देश में लॉकडाउन की पहली वर्षगाँठ का संदेश बहुत निराशाजनक है। देश में महामारी की एक और लहर कई तरह की चुनौतियों का संदेश दे रही है। साथ ही यह भी बता रही है कि हमने एक साल में कोई सबक नहीं सीखा। जिन सावधानियों को हमने एक साल पहले अपनाया, उन्हें फौरन भूल गए। खासतौर से जिन पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, वहाँ यह नादानी पूरी शिद्दत से दिखाई पड़ रही है।
शुक्रवार को भारत
में कोविड-9 के नए मामलों की संख्या 60 हजार पार कर गई। पहली लहर में देश में एक
दिन में अधिकतम नए केसों की संख्या 97,894 तक पहुँची थी, जो पिछले साल 17 सितम्बर
को थी। उसके बाद लगातार गिरावट आती चली गई थी। 16 जनवरी से देश में वैक्सीनेशन शुरू होने के बाद उम्मीद थी कि हालात जल्द बेहतर हो जाएंगे। लगता है लोगों ने
असावधानी बरतनी शुरू कर दी।
नए स्ट्रीम का
हमला
ब्रिटेन से वायरस के म्युटेशन की खबरें सुनाई पड़ीं और देखते ही देखते दुनियाभर से नए स्ट्रीम्स की खबरें आने लगीं। दूसरी लहर के साथ कुछ नए खतरे जुड़े हैं। इसबार का संक्रमण पहली बार के मुकाबले ज्यादा तेज है और दूसरे वायरस-म्युटेशन के कारण उसके कई नए स्ट्रीम हमला बोल रहे हैं। पंजाब में हाल में संक्रमित पाए गए लोगों में कोरोना का जो जीनोम मिला है वह तेज प्रसार वाला ब्रिटिश-प्रारूप है। हो सकता है कि महाराष्ट्र में तेज प्रसार देश में ही विकसित नई किस्म के कारण हो।
देश में कोविड-19
संक्रमण की दूसरी लहर 15 फरवरी से 18 राज्यों में देखी जा रही है। महाराष्ट्र में
स्थिति खासतौर से बहुत खराब है, जहाँ शुक्रवार को 36,902 नए मामले दर्ज किए गए।
यानी 60 फीसदी से ज्यादा मामले अकेले महाराष्ट्र में हैं। राज्य में एक्टिव मामलों
की संख्या 2.83 लाख है, जो फरवरी में 35 हजार तक पहुँच गई थी। महाराष्ट्र के अलावा
केरल और पंजाब से भी चिंताजनक समाचार मिल रहे हैं। कुल नए केसों में 74 फीसदी इन
तीन राज्यों से हैं।
100 दिन का दौर
भारतीय स्टेट बैंक
(एसबीआई) की एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरी लहर का दौर अधिकतम 100 दिन तक
बना रह सकता है। संक्रमण में बढ़ोतरी की वजह से कारोबारी गतिविधि सूचकांक में
गिरावट है। बावजूद इसके देश अब लॉकडाउन के लिए तैयार नहीं है। पहली लहर के दौरान दैनिक
नए मामलों के मौजूदा स्तर से लेकर शीर्ष स्तर पर तक पहुंचने के लिहाज से देखें तो
भारत अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में शीर्ष पर पहुंच सकता है।
भारत के मुकाबले दूसरे
देशों में कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा घातक साबित हुई है। भारत के लिए अच्छी बात
है कि यहां टीकाकरण अभियान रफ्तार पकड़ रहा है और स्वदेशी टीके अच्छी मात्रा में
उपलब्ध हैं। देश में नए केस बढ़े जरूर हैं, पर मृत्यु दर कम है। वैक्सीन लेने से
हिचकिचा रहे लोगों को एसबीआई ने कहा है कि टीकाकरण ही कोरोना से बचने का एकमात्र
उपाय है। देश के टीकाकरण अभियान की तारीफ
करते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दुनिया के अन्य देशों की
तुलना में प्रत्येक 100 लोगों पर टीका लगवाने वालों की दर बेहतर है। इससे दूसरी
लहर पर नियंत्रण बनाने में मदद मिलेगी।
भारत का
टीकाकरण
टीका लगने और
संक्रमण के अनुपात में भारत का प्रदर्शन सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बेहतर है। शनिवार की सुबह तक
देश में 5 करोड़ 55 लाख से ज्यादा लोगों को टीके लग चुके थे। छह करोड़ खुराक
निर्यात की गई हैं। आगामी 1 अप्रेल से 45 साल से ऊपर के सभी लोगों का टीकाकरण शुरू
हो जाएगा। यानी देश की आबादी का पांचवां हिस्सा टीकाकरण का पात्र होगा।
टीकाकरण की उम्र
कम करना उचित कदम है, पर इससे दूसरा सवाल पैदा होता है। क्या टीकों की आपूर्ति उसी
हिसाब से होगी? भारतीय टीका-निर्माता सऊदी अरब, मोरक्को और ब्रिटेन जैसे देशों को वायदे के मुताबिक
टीके उपलब्ध कराने में विफल रहे हैं। चिंता इस बात की भी है कि उम्र घटाने वाले नए
कार्यक्रम से कहीं दूसरी खुराक तय समय में उपलब्ध कराने में दिक्कत न आए। उधर
कोवीशील्ड की दूसरी खुराक आठ से 12 सप्ताह बाद देने का फैसला किया गया है। इससे टीके
की प्रभावोत्पादकता बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता बेहतर होगी।
टीकों की
आपूर्ति
यह भी देखना होगा
कि भारत बायोटेक का टीका पर्याप्त तादाद में तैयार क्यों नहीं हो रहा है।
कोवैक्सीन का इस्तेमाल कम हो रहा है। दुनिया के दूसरे देशों में स्वीकृत फायज़र,
स्पूतनिक-5 और जॉनसन ऐंड जॉनसन समेत दूसरे
टीकों को भी मंजूरी में तेजी लानी चाहिए, ताकि वे बाजार में आ सकें। सरकार ने सीरम
इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक से घरेलू जरूरतों को पहले पूरा करने को कहा
है।
सरकार ने दोनों स्वदेशी
टीका निर्माताओं से कहा है कि वे देश के भीतर की सप्लाई को वरीयता दें। विदेश
मंत्रालय के मुताबिक 18 मार्च
के बाद किसी भी टीके का निर्यात नहीं किया गया है। सरकार ने हाल में सीरम इंस्टीट्यूट
को 10 करोड़ खुराकों का ऑर्डर
भी दिया है। अप्रैल महीने में बनने वाली कुल खुराकों की आपूर्ति भारत सरकार को की
जाएगी। तमाम देशों के स्वास्थ्य से जुड़े संगठनों के अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन
(डब्लूएचओ), कोलीशन फॉर एपिडेमिक
प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (सेपी) और गावी (ग्लोबल वैक्सीन एलायंस) ने ‘कोवैक्स’ नाम से वैक्सीनों के विकास का समन्वय किया है।
‘गावी’ की
आपत्ति
‘गावी’ ने भारत से टीकों के निर्यात में
देरी करने के सरकारी कदम की आलोचना की है। कोवैक्स को मई के अंत तक कम और मध्यम आय
वाले देशों को 23 करोड़
खुराक की आपूर्ति करनी है। गरीब देशों का एक यही सहारा है। इस कार्यक्रम के तहत
सीरम इंस्टीट्यूट को 20 करोड़
खुराकों की आपूर्ति करनी है, जिसमें विलम्ब हो रहा है।
टीकों को लेकर कई
तरह की नकारात्मक बातों का प्रचार होने के बावजूद लोगों ने उन्हें स्वीकार कर लिया
है। इस समय हर रोज करीब 34 लाख टीके लगाए जा रहे हैं। यह दर कुछ समय बाद 45 लाख तक
पहुँच जाएगी। मोटे तौर पर अगले 21 महीनों में पूरे देश के सभी लोगों को दो-दो डोज
टीकों की दी जा सकेंगी। दोनों टीके लगने के कुछ समय बाद ही व्यक्ति के शरीर में
एंटी-बॉडीज़ बनती हैं। इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और हाथ धोने तथा सैनिटाइज
करने से जुड़े नियमों का पालन करना ही चाहिए।
लॉकडाउन नहीं
पिछले साल का
अनुभव है कि जैसे ही किसी राज्य में नए केस बढ़ते हैं, सरकारें लॉकडाउन कर देती
हैं। इससे केस फौरी तौर पर रुक जाते हैं, पर आर्थिक गतिविधियों का कचूमर निकल जाता
है। कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र व पंजाब में स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन
हुआ, लेकिन इससे कोरोना वायरस
के प्रसार को नहीं रोका जा सका। लॉकडाउन में ढील देते ही कोरोना संक्रमण फिर से
फैलने लगा।
अर्थशास्त्री
सुझाव दे रहे हैं कि सरकार को लॉकडाउन से बचना चाहिए। भारत में लोग एक दूसरे पर
निर्भर हैं. इसलिए लोगों की आवाजाही पर रोक नहीं होनी चाहिए। दूसरे छोटे कारोबारियों और मजदूरों का काम बंद
होने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। रिजर्व बैंक के
गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को भरोसा जताया कि नई लहर से आर्थिक वृद्धि में
सुधार की रफ्तार प्रभावित नहीं होगी और आरबीआई ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 10.5
प्रतिशत के हालिया वृद्धि लक्ष्य को बरकरार रखा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस समय
किसी को भी पिछले साल जैसे लॉकडाउन की आशंका नहीं है।
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