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Wednesday, October 19, 2011

एक अखबार जो साखदार है और आर्थिक रूप से सबल भी

19 अक्टूबर के हिन्दू में वरिष्ठ पत्रकार खुशवंत सिंह का पत्र छपा है, जो मैने नीचे उद्धृत किया है। खुशवंत सिंह ने अखबार की तारीफ की है और उसे देश का ही नहीं दुनिया का सबसे विश्वसनीय अखबार माना है। आज जब हम अखबारों की साख को लेकर परेशान हैं तब हिन्दू की इस किस्म की तारीफ विस्मय पैदा करती है।


पिछले साल समाचार फॉर मीडिया के लिए मुझे एक लेख लिखने का मौका मिला था। उसका संदर्भ पंजाब की एक गरीब लड़की का विश्वास था, जो हिन्दू की पाठक थी और जिसे पढ़कर वह आईएएस परीक्षा में सफल हुई थी। उस लेख का एक अंश मैं उद्धृत कर रहा हूँ-

"हिन्दू के बारे में दो-तीन बातें ऐसी हैं, जिन्हें सब मानते हैं। एक खबरों का वज़न तय करने का उसका परम्परागत ढंग है। यह अखबार सनसनी में भरोसा नहीं करता। उसकी एक राजनैतिक लाइन है, जिसे हम नापसंद कर सकते हैं। पर खबरें लिखते वक्त वह पत्रकारीय मर्यादाओं का पालन करता है। रेप विक्टिम का नाम नहीं छापना है, तो हिन्दू उसका पालन करता है। उसकी डिज़ाइन बहुत आकर्षक न लगती हो, पर वह विषय को पाठक पर आरोपित भी नहीं करती। खेल, विज्ञान, विदेशी मामलों से लेकर लोकल खबरों तक उसकी खबरें ऑब्जेक्टिविटी की परिभाषा पर खरी उतरतीं हैं। उसकी फेयरनेस पर आँच आने के भी एकाध मौके आए हैं। खासतौर से बंगाल में सिंगूर की हिंसा के दौरान उसकी कवरेज में एक पक्ष नज़र आया। यह उसकी नीति है। और किसी अखबार को उसका हक होता है। उसकी इस नीति और विचारधारा की आलोचना की जा सकती है, पर उसके सम्पादकीय और ऑप-एडिट पेज की गुणवत्ता के बारे में दो राय नहीं हो सकतीं।..."


हिन्दू व्यावसायिक रूप से विफल अखबार भी नहीं है, फिर भी देश का शायद ही कोई मीडिया हाउस उसके रास्ते पर चलना चाहता हो। हिन्दू अपने आर्थिक पक्ष को बचाए रखने के तरीकों पर भी चलता है। वह भी पेज एक पर जैकेट छापता है। उसने पहले सफे पर विज्ञापन का अनुपात बढ़ाया है, पर जो स्वतंत्रता उसके सम्पादकीय विभाग के पास है, वह देश के किसी अखबार में नहीं है। मेरी मनोकामना है कि इस प्रवृत्ति को ताकत मिले।

नीचे पढ़ें खुशवंत सिंह का पत्र
I go over a dozen morning papers every day.
The only one I read from cover to cover including readers' letters is The Hindu 
I find its news coverage reliable, authentic and comprehensive. I cannot say that about any other daily, Indian or foreign. 

It is a pleasure going through its columns: they inform, teach and amuse. I even wrestle with its crossword puzzle every day. 

You, Mr. Editor, and your staff deserve praise for giving India the most readable daily in the world. Congratulations.
Khushwant Singh,New Delhi

2 comments:

  1. ये सही है. पर आज जितने भी अखबार प्रकाशित हो रहे हैं वे उस राज्य में जिस पार्टी का शासन है उसकी जी-हजूरी में लगा हुआ है. इसका एक कारण अखबार को विज्ञापन नहीं मिलने का भय है. इसके अलावा उन व्यावसायियों से भी उस अखबार का मालिक संबंध बना कर रखता है, जिससे समय-बेसमय विज्ञापन एवं रूपयों की उगाही कर सके. ऐसे में वहां कार्यरत पत्रकार के पास समाचार लिखने के लिए अवसरों की कमी बनी रहती है. वह तभी किसी विभाग या उद्योग के खिलाफ लिखता है, जब उसे आदेश मिलता है कि इससे विज्ञापन लेना है. दे नहीं रहा है. पत्रकार यह सोच कर किसी प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़ता है कि अब वह उन समस्याओं पर लिखेगा या दिखायेगा, जो सच है. पर वह चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाता और अपने परिवार की रोजी-रोटी बनी रहे सोच मन मार कर उन आम लोगों पर प्रहार करता रहता है, जिसे अपनी पीड़ा से फुर्सत नहीं होती. न जाने क्या परोसना चाह रहे हैं आज के अखबार. बस मारपीट, खून, हत्या, बलात्कार और फूल-फूल पेज के विज्ञापनों से उनके पृष्ठ रंगे रहते हैं.

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  2. सही है ||

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    मेरी बधाई स्वीकार करें ||

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