भारत के छोटे-छोटे गाँवों और कस्बों के
छोटे-छोटे लोगों की उम्मीदों, सपनों और दुश्वारियों की
किताबें खुल रहीं हैं। ड्राइंग रूमों से लेकर सड़क किनारे पड़ी मचिया के पास रखे
टीवी सेट पर उम्मीदों की टकटकी लगाए करोड़ों लोग इसमें शामिल हैं। ऐसे में कुछ दुख
भरी खबरें सुनाई पड़ती हैं, तो मन खिन्न हो जाता है। ऐसा ही कुछ अहमदाबाद में हुई
विमान-दुर्घटना के बाद सुनाई पड़ रहा है।
इस हादसे में बचे एकमात्र यात्री विश्वास कुमार
रमेश की कहानी भी अकल्पनीय है। वे कैसे बचे, वे खुद नहीं जानते। रमेश के भाई ने
बताया कि दुर्घटना के कुछ समय फोन कॉल में रमेश ने अपने परिवार से कहा, मुझे नहीं पता कि मैं कैसे जीवित हूँ। दूसरी तरफ इस दुर्घटना ने तमाम
सपनों को तोड़ा और घर-परिवारों में विषाद की गहरी लकीर खींच दी। ऐसी तमाम कहानियाँ
अहमदाबाद में हुई विमान-दुर्घटना के साथ खत्म हो गईं। इनमें राहत और बचाव से जुड़ी
सकारात्मक कहानियाँ भी शामिल हैं।
सेवानिवृत्ति से कुछ महीने दूर एक पायलट, ग्यारह वर्ष से अधिक अनुभव वाली एक फ्लाइट अटेंडेंट, केबिन क्रू में शामिल दो मणिपुरी लड़कियों की कहानी और पनवेल की एक युवा फ्लाइट अटेंडेंट जो अपने गाँव की असंख्य युवा लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई थी। वे उन 12 सदस्यीय चालक दल में शामिल थे, जो एयर इंडिया के इस ड्रीमलाइनर के साथ काल-कवलित हो गए। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की भी अहमदाबाद विमान हादसे में मौत हो गई। वे अपनी पत्नी अंजलि और बेटी से मिलने जा रहे थे।
60 वर्षीय कैप्टन सुमीत सभरवाल, विमान में सवार सबसे वरिष्ठ चालक दल के सदस्य थे। लंबे समय से पायलट रहे
सभरवाल अपने 90 वर्षीय पिता के साथ पवई के जलवायु विहार में रह रहे थे। पड़ोसियों
के अनुसार, वह रिटायर होने से बस कुछ ही महीने दूर थे और
उन्होंने अपने बूढ़े पिता के साथ घर पर अधिक समय बिताने की योजना बनाई थी। जलवायु
विहार के एक पड़ोसी ने बताया, वे बहुत ही रिज़र्व रहने वाले और
अनुशासित व्यक्ति थे। हम अक्सर उन्हें वर्दी में आते-जाते देखते थे। उनकी मौत से न
केवल उनके परिवार को बल्कि पवई के आवासीय समुदाय को भी सदमा लगा है, जहाँ वे कई सालों से रह रहे थे।
महाराष्ट्र के बदलापुर के दीपक पाठक विमान के फ्लाइट असिस्टेंट थे। ग्यारह साल से भी ज़्यादा समय से एयरलाइन के समर्पित कर्मचारी दीपक किसी भी उड़ान से पहले घर पर फ़ोन करना नहीं भूलते थे। उन्होंने गुरुवार को भी ऐसा ही किया। इस त्रासदी ने पाठक परिवार के साथ-साथ बदलापुर के बड़े समुदाय को भी बहुत दुखी कर दिया, जो उन्हें एक सज्जन व्यक्ति के रूप में जानते थे।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर किसी ने एक
सेल्फी प्रकाशित की है, जिसे करीब पौने दो करोड़ बार देखा गया है। यह चित्र
हृदय-विदीर्ण कर देता है। इसमें एक युवा दंपति और उनके तीन छोटे बच्चों की
मुस्कराती तस्वीर है। यह तस्वीर राजस्थान के बाँसवाड़ा के प्रतीक जोशी के परिवार
की है, जो छह साल से लंदन में रह रहे थे। सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रतीक, लंबे समय से
अपनी पत्नी और तीन छोटे बच्चों के लिए (जिनमें दो जुड़वाँ बेटे थे) विदेश में जीवन
बनाने का सपना देख रहे थे, जो भारत में ही रहते थे। कई साल
तक की औपचारिकताओं के बाद आखिरकार उनका सपना सच होने जा रहा था।
दुर्घटना के दो दिन पहले,उनकी
पत्नी,डॉ कोमी व्यास ने,जो उदयपुर की चिकित्सक
थीं, अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। बैग-पैक के साथ पाँच लोगों का यह परिवार एक
नए भविष्य को सँजोए लंदन जाने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट 171 में सवार हुआ।
उन्होंने एक सेल्फी क्लिक की। इसे रिश्तेदारों को भेजा। यही सेल्फी सोशल मीडिया
में अब वायरल है। एक नई ज़िंदगी की वह यात्रा पूरी नहीं हो पाई। कुछ ही पलों में,
जीवन भर के सपने राख में बदल गए।
मणिपुर के थौबल शहर की 21 वर्षीय नगनथोई शर्मा
कोंगब्राइलात्पम 12 जून को अहमदाबाद में एयर इंडिया के दुर्घटनाग्रस्त विमान में केबिन
क्रू की सदस्य थी। मणिपुर की एक और लड़की 28 वर्षीय लामनुनथेम सिंगसन भी उस फ्लाइट
के केबिन क्रू में शामिल थी। सिंगसन का परिवार मई 2023 में जातीय हिंसा भड़कने के
बाद इंफाल से विस्थापित होने के बाद कुकी बहुल कांगपोकपी जिले में रह रहा है।
दोनों के जीवन और संघर्ष की अलग-अलग कहानियाँ हैं, जो सुदूर पूर्वोत्तर से शुरू
होकर लंदन, वॉशिंगटन, पेरिस, तोक्यो और बीजिंग तक जाती हैं।
नगनथोई ने अपनी बड़ी बहन को सुबह करीब 11:30 बजे
फोन करके बताया कि मैं दिन में लंदन जा रही हूँ। फोन पर कहा कि अब मैं 15 जून को
वापस आने के बाद संपर्क करूँगी। परिवार के लिए वह उसका आखिरी कॉल था। तीन बेटियों
में मझली नगनथोई ने 2023 में एयर इंडिया में अपनी पहली नौकरी ज्वाइन की थी। उसके
पिता ने बताया कि आखिरी बार वह इस साल मार्च में घर आई थी। वह उन्हें सरप्राइज
देने के लिए आई थी, उस समय उनके पिता अस्पताल में इलाज करा
रहे थे।
थौबल बहुत बड़ा शहर नहीं है। वहाँ की कुल आबादी
45 हजार के आसपास है। उस शहर से निकलकर दो सपने बाहर आए थे, जो असमय टूट गए। ऐसी
ही कहानी महाराष्ट्र के पनवेल के न्हावा गाँव की 24 वर्षीय फ्लाइट अटेंडेंट मैथिली
मोरेश्वर पाटिल की है। उसने साधारण पृष्ठभूमि से आने के बावजूद विमानन क्षेत्र में
अपने सपने को पूरा करने के लिए किया था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी,
लेकिन उसने इसके लिए पढ़ाई की। एयर इंडिया में नौकरी मिल जाने के
बाद वह न्हावा गाँव और उसके आसपास की अनगिनत युवा लड़कियों के लिए प्रेरणा स्रोत
बन गई।
केरल की 39 वर्षीय नर्स
रंजीता गोपाकुमार भी विमान हादसे के पीड़ितों में शामिल थीं। रंजीता केरल सरकार की
स्वास्थ्य सेवा में नर्स के रूप में काम करती थीं, लेकिन
अपने दो बेटों के बेहतर भविष्य के लिए उन्होंने विदेश में अवसरों की तलाश के लिए
छुट्टी ली थी। वह अपनी सरकारी नौकरी से संबंधित औपचारिकताएं पूरी करने के लिए चार
दिन पहले ही ब्रिटेन से भारत लौटी थीं, उन्हें उम्मीद थी कि
वह विदेश में कुछ समय बिताने के बाद फिर से सेवा में शामिल हो सकेंगी।
रंजीता केरल में अपने पैतृक गाँव पुल्लाड में नई
उम्मीदों के साथ घर आईं थीं, एक नए घर की योजना को अंतिम रूप देने के लिए, और अपने बच्चों और बुजुर्ग माँ को एक सुरक्षित, अधिक
स्थिर जीवन में ले जाने के लिए। रंजीता ने विदेश लौटने के लिए टिकट लिया था और
चेन्नई से अहमदाबाद की उड़ान पकड़ी थी। उम्मीदों की यह यात्रा असमय समाप्त हो गई।
हिंदी
ट्रिब्यून में 14 जून, 2025 को प्रकाशित
दुखद। निशब्द 😑😐
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