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Tuesday, May 23, 2023

विरोधी-एकता की पहली परीक्षा: दिल्ली-अध्यादेश को कानून बनने से क्या रोक पाएंगे विरोधी दल?


कर्नाटक में बीजेपी को परास्त करने के बाद कांग्रेस पार्टी और दूसरे विरोधी दल भविष्य की रणनीति बना रहे हैं। इस सिलसिले में मुलाकातों का सिलसिला चल रहा है। कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि शीघ्र ही बड़ी संख्या में गैर-बीजेपी दल इस विषय पर विमर्श के लिए एकसाथ मिलकर बैठेंगे। यह बात सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद कही गई।

कांग्रेस ने इस बात का संकेत भी किया है कि दिल्ली के प्रशासनिक नियंत्रण के लिए लाए गए अध्यादेश के स्थान पर जब संसद में विधेयक पेश होगा, तब पार्टी की दृष्टिकोण क्या होगा, इस विषय पर भी विरोधी दलों के नेताओं से बातचीत की जाएगी। अलबत्ता उसकी तरफ से यह भी कहा गया कि पार्टी ने अभी तक इस विषय पर कोई फैसला नहीं किया है। पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोमवार को इस आशय का ट्वीट किया। साथ ही बैठक के बाद उन्होंने संवाददाताओं को बताया कि इस सिलसिले में विरोधी दलों के नेताओं की बैठक के स्थान और तारीख की घोषणा एक-दो दिन में कर दी जाएगी।

नीतीश कुमार चाहते हैं कि यह बैठक पटना में हो, पर कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि दूसरे सभी नेताओं की सुविधा को देखते हुए फैसला किया जाएगा। कुछ नेता विदेश-यात्रा पर जाने वाले हैं। मसलन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन सिंगापुर और जापान की नौ दिन की यात्रा पर जा रहे हैं। सोनिया गांधी भी विदेश जा रही हैं। स्टैनफर्ड विवि के एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए राहुल गांधी भी 28 मई को अमेरिका जा रहे हैं।

नीतीश कुमार ने कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात करने के एक दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी। उन्होंने अध्यादेश प्रकरण पर केजरीवाल का समर्थन किया था। नीतीश कुमार ने इस बात पर जोर दिया था कि सभी दलों को एकसाथ मिलकर संविधान के बदलने की केंद्र सरकार की कोशिश का विरोध करना चाहिए। नीतीश के साथ जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह भी थे। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस बैठक में शामिल नहीं हो पाए, क्योंकि वे अस्वस्थ थे।

पिछले महीने खरगे और राहुल से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार ने ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, हेमंत सोरेन, सीताराम येचुरी और डी राजा से भी बात की थी।

एकता का प्रदर्शन

गत रविवार को बेंगलुरु में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में विरोधी दलों के तमाम नेता एक मंच पर आए थे, पर उस समारोह में अरविंद केजरीवाल और के चंद्रशेखर राव को आमंत्रित नहीं किया गया था। दूसरी तरफ नीतीश कुमार सभी को शामिल करना चाहते हैं। दिल्ली सरकार के प्रशासनिक-नियंत्रण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और उसके बाद केंद्र सरकार के अध्यादेश के बाद विरोधी-एकता की स्थितियाँ बनी हैं।

अध्यादेश के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) में अधिकारियों के तबादलों तथा नियुक्तियों का फैसला करने के लिए एक नए कानूनी निकाय का गठन किया गया है। अब दो अधिकारियों को चुने हुए मुख्यमंत्री के ऊपर फैसलों को वीटो करने की शक्ति मिल गई है। केजरीवाल की कोशिश है कि अब जब संसद में अध्यादेश विधेयक के रूप में पेश हो, तब राज्यसभा में उसे पास होने से रोक लिया जाए। सवाल है कि क्या संख्याओं का गणित इसकी अनुमति देगा?

लोकसभा में एनडीए के पास स्पष्ट बहुमत है लिहाजा विपक्ष की कोशिश नाकाम हो जाएगी। राज्यसभा में एनडीए के पास संख्या बल तो है लेकिन किसी बिल को पारित कराने के लिए कुछ और दलों की जरूरत पड़ती है। लिहाजा दिल्ली के सीएम को लगता है कि अगर गैर बीजेपी घटक दल एक साथ आए तो नरेंद्र मोदी सरकार को परास्त किया जा सकता है। कांग्रेस के भीतर आम आदमी पार्टी को लेकर संशय है। अजय माकन जैसे स्थानीय नेता आप के एकदम खिलाफ हैं। 

राज्यसभा में सदस्यों की संख्या 250 है, जिसमें 238 का चुनाव होता है और 12 को राष्ट्रपति केंद्र की सलाह पर नामित करते हैं। जम्मू कश्मीर से चार, बंगाल से एक और दो मनोनीत सदस्यों की सीट खाली है। इन्हें इसे भरा भी जा सकता है। इस प्रकार मनोनीत सदस्यों को मिलाकर सदन की प्रभावी संख्या 243 है। संख्या के आधार पर बहुमत का आंकड़ा 122 का होता है। एनडीए के सदस्यों की संख्या 110 है। इनमें बीजेपी के अपने 93 सदस्य हैं। इसके अलावा अद्रमुक के चार सांसद उसके साथ हैं। बाकी दल जो उसके साथ हैं उनके एक-एक सांसद ही राज्यसभा में हैं। सरकार को बीजद के नौ और वाईएसआर कांग्रेस के नौ यानी 18 सदस्यों का समर्थन मिला, तो विधेयक को पास कराने में आसानी होगी। इन सबके अलावा अनुपस्थिति, क्रॉस वोटिंग की संभावनाएं अलग हैं।

जेडीयू और राजद के 11, आप, तृणमूल, शिवसेना (उद्धव) और एनसीपी के कुल मिलाकर 29 सांसद हैं, सीपीएम के पाँच और सीपीआई के दो सदस्य हैं। इनका जोड़ हुआ 37। आप को डीएमके के 10, बीआरएस के सात, सपा के तीन, झामुमो के दो, रालोद के एक सदस्य का भी समर्थन मिलने की उम्मीद है। इस प्रकार 60 सदस्य हो गए। पार्टी को पता है कि कांग्रेस के समर्थन के बिना कुछ भी संभव नहीं है, जिसके पास 31 राज्यसभा सदस्य हैं। कांग्रेस के साथ पार्टी के रिश्ते को देखते हुए, यह समर्थन आसान नहीं है। पर समर्थन मिल भी गया, तो कुल 91 सदस्यों की सहायता से भी राज्यसभा में विधेयक को रोकना संभव नहीं होगा। 

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