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Sunday, January 7, 2024

2024 संभावनाओं के नए पड़ाव

कैलेंडर की तारीखें बदल जाने मात्र से नया साल अपने से पिछले साल से अलग नहीं हो जाता, बल्कि समय की निरंतरता में वह एक नया पड़ाव होता है। इस लिहाज से पिछली घटनाएं आने वाले समय को परिभाषित करती हैं। पिछले तीन वर्षों की तुलना में यह साल बेहतर उपलब्धियों के साथ शुरू हुआ है। भारत का उदय नए आर्थिक पावर हाउस के रूप में होता दिखाई पड़ रहा है।

शुरुआत जिस माहौल में हो रही है, उससे लगता है कि यह साल जोशो-जुनून से भरा होगा। फिलहाल यह जोशो-जुनून इस साल के चुनावों में दिखाई देगा। 17वीं लोकसभा का कार्यकाल 16 जून 2024 को पूरा होगा। इसका मतलब है कि उसके पहले चुनाव और मतगणना का कार्य पूरा हो जाना चाहिए। इस दृष्टि से चुनाव अप्रैल-मई में होने चाहिए। और इसकी घोषणा मार्च में होनी चाहिए। 2019 के चुनाव का कार्यक्रम 10 मार्च को हुआ था। इसबार भी इसी तारीख के आसपास घोषणा होनी चाहिए।

यह दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव है। चुनाव में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच होगा। इंडिया गठबंधन हालांकि 28 के आसपास दलों को लेकर बना है, पर उसके केंद्र में कांग्रेस पार्टी है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि एनडीए के मुकाबले इंडिया गठबंधन कितनी सीटों पर सीधा मुकाबला करा पाएगा। सीटों का बँटवारा करने की राह में कई तरह के पेच हैं।

राजनीतिक उठापटक

मानकर चलिए कि चुनाव के पहले और परिणाम आने के बाद भी देश का राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदलता रहेगा। पर उसके पहले नए साल पर सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाली घटना 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा से जुड़ी होगी। मंदिर की स्थापना के साथ भारतीय जनता पार्टी अपने विजय-रथ को तार्किक परिणति पर पहुँचाना चाहती है। सवाल है कि क्या नरेंद्र मोदी लगातार तीसरा चुनाव जीतकर जवाहर लाल नेहरू के कीर्तिमान की बराबरी करेंगे? समय उनका साथ दे रहा है।

दूसरी ओर यह भी देखना है कि इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन कैसा रहेगा। पिछले साल के अंत में तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत के काफी पहले से बीजेपी ने लोकसभा चुनाव की रणनीतियों पर काम शुरू कर दिया था। उसकी सफलता के पीछे अनेक कारण हैं। मजबूत नेतृत्व, संगठन-क्षमता, संसाधन, सांस्कृतिक-आधार और कल्याणकारी योजनाएं वगैरह-वगैरह। लोकसभा चुनाव में उसे कितनी सफलता मिलेगी, यह तो मई 2024 में ही पता लगेगा, फिलहाल पार्टी ‘पुरानेपन’ को भुलाना और ‘नएपन’ को अपनाना चाहती है। यह बात तीन राज्यों में मुख्यमंत्रियों के रूप में एकदम नए चेहरों को स्थापित करने से स्पष्ट हो गई है।

पार्टी को विजय मिली, तो केंद्रीय-स्तर पर भी बड़े बदलाव इस साल देखने को मिलेंगे। ये बदलाव केवल बीजेपी में ही नहीं, पूरी राजनीति में होंगे। लोकसभा चुनाव के बाद पुराने गठबंधन बिखरेंगे और राजनेता नई परिस्थितियों के अनुरूप व्यवहार करेंगे। कांग्रेस पार्टी कर्नाटक और तेलंगाना में मिली जीत से उत्साहित है, पर उसकी असली परीक्षा लोकसभा चुनाव में होगी।

लोकतांत्रिक उत्सव

2024 में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल, ओडिशा, सिक्किम, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभाओं के चुनाव भी होंगे। इनमें से आंध्र, अरुणाचल. ओडिशा और सिक्किम के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही होंगे। एक तरह से देश में पूरे साल चुनाव की हवाएं बहेंगी। आमतौर पर हर साल चार-पाँच राज्यों के चुनाव होते हैं, पर इस साल लोकसभा चुनावों के अलावा इतनी बड़ी संख्या में विधानसभाओं के चुनाव होना महत्वपूर्ण है।

1951 के चुनाव में हमारे यहाँ 14 राष्ट्रीय और 39 अन्य मान्यता प्राप्त पार्टियाँ थीं। इस समय देश में छह राष्ट्रीय पार्टियां, 58 राज्य पार्टियां, और 2,597 गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियां हैं। 25 जनवरी को देश 14वाँ मतदाता दिवस मनाएगा। निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को हुई थी। 2011 से हर साल 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है। 1951 में हुए पहले चुनाव में भारत में मतदाताओं की संख्या 17 करोड़ थी, जो अब संभवतः 95 करोड़ से ऊपर है। दुनिया के किसी लोकतंत्र में एकसाथ इतने वोटरों की भागीदारी कभी नहीं हुई। पिछले चुनाव में 89 करोड़ 60 लाख, 76 हजार 899 पात्र मतदाता थे। अब मतदाता सूचियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है और इसी महीने सही संख्या सामने आएगी।

नीतिगत बदलाव

बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक रिकॉर्ड तोड़ सफलता मिली, तो संभव है कि कुछ बड़े नीतिगत फैसले हों। जिस तरह 2019 का चुनाव जीतने के बाद सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 से जुड़ा बड़ा फैसला कर लिया, अब शायद उसी तर्ज पर कुछ दूसरे बड़े फैसले भी हो सकते हैं। संभव है कि सरकार एक देश-एक चुनाव के सिद्धांत को लागू भी कर दे। केंद्र सरकार इन सभी चुनावों को एकसाथ लाकर आंशिक रूप से एक देश-एक चुनाव के सिद्धांत की ओर बढ़ने का प्रयास कर सकती है। चुनाव आयोग ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति से कहा है कि हमें इसकी तैयारी के लिए एक साल का समय चाहिए। ऐसी ही एक संभावना समान नागरिक संहिता को लेकर भी है।

हाल में अनुच्छेद 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर 30 सितंबर से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव भी होंगे। राज्य की विधानसभा नवंबर 2018 में भंग हुई थी। संभव है कि चुनाव के साथ राज्य का उसका दर्जा भी बहाल हो जाए। जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने और राज्य का दर्जा बहाल होने से वैश्विक-राजनीति में भारत की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी।

बड़ा जनादेश मिला, तो संभव है कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मोर्चे पर भी सरकार कुछ बड़े फैसले भी करे। खेती, भूमि, श्रम, उर्वरकों और बिजली पर सब्सिडी जैसे बहुत से ऐसे मसलों में सुधार से जुड़े कदम भी उठाए जा सकते हैं। कुछ सरकारी बैंकों और बीमा कंपनियों का निजीकरण भी हो सकता है, जिनका संकेत वित्तमंत्री दे चुकी हैं।

सरकार किसी की भी बने, एक बड़ा काम संसदीय सीटों के परिसीमन का है। 2002 में सरकार ने इसे 25 साल के लिए टाल दिया था। अब नई सरकार के सामने दो बड़े काम होंगे। पहले जनगणना और फिर परिसीमन, जिसके साथ जुड़ा है महिलाओं को 33 प्रतिशत सीटों पर आरक्षण। जनगणना का काम फिलहाल 30 जून तक के लिए रोक दिया गया है।

वैश्विक लोकतंत्र

भारत के ही नहीं वैश्विक लोकतंत्र के लिए 2024 का साल बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। भारत, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, बेल्जियम, यूरोपियन संसद, दक्षिण अफ्रीका, मैक्सिको, ताइवान, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका और भूटान तक में इस साल चुनाव होने वाले हैं। मोटा अनुमान है कि 60 से ज्यादा देशों में 2024 के अंत तक चुनाव होंगे, जिनमें दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी हिस्सा लेगी। दुनियाभर के विशेषज्ञ इसे मदर ऑफ ऑल इलेक्शंस ईयरबता रहे हैं। एक ज़माने तक दुनिया की निगाहें अमेरिकी चुनाव पर ही रहती थीं, पर अब दुनिया भारतीय चुनाव की व्यापकता और सफलता को लेकर आश्चर्यचकित है।

आर्थिक मोर्चा

नरेंद्र मोदी घोषणा कर चुके हैं कि मेरे कार्यकाल में ही भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा। जनवरी के अंतिम सप्ताह में संसद का बजट सत्र होगा, पर इस साल चुनाव का वर्ष होने के कारण सरकार अंतरिम बजट पेश करेगी। पूरा बजट नई सरकार बनने के बाद जुलाई में पेश होगा। अलबत्ता 2019 में ऐसी ही परिस्थिति में पेश किए गए बजट में मोदी सरकार ने कुछ बड़ी घोषणाएं की थीं। संभव है कि इसबार भी ऐसा ही हो। गुजरते साल के चलते-चलाते आर्थिक मोर्चे से अच्छी खबरें मिली हैं, जो बता रही हैं कि भारतीय जीडीपी अब 7 से 7.5 प्रतिशत सालाना की दर से संवृद्धि की दिशा में बढ़ रही है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 15 दिसंबर को समाप्त हुए सप्ताह में 20 माह के उच्चतम स्तर 616 अरब डॉलर हो गया है। 25 मार्च, 2022 के बाद का यह उच्चतम स्तर है।

गत 30 नवंबर को जारी जीडीपी के आंकड़ों से पता चलता है कि जुलाई-सितंबर की अवधि में शानदार प्रदर्शन के बाद भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत तीसरी तिमाही के लिए तैयार है, जिसके आंकड़े जनवरी के अंतिम सप्ताह में प्राप्त होंगे। दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में वार्षिक आधार पर 7.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जबकि पहली तिमाही में यह 7.8 प्रतिशत थी।

विदेश-नीति

विदेश-नीति की दिशा भी काफी कुछ लोकसभा चुनाव के परिणामों पर निर्भर करेगी। हालांकि यह ऐसा क्षेत्र है, जिसमें फौरी बदलाव नहीं होते। स्वतंत्रता के बाद से देश की विदेश-नीति कमोबेश कुछ निश्चित सिद्धांतों पर ही चल रही है। मोदी सरकार जीती, तो यों भी वर्तमान दिशा जारी रहेगी। अलबत्ता अमेरिका और कनाडा के साथ हाल में हुई कुछ कटुता का असर देखने को मिल सकता है।

अमेरिकी नीति की दिशा को समझने के लिए भी वहाँ इस साल हो रहे चुनाव के परिणाम का इंतजार करना होगा। इस साल पाकिस्तान और बांग्लादेश के चुनावों के परिणाम भी हमारी विदेश-नीति को प्रभावित करेंगे। पाकिस्तान में नवाज शरीफ की पार्टी की सरकार बनी, तो उनके साथ बातचीत की शुरुआत हो सकती है। कम से कम उच्चायुक्तों की नियुक्ति के साथ इसकी शुरुआत हो सकती है। ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन के साथ फ्री-ट्रेड की बात महत्वपूर्ण मोड़ पर है। ऐसे समझौते भी हो सकते हैं। 

नए साल के पहले महीने में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों देश के गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि बनकर आ रहे हैं। इस मौके पर संभव है कि दोनों देशों के रिश्तों में किसी नए कदम की घोषणा हो। भारत और फ्रांस के बीच लड़ाकू विमानों के सैफ्रान इंजनों के निर्माण को लेकर बातचीत चल रही है। मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) की निविदा में फ्रांस का दासो राफेल भी शामिल है। चूंकि भारत पहले से 36 राफेल अपनी वायुसेना के लिए खरीद चुका है और नौसेना के लिए 26 राफेल-एम खरीदने का फैसला कर चुका है, इसलिए एमआरएफए के तहत 114 राफेल का डील होने की संभावना भी है।

जनवरी 2024 में भारत में क्वाड देशों का शिखर सम्मेलन होने वाला था, जो बाइडेन का दौरा रद्द होने के बाद स्थगित हो गया है। नई सरकार बनने के बाद साल के अंत में या फिर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने के बाद वह सम्मेलन संभव है।

अंतरिक्ष अभियान

साल की शुरुआत एक महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अभियान से हुई है। एक्सपोसैट (एक्स-रे ध्रुवणमापी उपग्रह) चरम स्थितियों में उज्ज्वल खगोलीय एक्स-रे स्रोतों की विभिन्न गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए भारत का पहला समर्पित ध्रुवणमापी मिशन है। अंतरिक्ष में ब्लैकहोल, न्यूट्रॉन नक्षत्रों और सक्रिय मंदाकिनियों, पल्सरों वगैरह के उत्सर्जन तंत्र को समझना जटिल काम है। भारतीय अंतरिक्ष-विज्ञान इस उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ एक नई दिशा में कदम रख रहा है।

एक मायने में यह अंतरिक्ष में भारत की तीसरी वेधशाला है। पहली प्रयोगशाला है एस्ट्रोसैट जिसका प्रक्षेपण 2015 में किया गया था। इसका मकसद एक्स-रे, ऑप्टिकल, और यूवी स्पेक्ट्रल बैंड में एक साथ आकाशीय स्रोतों का अध्ययन करना है। दूसरी वेधशाला है आदित्य-एल1, जिसका उद्देश्य है सूर्य का अध्ययन करना। अब यह तीसरी वेधशाला है, जो भारत की नई उड़ान की घोषणा करेगी। यह वेधशाला अमेरिका की ऐसी ही एक और वेधशाला आईएक्सपीई के साथ मिलकर भी काम करेगी, जिसका प्रक्षेपण 2021 में किया गया था।

गगनयान मिशन

अंतरिक्ष के क्षेत्र में 2024 का साल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए अहम होगा। उसके कार्यक्रमों में प्रमुख हैं गगनयान मिशन के तहत मानव रहित दो उड़ानें। समानव उड़ान के पहले इन उड़ानों की जरूरत है ताकि असल उड़ान के ऑर्बिट मॉड्यूल की जांच हो सके। इसरो के तीनों शक्तिशाली रॉकेट एलवीएम-3, पीएसएलवी और जीएसएलवी के जरिए अलग-अलग मिशन भेजे जाएंगे। इनके अलावा नए स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल (एसएसएलवी) की तीसरी विकास उड़ान भी 2024 में होगी।

इसरो के कार्यक्रमों के अलावा अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा के साथ भी कुछ कार्यक्रम इस साल प्रस्तावित हैं। नासा के प्रमुख बिल नेल्सन ने हाल में बताया कि अमेरिका 2024 के अंत तक एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को ट्रेनिंग देने और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर भेजने में मदद करेगा।

पेरिस ओलिंपिक

खेलों को सामाजिक विकास के आइने से भी देखा जाता है। ओलिंपिक खेलों के माध्यम से देश अपनी आर्थिक और सामाजिक प्रगति को शोकेस करते हैं। एशिया में केवल जापान, दक्षिण कोरिया और चीन ने ओलिंपिक खेलों को आयोजित किया है और तीनों ने इस मौके का इस्तेमाल अपनी आर्थिक प्रगति को दुनिया के सामने रखने के लिए किया।

खेलों को आर्थिक-सामाजिक विकास का संकेतक मानें तो अभी तक हमारी बहुत सुन्दर तस्वीर नहीं है। दूसरी ओर चीनी तस्वीर दिन-पर-दिन बेहतर होती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खेलों में दिलचस्पी ध्यान खींचती है। हाल में भारत में हुए विश्व कप क्रिकेट के फाइनल में उनकी उपस्थिति को राजनीतिक रंग दे दिया गया, पर सच यह है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में असाधारण प्रदर्शन करने वाले भारतीय खिलाड़ियों से वे सीधे फोन पर बात करते रहे हैं।

खेलो इंडिया

भारत सरकार का खेलो इंडिया कार्यक्रम खेल के महत्व को रेखांकित करता है। खेलों का आयोजन आर्थिक प्रगति को शोकेस करता है, और खेलों में भागीदारी सामाजिक दशा को बताती है। खासतौर से स्वास्थ्य और अनुशासन को। श्रेष्ठ राजनीति जागरूक समाज की देन है। खेल बेहतर समाज बनाते हैं।

2024 के जुलाई-अगस्त में होने वाले पेरिस ओलिंपिक में भारतीय खेलों की परीक्षा होगी। तोक्यो में हुए पिछले ओलिंपिक में भारत ने सात पदक हासिल किए थे, जो अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल के साथ एथलेटिक्स में पदकों का सूखा खत्म किया। नीरज भी खेल मंत्रालय के टार्गेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम के लाभार्थी हैं।

 

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आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस

चैटजीपीटी को जब 2022 में लॉन्च किया गया था, तब युवा पीढ़ी टूट पड़ी थी। कोई उससे रैप लिखवा रहा था, तो कोई पेंटिंग। एआई का असली इस्तेमाल कस्टमर सेवाओं, सॉफ्टवेयर इंजीनियरी और अनुसंधान-विकास में है। जैसाकि हर भले काम के साथ होता है, ठगों ने इसपर भी कब्जा कर लिया है। इसका आपराधिक इस्तेमाल भी हो रहा है। 2019 के चुनाव में सोशल मीडिया की जबर्दस्त भूमिका थी। अब एआई भी इन चुनावों को प्रभावित करेगी। फेक के बाद अब डीपफेक का ज़माना है। चुनाव-प्रचार पर फ़ेकन्यूज़ और छद्म-प्रचार का साया रहेगा। अफवाहों, गलत और भ्रामक सूचनाओं का बोलबाला रहेगा। पहले झूठ पकड़ में आ जाता था, पर चेहरों और आवाजों तक का इस्तेमाल करने वाली तकनीक आने के बाद सच और झूठ का फर्क करना मुश्किल हो जाएगा।

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ज़मीन से जुड़े भारत के सितारे

जीवन के हरेक क्षेत्र में स्वदेशी प्रतिभाएं सामने आ रही हैं। पिछले साल एशियाड में कुल मिलाकर 1593 मेडल जीते गए, जिनमें से 107 जीतकर भारत चौथे नंबर पर रहा। 2018 में हम 70 मेडल जीतकर आठवें स्थान पर रहे थे। दिल्ली के एक अखबार ने 107 मेडल जीतने वाले 256 खिलाड़ियों की आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि की पड़ताल की, तो पता लगा कि ज्यादातर खिलाड़ी गाँवों और कस्बों से आते हैं। ज्यादातर के परिवार दिहाड़ी कामगारों, छोटे दुकानदारों या किसानों के हैं। ज्यादातर के परिवारों की सालाना आय पाँच लाख रुपये से कम है। वे हरियाणा, हिमाचल, पंजाब, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक से लेकर सुदूर मणिपुर और मिजोरम तक से आते हैं। पदक विजेताओं का लिंग अनुपात 43:57 रहा, जबकि दो दशक पहले यह 36:64 था। लड़कियों की संख्या 100 में 36 थी, जो बढ़कर 43 हो गई। यह बदलते भारत की कहानी है।

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राहुल और मोदी की यात्राएं

राहुल गांधी को भले ही उनकी पार्टी ने प्रधानमंत्री पद का संभावित चेहरा नहीं बनाया है, पर उनके नेतृत्व में भारत-जोड़ो यात्रा की तर्ज पर एक और यात्रा निकालने की घोषणा की है। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी ने और कुछ लिया हो या न लिया होयात्रा शब्द को अपना लिया है। चुनाव के साल में दोनों यात्राएं चलेंगी। राहुल गांधी 14 जनवरी से मणिपुर के इंफाल शहर से चलकर इस भारत न्याय-यात्रा का समापन 20 मार्च को मुंबई में होगा। यह कांग्रेस की यात्रा है,इंडियागठबंधन की नहीं। यह पैदल नहीं होगी। राहुल बस में चलेंगे और कहीं-कहीं पैदल भी चलेंगे। इस यात्राके समांतर मोदी की गारंटी-यात्रा चल रही है। यह सरकार का कार्यक्रम है। इसका नाम है विकसित भारत संकल्प यात्रा।नरेंद्र मोदी ने 27 दिसंबर को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए लाभार्थियों से बातचीत की। उन्होंने कहा, ‘मोदी की गारंटी’ वाली गाड़ी जहाँ भी जा रही है लोगों की उम्मीदें पूरी कर रही है।

हिंदी ट्रिब्यून में 7 जनवरी, 2024 को प्रकाशित

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हिंदी ट्रिब्यून में 7 जनवरी, 2024 को प्रकाशित

 

1 comment:

  1. बाकी सब ठीक है सटीक विश्लेषण है सिर्फ मुकाबले में शंशय है| विपक्ष अगर वोकोवर दे दे तो बहुत अच्छा होगा | चुनाव खर्च देश की उन्नति के लिए काम में लाया जा सकता है |

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