एससीओ विदेशमंत्रियों के सम्मेलन के हाशिए पर भारत-पाकिस्तान मसलों के उछलने की वजह से एससीओ की गतिविधियाँ पृष्ठभूमि में चली गईं. रूस-चीन प्रवर्तित इस संगठन का विस्तार यूरेशिया से निकल कर एशिया के दूसरे क्षेत्रों तक हो रहा है. जब दुनिया में महाशक्तियों का टकराव बढ़ रहा है, तब इस संगठन की दशा-दिशा पर निगाहें बनाए रखने की जरूरत है. खासतौर से इसलिए कि इसमें भारत की भी भूमिका है.
इस साल भारत में हो रहे जी-20 और एससीओ के
कार्यक्रमों में वैश्विक-राजनीति के अंतर्विरोध उभर रहे हैं और उभरेंगे. ज़ाहिर है
कि भारत दो ध्रुवों के बीच अपनी जगह बना रहा है. एससीओ पर चीन और रूस का वर्चस्व
है. यहाँ तक कि संगठन का सारा कामकाज रूसी और चीनी भाषा में होता है. जी-20 संगठन
नहीं एक ग्रुप है, पर उसकी भूमिका बहुत ज्यादा है.
रूस और चीन मिलकर नई विश्व-व्यवस्था बनाना
चाहते हैं. यूक्रेन-युद्ध के बाद से यह प्रक्रिया तेज हुई है. इसमें एससीओ और ब्रिक्स की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. एससीओ
के अलावा भारत, रूस और चीन ब्रिक्स के सदस्य भी हैं. ब्राजील हालांकि बीआरआई में
शामिल नहीं है, पर वहाँ हाल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद उसका झुकाव चीन की ओर
बढ़ा है.
भारत की दिलचस्पी
रूस और चीन के बीच भी प्रतिस्पर्धा है. रूस के
आग्रह पर ही भारत इसका सदस्य बना है. चीन के साथ भारत दूरगामी संतुलन बैठाता है.
सवाल है कि भारत इस संगठन में अलग-थलग तो नहीं पड़ेगा? हमारी दिलचस्पी रूस से लगे मध्य एशिया
के देशों के साथ कारोबारी और सांस्कृतिक संपर्क बनाने में है.
भारत क्वाड का सदस्य भी है, जो रूस और चीन दोनों को नापसंद है. अमेरिका, जापान और यूरोप के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं. इन बातों में टकराव है, जिससे भारत बचता है. फिलहाल संधिकाल है और आर्थिक-शक्ति हमारे महत्व को स्थापित करेगी.
भारत-पाकिस्तान
गोवा में भारत-पाकिस्तान रिश्तों में हुई हलचल
की भी अनदेखी नहीं की जा सकती है. इसलिए इस सम्मेलन को दो तरह से देखना होगा. एक,
भारत-पाकिस्तान रिश्तों की निगाह से और दूसरे वैश्विक राजनीति में एससीओ की भूमिका
के नज़रिए से.
एससीओ में द्विपक्षीय मसलों को उठाने की
व्यवस्था नहीं है. पर दक्षिण एशिया की राजनीति के लिहाज से यह महत्वपूर्ण मौका था.
पाकिस्तान का कोई विदेशमंत्री 12 साल भारत आया था. प्रत्यक्षतः इस यात्रा ने कुछ
दिया नहीं.
सम्मेलन के मंच से दोनों देशों के
विदेशमंत्रियों ने जो कुछ कहा, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण थे बिलावल भुट्टो ज़रदारी
के भारतीय मीडिया को दिए गए इंटरव्यू और गोवा में दोनों विदेशमंत्रियों के संवाददाता
सम्मेलन. बातें आमने-सामने नहीं हुईं, पर हाशिए पर जवाबी-सम्मेलन हुए.
भारत आने से पहले और वापसी के बाद भी बिलावल ने
कहा कि मैं तो एससीओ के सम्मेलन में आया था, द्विपक्षीय बातों के लिए नहीं. पर
उन्होंने मीडिया को संबोधित करते हुए ज्यादातर बातें भारत-पाक रिश्तों को लेकर ही
कहीं. उन्होंने 370, जी-20 से लेकर बीबीसी
की फिल्म तक के बारे में अपने विचार व्यक्त किए.
दोनों तरफ के ताले
इतना ही नहीं उन्होंने पाकिस्तानी प्रतिष्ठान
के इस निश्चय को दोहराकर अपनी डिप्लोमेसी पर ताला जड़ दिया कि जबतक भारत 370 वाले
फैसले को वापस नहीं लेगा, तबतक बात नहीं होगी. जवाबी ताला भारतीय विदेशमंत्री एस
जयशंकर ने यह कहकर जड़ा कि आतंकवाद के जनक और पीड़ित साथ बैठकर बातें कैसे कर सकते
हैं?
इन कठोर प्रतिज्ञाओं के बावजूद सम्मेलन का
माहौल कड़वा नहीं हुआ और लगता है कि दोनों ने अपने-अपने रुख को साफ करने के बाद,
बात को जहाँ का तहाँ छोड़ दिया.
भारत-पाकिस्तान रिश्तों के ठंडे-गर्म मिजाज का
पता इस सम्मेलन के दौरान बोली गई कुछ बातों से लगाया जा सकता है. मसलन श्रीनगर में
होने वाली जी-20 की बैठक के सिलसिले में बिलावल भुट्टो ने कहा, ‘दुनिया के किसी ईवेंट का श्रीनगर में आयोजन भारत की अकड़ (एरोगैंस) को
दिखाता है. वक्त आने पर हम ऐसा जवाब देंगे कि उनको याद रहेगा.’
आतंकी इंडस्ट्री
जयशंकर ने पाकिस्तान को आतंकी इंडस्ट्री का
प्रवक्ता बताया. इन दो बयानों को अलग रख दें, तो बिलावल भुट्टो ने जयशंकर की तारीफ
भी की. जयशंकर ने उनका ‘नमस्कार’ से स्वागत किया, जिसपर बिलावल ने कहा,
हमारे यहां सिंध में इसी तरह से सलाम किया जाता है. जयशंकर ने किसी भी
मौके पर मुझे ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि हमारे द्विपक्षीय संबंधों का इस बैठक पर
कोई असर है.
कयास थे कि विदेशमंत्री हाथ मिलाएंगे या नहीं,
एक-दूसरे से बातें करेंगे या नहीं वगैरह. इस कार्यक्रम के महत्व को इस बात से समझा
जा सकता है कि इसकी कवरेज के लिए पाकिस्तान से पत्रकारों की एक टीम भी आई थी, जबकि
इस सम्मेलन में द्विपक्षीय सरोकारों पर कोई बात नहीं होने वाली थी.
कड़वाहट नहीं
भारत और पाकिस्तान के रिश्ते क्या कभी बेहतर हो
सकते हैं या नहीं हो सकते, इस विषय पर अलग से और विस्तार से बातें होनी चाहिए. अलबत्ता
इस सम्मेलन में उस किस्म की आतिशबाजी नहीं हुई, जिसकी
उम्मीद काफी लोगों को थी.
ज़ाहिर है कि ज़रदारी साहब का एससीओ में आए प्रतिनिधि
में रूप में एक तरीके से और पाकिस्तान के विदेशमंत्री के रूप में दूसरे तरीके से
ख़ैरमख़्दम किया गया. पर जो भी हुआ, उसमें कड़वाहट नहीं थी.
कुछ इसी किस्म की बातें भारत-चीन के रिश्तों के
सिलसिले में हुईं, जब विदेशमंत्री छिन गैंग से बातचीत के बाद जारी चीनी बयान में
कहा गया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थिति ‘स्थिर’ है. यानी मसले नहीं हैं. इसपर जयशंकर ने अपने संवाददाता
सम्मेलन में कहा कि रिश्ते सामान्य नहीं हैं और जबतक अशांति रहेगी, तबतक सामान्य
नहीं होंगे. कम शब्दों में काफी ज्यादा बात कह दी गई.
राजनीतिक दबाव
पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति इस वक्त बेहद
पेचीदा दौर में है. अखबार ‘डॉन’ के अनुसार गोवा से कराची वापस आने के
बाद बिलावल ने कहा कि मेरी यात्रा सफल रही. मैं बीजेपी के इस ‘झूठे-प्रचार’ का
जवाब देकर आया हूँ कि हरेक मुसलमान आतंकवादी है.
वस्तुतः यह राजनीतिक बयान है. उन्होंने यहाँ
भारत का नाम लेने के बजाय तोहमत बीजेपी पर डाल दी, जबकि दोनों देशों के रिश्तों
में कड़वाहट 1947 से चली आ रही है. पाकिस्तान में बिलावल के राजनीतिक विरोधी उनके ‘नमस्कार’ को ‘शर्मनाक’ बता रहे हैं. वे
चाहते ही नहीं थे कि वे भारत-यात्रा पर आते. बहरहाल
पर्यवेक्षक कयास लगाते रहेंगे कि ये सब बातें दोनों देशों के रिश्ते सुधरने या
बिगड़ने की निशानी हैं या क्या है.
भरोसे का अभाव
मीडिया से बातचीत के दौरान जयशंकर ने कहा कि
बिलावल के साथ विदेशमंत्री जैसा ही व्यवहार किया गया, पर वे आतंकी इंडस्ट्री के
प्रवक्ता हैं. पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. इसके पहले बिलावल ने कहा
था कि हम भी आतंकवाद से पीड़ित हैं, हमें मिल-बैठकर बात करनी चाहिए.
इसपर जयशंकर ने कहा कि आतंक के पीड़ित और
साजिशकर्ता एक साथ बैठकर बातचीत नहीं कर सकते. पाकिस्तान की विश्वसनीयता उसके
विदेशी मुद्रा भंडार से ज्यादा तेजी से घट रही है.
बिलावल ने अगस्त, 2019 में 370 की वापसी और अब
श्रीनगर में हो रही जी-20 की बैठक को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी. इसपर जयशंकर
ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग था, है
और रहेगा. देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरह जम्मू-कश्मीर में
भी जी-20 की बैठकें हो रही हैं. तय तो यह होना है कि
कश्मीर के कुछ क्षेत्रों पर अपने अवैध कब्जे को पाकिस्तान कब छोड़ेगा.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान-चीन के तथाकथित
कॉरिडोर के बारे में एससीओ की बैठक में एक नहीं दो बार ये स्पष्ट कर दिया गया कि
कनेक्टिविटी विकास के लिए जरूरी है, लेकिन कनेक्टिविटी किसी की संप्रभुता और
क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन नहीं कर सकती. उन्होंने यह कहा कि चीन के साथ हमारे रिश्ते
सामान्य नहीं हैं.
नज़र अपनी-अपनी
आतंकवाद का मुकाबला करना एससीओ के मूल लक्ष्यों
में से एक है. सम्मेलन के मंच पर जयशंकर ने कहा कि आतंकवाद को हर तरीके से रोका
जाना बहुत जरूरी है. जिस समय वे यह बात कह रहे थे पाकिस्तान के बिलावल भुट्टो
जरदारी, चीन के छिन कांग और रूस के सर्गेई लावरोव भी
उपस्थित थे.
बैठक में बिलावल ने सामूहिक रूप से आतंकवाद के
खतरे को खत्म करने की गुजारिश की, साथ ही उन्होंने कहा, ‘राजनयिक
फायदे के लिए आतंकवाद को हथियार बनाने के चक्कर में न पड़ें.’ यह बात भारत की ओर
इशारा करती है. उन्होंने यह भी
कहा कि हम भी आतंकवाद के शिकार हैं. मेरी माँ की हत्या आतंकवादी हमले में ही हुई
थी.
अंग्रेजी का इस्तेमाल
एस जयशंकर के अनुसार सम्मेलन में अंग्रेजी को
एससीओ की तीसरी भाषा बनाने के अलावा नवोन्मेष, स्टार्टअप्स और पारंपरिक औषधियों पर
कार्यदल बनाने पर बातचीत हुई. विदेशमंत्रियों की इस परिषद ने दिल्ली घोषणापत्र पर
भी विचार किया, जो आगामी 3-4 जुलाई को होने वाले शिखर सम्मेलन के बाद जारी होगा.
ईरान और बेलारूस दिल्ली शिखर सम्मेलन के दौरान
पूर्णकालिक सदस्य घोषित किए जाएंगे. इस समय आठ देश इसके पूर्ण सदस्य हैं-भारत,
चीन, रूस, पाकिस्तान,
क़ज़ाक़िस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान
और उज़्बेकिस्तान. ईरान और बेलारूस के बाद पर्यवेक्षक देश अफ़ग़ानिस्तान और
मंगोलिया भी सदस्य बनेंगे. छह डायलॉग पार्टनर हैं-अजरबैजान, आर्मीनिया,
कंबोडिया, नेपाल, तुर्की,
श्रीलंका. नए डायलॉग पार्टनर हैं-सऊदी अरब, मिस्र,
क़तर, बहरीन, कुवैत,
मालदीव, यूएई और म्यांमार.
सम्मेलन के दौरान आतंकवाद, अलगाववाद, नशीली
दवाओं के कारोबार और साइबर अपराधों से मिलकर लड़ने पर विचार हुआ. इसके अलावा
परिवहन, ऊर्जा, वित्त, निवेश, मुक्त व्यापार, डिजिटल अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और
जलवायु परिवर्तन से जुड़े विषयों पर भी विचार हुआ. अफगानिस्तान की स्थिरता बहाल
करने और पुनर्निर्माण से जुड़े विषयों पर भी बातचीत हुई. इसके अलावा इस संगठन के
व्यवस्थित तरीके से विस्तार पर भी सहमति हुई.
दिल्ली घोषणापत्र
विदेशमंत्रियों के इस सम्मेलन में विभिन्न
क्षेत्रीय और वैश्विक मसलों पर विचार करने के अलावा कुछ दस्तावेजों को भी तैयार
किया गया है. इनमें 3-4 जुलाई को नई दिल्ली में होने वाले शिखर सम्मेलन का एजेंडा
और उस अवसर पर जारी होने वाले घोषणापत्र का मसौदा भी है.
एस जयशंकर ने इस बैठक में कहा कि भारत ने शिखर
सम्मेलन के लिए ‘नई दिल्ली घोषणापत्र’ तथा चार अन्य दस्तावेज़ों को तैयार किया है, उन्हें सभी
विदेशमंत्रियों का समर्थन चाहिए. ये दस्तावेज़ कट्टरता रोकने की रणनीति बनाने, श्रीअन्न
और संवहनीय जीवन-शैली को बढ़ावा देने, जलवायु परिवर्तन को रोकने और डिजिटल
रूपांतरण को बढ़ावा देने से जुड़े हैं.
No comments:
Post a Comment