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Tuesday, June 30, 2020

चीन का सिरदर्द हांगकांग


China Threatens to Retaliate If U.S. Enacts Hong Kong Bill - Bloombergऔपचारिक रूप से हांगकांग अब चीन का हिस्सा है, पर एक संधि के कारण उसकी प्रशासनिक व्यवस्था अलग है, जो सन 2047 तक रहेगी। पिछले कुछ समय से हांगकांग में चल रहे आंदोलनों ने चीन की नाक में दम कर दिया है। उधर अमेरिकी सीनेट ने 25 जून 2020 को हांगकांग की सम्प्रभुता की रक्षा के लिए दो प्रस्तावों को पास किया है, जिससे और कुछ हो या न हो, हांगकांग की स्वतंत्र अर्थव्यवस्था को धक्का लगेगा।
चीन के नए सुरक्षा कानून के विरोध में अमेरिका ने यह कदम उठाया है। इस प्रस्ताव में उन बैंकों पर भी प्रतिबंध लगाने की बात है जो हांगकांग की स्वायत्तता के खिलाफ चीन का समर्थन करने वालों के साथ कारोबार करते हैं। ऐसे बैंकों को अमेरिकी देशों से अलग-थलग करने और अमेरिकी डॉलर में लेनदेन की सीमा तय करने का प्रस्ताव है।
हांगकांग ऑटोनॉमी एक्ट नाम से एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिसका उद्देश्य उन व्यक्तियों और संस्थाओं पर पाबंदियाँ लगाना है, जो हांगकांग की स्वायत्तता को नष्ट करने की दिशा में चीनी प्रयासों के मददगार हैं। कानून बनाने के लिए अभी इसे हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स से पास कराना होगा और फिर इस पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हस्ताक्षर होंगे।

इस विधेयक के अलावा मिजूरी के रिपब्लिकन सीनेटर जॉश हावले के एक और प्रस्ताव को सीनेट ने इसी विधेयक का हिस्सा बनाकर पास किया है। इसके तहत चीन पर हांगकांग को स्वायत्तता की गारंटी देने वाली 1984 की संधि के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए उसकी निंदा की गई है। यह वह संधि है, जिसके तहत 1997 में हांगकांग में ब्रिटिश शासन को समाप्त कर शहर को आंशिक संप्रभुता प्रदान की गई थी।
उधर चीन ने कानूनी बदलाव करके हांगकांग के वित्त से लेकर आव्रजन तक सभी सरकारी विभागों को सीधे बीजिंग की केन्द्र सरकार के प्रति जवाबदेह बना दिया है। चीनी विधायिका ने 19 जून को हांगकांग के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा बिल का मसौदा पारित किया था। इस कानून को लेकर चीन पर अर्ध-स्वायत्त हांगकांग के कानूनी और राजनीतिक संस्थानों को कमजोर करने के आरोप लगे हैं।
प्रतिरोध आंदोलन
हांगकांग चीन के दक्षिण तट पर सिंकियांग नदी के मुहाने पर स्थित एक द्वीप है।  सन 1842 में पहले अफीम युद्ध की समाप्ति के बाद चीन के चिंग राज्य ने हांगकांग को अपने से अलग करना स्वीकार कर लिया। वह ब्रिटिश साम्राज्य का उपनिवेश बन गया। दूसरे अफीम युद्ध के बाद 1860 में काउलून खरीदकर इसमें जोड़ दिया गया। सन 1898 में न्यू टेरिटरीज़ को 99 साल के पट्टे पर ले लिया गया। आज हांगकांग एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र है। एक वैश्विक महानगर और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र होने के साथ-साथ यहाँ एक उच्च विकसित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है।
हांगकांग में सन 2014 से आंदोलनों का क्रम चल रहा है। उम्मीद थी कि चीनी व्यवस्था धीरे-धीरे लोकतांत्रिक बनेगी, पर 2017 के चुनाव के तीन साल पहले हांगकांग को लोकतांत्रिक अधिकार देने की जो पेशकश की गई, वह नागरिकों को अपर्याप्त लगी। विरोध में एक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ जिसे अम्ब्रेला आंदोलन या 'ऑक्युपाई सेंट्रल' नाम दिया गया। आंदोलनकारी पीले रंग के बैंड और छाते अपने साथ लेकर आए थे। इसलिए इसका नाम 'यलो अम्ब्रेला प्रोटेस्ट' रखा गया। पर वह आंदोलन कमजोर पड़ गया, क्योंकि इसे नागरिकों के बड़े वर्ग का समर्थन नहीं मिला।
उस आंदोलन की विफलता से चीन सरकार के हौसले बढ़े गए। पर 2019 से जो आंदोलन खड़ा हुआ है, वह जबर्दस्त है। एक आपराधिक मामले को लेकर हांगकांग सरकार ने अपने नियमों में परिवर्तन का फैसला किया। पर नागरिकों को लगा कि इस कानून का चीन सरकार दुरुपयोग करेगी। प्रतिरोध के उस आंदोलन से हालात बिगड़ते ही गए हैं।
एक देश, दो प्रणालियाँ
चीनी न्याय-व्यवस्था और हांगकांग की व्यवस्था में जमीन-आसमान का फर्क है। चीनी व्यवस्था में तमाम गोपनीय बातें हैं, जबकि हांगकांग की व्यवस्था ब्रिटिश मॉडल पर तैयार हुई है। हांगकांग-वासियों को डर है कि वह दिन आ सकता है, जब उन्हें फेसबुक पोस्ट के लिए भी गिरफ्तार करके चीन भेजा जा सकता है। आज जो माहौल है उससे कुछ-कुछ मिलता-जुलता माहौल 2003 में बन गया था, जब यहाँ एक नया कानून लाया जा रहा था, जिसके अनुसार चीनी जनवादी गणराज्य (पीआरसी) के प्रति विरोध को देशद्रोह का अपराध घोषित किया गया था। उस वक्त जनता के विरोध के कारण वह कानून वापस लेना पड़ा और तत्कालीन चीफ एक्जीक्यूटिव को इस्तीफा देना पड़ा।
अस्सी के दशक में जब देंग श्याओपिंग ने जब चीन में विदेशी निवेश के द्वार खोले, तब हांगकांग में बनने वाली तमाम वस्तुओं का उत्पादन चीन आ गया। देंग की दिलचस्पी हांगकांग की सम्प्रभुता में थी। सन 1984 में उन्होंने ब्रिटेन से इस सिलसिले में बात की और एक रूपरेखा तैयार की। उन्होंने इसे नाम दिया, एक देश, दो प्रणालियाँ। वह चीन का हिस्सा बना 1997 में देंग के निधन के कुछ समय बाद।
इस समझौते के तहत हांगकांग की मुद्रा और सांविधानिक-न्यायिक प्रणाली 50 साल तक वही बनी रहेगी, जो 1997 के पहले थी। यानी कि 2047 तक उसका वही स्वरूप बना रहेगा। पर चीन में धैर्य नहीं है। वह अपनी सम्प्रभुता को लेकर बेचैन है। हांगकांग की जनता का भय पारदर्शिता को लेकर है। इसमें अभिव्यक्ति और पारस्परिक संवाद की स्वतंत्रता शामिल है।

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