दिल्ली विधानसभा
के चुनाव में राजनीतिक दल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की माँग करते
हैं, पर यह दर्जा मिलता नहीं है। पिछले दस साल से केंद्र और दिल्ली दोनों में
कांग्रेस पार्टी का शासन था, पर इसे पूर्ण राज्य नहीं बनाया गया। इस बार चुनाव के
पहले तक भारतीय जनता पार्टी इस विचार से सहमत थी, पर चुनाव के ठीक पहले जारी
दृष्टिपत्र में उसने इसका जिक्र भी नहीं किया। पिछले साल उम्मीद की जा रही थी कि
प्रधानमंत्री अपने 15 अगस्त के भाषण में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की
घोषणा करेंगे, पर नहीं की। भाजपा ने देर से इस बात के व्यावहारिक पहलू को समझा। और
आम आदमी पार्टी इसके राजनीतिक महत्व को समझती है।
नई सरकार बनने के
पहले ही भावी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी मनीष सिसौदिया ने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और नगर विकास मंत्री वेंकैया
नायडू से पहली औपचारिक मुलाकात में ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की
माँग कर दी। सीधी और सरल बात है कि जब दोनों पार्टियाँ दिल्ली को पूर्ण राज्य का
दर्जा देने पर सहमत हैं तो इसकी घोषणा करने में दिक्कत क्या है? फिलहाल प्रधानमंत्री ने कहा है कि हम इस माँग को नामंजूर
नहीं करेंगे, पर हमारे पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है। इसके व्यवहारिक पहलुओं पर
विचार किया जाना है। इसे देखते हुए अभी कुछ कहना मुमकिन नहीं है। मुख्यमंत्री पद
की शपथ लेने के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपने भाषण में भाजपा के असमंजस का जिक्र
करके इस बात को स्पष्ट कर दिया कि वे इस सवाल को उठाते रहेंगे।
‘आप’ के घोषणापत्र में कहा
गया है कि पार्टी की सरकार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए अपने
नैतिक और राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करेगी। डीडीए, एमसीडी और दिल्ली पुलिस
दिल्ली की निर्वाचित सरकार के प्रति जवाबदेह हो यह भी सुनिश्चित करेगी। दिल्ली में
500 नए स्कूलों का निर्माण होगा और 900 नए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) बनेंगे
और अस्पतालों में 30,000 अतिरिक्त बेड की सुविधा दी जाएगी। इन दोनों
कार्यों के लिए ज़मीन की जरूरत होगी, जिसका अधिकार दिल्ली सरकार के पास नहीं है। सामान्य
व्यक्ति की सुरक्षा का जिम्मा लेने के लिए वह पुलिस व्यवस्था भी अपने अधीन चाहेगी।
दिल्ली को पूर्ण
राज्य का दर्जा दिलाने के लिए दिल्ली एनसीटी अधिनियम 1991 में संशोधन करना होगा।
यह कानून 69 वें संविधान संशोधन के कारण वज़ूद में आया था। दिल्ली सरकार के पास
पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और समाज
कल्याण जैसे काम है। सुरक्षा (पुलिस), कानून-व्यवस्था, प्रशासन (नौकरशाही) और
भूमि पर नियंत्रण केंद्र सरकार के पास है। इसमें बदलाव के लिए केवल भाजपा के ही
नहीं राज्यसभा में कांग्रेस के सहयोग की ज़रूरत भी होगी। ‘आप’ की शब्दावली में
मुख्यधारा की पार्टियाँ चोर और भ्रष्ट हैं। वे सहयोग कैसे देंगी?
पिछले साल
सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल के मार्फत दिल्ली और पुदुच्चेरी को राज्य का दर्जा
दिए जाने की माँग की गई थी, जिसे अदालत ने नामंजूर कर दिया। संविधान के अनुच्छेद 239क, 239कक तथा 239कख ऐसे प्रावधान
हैं जो दिल्ली और पुदुच्चेरी को राज्य का स्वरूप प्रदान करते हैं। इन प्रदेशों के
लिए मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल तथा विधान सभा की व्यवस्था की है, लेकिन राज्यों के
विपरीत इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं जिसके लिए वे उप-राज्यपाल को सहायता और
सलाह देते हैं। ये राज्य भी हैं और कानूनन केंद्र शासित प्रदेश भी। इसे संघवाद के
मौलिक ढाँचे के खिलाफ बताते हुए याचिका में दिल्ली और पुदुच्चेरी को राज्य सूची
में रखे जाने का निवेदन किया गया था। यह मसला भविष्य में भी कानूनी विमर्श का विषय
बन सकता है। फिलहाल इसके राजनीतिक विवाद की शक्ल लेने का अंदेशा है।
दिल्ली केवल
राज्य नहीं है, देश की राजधानी भी है। यहाँ दो सरकारें हैं। केंद्रीय प्रशासन
राज्य व्यवस्था के अधीन रखना सम्भव नहीं। पूर्ण राज्य का दर्जा देने के पहले
दिल्ली की व्यवस्था का विभाजन करना होगा। यह विभाजन केवल भौगोलिक भी हो सकता है।
यहाँ म्युनिसिपल व्यवस्था में यह विभाजन है। दिल्ली को कई प्रकार की सुविधाएं
केंद्र सरकार की राजधानी होने के कारण मिली हुईं हैं। भौगोलिक विभाजन होने पर पूरी
दिल्ली को समान सुविधाएं नहीं मिल पाएंगी। उसे दूसरे राज्यों से बाजार मूल्य पर
बिजली-पानी खरीदना होगा। सब्सिडी दिए जाने पर दूसरे राज्यों को आपत्ति होगी। इसी
तरह पुलिस व्यवस्था दो प्रकार की करनी होगी।
अमेरिका की
राजधानी वाशिंगटन डीसी दिल्ली जैसा ही राजधानी-नगर है। यह संघ सरकार के अधिकार
क्षेत्र में आता है, इसलिए इस पर
नियंत्रण अमेरिकी संसद का है। वहाँ स्थानीय मेयर और नगरपालिका भी हैI भारत में दिल्ली को सुविधा के रूप में विधानसभा
और लोकसभा में सात सांसदों का प्रतिनिधित्व प्राप्त है। अमेरिका में राजधानी
बनाते समय संघ और राज्यों की सत्ता को ध्यान में रखा गया था। यह सोचा गया कि देश
की राजधानी किसी राज्य में होगी तो सांविधानिक दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं। सन 1783
की पेंसिल्वेनिया बगावत ने भी इसकी जरूरत को साबित किया। बावजूद इसके वॉशिंगटन
डीसी का एक स्थानीय प्रशासन है जिसके अधीन पुलिस भी है। शहर के कुछ इलाके की पुलिस
व्यवस्था संघीय सरकार के अधीन भी है। यह राजधानी की विशेष व्यवस्था है, वह देश के
अन्य राज्यों की तरह का राज्य नहीं है।
दिल्ली में 2013
में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद पुलिस व्यवस्था को लेकर केंद्र सरकार के
साथ टकराव हुआ और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल धरने पर भी बैठे थे। उस घटना के बाद
से यह मसला काफी संवेदनशील बन गया है। हमारे यहाँ संघीय राजधानी को लेकर बहुत
विचार किया नहीं गया। राज्यों के पुनर्गठन के समय 1955 में इसे केंद्र शासित
क्षेत्र बना दिया गया। देखना यह है कि सन 1991 में जब 69 वाँ
संविधान संशोधन पास किया जा रहा था, तब इसे विशेष राज्य का दर्जा देने का विचार था
या विशेष केंद्र शासित क्षेत्र बनाने का। उस बहस पर भी हमें ध्यान देना चाहिए।
यह बात तब भी कही
गई थी कि दिल्ली चूंकि राष्ट्रीय राजधानी है इसलिए ऐसी व्यवस्था की कल्पना नहीं की
जानी चाहिए, जिसमें टकराव की स्थिति पैदा हो। सन 1993 में जब यहाँ विधानसभा दुबारा
बनी तब तक देश में संघवाद की बहस शुरू हो चुकी थी। बेहतर होता कि उसी वक्त इसके
बेहतर समाधान निकाले जाते। विधान सभा देने की योजना राजनीतिक वर्ग को बेहतर
प्रतिनिधित्व देने की थी। स्थानीय मसलों पर बेहतर ध्यान केंद्रित करने और बेहतर
प्रशासन का विचार सही है, पर व्यावहारिकता की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती।
हरिभूमि में प्रकाशित
Very nice post..
ReplyDeletewelcome to my blog
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार को '
ReplyDeleteभोले-शंकर आओ-आओ"; चर्चा मंच 1892
पर भी है ।