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Tuesday, August 12, 2014

सख़्त ज़मीन पर आया मोदी-रथ

भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को ‘मैन ऑफ द मैच’ घोषित किया और उसके अगले ही रोज आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, एनडीए की सरकार बनाने का श्रेय किसी पार्टी या शख्स को नहीं, बल्कि आम जनता को जाता है.'' यह बदलाव तब हुआ जब देश की जनता ने इसका फैसला किया. क्या यह नरेंद्र मोदी को तुर्की-ब-तुर्की जवाब है या अनायास कही गई बात है? भाजपा के शिखर पर मोदी और अमित शाह की जोड़ी नम्बर वन पूरी तरह स्थापित हो जाने के बाद मोहन भागवत का यह बयान क्या किसी किस्म का संतुलन बैठाने की कोशिश है या संघ के मन में किसी किस्म का भय पैदा हो गया है? मोदी की राजनीति के लिए अगला हफ़्ता काफी महत्वपूर्ण साबित होने वाला है, क्योंकि लोकसभा चुनाव की कुछ तार्किक परिणतियाँ इस हफ्ते देखने को मिलेंगी.

आर्थिक नज़र से देखें तो मॉनसून की अनिश्चितता की वजह से खाने-पीने की चीजों की महंगाई बढ़ने वाली है. बावजूद इसके रिज़र्व बैंक को उम्मीद है कि सरकारी नीतियों से आने वाले महीनों में आपूर्ति में सुधरेगी. अलबत्ता उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जून में लगातार दूसरे महीने कम हुई है. आरबीआई उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति को जनवरी 2015 तक 8 प्रतिशत पर और जनवरी 2016 तक 6 प्रतिशत तक सीमित करने के लक्ष्य के प्रतिबद्ध है. राजनीति के लिहाज से कमोबेश माहौल ठीक है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों की निगाहें अब चार राज्यों के विधानसभा चुनावों और उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए 12 उप चुनावों पर हैं. संसद का यह सत्र 14 अगस्त तक है और बीमा विधेयक पर पीछे हटने के बाद मोदी सरकार अब कठोर ज़मीन पर आ गई है.

राज्यसभा में भाजपा को अपनी सीमा मालूम है. अगले दो साल तक स्थिति में कोई बड़ा बदलाव होने वाला नहीं. देखना होगा कि कांग्रेस यहाँ अपनी ताकत का कितना लाभ लेगी. बीमा विधेयक प्रवर समिति में जाएगा तो उसे पास कराने के लिए सदन का विशेष सत्र शीत सत्र से पहले बुलाना होगा. सरकार चाहती थी कि सदन इस विधेयक को या तो पास कर दे या अस्वीकार करे ताकि संयुक्त अधिवेशन बुलाकर उसे पास कराया जा सके. फिलहाल विपक्ष ने ऐसा नहीं होने दिया. मोदी चाहते थे कि सितम्बर में अमेरिका यात्रा के वक्त वे पश्चिमी देशों को संदेश देते कि उदारीकरण की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई है. फिलहाल ऐसा नहीं होगा.  

पार्टी अब राज्यसभा में पूर्ण बहुमत के मिशन पर जुट गई है, जिसकी घोषणा वेंकैया नायडू ने रविवार को हैदराबाद में की. संसद का सत्र समाप्त होने के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार होगा. पार्टी के अंतर्विरोध तनिक और खुलेंगे. दिल्ली में हुई पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में अमित शाह के नाम को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया. भाजपा की जोड़ी नम्बर एक अब पूरी तरह स्थापित हो चुकी है.
अटल-आडवाणी युग पूरी तरह समाप्त हुआ. लोह पुरुष ने भी इसे स्वीकार कर लिया है. उन्होंने माना कि पार्टी में जैसा अनुशासन आज है वैसा पहले कभी नहीं था. अमित शाह ने भविष्य में चार राज्यों में होने वाले चुनावों में पार्टी की जीत का आह्वान करते हुए कहा कि देश अभी ‘कांग्रेस-मुक्त’ नहीं हुआ है. मोदी की बात का संकेत भी यही है कि कांग्रेस को मटियामेट करने का काम अभी बाकी है. कांग्रेस बदहाल है. इधर पहले प्रियंका गांधी का नाम उछला फिर वापस लिया गया. पर असली खतरा चार राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद पैदा होगा.

नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय परिषद की बैठक में कहा कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद दुनिया का भारत के प्रति नजरिया एकदम बदल गया है. पूरे विश्व में भारत के प्रति लोगों का व्यवहार बदल गया है. यह सरकार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई है और दुनिया पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा है. मिली-जुली सरकार के प्रति उनका नजरिया अलग हुआ करता था. हैदराबाद में वेंकैया नायडू ने कहा कि मोदी सरकार अर्थ-व्यवस्था में जान डालने की कोशिश कर रही है और कांग्रेस कह रही है ‘नहीं चलेगा, नहीं चलेगा मोदी.’ मोदी की नहीं तो किस की चलेगी? हारी हुई निराश कांग्रेस और उनके साथियों की? कांग्रेस संसद में अड़ंगे खड़े करने के मिशन पर चल रही है.

नरेंद्र मोदी अपनी छवि को सुधारने की लगातार कोशिश में लगे हैं. इसके लिए सॉफ्ट और हार्ड दोनों तरीकों का इस्तेमाल हो रहा है. संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का उत्तर देते हुए उन्होंने अपने विरोधियों को भी साथ लेने का वादा किया. उसके पहले उन्होंने कहा था कि पिछली सरकार में शुरू की गईं योजनाओं के नाम नहीं बदले जाएंगे. इससे पहले जब भी नई सरकारें आती हैं तो अक्सर पुरानी सरकारों की योजनाओं के नाम बदल दिए जाते हैं. अलबत्ता पुराने राज्यपालों को येन-केन हटा दिया गया. सरकारी टकसाल को भारत रत्न के पाँच पदक तैयार करने को कहा गया है. रोचक होगा मोदी का पन्द्रह अगस्त का भाषण, जो निश्चित रूप से पिछले साल के आक्रामक भाषण के मुकाबले नरम और दिल जीतने वाला होगा. यह सब मोदी की दीर्घकालीन रणनीति का हिस्सा है.
सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने ही अंतर्विरोधों से जूझने की है. अतीत में जिस बीमा बिल की राह में उसने अड़ंगे लगाए उसे वह पास कराना चाहती है. जिस जीएसटी को उसकी प्रदेश सरकारों ने नापसंद किया उसपर वह इस साल के अंत तक सहमति बनाने की इच्छा रखती है. अरुण जेटली के बजट को यूपीए-3 का बजट कहा जा रहा है. सरकार ने अभी तक वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार की नियुक्ति नहीं की है. योजना आयोग का उपाध्यक्ष नहीं है. पहले माना जा रहा था कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया के आर्थिक सलाहकार बनेंगे. जगदीश भगवती को भी कोई महत्वपूर्ण काम मिलने की आशा थी.

पनगढ़िया ने जेटली के बजट की तारीफ नहीं की है. हालांकि उन्होंने इस बजट की कुछ बातों को चिदम्बरम प्रणाली से बेहतर बताया है. मसलन टैक्स विवादों के निपटारे, इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण की गति तेज करने और उद्यमिता बढ़ाने के विचार का उन्होंने स्वागत किया है, पर राजकोषीय घाटे को 4.1 फीसदी पर रखने की चिदम्बरम योजना की आलोचना की है. पनगढ़िया को लगता है कि यह बजट सरकारी अफसरों की सलाह से बना है. वे कहते हैं कि अगली फरवरी में देखना होगा कि अगला बजट किसी दृष्टि या दिशा का संकेत देता है या उन नौकरशाहों की दृष्टि को दिखाएगा जिन्हें निरंतरता माफिक आती है.


सरकार बनने के बाद की मोदी की रीति-नीति में काफी बदलाव हुआ है. सबसे बड़ा बदलाव है मीडिया से बढ़ती दूरी. मोदी की मदद से सत्ता में आए मोदी शायद मीडिया के नकारात्मक असर से घबराते भी हैं. पर मोदी की अगली परीक्षा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अपेक्षाओं को लेकर होगी. संघ के अनुषंगी संगठन भारतीय किसान संघ ने जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों के लिए होने वाले परीक्षणों का विरोध किया है. श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध उसके अपने भारतीय मजदूर संघ की और से हो रहा है. अभी पार्टी के तमाम नेता महत्वपूर्ण पद पाने की आशा में बैठे हैं. अगले हफ्ते सम्भावित मंत्रिमंडल विस्तार के बाद राजनीति व्यवहारिक धरातल पर आएगी. इस लिहाज से मोदी सरकार की वास्तविक परीक्षा की घड़ी अब आ रही है.
प्रभात खबर में प्रकाशित

2 comments:

  1. I have come across such a balanced article after very long.So congrats.But I have been observing Media behaviour for very long and it is my assessment that it has been very anti-Modi.It has to change its tones only after change became very clear--perhapes as a face-saver.
    And yes,inter party power struggle in party has not fully settled so far.Nice reading you.

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  2. came across such a balanced article after very long.but my observation is that media has been very anti-Modi and changed its tone only after change became very clear-perhaps as face-saver.
    Ad yes,internal power struggle in party has not subsided completely as yet.Nice reading you.

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