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Thursday, June 3, 2010

चुनाव खर्च, असली और नकली

सन 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान नागरिकों के कुछ समूह सामने आए थे, जिन्होंने दागी प्रत्याशियों की उपस्थिति और चुनाव के खर्च जैसे सवाल उठाए थे। अभी हम इन संगठनों के असर को अच्छी तरह देख नहीं पाए हैं, पर ये ठीक से काम करते रहे तो देर-सवेर अच्छे परिणाम मिलेंगे। चुनाव के दिनों में आपने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच के नाम सुने होंगे।

नेशनल इलेक्शन वॉच ने चुनाव खत्म होने के बाद प्रत्याशियों के चुनाव खर्च का ब्योरा एकत्र किया है, जो रोचक है। इसके कुछ पॉइंट इस प्रकार हैं।

* चुनाव लड़ने वाले 19 प्रतिशत प्रत्याशियों ने अपना ब्योरा दिया ही नहीं।

* सिर्फ चार प्रत्याशियों का खर्च 25 लाख रु की सीमा के ऊपर हुआ। इसके अलावा सिर्फ 30 प्रत्याशियों का खर्च 22.5 लाख से 25 लाख के बीच हुआ।

*चुने गए दो सांसदों ने अभी तक अपना ब्योरा दिया ही नहीं।

*सभी पार्टियों के प्रत्याशियों का खर्च तय सीमा के 50 प्रतिशत से भी कम है।

*पार्टियों के प्रत्याशियों का औसत खर्च निकालें तो औसतन एक प्रत्याशी का खर्च इस प्रकार हैः-

बसपा 6.2 लाख रुपए,  कांग्रेस 13.7 लाख रुपए, भाजपा  12.5 लाख रुपए, सपा  8.9 लाख रुपए

पूरी रपट पढ़ना चाहें तो क्लिक करें

यह जानकारी इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हाल में जब चुनाव के दौरान अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया  में पेड न्यूज़ को लेकर बातें उठीं तो कुछ पार्टियों की ओर से कहा गया कि खर्च की सीमा इतनी कम है कि कोई और रास्ता ढूँढना पड़ता है। सच यह है कि कागज़ों में प्रत्याशी उतना खर्च भी नहीं करते जितना करने की उन्हें अनुमति है।

1 comment:

  1. चुनाव आयोग के कार्य करने के तरीकों और दोषी व्यक्तियों को कानूनी कार्यवाही के जरिये सजा देने की चुनाव आयोग की इक्षा शक्ति में बेहद कमी है ,दुर्भाग्यजनक है की चुनाव आयोग भी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया की रक्षा का कोई ठोस उपाय नहीं कर पा रहा है |

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