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Wednesday, November 23, 2011

उत्तर प्रदेश में शोर ज़्यादा और मुद्दे कम

राजनीतिक दलों को समझदार माना जाता है। इतना तो ज़रूर माना जाता है कि वे जनता के करीब होते हैं। उन्हें उसकी नब्ज़ का पता होता है। बावज़ूद इसके वे अक्सर गलती कर जाते हैं। हारने वाली पार्टियों को वास्तव में समय रहते यकीन नहीं होता कि उनकी हार होने वाली है। उत्तर प्रदेश में हालांकि पार्टियाँ एक अरसे से प्रचार में जुटीं हैं, पर उनके पास मुद्दे कम हैं, आवेश ज्यादा हैं। 

मुलायम सिंह ने बुधवार को एटा की रैली से अपने चुनाव अभियान की शुरूआत की। समाजवादी पार्टी का यकीन है कि मुलायम सिंह जब भी एटा से अभियान शुरू करते हैं, जीत उनकी होती है। एटा उनका गढ़ रहा है, पर 2007 के चुनाव में उन्हें यहाँ सफलता नहीं मिली। समाजवादी पार्टी इस बार अपने मजबूत गढ़ों को लेकर संवेदनशील है। एटा की रैली में पार्टी के महामंत्री मुहम्मद आजम खां ने कहा, ‘मैं यहाँ आपसे आपका गुस्सा माँगने आया हूँ। आप सबको मायावती के कार्यकाल में हुए अन्याय का बदला लेना है।‘ समाजवादी पार्टी घायल शेर की तरह इस बार 2007 के अपमान का बदला लेना चाहती है। मुलायम सिंह इस बार खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए नहीं मायावती को हराने के लिए मैदान में हैं।



इसी सोमवार को पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन पर उनके चुनाव क्षेत्र रह चुके फूलपुर में राहुल गांधी की रैली में बॉलीवुड की फिल्म जैसा माहौल पैदा हो गया। एक ओर राहुल गांधी हैलीकॉप्टर से उतरे तो दूसरी ओर बैरीकेड के पास समाजवादी पार्टी के कुछ कार्यकर्ता काले झंडे लिए खड़े थे। देखते ही देखते कांग्रेस कार्यकर्ता उनपर टूट पड़े। पिटाई करने वालों में पार्टी के बड़े सीनियर नेता थे। यह पिटाई प्रकरण मीडिया पर छा गया। पर इससे ज्यादा छाया फूलपुर में राहुल का बयान। राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के लोगों के ज़मीर को चुनौती दी। ‘कब तक महाराष्ट्र में जाकर आप भीख माँगोगे? कब तक पंजाब में मजदूरी करोगे?’ राहुल का आशय यह था कि अपने प्रदेश में रोजगार के अवसर न होने के कारण आपको बाहर जाना पड़ता है। पर इस बयान का भीख माँगना भारी पड़ा। इतना भारी कि मुम्बई में एक सज्जन ने अदालत में राहुल के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया है। उनकी भावना को ठोस लगी।

हाल में राहुल गांधी ने कहा था, ‘मैं जब-जब उत्तर प्रदेश आता हूँ मुझे यहां की बदहाली देखकर गुस्सा आता है।’ इसके जवाब में मायावती ने कहा,’मेरा कांग्रेस पार्टी के युवराज से यह कहना है कि ...किसम-किसम की नाटकबाज़ी...के जरिए हमारी सरकार पर गुस्सा जाहिर करने के बजाय दिल्ली में अपनी पार्टी की सरकार पर जाहिर करना चाहिए।’ तुर्की-ब-तुर्की जवाब ज़ारी हैं। हाँ एक नई बात यह ज़रूर है कि कांग्रेस पार्टी इस बार आक्रामक है। पिछली बार के प्रदर्शन को देखते हुए कांग्रेस को विश्लेषक अभी तक बड़ी ताकत मान नहीं रहे हैं, पर एंटी इनकम्बैंसी को भुनाने की जबर्दस्त कोशिश कांग्रेस कर रही है। राहुल गांधी पिछले कुछ साल से यूपी की दलित बस्तियों की यात्रा कर रहे हैं।

राहुल गांधी पर मायावती के वार ही नहीं हो रहे हैं। समाजवादी पार्टी भी उनपर वार कर रही है। पार्टी के युवा नेता अखिलेश यादव का कहना है कि राहुल को पहले देश के सवालों को समझना चाहिए। उनकी सरकार की नीतियों के कारण आज एक भैंस की कीमत मोटर साइकिल के बराबर हो गई है। चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों का पारा आसमान पर होता है। नवम्बर के तीसरे हफ्ते में भी अभी उत्तर प्रदेश में गुलाबी जाड़े के आसार नहीं हैं। सियासत की गर्मी ने मौसम पर भी असर डाला है। पिछले इकसठ साल में पहली बार उत्तर प्रदेश का चुनाव-अखाड़ा इस कदर गरमाया है। इसकी वजह है अनिश्चितता, जिसने सभी पार्टियों को असुरक्षित बनाकर रख दिया है। उत्तर प्रदेश बहुत कम मौकों पर किसी को दुबारा चुनकर भेजता है। अनिश्चय उसके स्वभाव और आकार की देन है।

कांग्रेस भी अगर इस बार मैदान में बराबरी पर उतरी तो चुनाव रोचक हो जाएंगे। कौन, किसे कितना काटेगा इसका अनुमान भी लगाने का मौका नहीं है। पर इतना तय है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर गुजरेगा। अन्ना हजारे के आंदोलन और भ्रष्टाचार के आरोपों से घायल कांग्रेस पूरी ताकत से उत्तर प्रदेश में उतरी है। उसे खोना कुछ नहीं है। पहले की तुलना में किसी किस्म का सुधार उसके फायदे में जाएगा। प्रचार और विवादों का हंगामा उसे एक महत्वपूर्ण ताकत का पर्सेप्शन बना सका तो यही उसकी कामयाबी होगी।

आडवाणी जी की जन चेतना यात्रा के मुकाबले भाजपा का स्थानीय नेतृत्व स्थानीय नेताओं की यात्राओं को ज्यादा महत्व दे रहा है। पार्टी जनस्वाभिमान यात्राओं का समापन अयोध्या में बुधवार को हो गया। राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र अलग-अलग क्षेत्रों यात्राएं करते हुए अयोध्या पहुंचे। दोनों से जनता को एक बार फिर यह संदेश दिया कि भाजपा आज भी राम के सहारे है। काशी और मथुरा से शुरु की गयी दोनों यात्राओं के अयोध्या में ही समापन किये जाने के पीछे पार्टी यह संदेश देना चाह रही है कि वह अपने पुराने मुद्दों पर पूर्ववत कायम है। इधर मायावती ने प्रदेश के बँटवारे की पेशकश करके सभी पार्टियों को भ्रमित कर दिया है। आडवाणी जी का कहना है मैं सोच-विचार कर इसके बारे में कुछ कहूँगा। कोई नहीं कह सकता कि प्रदेश का विभाजन चुनाव का मुद्दा बनेगा या नहीं। प्रशासनिक व्यवस्था और भ्रष्टाचार को लेकर उत्तर प्रदेश का नागरिक भी बेचैन है। यह बेचैनी दिल्ली और लखनऊ दोनों की सरकारों के खिलाफ है। फिलहाल आरोपों का शोर ज्यादा है, ठोस कार्यक्रम कम। पर यह शुरूआत है। मुद्दे सामने आने में अभी कुछ देर है।

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