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Thursday, May 13, 2021

संघ के कार्यक्रम में अजीम प्रेमजी का सम्बोधन


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 'Positivity Unlimited' नाम से ऑनलाइन भाषणों  की शुरुआत की है। ये भाषण 11 से 15 मई के बीच प्रसारित हो रहे हैं। इनका उद्देश्य लोगों में महामारी के बीच सकारात्मकता और विश्वास बढ़ाना है। यह श्रृंखला संघ की कोविड रेस्पॉन्स टीम आयोजित कर रही है। इसका प्रसारण दूरदर्शन पर रोज हो रहा है। इसके अंतर्गत गत 12 मई को विप्रो के प्रमुख अज़ीम प्रेमजी का भाषण हुआ।

प्रेमजी ने इस मौके पर कहा कि कोविड-19 के कारण पैदा हुए संकट का सामना करने की बुनियाद साइंस और सत्य पर आधारित होनी चाहिए। साथ ही इसका असर कितना गहरा और कितनी दूर तक हुआ है, इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। हमें सबसे पहले पूरी ताकत के साथ हर दिशा में सक्रिय होना चाहिए। साथ ही यह काम अच्छे विज्ञान के सहारे किया जाना चाहिए। जो काम विज्ञान के आधार पर नहीं होते, वे उद्देश्य को पूरा करने में बाधक होते हैं।

उन्होंने कहा कि अच्छे विज्ञान का मतलब है सत्य को स्वीकार करना और उसका सामना करना। यानी हमें वर्तमान संकट के आकार, उसकी गहराई और उसके प्रसार को पूरी तरह स्वीकार करना चाहिए। दो मिनट के वीडियो में प्रेमजी ने कहा कि इस स्थिति में पूरे देश को अपने मतभेदों के भुलाकर और एकजुट होकर समस्या का सामना करना चाहिए। हम जब एकसाथ होते हैं, तब ज्यादा ताकतवर होते हैं, जब बिखरे हुए होते हैं, तब कमजोर होते हैं।  

उन्होंने यह भी कहा कि देश को और अधिक समता-आधारित समाज की जरूरत है। जब हम इस संकट से बाहर निकल आएं, तब हमें अपनी सामाजिक और आर्थिक-संरचना के पुनर्गठन के बारे में विचार करना चाहिए। हमें अपने भीतर मौजूद असमानता और अन्याय को दूर करना चाहिए।

अज़ीम प्रेमजी इसके पहले 5 अप्रेल 2015 को भी संघ के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे और उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ मंच साझा किया था। बाद में उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि उनकी मौजूदगी का मतलब यह नहीं कि वह इस संगठन की विचारधारा को बढ़ावा देते हैं। प्रेमजी ने कहा कि अगर विचारों को लेकर कोई मतभेद होता है तो उसे चर्चा के जरिए सुलझाया जा सकता है। साथ ही स्पष्ट किया था कि किसी के मंच को साझा करने का मतलब उसकी विचारधारा को स्वीकारना नहीं है। उस कार्यक्रम में उन्होंने संघ के कार्यों की तारीफ करते हुए कहा कि वह संघ के संगठनों के काम का सम्मान करते हैं। प्रेमजी तब संघ से जुड़े राष्ट्रीय सेवा भारती के राष्ट्रीय सेवा संगमनामक तीन दिवसीय सम्मेलन में हिस्सा लेने आए थे।

उस कार्यक्रम में अपने संबोधन में उन्होंने कहा, 'भागवत जी ने जब मुझे यहां आने का निमंत्रण दिया तो कई लोगों ने आशंका जताई कि यहां मेरा आना संघ की विचारधारा स्वीकार करना माना जाएगा। लेकिन मैंने यह राय नहीं मानी। मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं।' उन्होंने कहा, 'मेरा मानना है कि किसी का मंच साझा करना उसकी विचारधारा को पूर्णतः स्वीकार करना नहीं है।' उन्होंने कहा कि मैं यहां आकर खुश हूँ।

प्रेमजी ने कहा कि संघ के समाज सेवी संगठनों ने महान कार्य किए हैं और मैं उसका सम्मान करता हूँ। अपने संबोधन में उन्होंने भ्रष्टाचार से हर स्तर पर लड़ने का आह्वान किया और महिलाओं, बच्चों तथा वंचित वर्गों के लिए उत्थान के लिए काम करने का आह्वान किया। उन्होंने गरीबी हटाने के लिए भी काम करने को कहा। विप्रो प्रमुख ने देश निर्माण के लिए शिक्षा की जरूरत बताई और शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने को कहा।

उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया कि शिक्षा पर जो ध्यान दिया जाना चाहिए, उतना नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अच्छी शिक्षा विकास क्षमता बढ़ाती है और समाज को बेहतर बनाती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा लाभ कमाने के लिए नहीं होनी चाहिए, खासकर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा। उन्होंने भारत में शिक्षा का बजट बहुत कम होने पर भी निराशा जताई। प्रेमजी के अलावा संघ के इस मंच को जीएमआर समूह के जीएम राव और एस्सेल ग्रुप के प्रमुख सुभाष चन्द्रा ने भी साझा किया।

 

 

 

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