हरिशंकर परसाई की यह रचना रोचक है और आज के संदर्भों से जुड़ी है। इन दिनों नेट पर पढ़ी जा रही है। आपने पढ़ी न हो तो पढ़ लें। इसे मैने एक जिद्दी धुन नाम के ब्लॉग से लिया है। लगे हाथ मैं एक बात साफ कर दूँ कि मुझे इसके आधार पर अन्ना हजारे के अनशन का विरोधी न माना जाए। मैं लोकपाल बिल के आंदोलन के साथ जुड़ी भावना से सहमत हूँ।
10 जनवरी
आज मैंने बन्नू से कहा, " देख बन्नू, दौर ऐसा आ गया है कि संसद, क़ानून, संविधान, न्यायालय सब बेकार हो गए हैं. बड़ी-बड़ी मांगें अनशन और आत्मदाह की धमकी से पूरी हो रही हैं. २० साल का प्रजातंत्र ऐसा पक गया है कि एक आदमी के मर जाने या भूखा रह जाने की धमकी से ५० करोड़ आदमियों के भाग्य का फैसला हो रहा है. इस वक़्त तू भी उस औरत के लिए अनशन कर डाल."
बन्नू सोचने लगा. वह राधिका बाबू की बीवी सावित्री के पीछे सालों से पड़ा है. भगाने की कोशिश में एक बार पिट भी चुका है. तलाक दिलवाकर उसे घर में डाल नहीं सकता, क्योंकि सावित्री बन्नू से नफरत करती है.
सोचकर बोला, " मगर इसके लिए अनशन हो भी सकता है? "
मैंने कहा, " इस वक़्त हर बात के लिए हो सकता है. अभी बाबा सनकीदास ने अनशन करके क़ानून बनवा दिया है कि हर आदमी जटा रखेगा और उसे कभी धोएगा नहीं. तमाम सिरों से दुर्गन्ध निकल रही है. तेरी मांग तो बहुत छोटी है- सिर्फ एक औरत के लिए."
सुरेन्द्र वहां बैठा था. बोला, " यार कैसी बात करते हो! किसी की बीवी को हड़पने के लिए अनशन होगा? हमें कुछ शर्म तो आनी चाहिए. लोग हँसेंगे."
मैंने कहा, " अरे यार, शर्म तो बड़े-बड़े अनशनिया साधु-संतों को नहीं आई. हम तो मामूली आदमी हैं. जहाँ तक हंसने का सवाल है, गोरक्षा आन्दोलन पर सारी दुनिया के लोग इतना हंस चुके हैं कि उनका पेट दुखने लगा है. अब कम-से-कम दस सालों तक कोई आदमी हंस नहीं सकता. जो हंसेगा वो पेट के दर्द से मर जाएगा."
बन्नू ने कहा," सफलता मिल जायेगी?"
मैंने कहा," यह तो 'इशू' बनाने पर है. अच्छा बन गया तो औरत मिल जाएगी. चल, हम 'एक्सपर्ट' के पास चलकर सलाह लेते हैं. बाबा सनकीदास विशेषज्ञ हैं. उनकी अच्छी 'प्रैक्टिस' चल रही है. उनके निर्देशन में इस वक़्त चार आदमी अनशन कर रहे हैं."
हम बाबा सनकीदास के पास गए. पूरा मामला सुनकर उन्होंने कहा," ठीक है. मैं इस मामले को हाथ में ले सकता हूँ. जैसा कहूँ वैसा करते जाना. तू आत्मदाह की धमकी दे सकता है?"
बन्नू कांप गया. बोला," मुझे डर लगता है."
"जलना नहीं है रे. सिर्फ धमकी देना है."
"मुझे तो उसके नाम से भी डर लगता है."
बाबा ने कहा," अच्छा तो फिर अनशन कर डाल. 'इशू' हम बनायेंगे."
बन्नू फिर डरा. बोला," मर तो नहीं जाऊँगा."
बाबा ने कहा," चतुर खिलाड़ी नहीं मरते. वे एक आँख मेडिकल रिपोर्ट पर और दूसरी मध्यस्थ पर रखते हैं. तुम चिंता मत करो. तुम्हें बचा लेंगे और वह औरत भी दिला देंगे."
11 जनवरी
आज बन्नू आमरण अनशन पर बैठ गया. तम्बू में धुप-दीप जल रहे हैं. एक पार्टी भजन गा रही है - 'सबको
सन्मति दे भगवान्!'. पहले ही दिन पवित्र वातावरण बन गया है. बाबा सनकीदास इस कला के बड़े उस्ताद हैं. उन्होंने बन्नू के नाम से जो वक्तव्य छपा कर बंटवाया है, वो बड़ा ज़ोरदार है. उसमें बन्नू ने कहा है कि 'मेरी आत्मा से पुकार उठ रही है कि मैं अधूरी हूँ. मेरा दूसरा खंड सावित्री में है. दोनों आत्म-खण्डों को मिलाकर एक करो या मुझे भी शरीर से मुक्त करो. मैं आत्म-खण्डों को मिलाने के लिए आमरण अनशन पर बैठा हूँ. मेरी मांग है कि सावित्री मुझे मिले. यदि नहीं मिलती तो मैं अनशन से इस आत्म-खंड को अपनी नश्वर देह से मुक्त कर दूंगा. मैं सत्य पर हूँ, इसलिए निडर हूँ. सत्य की जय हो!'
सावित्री गुस्से से भरी हुई आई थी. बाबा सनकीदास से कहा," यह हरामजादा मेरे लिए अनशन पर बैठा है ना?"
बाबा बोले," देवी, उसे अपशब्द मत कहो. वह पवित्र अनशन पर बैठा है. पहले हरामजादा रहा होगा. अब नहीं रहा. वह अनशन कर रहा है."
सावित्री ने कहा," मगर मुझे तो पूछा होता. मैं तो इस पर थूकती हूँ."
बाबा ने शान्ति से कहा," देवी, तू तो 'इशू' है. 'इशू' से थोड़े ही पूछा जाता है. गोरक्षा आन्दोलन वालों ने गाय से कहाँ पूछा था कि तेरी रक्षा के लिए आन्दोलन करें या नहीं. देवी, तू जा. मेरी सलाह है कि अब तुम या तुम्हारा पति यहाँ न आएं. एक-दो दिन में जनमत बन जाएगा और तब तुम्हारे अपशब्द जनता बर्दाश्त नहीं करेगी."
वह बड़बड़ाती हुई चली गई.
बन्नू उदास हो गया. बाबा ने समझाया," चिंता मत करो. जीत तुम्हारी होगी. अंत में सत्य की ही जीत होती है."
13 जनवरी
बन्नू भूख का बड़ा कच्चा है. आज तीसरे ही दिन कराहने लगा. बन्नू पूछता है, " जयप्रकाश नारायण आये?"
मैंने कहा," वे पांचवें या छठे दिन आते हैं. उनका नियम है. उन्हें सूचना दे दी है."
वह पूछता है," विनोबा ने क्या कहा है इस विषय में?"
बाबा बोले," उन्होंने साधन और साध्य की मीमांसा की है, पर थोड़ा तोड़कर उनकी बात को अपने पक्ष में उपयोग किया जा सकता है."
बन्नू ने आँखें बंद कर लीं. बोला,"भैया, जयप्रकाश बाबू को जल्दी बुलाओ."
आज पत्रकार भी आये थे. बड़ी दिमाग-पच्ची करते रहे.
पूछने लगे," उपवास का हेतु कैसा है? क्या वह सार्वजनिक हित में है? "
बाबा ने कहा," हेतु अब नहीं देखा जाता. अब तो इसके प्राण बचाने की समस्या है. अनशन पर बैठना इतना बड़ा आत्म-बलिदान है कि हेतु भी पवित्र हो जाता है."
मैंने कहा," और सार्वजनिक हित इससे होगा. कितने ही लोग दूसरे की बीवी छीनना चाहते हैं, मगर तरकीब उन्हें नहीं मालूम. अनशन अगर सफल हो गया, तो जनता का मार्गदर्शन करेगा."
14 जनवरी
बन्नू और कमज़ोर हो गया है. वह अनशन तोड़ने की धमकी हम लोगों को देने लगा है. इससे हम लोगों का मुंह काला हो जायेगा. बाबा सनकीदास ने उसे बहुत समझाया.
आज बाबा ने एक और कमाल कर दिया. किसी स्वामी रसानंद का वक्तव्य अख़बारों में छपवाया है. स्वामीजी ने कहा है कि मुझे तपस्या के कारण भूत और भविष्य दिखता है. मैंने पता लगाया है क बन्नू पूर्वजन्म में ऋषि था और सावित्री ऋषि की धर्मपत्नी. बन्नू का नाम उस जन्म में ऋषि वनमानुस था. उसने तीन हज़ार वर्षों के बाद अब फिर नरदेह धारण की है. सावित्री का इससे जन्म-जन्मान्तर का सम्बन्ध है. यह घोर अधर्म है कि एक ऋषि की पत्नी को राधिका प्रसाद-जैसा साधारण आदमी अपने घर में रखे. समस्त धर्मप्राण जनता से मेरा आग्रह है कि इस अधर्म को न होने दें.
इस वक्तव्य का अच्छा असर हुआ. कुछ लोग 'धर्म की जय हो!' नारे लगाते पाए गए. एक भीड़ राधिका बाबू के घर के सामने नारे लगा रही थी----
"राधिका प्रसाद-- पापी है! पापी का नाश हो! धर्म की जय हो."
स्वामीजी ने मंदिरों में बन्नू की प्राण-रक्षा के लिए प्रार्थना का आयोजन करा दिया है.
15 जनवरी
रात को राधिका बाबू के घर पर पत्थर फेंके गए.
जनमत बन गया है.
स्त्री-पुरुषों के मुख से यह वाक्य हमारे एजेंटों ने सुने---
"बेचारे को पांच दिन हो गए. भूखा पड़ा है."
"धन्य है इस निष्ठां को."
"मगर उस कठकरेजी का कलेजा नहीं पिघला."
"उसका मरद भी कैसा बेशरम है."
"सुना है पिछले जन्म में कोई ऋषि था."
"स्वामी रसानंद का वक्तव्य नहीं पढ़ा!"
"बड़ा पाप है ऋषि की धर्मपत्नी को घर में डाले रखना."
आज ग्यारह सौभाग्यवतियों ने बन्नू को तिलक किया और आरती उतारी.
बन्नू बहुत खुश हुआ. सौभाग्यवतियों को देख कर उसका जी उछलने लगता है.
अखबार अनशन के समाचारों से भरे हैं.
आज एक भीड़ हमने प्रधानमन्त्री के बंगले पर हस्तक्षेप की मांग करने और बन्नू के प्राण बचाने की अपील करने भेजी थी. प्रधानमन्त्री ने मिलने से इनकार कर दिया.
देखते हैं कब तक नहीं मिलते.
शाम को जयप्रकाश नारायण आ गए. नाराज़ थे. कहने लगे," किस-किस के प्राण बचाऊं मैं? मेरा क्या यही धंधा है? रोज़ कोई अनशन पर बैठ जाता है और चिल्लाता है प्राण बचाओ. प्राण बचाना है तो खाना क्यों नहीं लेता? प्राण बचाने के लिए मध्यस्थ की कहाँ ज़रुरत है? यह भी कोई बात है! दूसरे की बीवी छीनने के लिए अनशन के पवित्र अस्त्र का उपयोग किया जाने लगा है."
हमने समझाया," यह 'इशू' ज़रा दूसरे किस्म है. आत्मा से पुकार उठी थी."
वे शांत हुए. बोले," अगर आत्मा की बात है तो मैं इसमें हाथ डालूँगा."
मैंने कहा," फिर कोटि-कोटि धर्मप्राण जनता की भावना इसके साथ जुड़ गई है."
जयप्रकाश बाबू मध्यस्थता करने को राज़ी हो गए. वे सावित्री और उसके पति से मिलकर फिर प्रधानमन्त्री से मिलेंगे.
बन्नू बड़े दीनभाव जयप्रकाश बाबू की तरफ देख रहा था.
बाद में हमने उससे कहा," अबे साले, इस तरह दीनता से मत देखा कर. तेरी कमज़ोरी ताड़ लेगा तो कोई भी नेता तुझे मुसम्मी का रस पिला देगा. देखता नहीं है, कितने ही नेता झोलों में मुसम्मी रखे तम्बू के आस-पास घूम रहे हैं."
16 जनवरी
जयप्रकाश बाबू की 'मिशन' फेल हो गई. कोई मानने को तैयार नहीं है. प्रधानमन्त्री ने कहा," हमारी बन्नू के साथ सहानुभूति है, पर हम कुछ नहीं कर सकते. उससे उपवास तुडवाओ, तब शान्ति से वार्ता द्वारा समस्या का हल ढूँढा जाएगा."
हम निराश हुए. बाबा सनकीदास निराश नहीं हुए. उन्होंने कहा," पहले सब मांग को नामंज़ूर करते हैं. यही प्रथा है. अब आन्दोलन तीव्र करो. अखबारों में छपवाओ क बन्नू की पेशाब में काफी 'एसीटोन' आने लगा है. उसकी हालत चिंताजनक है. वक्तव्य छपवाओ कि हर कीमत पर बन्नू के प्राण बचाए जाएँ. सरकार बैठी-बैठी क्या देख रही है? उसे तुरंत कोई कदम उठाना चाहिए जिससे बन्नू के बहुमूल्य प्राण बचाए जा सकें."
बाबा अद्भुत आदमी हैं. कितनी तरकीबें उनके दिमाग में हैं. कहते हैं, "अब आन्दोलन में जातिवाद का पुट देने का मौका आ गया है. बन्नू ब्राम्हण है और राधिकाप्रसाद कायस्थ. ब्राम्हणों को भड़काओ और इधर कायस्थों को. ब्राम्हण-सभा का मंत्री आगामी चुनाव में खड़ा होगा. उससे कहो कि यही मौका है ब्राम्हणों के वोट इकट्ठे ले लेने का."
आज राधिका बाबू की तरफ से प्रस्ताव आया था कि बन्नू सावित्री से राखी बंधवा ले.
हमने नामंजूर कर दिया.
17 जनवरी
आज के अखबारों में ये शीर्षक हैं---
"बन्नू के प्राण बचाओ!
बन्नू की हालत चिंताजनक!'
मंदिरों में प्राण-रक्षा के लिए प्रार्थना!"
एक अख़बार में हमने विज्ञापन रेट पर यह भी छपवा लिया---
"कोटि-कोटि धर्म-प्राण जनता की मांग---!
बन्नू की प्राण-रक्षा की जाए!
बन्नू की मृत्यु के भयंकर परिणाम होंगे !"
ब्राह्मण-सभा के मंत्री का वक्तव्य छप गया. उन्होंने ब्राह्मण जाति की इज्ज़त का मामला इसे बना लिया था. सीधी कार्यवाही की धमकी दी थी.
हमने चार गुंडों को कायस्थों के घरों पर पत्थर फेंकने के लिए तय कर किया है.
इससे निपटकर वही लोग ब्राह्मणों के घर पर पत्थर फेंकेंगे.
पैसे बन्नू ने पेशगी दे दिए हैं.
बाबा का कहना है क कल या परसों तक कर्फ्य लगवा दिया जाना चाहिए. दफा 144 तो लग ही जाये. इससे 'केस' मज़बूत होगा.
18 जनवरी
रात को ब्राह्मणों और कायस्थों के घरों पर पत्थर फिंक गए.
सुबह ब्राह्मणों और कायस्थों के दो दलों में जमकर पथराव हुआ.
शहर में दफा 144 लग गयी.
सनसनी फैली हुई है.
हमारा प्रतिनिधि मंडल प्रधानमन्त्री से मिला था. उन्होंने कहा," इसमें कानूनी अडचनें हैं. विवाह-क़ानून में संशोधन करना पड़ेगा."
हमने कहा," तो संशोधन कर दीजिये. अध्यादेश जारी करवा दीजिये. अगर बन्नू मर गया तो सारे देश में आग लग जायेगी."
वे कहने लगे," पहले अनशन तुडवाओ ? "
हमने कहा," सरकार सैद्धांतिक रूप से मांग को स्वीकार कर ले और एक कमिटी बिठा दे, जो रास्ता बताये कि वह औरत इसे कैसे मिल सकती है."
सरकार अभी स्थिति को देख रही है. बन्नू को और कष्ट भोगना होगा.
मामला जहाँ का तहाँ रहा. वार्ता में 'डेडलॉक' आ गया है.
छुटपुट झगड़े हो रहे हैं.
रात को हमने पुलिस चौकी पर पत्थर फिंकवा दिए. इसका अच्छा असर हुआ.
'प्राण बचाओ'---की मांग आज और बढ़ गयी.
19 जनवरी
बन्नू बहुत कमज़ोर हो गया है. घबड़ाता है. कहीं मर न जाए.
बकने लगा है कि हम लोगों ने उसे फंसा दिया है. कहीं वक्तव्य दे दिया तो हम लोग 'एक्सपोज़' हो जायेंगे.
कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा. हमने उससे कहा कि अब अगर वह यों ही अनशन तोड़ देगा तो जनता उसे मार डालेगी.
प्रतिनिधि मंडल फिर मिलने जाएगा.
20 जनवरी
'डेडलॉक '
सिर्फ एक बस जलाई जा सकी.
बन्नू अब संभल नहीं रहा है.
उसकी तरफ से हम ही कह रहे हैं कि "वह मर जाएगा, पर झुकेगा नहीं!"
सरकार भी घबराई मालूम होती है.
साधुसंघ ने आज मांग का समर्थन कर दिया.
ब्राह्मण समाज ने अल्टीमेटम दे दिया. १० ब्राह्मण आत्मदाह करेंगे.
सावित्री ने आत्महत्या की कोशिश की थी, पर बचा ली गयी.
बन्नू के दर्शन के लिए लाइन लगी रही है.
राष्ट्रसंघ के महामंत्री को आज तार कर दिया गया.
जगह-जगह- प्रार्थना-सभाएं होती रहीं.
डॉ. लोहिया ने कहा है क जब तक यह सरकार है, तब तक न्यायोचित मांगें पूरी नहीं होंगी. बन्नू को चाहिए कि वह सावित्री के बदले इस सरकार को ही भगा ले जाए.
21 जनवरी
बन्नू की मांग सिद्धांततः स्वीकार कर ली गयी.
व्यावहारिक समस्याओं को सुलझाने के लिए एक कमेटी बना दी गई है.
भजन और प्रार्थना के बीच बाबा सनकीदास ने बन्नू को रस पिलाया. नेताओं की मुसम्मियाँ झोलों में ही सूख गईं. बाबा ने कहा कि जनतंत्र में जनभावना का आदर होना चाहिए. इस प्रश्न के साथ कोटि-कोटि जनों की भावनाएं जुड़ी हुई थीं. अच्छा ही हुआ जो शान्ति से समस्या सुलझ गई, वर्ना हिंसक क्रान्ति हो जाती.
ब्राह्मणसभा के विधानसभाई उमीदवार ने बन्नू से अपना प्रचार कराने के लिए सौदा कर लिया है. काफी बड़ी रकम दी है. बन्नू की कीमत बढ़ गयी.
चरण छूते हुए नर-नारियों से बन्नू कहता है," सब ईश्वर की इच्छा से हुआ. मैं तो उसका माध्यम हूँ."
नारे लग रहे हैं -- सत्य की जय! धर्म की जय!
Nice post .
ReplyDeleteआपकी पोस्ट का ज़िक्र है ब्लॉगर्स मीट वीकली में.
यह हक़ीक़त है कि अन्ना को मिला समर्थन अद्भुत है।
हमने भी अन्ना को समर्थन दिया जबकि इसी मुददे को लेकर बाबा रामदेव आए तो हमने उन्हें समर्थन नहीं दिया और हमारी तरह और बहुत लोगों ने भी समर्थन नहीं दिया।
जनता ने इतना भारी समर्थन कभी किसी को बाद आज़ादी नहीं दिया।
अच्छा है इस बहाने जनता का काफ़ी ग़ुस्सा रिलीज़ हो गया और अब जनता को ग़ुस्से में आने में समय लग सकता है तब तक नेता जनता को गुमराह करने की पूरी कोशिश करेंगे।
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ब्लॉगर्स मीट वीकली (6) Eid Mubarak में आपका स्वागत है।
इस मुददे पर कुछ पोस्ट्स मीट में भी हैं और हिंदी ब्लॉगिंग गाइड की 31 पोस्ट्स भी हिंदी ब्लॉग जगत को समर्पित की जा रही हैं।
वाह वाह वाह परसाई जी को सादर नमन है आज भी शब्दसः सही है पर खेद के साथ कहना चाह रहा हूं आज के परिपेक्ष्य मे यह व्यंग्य न प्रचारित किया जाये तो ही सही होगा। कोई कैसा भी हो पर देश की जनता को जगाने का जो अदभुत कार्य अन्ना ने किया है और उनके जो घोषित उद्देश्य हैं उनमे कोई खोट नही। पर आप वरिष्ठ हैं ज्यादा और व्यापक सोच रखते हैं अतः निर्णय आप पर ही
ReplyDeleteव्यंग्य जब हरी शंकर परसाई जी की है तो इसमे कोई दो राय नहीं है की अच्छी है बिल्कुल आज के परिपेक्ष में ये जुड़ती है जब ये सुनने में आता है की कल को कोई भी अनशन करके कुछ हजार की भीड़ लेकर अपनी बात मनवा लेगा तो हंसी आती है की शायद अब भी लोग इस आन्दोलन को अनशन मांग और हजारो की भीड़ से ज्यादा कुछ समझने के लिए तैयार ही नहीं है तो जब ओच ये होगी तो कल को व्यंग्य वाली बात सच भी होगी |
ReplyDelete@डॉ. लोहिया ने कहा है क जब तक यह सरकार है, तब तक न्यायोचित मांगें पूरी नहीं होंगी. बन्नू को चाहिए कि वह सावित्री के बदले इस सरकार को ही भगा ले जाए.
ये लाइन सबसे मजेदार लगी |
अफसोसनाक और दुखद पहलू है एक राष्ट्रद्रोही आंदोलन को समर्थन दिया जा रहा है। राष्ट्र ध्वज का अपमान,स्वाधीनता दिवस पर ब्लैक आउट,संविधान और संसद को चुनौती आदि कृत्य तो 1962,1965 और 1971 के युद्धों से भी ज्यादा घातक राश्त्द्रोही हैं इनके हेतु अन्ना टीम पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। जब तक तथाकथित धर्म भ्राष्टाचार का पोषण करते रहेंगे वह कैसे दूर होगा?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार गर्वित प्रस्तुति....
ReplyDeletesir, aaj ke netau ke liye to theek hai lekin aana hajare ke liye nahi....
ReplyDeleteपरसाई जी का एक राजनीतिक दृष्टिकोण भी था। इस आलेख में उन्होंने शंकराचार्य के गोरक्षा अनशन को निशाना बनाया है। साथ ही जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे और लोहिया जी के नाम अनायास नहीं डाले हैं। इसे उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता को समझने के बाद उसी परिप्रेक्ष्य में पढ़ना चाहिए।
ReplyDeleteओह! क्या व्यंग्य है.
ReplyDeleteआप अन्ना जी के साथ हैं यह जानकर अच्छा लगा
पर जो मुद्दा व्यंग्य में उठाया गया है,वह विचारणीय है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
जानकर खुशी हुई कि आप भी गाजियाबाद से हैं.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
राकेश जी मैं अन्ना हजारे के विरोध में नहीं हूँ और लोकपाल बिल को लेकर हो रहे आंदोलन की भावना के साथ हूँ। अन्ना जी के साथ होने का अर्थ थोड़ा भिन्न है।
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