भारत और चीन के बीच तनाव कितना ही रहा हो, दोनों सरकारों के विदेश विभाग आमतौर पर काफी संयत तरीके से प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते रहे हैं, पर इस हफ्ते दोनों देशों के व्यवहार में फर्क नजर आया। संयोग से इसी हफ्ते रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का ऐसा वक्तव्य सामने आया, जिससे लगता है कि रूस को भारतीय विदेश-नीति के नियंताओं से शिकायत है।
पिछले बुधवार यानी 9 दिसंबर को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया के थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट के एक ऑनलाइन इंटर-एक्टिव सेशन में कहा कि चीन ने लद्दाख में एलएसी पर भारी संख्या में सैनिक तैनात करने के बार में ‘पाँच अलग-अलग स्पष्टीकरण’ दिए हैं। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे पाँच स्पष्टीकरण क्या हैं, पर उन्होंने इतना जरूर कहा कि चीन ने द्विपक्षीय समझौतों का बार-बार उल्लंघन किया। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 30-40 साल में बने रिश्ते इस समय बहुत मुश्किल दौर में हैं।
हाल के दिनों में चीन सरकार इस बात पर जोर देती रही है कि
सीमा की स्थिति को द्विपक्षीय रिश्तों से अलग करके देखना चाहिए। यानी कि आर्थिक
रिश्तों को बनाए रखना चाहिए और सीमा के सवाल को अलग कर देना चाहिए। पर भारत का
कहना है कि ऐसा संभव नहीं है। रिश्तों को बनाए रखने के लिए सीमा पर शांति बनी रहना
चाहिए।
जयशंकर ने कहा कि एलएसी पर शांति और स्थिरता बनाए रखना बाकी
रिश्तों को बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है। ऐसा नहीं हो सकता है कि सीमा पर हालात
वैसे रहें, जैसे आज हो गए हैं और चाहें कि बाकी मामलों में प्रगति होती रहे। यह
अस्वाभाविक है।
जयशंकर ने अपने वक्तव्य में कहा था कि चीन ने ऐसा कोई संकेत
नहीं दिया है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने मई में जो घुसपैठ की थी, उससे
वापस वह पीछे जाएगा। दोनों देशों के बीच कोर कमांडर के स्तर पर वार्ता के आठ दौर
हो चुके हैं, पर सेनाओं की वापसी पर सहमति नहीं बनी है।
जयशंकर ने कहा कि सन 1993 में हमारा समझौता हुआ था कि दोनों ही पक्ष सीमा पर भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती नहीं करेंगे। पर किसी वजह से चीन ने इस समझौते का उल्लंघन किया। उन्होंने हजारों की तादाद में न केवल सैनिकों की तैनाती की, बल्कि लद्दाख की सीमा तक पूरी सैनिक तैयारी का प्रदर्शन किया। स्वाभाविक है कि इससे रिश्तों में कड़वाहट आई है।
चीनी जवाब
जयशंकर के इस वक्तव्य का चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता
ह्वा चुनयिंग ने अगले ही रोज गुरुवार 10 दिसंबर को जवाब दिया। उन्होंने कहा कि एलएसी
पर घटनाक्रम की जिम्मेदारी ‘पूरी तरह भारत की’ है। यह बात एकदम साफ है। चीन और भारत
दुनिया के दो सबसे बड़े उभरते बाजार हैं और इन दोनों के रिश्तों को अच्छा बनाकर
रखना दोनों के हित में है।
सीमा के हालात के बारे में चीनी प्रवक्ता ने कहा कि चीन उस
समझौते का पूरी संजीदगी से पालन करता रहा है। हम सीमा के सवालों को बातचीत के जरिए
सुलझाने के हामी हैं। हम क्षेत्रीय शांति और सीमा पर स्थिरता को बनाए रखने के
पक्षधर भी हैं। पर दूसरे संप्रभु देशों की तरह हम भी अपनी क्षेत्रीय अखंडता को
बनाए रखने के प्रतिबद्ध हैं। मेरी समझ से भारत को अपने रुख के बारे में सोचना चाहिए।
हमें आशा है कि भारत हमारे साथ सहयोग करेगा। द्विपक्षीय रिश्तों में चुनौतियाँ
हैं, पर भारत के बारे में हमारी नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
भाई-भाई से बाई-बाई तक का सफ़र :)
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