तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के दक्षिणी और पूर्वी प्रांतों में अपने हमले बढ़ा दिए हैं। पहले देश के उत्तर के इलाक़ों पर उसका फोकस था। इससे अब देश की 34 प्रांतीय राजधानियों में से कम से कम 20 पर ख़तरा मंडरा रहा है। बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार इन ताज़ा हमलों में काबुल के उत्तर में एक अहम घाटी को अपने कब्ज़े में लेना भी शामिल है, जिससे देश की राजधानी पर ख़तरा बढ़ गया है। सामरिक दृष्टिकोण से इनमें से कई शहर बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे राष्ट्रीय राजधानी काबुल को देश के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों पर स्थित हैं।
जिन शहरों को तालिबान
ने घेर रखा है, वो
उत्तर के उन प्रांतों में हैं जिनकी सीमाएं अफ़ग़ानिस्तान के मध्य एशिया के पड़ोसी
देशों से सटी हैं, लेकिन तालिबान ने बीते हफ़्ते अपना रुख़ दक्षिण और पूर्व के
प्रमुख शहरों की ओर मोड़ दिया, जिससे
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी के आसपास के इलाक़ों में ख़तरा बढ़ गया है। इस रिपोर्ट में
विस्तार से उन
इलाकों की जानकारी दी गई है, जहाँ तालिबान ने बढ़त बना ली है। सवाल यह है कि इससे
होगा क्या? क्या तालिबान ताकत के
जोर पर देश की सत्ता पर कब्जा करने में कामयाब हो जाएगा और दुनिया देखती रहेगी? यह इतना आसान भी नहीं है। काबुल पर
कब्जा करना आसान है, पर वहाँ से सत्ता का संचालन आसान नहीं है।
तालिबानी
आदेश
समाचार एजेंसी एएफपी
के अनुसार, उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान
के एक सुदूर क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के बाद कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन तालिबान ने
अपना पहला आदेश जारी किया जिसमें कहा गया है कि ‘महिलाएं किसी पुरुष के साथ बाज़ार
नहीं जा सकतीं, पुरुष
दाढ़ी नहीं काट सकते और न धूम्रपान कर सकते हैं।’ एजेंसी ने कुछ स्थानीय लोगों के
हवाले से यह ख़बर दी है। इन लोगों का कहना है कि तालिबान ने स्थानीय इमाम को ये
सभी शर्तें एक पत्र में लिखकर दी हैं। साथ ही कहा गया है कि इस आदेश को ना मानने
वालों से सख्ती से निपटा जाएगा।
इस आदेश में अफ़ग़ान सरकार से कहा गया है कि “ आप अपने सैनिकों से आत्मसमर्पण करने को कहे” क्योंकि तालिबान शहरों में लड़ाई नहीं लड़ना चाहता। पिछले महीने, अफ़ग़ानिस्तान के शेर ख़ाँ बांदेर क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के बाद तालिबान ने स्थानीय लोगों को आदेश दिया था कि ‘महिलाएं घर से बाहर न निकलें।’ इसके बाद कई रिपोर्टें आईं जिनमें कहा गया कि शेर ख़ाँ बांदेर क्षेत्र की बहुत सी महिलाएं कशीदाकारी, सिलाई-बुनाई और जूते बनाने के काम में शामिल हैं, लेकिन सभी को तालिबान के डर से काम बंद करना पड़ा है। जानकार बताते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान मूल रूप से रूढ़िवादी देश है जिसके कुछ ग्रामीण हिस्सों में बिना तालिबान की मौजूदगी के ही ऐसे नियम माने जाते हैं।
जयशंकर
का बयान
उधर विदेशमंत्री एस
जयशंकर ने बुधवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में आतंकवाद के मुद्दे पर
परोक्ष रूप से पाकिस्तान और उसके हमदर्द चीन पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि
एससीओ का मुख्य मकसद आतंकवाद और कट्टरपंथ से मुकाबला करना है और इसे आतंकवाद के
वित्तपोषण को रोकना चाहिए। इस सम्मेलन की जो बातें सामने आई हैं, उनसे लगता है कि
ज्यादातर देश चाहते हैं कि अफगानिस्तान में जो भी हो, शांति के साथ हो। उधर दोहा
में अफगान सरकार और तालिबान के बीच बात चल रही है। सवाल है कि क्या तालिबान शांतिपूर्ण
समझौते के लिए तैयार होगा? उसके लोग जिस किस्म
के आदेश जारी कर रहे हैं, उनसे यही लगता है कि पुराने कट्टरपंथी तौर-तरीके फिर से
लागू किए जा रहे हैं।
ताजिकिस्तान की
राजधानी दुशान्बे में हुई बैठक में जयशंकर ने अफगानिस्तान के हालात के साथ ही जन
स्वास्थ्य और आर्थिक सुधार के क्षेत्र में आ रही परेशानियों का भी उल्लेख किया।
बैठक में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, चीन के विदेश मंत्री वांग यी और
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी शामिल हुए। विदेशमंत्री ने ट्वीट
किया कि दुशान्बे में एससीओ के विदेशमंत्री सम्मेलन को संबोधित किया।
अफगानिस्तान में जन-स्वास्थ्य
और आर्थिक सुधार प्रमुख मुद्दे हैं। आतंकवाद और कट्टरपंथ का मुकाबला करना एससीओ का
प्रमुख मकसद है। इसे आतंकवाद के वित्तपोषण और डिजिटल सुविधाओं को रोकना चाहिए।
उन्होंने अपने संबोधन में ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ संदेश को भी रेखांकित किया। साथ ही कोरोना
महामारी से निपटने के लिए जल्द से जल्द वैश्विक टीकाकरण का आह्वान किया। उन्होंने
बहु-पक्षवाद में सुधार पर भी बात की और इस क्षेत्र को फिर से जीवंत करने की
आवश्यकता बताई।
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