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Friday, December 25, 2020

बीजेपी-विरोध के अंतर्विरोध


ज्यादातर विरोधी दलों के निशाने पर होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर कोई महामोर्चा नहीं बन पाना, अकेला ऐसा बड़ा कारण है, जो भारतीय जनता पार्टी को क्रमशः मजबूत बना रहा है। अगले साल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में यह बात नजर आएगी, पर उसकी एक झलक इस समय भी देखी जा सकती है।

बीजेपी के खिलाफ रणनीति में एक तरफ ममता बनर्जी मुहिम चला रही हैं, वहीं सीपीएम ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर 11 पार्टियों का जो संयुक्त बयान जारी किया है, उसमें तृणमूल का नाम नहीं है। यह बयान केंद्र सरकार के कृषि-कानूनों के विरोध में है। इसपर उन्हीं 11 पार्टियों के नाम हैं, जिन्होंने किसान-आंदोलन के समर्थन में 8 दिसंबर के भारत बंद का समर्थन किया था।

इस संयुक्त वक्तव्य पर राहुल गांधी (कांग्रेस), शरद पवार (एनसीपी), फारूक अब्दुल्ला (गुपकार गठबंधन), सीताराम येचुरी (सीपीएम), टीआर बालू (द्रमुक), अखिलेश यादव (सपा), तेजस्वी यादव (राजद), डी राजा (भाकपा), दीपांकर भट्टाचार्य (भाकपा-माले), देवव्रत विश्वास (फॉरवर्ड ब्लॉक) और मनोज भट्टाचार्य (आरएसपी) यानी 11 पार्टियों के नेताओं के हस्ताक्षर हैं। ममता बनर्जी का नाम इसमें नहीं है। संयोग से यह पत्र उसी दिन जारी हुआ है, जिस दिन कांग्रेस और सीपीएम ने बंगाल का चुनाव मिलकर लड़ने का फैसला किया।

दूसरी तरफ ममता बनर्जी कोलकाता में भाजपा के खिलाफ विरोधी दलों की एक रैली आयोजित करने जा रही हैं, जिसके लिए उन्होंने एनसीपी के शरद पवार के साथ संपर्क साधा है। वे इस रैली में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और डीएमके के एमके स्टालिन को भी बुलाना चाहती हैं।

बहरहाल ममता बनर्जी की राजनीति इस समय बीजेपी के विरोध पर केंद्रित है, क्योंकि बंगाल में वाममोर्चा अब उनका मुख्य प्रतिस्पर्धी नहीं है। पर सीपीएम और कांग्रेस ऐसा भी नहीं चाहेंगे कि तृणमूल कांग्रेस को बीजेपी के मुख्य स्पर्धी के रूप में देखा जाए। वे बंगाल के चुनाव को त्रिकोणीय बनाना चाहते हैं।

बहरहाल गुरुवार को 11 विपक्षी दलों ने एक संयुक्त बयान जारी कर सरकार से पूछा है, 'आखिर झूठ कौन फैला रहा है?' गुरुवार को कांग्रेस ने राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकालने का ऐलान किया, हालांकि दिल्ली पुलिस की तरफ से कांग्रेस को मार्च की अनुमति नहीं मिली। इस दौरान प्रियंका गांधी को हिरासत में भी लिया गया। गुरुवार को ही कांग्रेस, एनसीपी, सीपीएम समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की।

इस बीच भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने 11 विपक्षी दलों को मिलाकर संयुक्त वक्तव्य जारी किया है। अपने बयान में विपक्ष ने कहा कि केंद्र सरकार को नए कृषि कानून रद्द कर देने चाहिए और उनके खिलाफ निराधार आरोप लगाना बंद कर देना चाहिए। बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री निराधार आरोप लगाना बंद करें। उनकी ओर से किसान आंदोलन को लेकर लगाए जा रहे आरोपों का हम जोरदार विरोध करते हैं।

उन्होंने विपक्षी दलों पर कृषि कानूनों को लेकर किसानों को गुमराह करने और अपनी राजनीति के लिए उनका इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है, जो गलत है। पीएम मोदी के आरोप सच्चाई से कोसों दूर है। जब संसद में कृषि कानूनों को पर्याप्त समय दिए बिना पारित किया जा रहा था, तब भी हमने विरोध किया था। जिन सांसदों ने मत विभाजन की मांग की उन्हें निलंबित कर दिया गया।

 

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