हरिवंश राय बच्चन की कविता की एक पंक्ति है, ‘साथी, साथ न देगा दुख भी।’ इसी तरह फिल्म मदर इंडिया का गीत है ‘दुख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे।’ दुख भी अनंतकाल तक नहीं रह सकता। जिस तरह पिछला साल गुजरा, वैसा बहुत कम होता है, पर दुनिया ने एक से एक बड़े दुख देखे हैं और वह हमेशा उनसे बाहर निकल कर आई है। जरूरत होती है उस सामूहिक हौसले की जो ऐसे समय पर काम आते हैं।
दुनियाभर को इस बार नए साल का जिस शिद्दत से इंतजार था, वैसा भी कम होता है।
सबको उम्मीद है कि इस साल जिंदगी पटरी पर आएगी। इस माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी के मन का कवि भी जागा और उन्होंने देशवासियों के नाम एक कविता लिखी और ट्विटर
पर उसे शेयर किया है। कविता का शीर्षक है 'अभी तो सूरज उगा है।' कैसा है उनकी उम्मीद
का सूरज?
ढर्रे पर आती
व्यवस्था
नए साल की शुरुआत हम कोविड-19 के खिलाफ वैक्सीन से कर रहे हैं। कल पूरे देश में वैक्सीन लगाने का पूर्वाभ्यास हुआ है। कोरोना के कारण हमारी अर्थव्यवस्था संकुचन के स्तर पर आ चुकी है। उसे वापस ढर्रे पर लाना है। अगले वित्त वर्ष का बजट आने में अब एक महीने से कम का समय बचा है। इस साल भारत की जनगणना शुरू होने वाली है, जो अपने किस्म की दुनिया की सबसे बड़ी प्रशासनिक गतिविधि है। किसान आंदोलन को सुलझाने की कोशिशों की सफलता की संभावनाएं नजर आ रही हैं। दिल्ली के दरवाजे पर किसान आंदोलन है। संभव है कि अगली 4 जनवरी की बातचीत के बाद कोई रास्ता निकले। भारत दो साल के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता शुरू कर रहा है। शायद लद्दाख में चल रहा गतिरोध खत्म हो जाए। बात उम्मीदों की है।
जनवरी का महीना
हमारे गणतंत्र दिवस का महीना है। इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को हमने पिछले 70 साल से
बखूबी चलाया है और यह हमारा सबसे बड़ा संबल है। राष्ट्रीय पर्व ऐसे अवसर होते हैं
जब लाउड स्पीकर पर देशभक्ति के गीत बजते हैं। क्या वास्तव में हम देशभक्त हैं? नरेंद्र मोदी ने पिछले
साल दो-तीन मौकों पर देशवासियों को कोरोना-संकट के दौरान हौसला बनाए रखने का
आह्वान किया था। उनके घोर समर्थक हैं और घनघोर विरोधी भी। इस वक्त जरूरत है
नकारात्मकता पर जीत हासिल करने की। क्या हम इस लड़ाई में कामयाब होंगे? आपकी राय क्या है?
आशावादी मन
करीब डेढ़ दशक
पहले कहावत प्रसिद्ध हुई थी, ‘सौ में नब्बे
बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान।’
यह एक प्रकार का सामाजिक अंतर्मंथन था। हम अपना मजाक उड़ाना भी जानते हैं, पर एक सचाई की स्वीकृति
भी थी। भारत विरोधाभासों का देश है। एक तरफ देश का मन आशावादी और महत्वाकांक्षी है, वहीं बौद्धिक विमर्श नकारात्मक, नाउम्मीद और कड़वाहट से भरपूर है।
विकास हुआ, संपदा बढ़ी, मोबाइल कनेक्शनों की धूम है, मोटरगाड़ियों के मालिकों की तादाद बढ़ी, हाउसिंग लोन बढ़े और आधार जैसे कार्यक्रम को
सफलता मिली। फिर भी हमारा मन निराश और हताश है। जैसे कि अब तक न तो कुछ अच्छा हुआ
और न कुछ होगा। दुष्यंत कुमार की दो लाइनें हैं:- ‘आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी/ शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी
चाहिए।’ ‘बुनियाद को हिलाने और सूरत को बदलने की चाहत’ आज के भारत का मंतव्य है।
अति-राजनीति
पिछले साल अचानक
एक नेता के बयान के बाद यह चर्चा शुरू हुई कि ‘टू मच राजनीति’ भी बड़ी समस्या है। यह बात पहले भी कही गई है। व्यावहारिक स्तर पर पॉलिटिक्स
शब्द हमारे यहाँ गाली बन चुका है। पर हमें राजनीति चाहिए, क्योंकि बदलाव का सबसे बड़ा जरिया राजनीति है।
उससे हम बच नहीं सकते। सुधार होने हैं तो सबसे पहले राजनीति में होने चाहिए। पर
उससे पहले बदलाव वोटर के भीतर भी होना चाहिए। अशिक्षित, अभावग्रस्त, अंधविश्वासी
और जातीय और सांप्रदायिक आधारों पर बँटे समाज की राजनीति स्वस्थ नहीं हो सकती।
वोट की राजनीति
और बदलाव की राजनीति दो अलग-अलग ध्रुवों पर खड़ी है। सामाजिक टकरावों का सबसे बड़ा
कारण वोट की राजनीति है। यह तबतक रहेगी, जबतक सामान्य वोटर की समझ अपने हितों को परिभाषित करने लायक
नहीं होती। यह भी वक्त लेने वाली प्रक्रिया है। राजनीति को कितनी भी गाली दें, पिछले 73 साल की उपलब्धियों की सूची बनाएंगे
तो लोकतंत्र का नाम सबसे ऊपर होगा।
लोकतांत्रिक
उपलब्धि
लोकतंत्र के साथ
उसकी संस्थाएं और व्यवस्थाएं दूसरी बड़ी उपलब्धि है। तीसरी बड़ी उपलब्धि है
राष्ट्रीय एकीकरण। इतने बड़े देश और उसकी विविधता को बनाए रखना आसान नहीं है। चौथी
उपलब्धि है सामाजिक न्याय की परिकल्पना। पिछले कई हजार साल में भारतीय समाज कई प्रकार
के दोषों का शिकार हुआ है। उन्हें दूर करने के लिए हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था के
भीतर से ऐसे औजारों को विकसित किया हो, जो कारगर हों। इसे सफल होने में एक-दो पीढ़ियाँ तो लगेंगी।
पाँचवीं उपलब्धि है आर्थिक सुधार। छठी है शिक्षा-व्यवस्था। और सातवीं, तकनीकी और वैज्ञानिक विकास। हम मंगलग्रह तक
पहुँच चुके हैं। इस सूची को बढ़ाया जा सकता है। इनके साथ तमाम किंतु-परंतु भी
जुड़े हैं, पर इनकी अनदेखी नहीं की
जा सकती।
राजनीति ने हमें
जोड़ा और तोड़ा भी है। सबसे गुणी और समझदार लोग राजनीति में हैं और सबसे बड़े
अपराधी भी। आदर्श और पाखंड दोनों राजनीति में बराबर की कुर्सियों पर बैठते हैं। नवम्बर
2015 में संसद के शीत सत्र के पहले दो दिन की विशेष चर्चा ‘संविधान दिवस’ के
संदर्भ में हुई। डॉ भीमराव आम्बेडकर की स्मृति में हुई इस विशेष चर्चा में संविधान
की सर्वोच्चता और भारतीय समाज की बहुलता पर बड़ी अच्छी बातें कही गईं। संसद में जब
ऐसे विषयों पर चर्चा होती है, तो समूची राजनीति
आदर्शों से प्रेरित नजर आती है और जैसे ही इस विषय पर चर्चा खत्म होती है और अगले
दिन संसद की बैठक शुरू होती है, तो एक दिन पहले
वाले सौम्य चेहरे बदल जाते हैं।
इस राजनीति में
अनेक दोष हैं,
पर उसकी कुछ
विशेषताएं तमाम देशों की राजनीति से उसे अलग करती हैं। यह फर्क राष्ट्रीय आंदोलन
की देन है। इस आंदोलन के साथ-साथ हिंदू और मुस्लिम राष्ट्रवाद, दलित चेतना और क्षेत्रीय मनोकामनाओं के आंदोलन
भी चले और उनकी प्रतिच्छाया आज की राजनीति में भी है। कुछ आंदोलन अलगाववादी भी थे
और हैं। पर एक वृहत भारत की संकल्पना कमजोर नहीं हुई। मोटे तौर पर उम्मीद रखनी
चाहिए कि इन अंतर्विरोधों के रहते हुए भी इस साल हम संकटों का समाधान करते रहेंगे
और अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करते जाएंगे।
Box
कोविड-19 वैक्सीन
इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक भारत में कोविड की पहली वैक्सीन ‘कोवीशील्ड’ को अनुमति मिल चुकी होगी या मिलने वाली होगी। उम्मीद है कि इस
हफ्ते देश में पहला टीका लगेगा। सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों और वरिष्ठ नागरिकों
को टीके लगेंगे और जुलाई तक करीब 30 करोड़ लोगों को लग जाएंगे। देश ने 2 जनवरी को टीकाकरण
का पूर्वाभ्यास कर लिया है। विश्व का यह अब तक का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम है।
इसमें करीब 2.39 लाख व्यक्ति टीका देने का काम करेंगे। इनमें 96,000 लोगों का
प्रशिक्षण हो चुका है। सभी राज्यों की राजधानियों में इस शनिवार को तीन टीकाकरण
स्थलों पर पूर्वाभ्यास हुआ। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में टीकाकरण शुरू
करने के लिए 29,000 कोल्ड-चेन पॉइंट, 240 वॉक-इन कूलर, 70 वॉक-इन फ्रीजर, 45,000 आइस-लाइंड रेफ्रिजरेटर, 41,000 डीप फ्रीजर और 300 सोलर
रेफ्रिजरेटर की जरूरत होगी। कुल 2.39 लाख टीका देने वालों में से 1.54 लाख वे
ऑग्जिलियरी नर्सें और मिडवाइव्स (एएनएम) होंगी, जो सामान्य व्यापक
टीकाकरण कार्यक्रम में टीके लगाती हैं।
स्कूलों में चहल-पहल
हालांकि पुराने दौर की वापसी में अभी समय है, पर नए साल के पहले दिन देश के
तीन राज्यों केरल, कर्नाटक और असम में बच्चों के
स्कूल फिर से खुल गए। अभी खुलने वाले ज्यादातर स्कूल बड़े बच्चों के हैं और उनकी
हाजिरी मामूली है, पर जिंदगी वापस लौट रही है। केरल की एक शिक्षिका ने बताया, बच्चों
को दोबारा स्कूल में देखकर खुशी हो रही है। वहाँ एक क्लासरूम में केवल 10 बच्चों
को प्रवेश की अनुमति दी गई है। कई राज्य अभी स्कूलों को खोलने के पक्ष में नहीं
हैं, पर माहौल बदल रहा है। बिहार में 4 जनवरी से सरकारी स्कूलों और कोचिंग सेंटरों को
खोला जाएगा। राजस्थान में भी 4 जनवरी से छठी से 12वीं तक स्कूल खोलने की तैयारी
है। महाराष्ट्र में 9वीं से 12 वीं कक्षा के छात्रों के लिए 4 जनवरी से स्कूलों को
खोला जाएगा। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कक्षा 6 से 8वीं तक के स्कूल
खोलने की तैयारी में है। वहीं दिल्ली की सरकार का कहना है कि जब तक कोविड-19 वैक्सीन
नहीं आ जाता तब तक स्कूल खोलना सही नहीं है।
राष्ट्रीय जनगणना
यह जनगणना का साल है। भारत की जनगणना दुनिया की सबसे बड़ी प्रशासनिक गतिविधि
है और यह सफलता के साथ संचालित होती रही है। हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में
जनगणना का काम कभी ठीक ढंग से नहीं हो पाया, जबकि इसके लिए वहाँ सेना की सहायता ली
जाती है। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार इसे दो चरणों में होना था। पहला चरण
अप्रैल-सितंबर 2020 में जबकि दूसरे चरण में 9 फरवरी से 28 फरवरी 2021 तक पूरी जनसंख्या
की गणना का काम होना था। पिछले साल कोरोना के कारण पहला चरण पूरा नहीं हो सका। वैक्सीन के कार्यक्रम
पर जनगणना का कार्यक्रम भी निर्भर करेगा। देश में हर दस साल बाद जनगणना का
काम 1872 से किया जा रहा है। जनगणना 2021
देश की 16 वीं और आजादी के बाद की 8 वीं जनगणना होगी।
अंतरिक्ष में कीर्तिमान
इस साल सब ठीक रहा तो अंतरिक्ष में भारत की सफलता के कुछ नए कीर्तिमान स्थापित
होंगे। नए साल में इसरो का पहला लॉन्च फरवरी-मार्च में होगा। ब्राजील के उपग्रह अमेजनिया-1 का प्रक्षेपण इसरो करेगा। इस प्रक्षेपण का महत्व इस बात में है कि ब्राजील के
उपग्रह के अलावा इसरो का पीएसएलवी-सी51 रॉकेट ‘आनंद’ नाम के एक अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट को भी लेकर
जाएगा, जिसे देश के एक स्टार्टअप ‘पिक्सेल’ ने तैयार किया है। ‘पिक्सेल’ ने सन 2022 के अंत तक
इस प्रकार के 30 छोटे अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइटों के समूह को अंतरिक्ष में स्थापित
करने की योजना बनाई है। इसके अलावा यह रॉकेट देश के तीन विश्वविद्यालयों के सहयोग
से बनी सैटेलाइट यूनिट-सैट को भी अंतरिक्ष में ले जाएगा। इस तरह से भारत के अंतरिक्ष
कार्यक्रम में निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ एक नई शुरुआत होने जा रही है। सरकार ने इस काम के लिए 2020 में नेशनल स्पेस प्रमोशन
एंड ऑथराइजेशन सेंटर (इन-स्पेस) की स्थापना की थी। इन-स्पेस देश में निजी क्षेत्र
के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए नियामक संस्था का काम करेगा।
समानव उड़ान
इस साल भारत के समानव गगनयान की तैयारी के लिए होने वाला मानवरहित मिशन कुछ टल
सकता है। पहले इस मिशन को दिसंबर 2020 और दूसरे मानवरहित मिशन को जून 2021 में भेजने की योजना बनाई गई थी। यह प्रक्षेपण इस साल के अंत में हो सकता है। इस
साल भारत सूर्य का अध्ययन करने वाले यान आदित्य एल1 और चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण भी
करेगा।
बेहतरीन। ।।। विविध बिंदुओं पर विस्तृत जानकारी एक जगह पा सका।।।।।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद।
धन्यवाद पुरुषोत्तम जी। शुभकामनाएं
Deleteमंगलमय हो नव वर्ष।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील जोशी जी
Deleteआपको भी नव वर्ष की शुभकामनाएं
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