तकरीबन एक महीने की खामोशी के बाद इस हफ्ते राष्ट्रीय राजनीति में फिर से हलचल शुरू हो रही है। 20 जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू होगा, जो 11 अगस्त तक चलेगा। इस सत्र में सरकार की ओर से 32 अहम बिल संसद में पेश किए जाएंगे। इस दौरान विरोधी दल सरकार को मणिपुर की हिंसा, यूसीसी और केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर घेरने का प्रयास करेंगे। इस दौरान सदन के भीतर और बाहर दोनों जगह विरोधी एकता की परीक्षा भी होगी। सवाल यह भी है कि संसद का सत्र ठीक से चल भी पाएगा या नहीं।
राजनीतिक दृष्टि से 2024 के लोकसभा चुनाव की
तैयारी में सत्तापक्ष
और विपक्ष दोनों ने अपने गठबंधनों को मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है। इस
दृष्टि से सत्र शुरू होने के ठीक पहले 17 और 18 को बेंगलुरु में हो रही
विरोधी-एकता बैठक भी महत्वपूर्ण होगी। इस बैठक में केवल चुनावी रणनीति ही नहीं
बनेगी, बल्कि संसद के सत्र में विभिन्न मसलों को लेकर समन्वय पर भी विचार होगा। इस
बैठक में शामिल होने के लिए 24 दलों को निमंत्रित किया गया है। इस बैठक को
कांग्रेस पार्टी कितना महत्व दे रही है, इस बात का पता इससे भी लगता है कि उसमें सोनिया
गांधी भी शामिल होंगी। पटना में 23 जून की बैठक के बाद तय हुआ था कि 10 से 12 जुलाई के बीच शिमला में विपक्षी दलों
की दूसरी मीटिंग होगी, जिसमें भविष्य की रणनीति पर चर्चा की जाएगी। इस बैठक की
ज़िम्मेदारी कांग्रेस पार्टी पर सौंपी गई थी। कांग्रेस ने शिमला की जगह बेंगलुरु
में बैठक बुलाई है।
इस दौरान महाराष्ट्र में एनसीपी के विभाजन, बंगाल
के स्थानीय चुनावों में हुई हिंसा, पंजाब में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ओपी सोनी की
गिरफ्तारी और बिहार में राजद के नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने
से विरोधी-एकता को धक्का भी लगा है, पर इन पार्टियों ने अपने प्रयासों को जारी
रखने, बल्कि उसे विस्तार देने का फैसला किया है। पटना में जहाँ 16 पार्टियों को
बुलाया गया था (शामिल 15 ही हुई थीं) वहीं बेंगलुरु में 24 दलों को आमंत्रित किया
गया है।
इस बैठक में ऐसे दलों को ही न्यौता दिया गया है जो प्रत्यक्ष रूप से भाजपा की राजनीतिक शैली और विचारधारा के खिलाफ मैदान में खड़े होते हैं। एमडीएमके, फॉरवर्ड ब्लॉक,आरएसपी और आईयूएमएल समेत आठ ऐसे दलों को बेंगलुरु बैठक में निमंत्रण दिया गया है, जिन्हें पटना में विपक्षी एकता की पहली बैठक में नहीं बुलाया गया था।
रालोद नेता जयंत चौधरी 23 की बैठक में निजी
वजहों से शरीक नहीं हुए थे, पर उन्होंने एकता की पहल के समर्थन में पत्र जारी किया
था। तमिलनाडु से एमडीएमके, केडीएमके, वीसीके
के साथ वामपंथी दलों के घटक आरएसपी व फॉरवर्ड ब्लॉक को न्यौता भेजा गया है। केरल
में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ में शामिल आईयूएमएल, केरल
कांग्रेस (जोसफ) और केरल कांग्रेस (मणि) को भी इस बैठक में बुलाया गया है।
आम आदमी पार्टी को भी इसमें बुलाया गया है, पर
दिल्ली से जुड़े अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस के अस्पष्ट रुख की वजह से दोनों खींचतान चलने के बाद यह तय हो गया कि वह बेंगलुरु की बैठक में शामिल होगी। कांग्रेस
ने शनिवार को कहा कि हम संसद में कम से कम तीन विधेयकों का विरोध करेंगे। इसमें
केंद्र-राज्य संबंधों का जिक्र भी किया गया है। रविवार को साफ-साफ कहा कि हम
विधेयक का समर्थन नहीं करेंगे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने शनिवार
को संकेत दिए कि कांग्रेस केजरीवाल सरकार के साथ है। इससे पहले जयराम सोनिया गांधी
के आवास पर आयोजित कांग्रेस संसदीय रणनीति समूह की बैठक में शामिल हुए थे। बैठक
में आगामी संसद के मानसून सत्र में उठाए जाने वाले मुद्दों पर चर्चा हुई। रमेश ने
बैठक के बाद बताया कि केंद्र सरकार द्वारा राज्यपालों के माध्यम से संघीय ढांचे पर
किए जा रहे हमले को हम संसद में उठाएंगे।
रमेश ने कहा कि हमारे पास पांच-छह बड़े मुद्दे
हैं। इन्हीं मुद्दों पर हम निश्चित रूप से संसद के दोनों सदनों में बहस करेंगे।
केंद्र द्वारा नियुक्त लोग संघीय ढांचे पर हमले कर रहे हैं। कांग्रेस इसके खिलाफ
हमेशा लड़ती रही है। चाहे संसद हो या संसद के बाहर कांग्रेस हमेशा इन मुद्दों को
उठाती है। बैठक से पहले कांग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से केजरीवाल के समर्थन की
घोषणा की है।
बहरहाल अब विरोधी-एकता के सामने दो सबसे बड़े काम हैं। एक है इस गठबंधन का नाम और दूसरे
सीटों का बँटवारा। आम आदमी पार्टी यदि विपक्षी-एकता के प्रयासों से खुद को अलग
करेगी, तो वह इसका नुक़सान कांग्रेस को दिल्ली, पंजाब,
मध्य प्रदेश, राजस्थान और गोवा में पहुँचा सकती है। कांग्रेस
को उसके साथ खड़ा होने के लिए दिल्ली और पंजाब में कई सीटों पर समझौता करना पड़
सकता है। इसके अलावा वह गुजरात में भी कोई कीमत माँग सकती है।
पंजाब में ओपी सोनी की गिरफ्तारी से आम आदमी
पार्टी और कांग्रेस के बीच बदमज़गी बढ़ी है, पर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने इस
गिरफ्तारी को बहुत तूल नहीं दिया है। इसी तरह पार्टी के सीनियर नेताओं ने बंगाल के
चुनावों के दौरान हुई हिंसा को लेकर कोई कड़ी वक्तव्य जारी नहीं किया है। उनकी
कोशिश है कि विरोधी-एकता के रास्ते में कोई रुकावट पैदा नहीं हो।
इस पृष्ठभूमि को देखते हुए सबसे ज्यादा नज़रें
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर होंगी। बंगाल में स्थानीय निकाय
चुनावों के बाद विरोधी-एकता को लेकर उन्होंने कोई ऐसी बात नहीं कही है, जिससे कोई
निष्कर्ष निकाला जा सके। इस बैठक में उनके विचार स्पष्ट होंगे। यहाँ उनकी भेंट
सोनिया गांधी से भी होगी। पहले दिन 17 जुलाई को रात्रि भोज पर 2024 की चुनावी
रणनीति पर बातें होंगी।
सोनिया गांधी की इस भोज में ही तमाम नेताओं से
मुलाकात होगी। सोनिया गांधी अपने स्वास्थ्य की वजह से सक्रिय नहीं है, पर वे पहली
बार किसी कार्यक्रम में शामिल हो रही हैं। 18 को विरोधी दलों के नेता अगले साझा
रणनीति पर बात करेंगे। महाराष्ट्र में एनसीपी में हुए विभाजन के बाद शरद पवार पर
सबकी नजरें रहेंगी। उनका वक्तव्य भी महत्वपूर्ण होगा।
इस बैठक के समांतर भारतीय जनता पार्टी ने भी राष्ट्रीय
लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। 18 जुलाई को
पार्टी ने अपने पुराने और नए गठबंधन सहयोगियों को दिल्ली
में एक बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। बीजेपी के सूत्रों का
कहना है कि 19 दलों ने इसमें शामिल होने पर अपनी सहमति दे दी है। इन पार्टियों में
जीतन राम माझी का हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, अजित पवार की एनसीपी, एकनाथ शिंदे की
शिवसेना और चिराग पासवान की लोजपा भी होगी।
इनके अलावा उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक
समता पार्टी, संजय निषाद की निषाद पार्टी, अनुप्रिया पटेल का अपना दल, हरियाणा की
जेजेपी, आंध्र से पवन कल्याण की जनसेना, तमिलनाडु से अद्रमुक, तमिल मानीला
कांग्रेस, इंदिया मक्काल कालवी मुन्नेत्र कषगम, झारखंड की ऑल झारखंड स्टूडेंट
यूनियन, मेघालय से कोनराड संगमा की एनसीपी, नगालैंड से एनडीपीपी, सिक्किम से
एसकेएफ, ज़ोरमथंगा का मिज़ो नेशनल फ्रंट और असम गण परिषद भी होंगे।
हालांकि इस बैठक में संसद सत्र के दौरान समन्वय
की बातें भी होंगी, पर असली बातें 2024 के लोकसभा चुनाव से जुड़ी हैं। इस बैठक में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी होंगे। इससे इस बैठक की अहमियत को भी समझा जा सकता
है। विरोधी एकता के प्रयासों से भारतीय जनता पार्टी की चिंता बढ़ना भी स्वाभाविक
है। सवाल दो हैं। एक, क्या विरोधी दलों के बीच में एकता संभव होगी? एकता स्थापित हुई तो बीजेपी की जवाबी रणनीति क्या होगी? इन दोनों सवालों के कुछ जवाब इस हफ्ते मिलेंगे।
कोलकाता के
दैनिक वर्तमान में प्रकाशित
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