीसदी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सीरम इंस्टीट्यूट में बनी कोवोवैक्स को बच्चों पर इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है। उम्मीद है कि नए साल में हालात सुधरते जाएंगे।

ममता का अभियान

पश्चिम बंगाल, केरल, असम, पुदुच्चेरी और तमिलनाडु विधानसभा चुनाव इस साल की सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम था। इनमें सबसे महत्वपूर्ण परिणाम पश्चिम बंगाल से आए, जहाँ ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने में सफल हुईं। चुनाव के पहले और परिणाम आने के बाद की खूनी हिंसा को भी साल की सुर्खियों में शामिल किया जाना चाहिए। इस चुनाव के बाद ममता बनर्जी ने कांग्रेस के स्थान पर खुद को विपक्ष का नेता साबित करने का अभियान शुरू किया है। जिस तरह से गोवा में उनकी पार्टी सक्रिय हुई है, उससे लगता है कि आने वाले वर्ष के राजनीतिक पिटारे में कई रोचक संभावनाएं छिपी बैठी रखी हैं।

भाजपा की पहल

ज्यादा बड़े फेरबदल इस साल बीजेपी में हुए हैं। जुलाई में कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा के स्थान पर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया। सितंबर में गुजरात में विजय रूपाणी के हटाकर भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया। पूरे मंत्रिमंडल को बदल दिया गया। उत्तराखंड में दो बार मुख्यमंत्री बदले गए। केंद्रीय मंत्रिपरिषद में भारी फेरबदल भी इस साल की बड़ी घटनाएं रहीं। इसे विस्तार के बजाय नवीनीकरण कहना चाहिए। अतीत में किसी मंत्रिमंडल का विस्तार इतना विस्मयकारी नहीं हुआ होगा। पिछले साल प्रधानमंत्री ने अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास किया था, तो इस साल उन्होंने वाराणसी में 'श्री काशी विश्वनाथ धाम' का लोकार्पण किया। इस कार्यक्रम की भव्यता को देखते हुए लगता है कि भारतीय जनता पार्टी अपने सांस्कृतिक-एजेंडा को लगातार चलाए रखेगी।

कांग्रेस का पराभव

बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की जीत के अलावा कांग्रेस और वाममोर्चा का सूपड़ा साफ भी हुआ। पंजाब में अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा, तो उन्होंने कांग्रेस छोड़कर एक नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है। पार्टी को मेघालय में बड़ा झटका लगा। नवंबर में उसके 18 विधायकों में से 12 ने साथ छोड़ दिया और तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा भी शामिल थे। इसके पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थामा। हाल के वर्षों में पार्टी छोड़ने वालों की कतार लग गई है। पिछले सात साल में कम से कम तीन दर्जन बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। इनमें 30 से ज्यादा ऐसे हैं, जो केंद्रीय मंत्री, सांसद या प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईज़िन्हो फलेरो और सुष्मिता देव जैसे नाम इनमें शामिल हैं। आए हैं, तो कन्हैया कुमार।

कश्मीर में पहल

साल की एक महत्वपूर्ण घटना थी 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कश्मीरी नेताओं की वार्ता। कश्मीर में चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन के लिए जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में बने आयोग ने जम्मू में छह और कश्मीर में एक विधानसभा सीट बढ़ाने का प्रस्ताव किया है। इस प्रस्ताव से 90 सदस्यीय विधानसभा में जम्मू में 43 और कश्मीर में 47 सीटें हो जाएंगी। इसके अलावा 9 सीटें जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव प्रदेश के सांसदों के समक्ष रखा है। आयोग की रिपोर्ट को लेकर घाटी की पार्टियों ने अपना असंतोष व्यक्त किया है। कश्मीर राजनीति भी अगले साल मुखर होकर सामने आएगी। देखना है कि वहाँ अगले साल चुनाव होते हैं या नहीं।

आर्थिक-स्थिति

पिछले साल देश की जीडीपी में संकुचन आया था, जिसे पूरा कर लिया गया है। अर्थव्यवस्था कोरोना-पूर्व के स्तर पर वापस आ गई है। दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 8.4 फीसदी रही है। पिछले साल इसी अवधि में भारत की अर्थव्यवस्था 7.4 फीसदी निगेटिव में चली गई थी। अप्रैल से जून 2021 की पहली तिमाही संवृद्धि में 20.1 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई थी। अनुमान है कि वित्तवर्ष के अंत तक अर्थव्यवस्था 9.5 फीसदी की वृद्धि दर हासिल कर लेगी या उसे पार कर जाएगी। संवृद्धि के लिए सरकार को निवेश बढ़ाना होगा, खासतौर से इंफ्रास्ट्रक्चर में। पर इसका असर राजकोषीय घाटे के रूप में दिखाई पड़ेगा। चालू वित्तवर्ष में राजकोषीय घाटा 6.8 फीसदी के स्तर पर भी रहा, तो यह राहत की बात होगी। फिलहाल चिंता मुद्रास्फीति को लेकर है, जो खुले बाजार में महंगाई के रूप में दिखाई पड़ रही है।

विदेश-नीति

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अफगानिस्तान में हुए सत्ता-पलट के बाद लगे प्रारंभिक झटकों के बावजूद भारतीय विदेश-नीति का दबदबा इस साल बढ़ा। साल की शुरुआत ही भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मिली सदस्यता से हुई, जो दो साल तक रहेगी। भारत सरकार ने अमेरिका के साथ चतुष्कोणीय सुरक्षा (क्वॉड) को पुष्ट किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका-यात्रा और क्वॉड के शिखर सम्मेलन से भारत-अमेरिका रिश्तों को मजबूती मिली है, दूसरी तरफ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की साल के अंत में भारत यात्रा और दोनों देशों के बीच टू प्लस टू वार्ताके बात भारतीय विदेश-नीति की स्वतंत्रता और संतुलन भी स्थापित हुआ है। 

आंदोलन

किसान आंदोलन, तीनों कृषि-कानूनों और अंततः किसान आंदोलन की वापसी इस साल की बड़ी घटनाओं में शामिल हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को ही खेती से जुड़े तीन नए कानूनों का अनुपालन स्थगित कर दिया था और विशेषज्ञों की एक समिति बनाकर उससे रिपोर्ट माँगी थी, पर किसान इतने से संतुष्ट नहीं हुए और आंदोलन चलता रहा। अंततः 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माफी माँगते हुए तीनों कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। आंदोलन के दौरान हुई हिंसा और पुलिस के साथ मुठभेड़ें भी याद रहेंगी, जिनका एक दुखद रूप 26 जनवरी को लालकिले में देखने को मिला। और दूसरा लखीमपुर खीरी में।

खेल का मैदान

खेल के मैदान पर क्रिकेट टीम को टी-20 विश्व कप में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई, पर तोक्यो भारत के लिए इतिहास का सबसे सफल ओलिम्पिक रहा है। नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल के साथ ओलिम्पिक प्रतियोगिता के एथलेटिक्स वर्ग में पदकों का सूखा खत्म किया है, साथ ही पदकों की संख्या के लिहाज से भारत ने सबसे ज्यादा सात पदक हासिल किए। लम्बे अरसे के बाद हॉकी टीम ने ओलिम्पिक में पदक हासिल किया।

 

 

 

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