ग्लोबल टाइम्स में कार्टून |
भारत-कनाडा रिश्तों में बढ़ती तपिश अब भारत और अमेरिका के रिश्तों पर भी पड़ेगी। भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर इस समय अमेरिका में हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना बैठक में परोक्ष रूप से कनाडा और पश्चिमी देशों के पाखंड का उल्लेख करते हुए कहा है कि हर बात की एक पृष्ठभूमि भी होती है। उसे भी समझें। वस्तुतः पश्चिमी देश हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के आरोपों का जिक्र तो कर रहे हैं, पर इन देशों में चल रही भारत-विरोधी गतिविधियों का उल्लेख नहीं कर रहे हैं।
आज जयशंकर की मुलाकात अमेरिका के विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन
से होगी। जयशंकर ने कहा है कि हमारी नीति इस किस्म की हत्याएं कराने की नहीं है।
हमारे सामने ठोस तथ्य रखे जाएंगे, तभी हम कुछ कह पाएंगे। उधर अमेरिकी प्रवक्ता ने कहा है कि हमने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। बहरहाल लगता यह है कि अमेरिका अपनी चीन-विरोधी
रणनीति में भारत का इस्तेमाल करना चाहता है, पर इस मामले में अमेरिकी इंटेलिजेंस
ने ही कनाडा को कुछ जानकारियाँ दी हैं। सवाल है कि क्या अमेरिका ‘डबल गेम’ खेल रहा है? यह कहा जा रहा है कि
जी-20 की बैठक के दौरान अमेरिका ने भी नरेंद्र मोदी के सामने निज्जर का मामला
उठाया था।
दूसरी तरफ इन दिनों चीनी मीडिया
लगातार अमेरिकी पाखंड का उल्लेख कर रहा है। चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने चार
रिपोर्टें (एक, दो, तीन और चार) इस आशय की जारी की हैं, जिनमें भारत-कनाडा
प्रकरण के बहाने अमेरिका के पाखंड का जिक्र किया गया है।
भारत और कनाडा के अपेक्षाकृत कमतर आर्थिक
रिश्तों को देखते हुए शुरुआत में लगा कि इस राजनयिक-गतिरोध प्रभाव सीमित रहेगा, लेकिन
अब अमेरिका और ब्रिटेन से आ रही खबरें बताती हैं कि इस विवाद का एक व्यापक
प्रतिमान है, जिसके भारत के उभरते भू-राजनीतिक हितों
को लेकर अनचाहे परिणाम हो सकते हैं। रविवार को द न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट
में कहा कि ट्रूडो ने निज्जर की हत्या में भारत की भूमिका को लेकर दावा करते हुए
जो ‘ठोस आरोप’ लगाए हैं अमेरिका ने उस मामले में खुफिया जानकारी मुहैया कराई थी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कनाडा के
अधिकारियों ने भारतीय राजनयिकों के संवाद को सुना था जिसमें इस कांड में भारत की
भूमिका के ठोस प्रमाण मिले थे। इस बीच द फाइनेंशियल टाइम्स ने खबर दी कि अमेरिका
के राष्ट्रपति जो बाइडन और खुफिया जानकारी साझा करने वाले फाइव आईज़ नेटवर्क
(अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा,
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड) के सदस्यों ने इस माह के आरंभ में दिल्ली
में जी-20 देशों के नेताओं की बैठक में यह मामला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उठाया था।
इस खुफिया जानकारी को साझा करने के लिए उन दो
प्रभावशाली पश्चिमी मीडिया संस्थानों का चयन किया गया जो मोदी सरकार की आलोचना
करते रहे हैं। इसे भी ह्वाइट हाउस की आलोचना के रूप में देखा जा सकता है। दोनों
रिपोर्टें उसी समय सामने आईं जब भारत ने खालिस्तानी आंदोलन को कनाडा द्वारा
प्रोत्साहन दिए जाने पर आक्रामक रुख अपनाया। हालांकि ऐसा इस वजह से नहीं हुआ कि
ट्रूडो के दल और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच गठबंधन है, जिसके सिख नेता ने
खुलकर कनाडा की धरती पर ‘खालिस्तानी जनमत संग्रह’ की वकालत की थी। इसके लिए सरकार
ने 10 सितंबर को मंजूरी वापस ले ली थी।
अमेरिका ने बाहरी तौर पर निष्पक्ष रुख अपनाया, लेकिन
उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलीवन और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के हाल
के बयानों से अमेरिका का रुख ज्यादा साफ होता है। सुलीवन ने इस बात की पुष्टि की
कि बाइडन प्रशासन इस मुद्दे पर कनाडा और भारत दोनों सरकारों के साथ संपर्क में है।
उन्होंने रॉयटर्स से स्पष्ट कहा कि वह उन खबरों से सहमत नहीं हैं जिनमें कहा जा
रहा है कि ‘इस मसले पर अमेरिका और कनाडा में दूरी है।’
ब्लिंकन ने भारत सरकार से कहा है कि वह कनाडा
की जांच के साथ सहयोग करे। यह भारत के राजनयिकों के लिए अच्छी सलाह हैं. क्योंकि
इससे भारत के उस दावे की विश्वसनीयता बढ़ेगी कि कनाडा के आरोप बेतुके हैं। जयशंकर
ने कहा भी है कि हम किसी भी तथ्य की जाँच के लिए तैयार हैं, पर हमें तथ्य तो दिए
जाएं।
इस विवाद से यह संकेत भी मिलता है कि अगर भारत
और कनाडा के बीच तनाव बढ़ा तो अमेरिका की कूटनीतिक प्राथमिकताएं क्या होंगी।
हालांकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार बनकर उभरा है, लेकिन तथ्य यह
है कि कनाडा अमेरिका का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा
समझौते की बदौलत उनके पारंपरिक रिश्ते रहे हैं। कनाडा को लेकर भारत की नाराजगी
उचित हो सकती है, लेकिन भारत को घरेलू और विदेश नीति संबंधी लक्ष्यों में संतुलन
कायम करना पड़ सकता है, जिसकी तरफ उसका ध्यान शायद नहीं गया है।
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