नल से जल
अपने दो कमरों
वाले घर से महज कुछ ही गज़ की दूरी पर स्थित अपने छोटे से खेत में काम कर रही
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के बल्लही गांव की निवासी एकदम खुश है. अब से पहले
करीब दो दशक तक फूलकली अपने परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए नजदीकी
सप्लाई पॉइंट से बाल्टियां भरकर पानी लाती थी, जो कि उसके घर से 400 मीटर दूरी पर है.
भले ही यह दूरी
बहुत ज्यादा न रही हो लेकिन दो बच्चों की मां फूलकली कहती है कि केंद्र के
फ्लैगशिप कार्यक्रम ‘नल से जल ’ के तहत प्रशासन द्वारा उसके घर तक जलापूर्ति
उपलब्ध कराए जाने से तीन महीने के अंदर उसके जीवन में कितना बदलाव आ गया है इस बात
को केवल वही समझ सकता है जो पिछले दो दशकों से लगातार हर दिन दो बार पानी की
बाल्टियां भरकर ला रहा हो.
फूलकली ने
दिप्रिंट से कहा,
‘बाल्टी छूट गई.
आप नहीं जानते कि यह कितनी बड़ी नियामत है. हर एक दिन, चाहे बारिश हो या फिर सर्दी मुझे पानी लाने के
लिए बाहर जाना ही पड़ता था.’
उपरोक्त प्रकरण मैंने सिर्फ इसलिए उधृत किया है, ताकि मैं बता सकूँ कि महिला सशक्तीकरण कैसे होता है। भारत सरकार की पत्रिका कुरुक्षेत्र में लिखने का आनंद यह है कि इसे बहुत ज्यादा लोग पढ़ते हैं। सरकारी सेवाओं की तैयारी करने वाले युवा इसे और योजना को पढ़ते हैं। मेरा यह लेख कुरुक्षेत्र के फरवरी 2021 के अंक में प्रकाशित हुआ है।
भारत को
आत्मनिर्भर बनाने में स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। स्त्री-शक्ति के कारगर
इस्तेमाल से देश की आर्थिक संवृद्धि को तेजी से बढ़ाया जा सकता है। महिलाओं को सशक्त बनाने का अर्थ है समूचे समाज
को समर्थ बनाना। भारत में स्त्री-सशक्तीकरण के चार प्रमुख आधार हैं। 1.शिक्षा,
2.स्वास्थ्य, 3.रोजगार और 4.सामाजिक परिस्थितियाँ। पहली तीन बातों के लिए सरकारी
कार्यक्रम मददगार हो सकते हैं, पर चौथा आधार सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों पर
निर्भर करता है। अलबत्ता सामाजिक परिवर्तनों पर भी शिक्षा और आधुनिक संस्कृति में
आ रहे परिवर्तनों, खासतौर से बदलती तकनीक की भी, भूमिका होती है।
हाल में जब नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के पाँचवें दौर के परिणाम प्रकाशित हुए, तब एक नई तरह की जानकारी की ओर हमारा ध्यान गया। इस सर्वेक्षण में पहली बार यह पूछा गया था कि क्या आपने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है? बिहार में ऐसी महिलाओं का प्रतिशत सबसे कम था, जिनकी इंटरनेट तक पहुंच है (20.6%) और सिक्किम में सबसे ज्यादा (76.7%)। एनएफएचएस के ये आंकड़े अधूरे हैं, क्योंकि इनमें केवल 22 राज्यों के परिणाम हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों के परिणाम इसमें शामिल नहीं हैं, फिर भी जो विवरण सामने आए हैं, वे बताते हैं कि स्त्रियों के सशक्तीकरण के संदर्भ में हमें परंपरागत बातों के अलावा कुछ नई बातों की तरफ भी ध्यान देना होगा। मसलन इंटरनेट की भूमिका।
इंटरनेट और
मोबाइल फोन
केवल जानकारी
पाने के लिए ही नहीं तमाम तरह की सेवाओं का लाभ उठाने के लिए भी अब इंटरनेट की
जरूरत है। यानी कि स्त्री-सशक्तीकरण पर जब भी बात होगी, हमें यह भी देखना होगा कि
ब्रॉडबैंड के विस्तार की स्थिति क्या है। इंटरनेट से जुड़ा सवाल इस
सर्वेक्षण में इसलिए भी जुड़ा, क्योंकि पिछले सर्वेक्षण में महिलाओं से पूछा गया था, क्या आपके
पास मोबाइल फोन है और क्या आप उस पर एसएमएस पढ़ सकती हैं? यह सवाल इस बार के सर्वेक्षण में भी पूछा गया।
पिछले साल 1
फरवरी 2020 को अपने बजट भाषण में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार की योजना
पंचायत स्तर पर कनेक्टिविटी प्रदान करना है। सरकार ने 2020-21 में ‘भारतनेट’ कार्यक्रम के लिए 6000 करोड़ रुपये आवंटित करने का
प्रस्ताव किया था ताकि एक लाख ग्राम पंचायतों को हाइपरलिंक किया जा सके। गौर से देखें,
यह महिला सशक्तीकरण का कार्यक्रम भी है। ‘प्रधानमंत्री घर तक फाइबर’ स्कीम 2020 में शुरू की गई।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत कॉमन सर्विस सेंटर ने भारत के लिए ऑप्टिकल
फाइबर नेटवर्क बिछाने का काम किया है।
ये ऑप्टिकल फाइबर
पूरे देश में ग्रामों को ग्राम पंचायतों / ग्राम ब्लॉकों से जोड़ेंगे। उम्मीद है
कि इस साल यानी 2021 तक डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण के अनुसार देश के सभी गाँवों
में ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क बिछा दिया जाएगा। हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान
करने के लिए ‘पीएम घर तक फाइबर’ योजना पर काम इन दिनों
चल रहा है। नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का लक्ष्य देश की सभी 2,50,000 ग्राम पंचायतों को जोड़ना और उन्हें 100 एमबीपीएस
कनेक्टिविटी प्रदान करना है।
फर्क दिखाई पड़ता
है
एनएफएचएस में इन
सवालों को ‘महिलाओं के सशक्तीकरण’ के वर्ग में कुछ दूसरे
सवालों के साथ शामिल किया गया था। दूसरे सवाल थे, क्या महिलाएं परिवार के निर्णयों
का एक हिस्सा हैं, क्या उनके पास एक बैंक एकाउंट है, जमीन की मालिक हैं और उन्हें कैसे भुगतान मिला। 2015-16 के चौथे एनएफएचएस के अनुसार, शहरी क्षेत्रों
में 61.85% महिलाओं,
ग्रामीण इलाकों
में 36.9%, और देश भर में 45.9% महिलाओं ने कहा
था कि उनके पास एक मोबाइल फोन है जो "वे खुद इस्तेमाल करती हैं।" मोबाइल
फोन रखने वाली महिलाओं में से दो-तिहाई ने यह भी बताया था कि वे उस पर मैसेज पढ़
सकती हैं।
अब 22 राज्यों से एनएफएचएस-5 के आंकड़ों में महिलाओं के मोबाइल
फोन के इस्तेमाल के लिहाज से सुधार नजर आया है। सन 2015-16 में आंध्र
प्रदेश में 36.2% महिलाओं ने कहा था कि उन्होंने मोबाइल फोन का
इस्तेमाल किया है, जो देश में सबसे कम था। हाल के आंकड़ों में, मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं का सबसे कम
प्रतिशत गुजरात में 48.8% दर्ज किया गया। देश में
महिलाओं के मोबाइल फोन का सबसे अधिक इस्तेमाल पिछले एनएफएचएस में केरल में 81.2% का था। इस वर्ष, गोवा में 91.2 प्रतिशत के साथ महिलाओं की ओर से मोबाइल फोन का इस्तेमाल
सबसे अधिक दर्ज किया गया।
चौथे एनएफएचएस
में आयु के साथ मोबाइल फोन रखने में बढ़ोतरी दिखी हैः यह 15-19 वर्ष की आयु वाली महिलाओं के लिए 25%, 25-29 वर्ष के आयु वर्ग के लिए 56% था। हालांकि, आयु के साथ मैसेज पढ़ने की क्षमता घटी हैः 15-19 की आयु वाली महिलाओं के लिए 88% और 40-49 वर्ष के आयु वर्ग के लिए
48%। मोबाइल फोन रखने और इसका इस्तेमाल ग्रामीण क्षेत्रों की
तुलना में शहरों में अधिक था, और इसमें संपत्ति के साथ
बढ़ोतरी हुई है।
नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे
(एनएफएचएस) के पाँचवें दौर के परिणामों से यह भी पता लगता है कि हाल के वर्षों में
शुरू किए गए सरकारी कार्यक्रमों से स्त्री-सशक्तीकरण हुआ है। खासतौर से ग्रामीण महिलाओं के बैंक खातों का खुलना, रसोई गैस, शौचालय, बिजली,
आवास, पेयजल और यहाँ तक कि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण यानी नकदी ने बदलाव की अच्छी
स्थितियाँ बनाई हैं। सर्वेक्षण के अनुसार सन 2019 तक 72 प्रतिशत स्त्रियों के नाम
बैंक खाते खोले जा चुके थे, 98 फीसदी घरों में बिजली के कनेक्शन थे, करीब 70 फीसदी
घरों में जल निकासी और सफाई की व्यवस्था पहले से बेहतर है और 60 फीसदी घरों में
धुआँ रहित ईंधन का इस्तेमाल होने लगा है। हालांकि यह डेटा सभी राज्यों का नहीं है,
पर इसमें दो बातें स्पष्ट हैं। पहली यह कि सुधार की गति 2015 के बाद बढ़ी है और
दूसरी यह कि ग्रामीण क्षेत्रों से सुधार खासतौर से हुआ है।
रोजगार में कम होती स्त्रियाँ
इस बात के कुछ
दूसरे पहलू भी हैं। ग्रामीण भारत में महिलाओं ने इतनी शिक्षा अर्जित कर ली है कि
युवा महिलाएं अशिक्षित से कम और मध्यम स्तर की शिक्षा प्राप्त महिलाओं में बदल
चुकी हैं। लेकिन उनके रोजगार की स्थिति अब भी बहुत अच्छी नहीं है। दुनियाभर में स्त्रियों
की रोजगारों में भूमिका बढ़ रही है। तब भारत में महिलाओं की भागीदारी उल्टी दिशा
में क्यों जा रही है? महिलाओं की शिक्षा में काफी सुधार हुआ है। उनकी सामर्थ्य को
लेकर कोई संदेह नहीं है। दूसरी तरफ पिछले दो दशकों में देश में आर्थिक विकास भी हुआ
है, फिर भी काम करने वाली
भारतीय महिलाओं की हिस्सेदारी कम होना चिंताजनक है। इसके कारण सामाजिक
परिस्थितियों में भी छिपे हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में बड़ी
संख्या में महिलाएं खेती से जुड़ी हैं, पर उनके पास खुद की जमीन नहीं है। जहां 73.2 फीसदी ग्रामीण महिला श्रमिक खेती में लगी हुई हैं, केवल 12.8 फीसदी के पास जमीन का
स्वामित्व है।…जिन महिलाओं के पास जमीन है उनके पास बेहतर
आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा है। संयुक्त राष्ट्र की 2013 की एक रिपोर्ट
में कहा गया है, सुरक्षित भूमि अधिकार महिलाओं की शक्ति को
बढ़ाते हैं।
भारत में भूमि
हस्तांतरण मुख्य रूप से विरासत के माध्यम से होता है और यह धर्म-केंद्रित कानूनों
के माध्यम से होता है। उत्तराधिकार कानूनों को स्त्रियों के पक्ष में मोड़ने की
जरूरत है। महिला किसान अधिकार मंच के एक अध्ययन में कहा गया है कि सांस्कृतिक परंपराएं भी महिलाओं
को भूमि के स्वामित्व से वंचित करती हैं। इस अध्ययन में दिखाया गया है कि आत्महत्या
करने वाले ऋणी किसानों में से 29 फीसदी की पत्नियां, अपने पति की जमीन को अपने नाम पर हस्तांतरित करने में असमर्थ
रहीं। ग्रामीण स्त्रियों के सशक्तीकरण के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक
और कानूनी सुधारों की जरूरत है।
खेती और गैर-कृषि
क्षेत्रों में आ रहे बदलावों का असर भी ग्रामीण स्त्रियों के रोजगार पर पड़ा है। पुरुष
यदि खेती का काम छोड़कर कारखानों या सेवा क्षेत्र में जाते हैं, तो उन्हें रोजगार मिलने
में आसानी होती है, जबकि इन क्षेत्रों में महिलाओं के रोजगार के अवसर कम होते हैं।
कई महिलाएं बच्चों की देखभाल करने के लिए काम छोड़ती हैं। स्त्रियों का घर छोड़कर
बाहर जाना भी संभव नहीं होता। पारिवारिक निर्णयों में पुरुषों की भूमिका होने के
कारण लड़कियों को घर से दूर जगहों पर काम के लिए नहीं भेजा जाता। शहरों में
कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल जैसी व्यवस्थाएं अच्छी नहीं हैं, जिसके कारण
ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियाँ बाहर निकलने से घबराती हैं।
सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव
तस्वीर का एक पहलू निराश करता है, तो आने वाले समय की
संभावनाएं भी हमारे सामने हैं। हाल के वर्षों में जिन सरकारी कार्यक्रमों ने
स्त्रियों को सबल बनाने में विशेष भूमिका निभाई है, उनका उल्लेख भी होना चाहिए। मोटे
तौर पर इन्हें दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। पहला स्त्री-सशस्त्रीकरण के
सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों से जुड़ा है और दूसरा उद्यमी के रूप में उनकी
आर्थिक सहायता से।
सामाजिक बदलाव के उपकरण के
रूप में सरकारी कार्यक्रम का सबसे अच्छा उदाहरण है बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान। इसकी शुरुआत 22 जनवरी
2015 को हरियाणा के पानीपत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। सरकार के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम का लक्ष्य कम बाल लिंगानुपात वाले 161 चयनित जिलों में व्यापक
अभियान तथा केंद्रीयकृत हस्तक्षेप और बहुक्षेत्रक कारवाई के माध्यम से बाल लिंगानुपात
(सीएसआर) में कमी के मुद्दे का समाधान करना है।
वर्ष 2020-21 के
बजट में कहा गया था कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना के विस्तार को 405
जिलों में बहुस्तरीय हस्तक्षेप तथा 235 जिलों में सक्रिय जिला मीडिया तथा सहायता
की पहुँच के माध्यम से सभी 640 जिलों (2011 की जनगणना के अनुसार) को शामिल करते
हुए मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदन प्रदान किया गया है। इस कार्यक्रम में मानव संसाधन
और स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालयों की भी भागीदारी है। इसमें संरक्षकों को
अपनी बेटियों को पढ़ाने और उन्हें ताकतवर बनाने के लिए साधनों को एकत्र करने के
लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन)-नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-5 में यह बात सामने आई कि पिछले पाँच साल में भारत
में सैनीटेशन, पेयजल और ईंधन तक लोगों की पहुंच
आसान हुई है, इसके बावजूद कुपोषण में वृद्धि सवाल खड़े करती है। अक्तूबर 2020 में
जारी 'ग्लोबल हंगर इंडेक्स' में भारत का स्कोर 27.2 था। दुनिया के 107 देशों में हुए इस सर्वेक्षण में भारत 94वें नंबर पर है। कुपोषण की इस गंभीर स्थिति को देखते हुए ही प्रधानमंत्री ने 8 मार्च, 2018 ‘पोषण’ अभियान
की घोषणा की थी, जो ‘प्राइम मिनिस्टर्स ओवरआर्चिंग
स्कीम फॉर होलिस्टिक न्यूट्रीशन’ का संक्षिप्त रूप है। यह कार्यक्रम गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली स्त्रियों,
किशोरियों और बच्चों पर केंद्रित है, जिसे आयुष मंत्रालय के माध्यम से चलाया
जा रहा है। देश की पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में भोजन एवं आहार पर विशेष जोर
दिया जाता है। पोषण अभियान को गति
देने के लिए इस ज्ञान के भंडार को वैज्ञानिक रूप से अनुकूलित किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना-प्रधानमंत्री ने 31 दिसंबर 2016 को देश के नाम अपने
संबोधन में पात्र गर्भवती स्त्रियों और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए मातृत्व
लाभ कार्यक्रम को पूरे देश में लागू कराने की घोषणा की थी। यह केंद्र प्रायोजित
स्कीम है, जिसमें राज्यों और विधान सभा वाले संघ शासित प्रदेशों को 60:40, पूर्वोत्तर
और हिमालयी प्रदेशों को 90:10 और विधान
मंडल रहित केंद्र शासित प्रदेशों को 100 प्रतिशत अनुदान सहायता दी जाती है। इस
स्कीम का उद्देश्य मातृत्व के कारण होने वाली मजदूरी की क्षति-पूर्ति करना है।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसव के उपरांत महिला को डीबीटी
पद्धति से 5000 रुपये और जननी सुरक्षा योजना के तहत कुछ और राशि प्रदान की जाती
है, ताकि औसतन 6000 रुपये की धनराशि महिला को प्राप्त हो जाए। यह धनराशि गर्भवती
महिलाओं के पोषण के लिए प्रदान की जाती है। अब इस योजना के अंतर्गत घर बैठे ऑनलाइन
आवेदन भी किया जा सकता है। यह सुविधा प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया अभियान के
अंतर्गत आरंभ की गई है। गत 28 दिसंबर से 2 जनवरी के बीच प्रधानमंत्री मातृत्व
वंदना योजना के अंतर्गत एक विशेष अभियान चलाया गया।
उज्ज्वला-अनैतिक दुर्व्यवहार की
रोकथाम के लिए यह एक विस्तृत स्कीम है, जो महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के अधीन
संचालित होती है। इसका उद्देश्य वाणिज्यिक यौन शोषण के अनैतिक दुर्व्यापार की पीड़ित
स्त्रियों का बचाव, पुनर्वास तथा परिवारों से पुनर्मिलन और प्रत्यावर्तन कराना है।
प्रधानमंत्री
उज्ज्वला योजना-"स्वच्छ ईंधन, बेहतर जीवन" के नारे के साथ केंद्र सरकार ने 1 मई 2016
को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सामाजिक कल्याण योजना-प्रधानमंत्री उज्ज्वला
योजना की शुरूआत की थी। यह योजना धुआँ रहित ग्रामीण भारत की परिकल्पना करती है और इसमें
गरीबी रेखा से नीचे रह रही महिलाओं को रियायती एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराने का
लक्ष्य रखा गया था। इससे एलपीजी के उपयोग में वृद्धि होगी और स्वास्थ्य संबंधी
विकार, वायु प्रदूषण एवं वनों की कटाई को कम करने में मदद मिलेगी। पेट्रोलियम
एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय इस योजना का कार्यान्वयन कर रहा है।
स्वच्छ भारत अभियान-ग्रामीण- इस कार्यक्रम का उद्देश्य गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ-सुथरा रखना है। इसमें व्यक्तिगत, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की
समस्या को कम करना या पूरी तरह समाप्त करना है। खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) स्थिति
को बाद सभी ग्रामीण क्षेत्रों में ओडीएफ स्थिति को बनाए रखना सुनिश्चित करना भी इस
कार्यक्रम का लक्ष्य है। यह कार्यक्रम ग्रामीण स्त्रियों के जीवन में बड़ा बदलाव
लेकर आया है। एक समय था, जब रात में या खराब मौसम में स्त्रियों का बाहर निकलना
दिक्कत तलब था। स्कूलों में शौचालय नहीं होने के
कारण लड़कियों को पढ़ाई छोड़नी पड़ती थी।
किशोरियों के लिए स्कीम-सरकार ने
11-14 साल की स्कूल बाह्य किशोरियों के पोषण और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार के
लिए सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से इस स्कीम को शुरू किया है। इसके साथ ही
स्कूलों को छोड़ चुकी किशोरियों को औपचारिक शिक्षा या व्यावसायिक कौशल प्रदान करने
के लिए सहायता उपलब्ध कराना है। 1 अप्रेल 2018 के बाद से यह योजना देश के सभी
जिलों में लागू कर दी गई है।
महिला शक्ति
केंद्र-भारत सरकार ने
सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए वर्ष 2017-18
से 2019-20 तक कार्यान्वित करने के लिए महिला शक्ति केंद्रों की स्थापना का फैसला
किया, जिनकी उसके पहले से चल रहे राष्ट्रीय महिला मिशन योजना का विलय कर दिया गया
था। शुरुआत में यह योजना 115 सबसे पिछड़े जिलों में कॉलेजों के छात्र स्वयंसेवकों
के माध्यम से समुदायों की भागीदारी की संकल्पना की गई है। चरणबद्ध तरीके से 640
जिलों में महिला केंद्रों की स्थापना की परिकल्पना है।
स्वाधार गृह- स्वाधार गृह योजना का
उद्देश्य कठिन परिस्थितियों की शिकार महिलाओं के लिए समाधान निकालना है, जिन्हें
पुनर्वास के लिए सांस्थानिक सहायता की जरूरत है ताकि वे अपने जीवन को गरिमापूर्ण
ढंग से जी सकें। ऐसी महिलाओं के लिए आश्रय, भोजन, वस्त्र और स्वास्थ्य की संकल्पना की गई है तथा आर्थिक
और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।
उद्यमी
महिलाओं की सहायता
ग्रामीण
स्त्रियों को अपने पैरों पर खड़ा करने में सरकार की भूमिका कई स्तरों पर है।
महिलाओं को एक तरफ आर्थिक सहायता और समर्थन की जरूरत है, वहीं शिक्षण-प्रशिक्षण और
तकनीकी सहायता भी चाहिए। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन इसका सबसे अच्छा
उदाहरण है, जिसके तहत कई तरह की योजनाएं हैं।
दीन दयाल
अंत्योदय योजना (डीएवाई-एनआरएलएम)-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ग्रामीण
स्त्रियों के लिए काफी व्यापक मंच है। इसका उद्देश्य ग्रामीण निर्धन महिलाओं को
स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) में संगठित करना और एक समयावधि के अंदर आय में उचित
वृद्धि प्राप्त करने तक उनकी सहायता करना है। कार्यक्रम के अंतर्गत स्वयं-सहायता
समूहों और उनके संघों को आजीविका कार्यकलापों में सुविधा प्रदान करने के लिए मुख्य
वित्तीय सहायता परिक्रामी निधि और सामुदायिक निवेश निधि है। कार्यक्रम में बैंकों
से 7 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर से 3 लाख रुपये तक का ऋण प्राप्त करने के लिए महिला
स्वयं-सहायता समूह को ब्याज सहायता देने का भी प्रावधान है। चुने गए 250 पिछड़े
जिलों में ऋण का पुनर्भुगतान समय पर कर दिया जाता है, तो ब्याज दर को घटाकर 4
प्रतिशत करते हुए अतिरिक्त ब्याज सहायता दी जाती है।
महिला किसान
सशक्तीकरण परियोजना (एमकेएसपी) इसके घटकों में से एक है। इसका लक्ष्य गरीबों के लिए मौजूदा कृषि
आधारित आजीविकाओं को सुदृढ़ बनाना और खेती तथा उत्पादकता में महिलाओं की भागीदारी
बढ़ाना भी है।
स्टार्ट-अप ग्राम
उद्यमिता कार्यक्रम (एसवीईपी) दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन
(डीएवाई-एनआरएलएम), ग्रामीण विकास
मंत्रालय द्वारा 2016 से एक उप-योजना के रूप में लागू किया गया है। इसका उद्देश्य
ग्रामीणों की उद्यम स्थापना में मदद करना और उनके स्थिर होने तक सहायता उपलब्ध
कराना है। हाल में डीएवाई-एनआरएलएम के महिला स्वयं सहायता समूहों ने कोरोना वायरस
महामारी का मुकाबला करने में भी अग्रिम पंक्ति के रूप में कार्य किया। ये महिलाओं समूह
मास्क, सुरक्षात्मक गियर किट, सैनिटाइजर और हैंड वॉश जैसे कई उत्पादों के
निर्माण में मजबूत कार्य बल के रूप में उभरे। इन महिला एसएचजी द्वारा तैयार किए गए फेस मास्क कोविड-19
लॉकडाउन अवधि के दौरान सबसे सफल उत्पाद रहा। इसमें 2.96 लाख एसएचजी सदस्य (59 हजार
एसएचजी) शामिल हैं, जिन्होंने लगभग
150 दिनों में 23.37 करोड़ फेस मास्क बनाए और लगभग 357 करोड़ रुपये का अनुमानित
व्यापार किया। कुछ महिला एसएचजी सामुदायिक रसोई को चलाने में शामिल थीं और उन्होंने
5.72 करोड़ से अधिक कमजोर समुदाय के सदस्यों के लिए तैयार भोजन उपलब्ध कराया।
स्टैंड अप इंडिया
ऋण योजना-अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग, जनजातियों और महिला उद्यमियों के लिए इस योजना को 5 अप्रैल, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू
किया था। इस योजना का उद्देश्य इस वर्ग के बीच उद्यमशीलता और रोजगार को बढ़ावा देना
है। योजना का लाभ लेने के लिए गैर–व्यक्तिगत मामले में अनुसूचित जाति-अनुसूचित
जनजाति या महिला की कारोबार में 51% हिस्सेदारी होनी चाहिए। इस योजना के तहत लोन
केवल ग्रीन फील्ड परियोजना के लिए उपलब्ध है। ग्रीनफील्ड का मतलब है कि निर्माण
या सेवाओं या व्यापार के क्षेत्र में लाभार्थी पहली बार काम कर रहा है।
राष्ट्रीय महिला
कोष-राष्ट्रीय महिला
एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन एक सूक्ष्म वित्त संगठन है। इससे सरकारी एवं गैर-सरकारी
संगठनों, महिला संघों तथा सहकारी बैंकों के माध्यम से
गरीब महिलाओं को सूक्ष्म ऋण प्रदान करने के लिए 1993 में गठित किया गया। इसके ऑपरेटिंग
मॉडल में यह एक सुविधा एजेंसी है, जो गैर सरकारी संगठनों
एनजीओ/मध्यवर्ती सूक्ष्म वित्तपोषण संगठनों/स्वयंसेवी संगठनों को ऋण प्रदान करता
है। ये संगठन आगे स्वयं सहायता समूहों व अन्य महिला समूहों को ऋण उपलब्ध कराते
हैं। यह जीविका, सूक्ष्म उद्यम, आवास, तथा पारिवारिक जरूरतों के लिए जमानत के बगैर
ग्राहक अनुकूलित तथा बाधा मुक्त विधि से ऋण प्रदान करता है। इसके मार्फत महिला
ई-हाट के कार्यों को भी बढ़ावा मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों को रोजगार में मदद करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका
हो सकती है।
स्टेप (सपोर्ट फॉर ट्रेनिंग
एंड एम्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वीमैन) स्त्रियों के प्रशिक्षण एवं रोजगार कार्यक्रम
को सहयोग देना-इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को ऐसा कौशल प्रदान करके उनकी रोजगार
क्षमता, कुशलता और दक्षता को बढ़ाना
है जिससे महिलाएं स्व-नियोजित/ उद्यमी बन सकें।
ग्रामीण महिला टेक्नोलॉजी पार्क(आरडब्ल्यूटीपी)-‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ अभियान को मूर्त रूप देने और ग्रामीण महिलाओं को स्वावलंबी
बनाने की दिशा में ग्रामीण
महिला टेक्नोलॉजी पार्क की पहल भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग
(डीएसटी) की है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण स्त्रियों को आधुनिक तकनीक और
सामान्य विज्ञान से परिचित कराना है। इनमें किसी भी उम्र की ग्रामीण महिलाएं शामिल
हो सकेंगी। शिक्षित होना भी जरूरी नहीं है। इसमें सामान्य कंप्यूटर शिक्षा
परंपरागत हुनर तराशने के साथ हैल्थकेयर, डिजिटल मार्केटिंग, फूड प्रोसेसिंग की जानकारी भी मिलेगी। पिछले दिनों सीएसआईआर-उत्तर-पूर्व
विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्थान, जोरहाट के तहत ग्रामीण
महिला प्रौद्योगिकी पार्क ने विभिन्न उत्पादों जैसे हैंड सैनिटाइजर, मास्क और तरल कीटाणुनाशक के निर्माण के लिए तैयार किया, जिससे यह बात साबित
हुई कि ग्रामीण स्त्रियों को सहायता मिले, तो वे बेहतरीन परिणाम दे सकती हैं।
प्रधानमंत्री
मुद्रा योजना (पीएमएमवाई)- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने 8 अप्रैल 2015 को नई दिल्ली में की थी। मुद्रा शब्द ‘माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी’ का संक्षिप्त रूप है। इस
योजना के दो उद्देश्य हैं। पहला, स्वरोजगार के लिए
आसानी से लोन देना, दूसरा, छोटे उद्यमों के
जरिए रोजगार का सृजन करना। ग्रामीण क्षेत्र में महिला उद्यमियों के बीच यह योजना लोकप्रिय
हुई है। इसमें सैलून, ब्यूटी पार्लर, टेलरिंग शॉप, पापड़, जेली-जैम और अचार
बनाने, पारंपरिक ज़री, चिकन, ज़रदोज़ी और हाथ की कढ़ाई वगैरह कुछ ऐसे काम हैं, जिन्हें
महिलाएं शुरू कर सकती हैं।
निष्कर्ष
महिला-सशक्तीकरण
के अनेक आयाम हैं। उपरोक्त दो श्रेणियों को अनेक श्रेणियों में विभाजित किया जा
सकता है। अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों
से जुड़े जो कार्यक्रम प्रत्यक्ष रूप से स्त्रियों के सशक्तीकरण से जुड़े
हैं, उनके अलावा बहुत से कार्यक्रम हैं, जिनका प्रभाव परोक्ष रूप से पड़ता है।
इनमें शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रम हैं। बुनियादी रूप से यह
सामाजिक बदलाव का विषय है, जिसमें पूरे समाज की भूमिका है। सरकारी कार्यक्रमों की
सफलता भी काफी हद तक सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों पर निर्भर करती है। पर जितना
हुआ है, उससे भविष्य उज्ज्वल नजर आता है।
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