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Monday, January 4, 2021

जो बाइडेन की प्राथमिकताओं पर भारत की निगाहें


आगामी 20 जनवरी को जो बाइडेन अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में अपना काम संभाल लेंगे। वे कहते रहे हैं कि मेरा सबसे पहला काम कोविड-19 की महामारी को रोकने का होगा। यह काम स्वाभाविक है, पर वे इसके साथ ही कुछ दूसरी बड़ी घोषणाएं अपने काम के पहले दिन कर सकते हैं। अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने दर्जनों और महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों को गिनाया है। इनमें आर्थिक और पर्यावरण से जुड़े मसले हैं, सामाजिक न्याय, शिक्षा तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी बातें हैं।

डोनाल्ड ट्रंप की कुछ नीतियों को वापस लेने या उनमें सुधार के काम भी इनमें शामिल कर सकते हैं। उन्होंने अपने पहले 100 दिन के जो काम घोषित किए हैं उनमें आप्रवास से जुड़ी कोई दर्जन भर बातें हैं, जिन्हें लागू करना आसान भी नहीं है। सबसे बड़ी परेशानी संसद में खड़ी होगी। प्रतिनिधि सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत जरूर है, पर वहाँ भी रिपब्लिकन पार्टी ने अपनी स्थिति बेहतर बनाई है। सीनेट की शक्ल जनवरी में जॉर्जिया की दो सीटों पर मतदान के बाद स्पष्ट होगी।

संसद में बाइडेन को अपनी पार्टी के ऐसे नीतिगत फैसलों को लागू करने में दिक्कत होगी, जिन्हें रिपब्लिकन पार्टी का समर्थन नहीं है। मसलन हैल्थकेयर और पर्यावरण। इसलिए वे शुरूआती स्तर पर कोविड-19 और अमेरिकी इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार जैसे कार्यक्रमों को ही आगे बढ़ा पाएंगे। उन्होंने डॉ एंथनी फाउची से नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफैक्शस डिजीज के डायरेक्टर के पद पर बने रहने का आग्रह किया है। वे इस पद पर 1984 से काम कर रहे हैं। उनकी सलाह डोनाल्ड ट्रंप ने नहीं मानी थीं।

पेरिस संधि और डब्लूएचओ

कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट जेम्स एम लिंडसे ने लिखा है कि पेरिस संधि और विश्व स्वास्थ्य संगठन में शामिल होना शायद उनके पहले वैश्विक-नीति निर्णय होंगे। अमेरिकी मीडिया में अभी से सवाल हो रहे हैं कि लैटिन अमेरिका को कैसे संभालेंगे, पश्चिम एशिया में क्या करेंगे, चीन के साथ रिश्तों का क्या होगा वगैरह। लगता है कि वे चीन के साथ चल रहे व्यापार-युद्ध को फिलहाल रोकने की कोशिश करेंगे, बल्कि देश की पूरी व्यापार-नीति पर हाथ बाद में लगाएंगे।

अलबत्ता उनकी पहली परीक्षा ईरान के साथ परमाणु संधि को लेकर होगी। इसके अलावा उत्तरी कोरिया की मिसाइलों के परीक्षण और एटमी धमाके भी उन्हें सबसे पहले परेशान करेंगे। इसके अलावा अमेरिकी सरकार और कंपनियों में रूसी हैकरों की घुसपैठ पर भी वे पहले विचार करेंगे। राष्ट्रपति ट्रंप जाते-जाते भी कुछ ऐसे फैसले करते जाएंगे, जो बाइडेन के लिए परेशानी का सबब बनेंगे। इस लिहाज से देखें, तो बाइडेन से अपेक्षाएं बहुत ज्यादा हैं और राजनीतिक रूप से वे उतने ताकतवर नहीं हैं, जितना उन्हें होना चाहिए। जबकि उन्होंने कुछ ऐसे फैसलों की घोषणा कर रखी है, जो उन्हें अलोकप्रिय बनाएंगे।

राजनीतिक फैसले

बाइडेन ने अपने प्रचार के दौरान कहा था कि मैं राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के बाद पहले दिन कॉरपोरेट आयकर 21 फीसदी से बढ़ाकर 28 फीसदी कर दूँगा। ट्रंप प्रशासन ने 2017 में इसकी दर घटाकर 21 फीसदी की थी। अलबत्ता आयकर को लेकर उनकी जो वृहत योजना है, उसमें यह भी कहा गया है कि जिन अमेरिकी नागरिकों की सालाना आय चार लाख डॉलर से कम है, उन्हें ज्यादा टैक्स नहीं देना होगा। पहले दिन के जिन फैसलों का वायदा उन्होंने किया है, उनमें एक अवैध रूप से रह रहे 1.1 करोड़ आप्रवासियों को नागरिकता देने के लिए कानून पास कराने का वायदा भी है।

उन्होंने कुछ मुस्लिम देशों के नागरिकों की अमेरिका यात्रा पर लगी रोक को खत्म करने का वायदा भी किया है। शरणागत-नीतियों को बदलने और खासतौर से मैक्सिको से आने वालों के साथ सीमा पर होने वाले व्यवहार को रोकने का वायदा भी किया है। इसमें डिटेंशन कैम्पों में कैद आप्रवासियों की बदहाली शामिल है। उन्होंने देश की दक्षिणी सीमा पर बन रही दीवार के लिए और धनराशि को स्वीकृति नहीं देने की घोषणा की है, पर यह कहा है कि जितनी दीवार बन गई है, उसे गिराने का विचार नहीं है।

इन बातों के राजनीतिक निहितार्थ हैं। पिछले दिनों एक अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ़्लॉयड तथा कुछ अन्य अश्वेत नागरिकों की हत्याओं को लेकर देश में खड़े हुए ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के संदर्भ में उनका वायदा है कि पहले 100 दिन में मैं पुलिस ओवरसाइट कमीशन की नियुक्ति करूँगा। देश की पुलिस व्यवस्था को ओवरहॉल करने की दिशा में यह एक कदम होगा। कारागार व्यवस्था में सुधारों का वायदा है। उन्होंने बड़ स्तर पर निवेश के सहारे 50 लाख नए रोजगारों का वायदा भी किया है। खरीद में स्वदेशी सामग्री को प्राथमिकता देने के लिए मेड इन अमेरिका पॉलिसी की घोषणा की है।

चीन की चुनौती और भारत

डोनाल्ड ट्रंप की ऊँची-ऊँची बातों पर पूरा भरोसा न भी करे, पर इतना लगता है कि हमारे और अमेरिका के रिश्तों में एक प्रकार की स्थिरता का समय आ गया है। दूसरी तरफ चीन और अमेरिका के रिश्तों में तल्खी आ रही है और भारत से सुधार। शुरूआत रिपब्लिकन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के समय में हुई थी और डेमोक्रेट बराक ओबामा के समय में यह पुष्ट हुई। ट्रंप के कार्यकाल में कुछ महत्वपूर्ण सामरिक समझौते हुए। जो बाइडेन इसे आगे बढ़ाएंगे।

भारत की दिलचस्पी अपने आर्थिक विकास में है। अमेरिका के सामने चीन एक तरफ आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है और दूसरी तरफ सामरिक चुनौती बनकर खड़ा है। इस चुनौती को अमेरिकी प्रशासन और उसके सहयोगी देश जापान ने सन 2000 में ही देख लिया था। इसीलिए 1998 के एटमी धमाकों के दौरान लगाई गई पाबंदियों को इन दोनों देशों में धीरे-धीरे खत्म किया और आज ये दो देश भारत के निकटतम सामरिक सहयोगी हैं। यह सामरिक सहयोग बगैर आर्थिक सहयोग के अधूरा है। बाइडेन प्रशासन के समय में ही आर्थिक सहयोग की बुनियाद पड़नी चाहिए।

चीन केवल सामरिक चुनौती ही पेश नहीं कर रहा है, बल्कि तकनीकी महाशक्ति के रूप में स्थापित अमेरिका के वर्चस्व को भी चुनौती दे रहा है। ह्वावेई की 5-जी तकनीक इसका एक उदाहरण है। अमेरिका अपने यूरोपीय सहयोगी देशों के साथ मिलकर चीन के विस्तार को रोकेंगेइस बीच भारत और चीन के बढ़ते कारोबारी रिश्तों में रुकावट आई है। अप्रेल-मई 2020 मे पूर्वी लद्दाख की घटनाओं ने इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया है। इस साल क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग यानी क्वॉड की दिशा में न केवल काफी प्रगति हुई, बल्कि मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी भी शुरू हो गई।

पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि ट्रंप को हंगामा करने की कला आती थी। बाइडेन खामोशी को साथ चीन-विरोधी अभियान चलाएंगे। इसमें भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का समर्थन मिलेगा, क्योंकि इन तीनों देशों को भी चीन से शिकायतें हैं।

पाकिस्तान और भारत

हमारे लिए अमेरिका की पाकिस्तान-नीति ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाने का फैसला कर लिया है। यह फैसला इस बिना पर किया गया है कि तालिबान पर पाकिस्तान की मदद से दबाव बनाकर रखा जा सकेगा। अमेरिका को इस बात की पूरी जानकारी है कि पाकिस्तान के भीतर किस तरह की ताकतें सक्रिय हैं। इसीलिए वह अभी तक एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में बना हुआ है।

अमेरिकी सरकार पाकिस्तान को पुचकारने और थप्पड़ लगाने के दोनों काम करती रही है। यह नीति जारी रहनी चाहिए। अफगानिस्तान में अब चीन और रूस की दिलचस्पी भी है। भारत चाहता है कि अमेरिकी सेना की उपस्थिति किसी न किसी रूप में बनी रहे। बाइडेन प्रशासन की इस नीति पर भारत की निगाहें रहेंगी।

भारत की दिलचस्पी रोजगार और शिक्षा के लिए अमेरिकी वीजा में भी है। ट्रंप प्रशासन की नीतियों में भारत के लिए किसी किस्म की रियायत नहीं थी। फरवरी 2020 में ट्रंप की दिल्ली-यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच व्यापार-समझौते की बातें हुई थीं। अब भारत को बाइडेन प्रशासन के साथ इस समझौते पर बात करनी होगी।

भारत अब शुल्क मुक्त निर्यात योजना को बहाल करने के लिए बातचीत भी कर सकता है। इस योजना का नाम जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस (जीएसपी) है। ट्रंप प्रशासन ने 2019 में जीएसपी सूची से भारत को बाहर कर दिया था। इसके तहत भारत 2,000 से अधिक उत्पादों का अमेरिका को शुल्क मुक्त निर्यात करता था। इन उत्पादों में कपड़ा, वाहन आदि शामिल हैं। इस योजना के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक भारत था।

जो बाइडेन ने उपराष्ट्रपति बनने के काफी पहले सन 2006 में कहा था, ‘मेरा सपना है कि सन 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र देश बनें।’ यह सपना अब पूरा हो रहा है। उपराष्ट्रपति के रूप में बाइडेन सन 2013 में भारत की यात्रा पर आए थे। तब भी उन्होंने भारत के प्रति अपने वही उद्गार व्यक्त किए थे। देखना होगा कि 20 जनवरी के बाद वे सबसे पहले किन देशों के नेताओं से बात करते हैं।

नवजीवन में प्रकाशित

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