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Tuesday, June 6, 2023

भारत-जर्मनी के बीच एआईपी युक्त छह पनडुब्बियाँ बनाने का करार होगा

 


भारत दौरे पर आए जर्मनी के रक्षामंत्री  बोरिस पिस्टोरियस ने मंगलवार को भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ वार्ता की. खबरों के मुताबिक, भारत और जर्मनी के बीच छह पनडुब्बियों के निर्माण का समझौता होने जा रहा है। इस करार का मतलब है कि लंबे अर्से से रुका पड़ा प्रोजेक्ट 75(आई) अब तेजी पकड़ेगा।

राजनाथ सिंह ने जर्मनी के रक्षामंत्री  बोरिस पिस्टोरियस से व्यापक चर्चा की और द्विपक्षीय रक्षा व सामरिक संबंध मजबूत करने के तरीकों पर ध्यान दिया।  पिस्टोरियस भारत के चार दिवसीय दौरे पर हैं। मंगलवार की बैठक के बाद मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि भारत और जर्मनी, भारत में पनडुब्बी बनाने पर समझौते के करीब आ गए हैं। ये पनडुब्बियां भारतीय नौसेना के लिए बनाई जानी हैं।

राजनाथ सिंह ने एक ट्वीट में कहा कि जर्मनी के रक्षामंत्री  के साथ सार्थक बातचीत हुई। उन्होंने अपने बयान में कहा, "भारत के कुशल कार्यबल और प्रतिस्पर्धी लागत के साथ-साथ जर्मनी की उच्च तकनीक और निवेश संबंधों को और मजबूत कर सकते हैं।"

दोनों देशों की ओर अबतक इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।  बिजनेस चैनल ईटी नाउ और ब्लूमबर्ग ने सूत्रों के हवाले से यह खबर दी है।

जर्मन रक्षा-उद्योग प्रतिनिधि भी आए

इससे पहले डॉयचे वेले (जर्मन रेडियो) को दिए इंटरव्यू में पिस्टोरियस ने भारत को जर्मन पनडुब्बियां बेचने का संकेत दिया था। बातचीत में उन्होंने कहा था, "मेरे साथ जर्मनी के रक्षा उद्योग के प्रतिनिधि भी होंगे और मैं यह संकेत देना चाहूंगा कि हम इंडोनेशिया और भारत जैसे अपने भरोसेमंद सहयोगियों का सहयोग करने के लिए तैयार हैं। उदाहरण के लिए, इसमें जर्मन पनडुब्बियों की डिलीवरी भी शामिल होंगी।"

 

भारत जर्मनी से जो छह पारंपरिक पनडुब्बियां खरीदने की डील करने जा रहा है, वह सौदा करीब 5.2 अरब डॉलर (43 हजार करोड़ रुपये) का हो सकता है। इससे पहले फ्रांस की एक कंपनी इस प्रोजेक्ट से पीछे हट गई थी, जिससे जर्मनी के लिए गुंजाइश बन पाई है। जर्मन कंपनी थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम (टीकेएमएस) ने भारतीय पनडुब्बी प्रोजेक्ट के लिए दावेदारी पेश की है।

भारत हथियारों के लिए रूस पर बहुत ज्यादा निर्भर है। पश्चिमी देश भारत की इस निर्भरता को कम करने के साथ-साथ अरबों डॉलर का कारोबार करना चाहते हैं। हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत को संतुलित करने के लिए भारतीय नौसेना लंबे समय से नई और आधुनिक पनडुब्बियां हासिल करना चाहती है। फिलहाल भारतीय नौसेना के पास 16 कनवेंशनल सबमरीन हैं। इनमें से 11 बहुत पुरानी हो चुकी हैं। भारत के पास दो परमाणु चालित पनडुब्बियां भी हैं।

पिस्टोरियस ने इंटरव्यू में कहा कि भारत का रूसी हथियारों पर निर्भर रहना जर्मनी के हित में नहीं है। उन्होंने कहा, "हम नहीं चाहते कि भारत लंबे समय तक रूस पर हथियारों और दूसरी चीजों के लिए इतना निर्भर रहे।" उन्होंने आगे कहा, "मैं एक संकेत देना चाहता हूं कि हम अपने भागीदारों को समर्थन देने के लिए तैयार हैं. उदाहरण के तौर पर हम भारत को पनडुब्बी बेच सकते हैं।"

भारत में बनेंगी पनडुब्बियां

फरवरी 2023 की शुरुआत में जर्मन सरकार ने भारत के लिए आर्म्स एक्सपोर्ट पॉलिसी को लचीला किया। इस बदलाव के तहत भारत को जर्मन हथियारों की आपूर्ति आराम से की जा सकेगी। पनडुब्बी पर समझौता हुआ तो उसके तहत विदेशी पनडुब्बी निर्माता कंपनी को एक भारतीय कंपनी के साथ पार्टनरशिप कर भारत में ही ये पनडुब्बियां बनानी होंगी।

पिस्टोरियस 7 जून को मुंबई जाएंगे, जहां वे पश्चिमी नौसेना कमान के मुख्यालय और मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड का दौरा करेंगे, जहाँ इन पनडुब्बियों को बनाने का विचार है।

इंडोनेशिया से भारत आने से पहले पिस्टोरियस ने जर्मनी के सरकारी प्रसारणकर्ता डॉयचे वेले से कहा था कि भारत की लगातार रूसी हथियारों पर निर्भरता जर्मनी के हित में नहीं है। रूसी हथियारों पर भारत की निर्भरता के संबंध में एक सवाल पर पिस्टोरियस ने कहा, ‘इसे बदलना जर्मनी के हाथ में नहीं है।’उन्होंने कहा, ‘यह ऐसा मुद्दा है जिसे हमें अन्य साझेदारों के साथ संयुक्त रूप से हल करना है। लेकिन निश्चित रूप से भारत हथियारों या अन्य सामग्री की आपूर्ति के लिए रूस पर इतना निर्भर रहे, दीर्घकाल में इसमें हमारा कोई हित नहीं हो सकता।’ उन्होंने कहा, ‘मैं एक संकेत देना चाहता हूं कि हम अपने भागीदारों इंडोनेशिया, भारत जैसे विश्वसनीय भागीदारों का सहयोग करने को तैयार हैं।’

दो साल पहले थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स ने भारत में साझेदारी में पनडुब्बियों को बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। लेकिन, रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन की रूस से नजदीकी और उसकी बढ़ती राजनयिक भूमिका को देखते हुए पश्चिमी देश भारत के साथ रिश्ते सुधार रहे हैं। कुछ समय पहले भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया में कहा था कि पश्चिमी देशों की बेरुखी ने ही हमें रूस की ओर धकेला था।

भारत ने इस कार्यक्रम के लिए माझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स और लार्सन एंड टूर्बों को चुना है। जर्मनी की ओर से थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स के साथ मिलकर डीजल अटैक वाली पनडुब्बियों का निर्माण किया जाएगा। इन पनडुब्बियों में एयर इंडिपेंडेट प्रोपल्शन यानी एआईपी लगा होगा, जिसके कारण इनकी पानी के नीचे रहने की क्षमता बढ़ जाएगी। थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स की ओर से बनाई गई पनडुब्बियों का इस्तेमाल पहले भी भारतीय नौसेना करती आई है। भारत को दक्षिण कोरिया की देवू और स्पेन की नवांतिया ग्रुप की तुलना में थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स को चुनना ज्यादा बेहतर लगा। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स चाहते हैं कि जर्मन और यूरोपियन डिफेंस कंपनियां भारत को आधुनिक मिलिट्री उपकरण मुहैया कराने के अपने प्रयासों को तेज करने की जरूरत है। जर्मन चांसलर यह भी चाहते हैं कि भारत रूस पर रक्षा के क्षेत्र में अपनी निर्भरता को कम करे।

पनडुब्बियों की जरूरत

भारत को अपने पुराने बेड़े के कारण इस समय पनडुब्बियों की खास जरूरत है। भारत के द्वीपों पर पहरा बढ़ाने के लिए भारतीय नौसेना को कम से कम 24 सबमरीन की आवश्यकता है। लेकिन, मौजूदा समय में भारत के पास सिर्फ 16 सबमरीन है। इस बेड़े में स्कोर्पिन श्रेणी की छह पनडुब्बियों को छोड़ दें तो शेष की उम्र 30 साल से ऊपर है। आने वाले समय में इनमें से ज्यादातर सेवामुक्त होती जाएंगी। हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के देखते हुए भारत की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं। 

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