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Tuesday, April 26, 2011

महाप्रभुओं की जेल यात्रा


खलील खां के फाख्ते उड़ाने का दौर लम्बा नहीं चलेगा
रुख से नकाबों के हटने की घड़ी
जैसे महाभारत की लड़ाई के दौरान एक से बढ़कर एक हथियार छोड़े जा रहे थे, उसी तरह आज आकाश में कई तरह के इंद्रजाल बन और बिगड़ रहे हैं। सीडब्लूजी मामलों को उठे अभी साल पूरा नहीं हुआ है कि कहानी में सैकड़ों नए पात्र जुड़ गए हैं। इस सोप ऑपेरा के पात्र टीवी सीरियलों से ज्यादा नाटकीय, धूर्त और पेचीदा हैं। राजनीति, प्रशासन, बिजनेस और मीडिया के जाने-अनजाने कलाकारों की इस नौटंकी में कुछ मुख हैं और बाकी मुखौटे। ऐसे में कुछ बड़ी कम्पनियों के अधिकारियों के जेल जाने की खबर सिर्फ एक रोज की सुर्खी बनकर रह गई। बड़ा मुश्किल है यह बताना कि ये मुख हैं या मुखौटे। पर यह आगाज़ है। तिहाड़ की जनसंख्या अभी और बढ़ेगी।

कहा जा रहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कानून बन गया तो दिल्ली और मुम्बई के कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स जेलों में तब्दील हो जाएंगे। इसे चंडूखाने की चर्चा मानकर अनदेखी कर दें, पर यकीन मानिए कि खलील खां के फाख्ते उड़ाने का दौर भी नहीं चलेगा। यह सिर्फ संयोग नहीं है 1991 के उदारीकरण के बाद से घोटालों का आयाम अचानक बढ़ा है। पहले लाख-दस लाख के होते थे, फिर करोड़ों के होने लगे। अब अरबों के होते हैं। हर्षद मेहता का शेयर बाजार घोटाला इनमें पहला था। क्या यह उदारीकरण की देन है? उदारीकरण की अनिवार्य शर्त है व्यवस्था का पारदर्शी होना।  

आधुनिक लोकतंत्र और पूँजीवाद दोनों के विकास पर ध्यान दें तो आप पाएंगे कि एक ओर व्यवस्था पर कब्जा करने की कुछ ताकतवर लोगों की कोशिशें हैं तो दूसरी ओर इन कोशिशों से लड़ने वाली ताकतें एकताबद्ध होती हैं। कम्पनियों में शेयर होल्डरों का हस्तक्षेप बढ़ रहा है। अभी तक कोई एक या दो सेठों के परिवार हावी रहते थे। अब आम जनता की हिस्सेदारी बढ़ रही है। छोटे इनवेस्टरों की तादाद बढ़ती जा रही है। कॉरपोरेट गवर्नेंस और सिविल गवर्नेंस दोनों में पारदर्शिता पर जोर है। हाल में पश्चिमी देशों की सरकारों ने अपनी कम्पनियों को मंदी के दौर में तबाह होने से बचाया है। वित्तीय बाजार के धूर्त मैनेजरों की देन थी यह मंदी। व्यवस्थाओं के स्थिर होने के बाद इन्हें रास्ते पर लाने की ज़रूरत भी होगी। भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई की माँग सिर्फ भारत में ही नहीं उठी है। यह संयुक्त राष्ट्र के एजेंडा में भी है। जिस तरह से हमारे देश के कॉरपोरेट महाप्रभुओं की जेल यात्रा शुरू हुई है, वह अमेरिका, जापान, जर्मनी और कोरिया में पहले से चल रही है। और हर जगह की कहानी एक है। राजनीति-बिजनेस और माफिया का गठजोड़।

भारत में अनन्त काल से भ्रष्टाचार चला आ रहा है। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में चालीस किस्म के आर्थिक घोटालों का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि यह सम्भव नहीं कि सरकारी कर्मचारी ज़ुबान पर रखी शहद की बूँद का स्वाद नहीं जान पाएगा। यह नज़र रखना मुश्किल है कि मछली कितना पानी पीती है। कौटिल्य ने भ्रष्ट आचरण के खिलाफ बेहद कड़े कानूनों की व्यवस्था की थी। मुगल शासन में सरकारी घोड़ों की खरीद से लेकर राजस्व वसूली तक भ्रष्टाचार था। बख्शीश शब्द मुगल दरबारों से ही आया है। अंग्रेज कम्पनी सरकार ने आधुनिक भ्रष्टाचार की नींव डाली। गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स के खिलाफ इसी किस्म के आरोपों को लेकर महाभियोग चला था। इसी तरह पॉल बेनफील्ड नाम के इंजीनियर की कहानी है, जिसे कई बार नौकरी से हटाया गया। वह जब वापस गया तो लाखों की कमाई करके ले गया।

अब जनता का जमाना है, प्रजा का नहीं। वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की चौदहवीं रपट गवर्नेंस की नैतिकता पर केन्द्रित है। जनवरी 2007 में पेश की गई यह रपट भी तमाम सरकारी रपटों की तरह कहीं पड़ी है। इसमें सार्वजनिक भ्रष्टाचार रोकने के ज्यादातर उपाय भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों में बदलाव के बाबत हैं। भारतीय व्यवस्था की दुनिया के अन्य देशों से तुलना करते हैं तो भारत सबसे पीछे के देशों में नज़र आता है। हमारे मुकाबले चीन में भ्रष्टाचार विरोधी कारवाई कई गुना ज्यादा प्रभावशाली है। तेजी से बढ़ती आर्थिक महाशक्ति यदि भ्रष्टाचार रोकने वाली व्यवस्था को स्थापित नहीं करेगी तो यह गाड़ी चलना बन्द कर देगी। इस गाड़ी पर एक सौ ग्यारह करोड़ लोग सवार हैं। इनमें से करीब बीस करोड़ लोगों की  व्यवस्था में सीधे भागीदारी है। इनकी तादाद बढ़ रही है।

अन्ना हजारे की अगुवाई में आंदोलन सफल होगा या नहीं यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। सरकार ने कभी नहीं कहा कि हम यह बिल नहीं लाना चाहते। सन 2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मनमोहन सिंह ने कहा कि हमारी प्राथमिकता जल्द से जल्द लोकपाल बिल लाने की है। वीरप्पा मोइली के प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी जोर देकर कहा कि इसे जल्द से जल्द कानून का दर्जा देना चाहिए। इसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 309, 310 और 311 में फेर-बदल की जरूरत है ताकि सरकारी अधिकारियों पर जल्द से जल्द कार्रवाई हो सके। इसी तरह सांसदों को अनुच्छेद 105(2) के तहत प्राप्त विशेषाधिकार को समाप्त करने या उसमें बदलाव करने की ज़रूरत है। यही नहीं तमाम और कदम उठाने की ज़रूरत है। रोना यह है कि ये कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। जो उठाना चाहता है उसकी राह में रोड़े अटकाए जा रहे हैं। बेशक यह कानून देश की संवैधानिक व्यवस्थाओं और संस्थाओं के अनुरूप हो। कोई नहीं कहता कि लोकपाल निरंकुश हो। उसका हवाई हौआ खड़ा करने के बजाय जल्द से जल्द एक व्यावहारिक कानून बनाइए। बाकी बहस बाद में करेंगे। 

मंजुल के कार्टून साभार     

लेख जनसंदेश टाइम्स में प्रकाशित

8 comments:

  1. कार्टून तो बड़े मजेदार लगे....
    ________________________
    'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!

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  2. यह नज़र रखना मुश्किल है कि मछली कितना पानी पीती है।
    पूरी तरह सही बात. अभी तक यह ही हो रहा था. लेकिन पारदर्शिता और तकनीक के विकास से ऐसा संभव हो सकता है कि मछली पर नजर रखी जा सके.

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  3. parmod ji thhik baat h /// jab ye itihashik parwarti h to is bharshta-chaar ko sanvidhan m vishesh darza milna chahiye......aur jo iska palan nahi kare usko sakhat saza ka prawdhan hona chahiye....bharshta-chaar nahi hoga to desh ka astitaw khatre m par jayega....aur congress ka to koi naam-leva bhi nahi bachega///

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  4. ये बहुत ही उम्दा लेख है प्रमोद जी, मुझे कौटिल्य का प्रसंग बहुत बढ़िया लगा. मैंने अपने ब्लॉग-post में आपके लेख को लिंक किया है, मौका मिले तो अवश्य पढ़िएगा:

    http://peanutexpress.blogspot.com/2011/04/le-petit-dejeuner.html

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  5. भ्रष्टाचार पर इतिहास लेकर वर्तमान तक की सभी बातो को समेट दिया आपने | आभार

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  6. सर, मछली पानी पीती ही नहीं, मछली तो मछली को खाती भी है, जब ऐसा होता है तो हम खुश हो जाते हैं कि चलो एक मछली गई अब पानी बच जाएगा। पर नहीं पहचान पाते की बड़ी मछली तो और ज्यादा पानी पीएगी।...

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  7. It is hard to imagine India without corruption. The root of problem lies in ourselves. Most of us are whenever get chance easily start to favor our own relatives, friends and easily start to take bribe when on a seat. Corruption is our inherited character, we can not follow rules and regulation as per norms. In most of our offices implementation of any activity is fueled only by bribe.
    India without corruption is unimaginable.

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