पृष्ठ

Monday, May 15, 2023

कांग्रेस की परीक्षा अब शुरू होगी


कर्नाटक के चुनाव परिणामों को तीन नज़रियों से देखने की ज़रूरत है। एक, कांग्रेस की विजय, बीजेपी की पराजय और राष्ट्रीय-राजनीति पर इन दोनों बातों का असर। कांग्रेस के ज्यादातर नेता मानते हैं कि कांग्रेस की यह जीत राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा का सुपरिणाम है। कांग्रेस ने साबित किया है कि बीजेपी अपराजेय नहीं है। और यह भी कि कांग्रेस ने चुनाव में सफल होने का फॉर्मूला खोज लिया है, जो भविष्य के चुनावों में काम आएगा। खासतौर से 2024 में।

हालांकि बीजेपी की तरफ से कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे हार के कारणों पर रोशनी पड़ती हो, पर यह बात समझ में आती है हिंदुत्व के उसके फॉर्मूले की सीमा दिखाई पड़ने लगी है। जहाँ तक राष्ट्रीय राजनीति का प्रश्न है कांग्रेस की इस विजय का विरोधी-दलों की एकता पर क्या असर पड़ेगा, उसे देखने के लिए कुछ समय इंतज़ार करना होगा। कांग्रेस का यह दावा फिलहाल मजबूत हुआ है कि राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी गठबंधन का नेतृत्व राहुल गांधी के नेतृत्व में होना चाहिए। क्या इसे बड़े कद वाले क्षेत्रीय-क्षत्रप स्वीकार करेंगे? इस प्रश्न का जवाब अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ही मिलेगा।

इस जीत के बाद कांग्रेस का जैकारा सुनाई पड़ा है कि यह राहुल गांधी की जीत है। उनकी भारत-जोड़ो यात्रा की विजय है। यह बात मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर सिद्धरमैया तक ने कही है। ध्यान से देखें तो यह स्थानीय राजनीति और उसके नेतृत्व की विजय है। राज्य के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर होना महत्वपूर्ण साबित हुआ, पर कांग्रेस की जीत के पीछे राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका सीमित है। खड़गे को भी कन्नाडिगा के रूप में देखा गया। वे राज्य के वोटरों से कन्नड़ भाषा में संवाद करते हैं।

कांग्रेस ने इस चुनाव में कन्नड़-गौरव, हिंदी-विरोध नंदिनी-अमूल और उत्तर-दक्षिण भावनाओं को बढ़ाने का काम भी किया। इस बात का उत्तर भारत में विपरीत प्रभाव होगा। कांग्रेस यदि राष्ट्रीय पार्टी है, तो उसे राष्ट्रीय मुहावरों को भी समझना होगा। एमके स्टालिन ने कहा है कि बीजेपी को द्रविड़-क्षेत्र से बाहर कर दिया गया है। इस किस्म की उप-राष्ट्रीय भावनाएं कांग्रेस के साथ जुड़ेंगी, तो उत्तर और पश्चिम भारत में उसे नुकसान होगा। राहुल गांधी लंदन में भारत यूनियन ऑफ स्टेट है कहकर पहले ही विवाद खड़ा कर चुके हैं।

हिमाचल जीतने के बाद कर्नाटक में भी विजय हासिल करना कांग्रेस की उपलब्धि है। बेशक अब वह राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में ज्यादा उत्साह के साथ उतरेगी। मल्लिकार्जुन खड़गे को इस बात का श्रेय मिलेगा कि उन्होंने अपने गृहराज्य में पार्टी को जीत दिलाई। कांग्रेस के पास यह आखिरी मौका था। कर्नाटक जाता, तो बहुत कुछ चला जाता। राहुल और खड़गे के अलावा कर्नाटक में कांग्रेस के सामाजिक-फॉर्मूले की परीक्षा भी थी। यह फॉर्मूला है अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़ी जातियाँ। इसकी तैयारी सिद्धरमैया ने सन 2015 से शुरू कर दी थी, जब उन्होंने राज्य की जातीय जनगणना कराई। उसके परिणाम घोषित नहीं हुए, पर सिद्धरमैया ने पिछड़ों और दलितों को 70 फीसदी आरक्षण देने का वादा जरूर किया। आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं किया जा सकता था, पर उन्होंने कहा कि हम इसे 70 फीसदी करेंगे। ऐसा तमिलनाडु में हुआ है, पर इसके लिए संविधान के 76 वां संशोधन करके उसे नवीं अनुसूची में रखा गया, ताकि अदालत में चुनौती नहीं दी जा सके। कर्नाटक में यह तबतक संभव नहीं, जबतक केंद्र की स्वीकृति नहीं मिले।

कर्नाटक में अभी सरकार बनेगी, पर वह कितने समय तक ठीक से चलेगी, यह भी देखना होगा। राज्य में उसके अंतर्विरोधों पर भी नज़र डालनी होगी। लोकसभा चुनाव तक राज्य सरकार की छवि कैसी होगी, इसे भी देखना होगा। फिलहाल सवाल है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार में से किसी एक का चयन आसान नहीं होगा। अभी तक पार्टी अपनी एकता का प्रदर्शन करती रही है। मन लेते हैं कि नेतृत्व इस विवाद को सुलझा लेगा, पर क्या गारंटी कि प्रशासन में यह अंतर्विरोध नज़र नहीं आएगा? पिछले साल अगस्त में सिद्धरमैया के 75वें जन्मदिवस पर राहुल गांधी ने मंच पर दोनों को गले लगने का सुझाव देकर इस एकता को ही व्यक्त किया था, पर व्यावहारिक दृष्टि से अब एकता कायम करने की जरूरत होगी। पार्टी ने राज्य के नागरिकों को जिन गारंटियों का वायदा किया है, उनकी परीक्षा इसके बाद होगी।

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के साथ-साथ यह बीजेपी की हार भी है। एंटी इनकंबैसी, भ्रष्टाचार के आरोप और स्थानीय स्तर पर नेतृत्व के संशय के कारण बीजेपी का अभियान शुरू से ही डगमगा गया था। पार्टी ने फायर फाइटिंग के अंदाज़ में बीएस येदियुरप्पा की पुनर्स्थापना की और नरेंद्र मोदी का धुआँधार इस्तेमाल किया, पर काफी देर हो चुकी थी। कांग्रेस ने 40 परसेंट सरकारा चलाया जिससे वासवराज बोम्मई सरकार की छवि बिगड़ती चली गई। साथ ही पार्टी ने अपने भीतर की असहमतियों को सामने नहीं आने दिया और चुनाव अभियान का समन्वय बहुत अच्छे तरीके से किया। इससे राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अच्छा संदेश जाएगा, जहाँ पार्टी के भीतर असंतोष है। हाल के वर्षों में यह बीजेपी की सबसे बड़ी हार है। हालांकि 2013 में बीजेपी को केवल 40 सीटें मिली थीं, पर उस समय येदियुरप्पा बीजेपी छोड़कर जा चुके थे और उन्होंने अपनी पार्टी बना ली थी। उस समय केंद्र में मोदी सरकार भी नहीं थी। इस लिहाज से यह हार ज्यादा अपमानजनक है।

कर्नाटक के परिणामों का एक संदेश यह भी है कि बीजेपी को तभी हराया जा सकता है, जब त्रिकोणीय मुकाबले कम से कम हों। कर्नाटक में जेडीएस का क्षय हुआ है। देखना होगा कि क्षेत्रीय दल इस संदेश को किस रूप में ग्रहण करते हैं। बीजेपी को 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में लगभग इसी तरह से तृणमूल कांग्रेस ने पराजित किया था। क्या कांग्रेस पार्टी ने तृणमूल के महत्व को स्वीकार किया? वहाँ बीजेपी-विरोधी वोटों के बँटवारे में कांग्रेस और वाममोर्चे की भूमिका भी थी।

कांग्रेस पार्टी को उत्साहित होने के पहले यह भी देखना चाहिए कि नवंबर-दिसंबर 2018 में कांग्रेस को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सफलता मिली थी, पर उसके चार महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में उसे जबर्दस्त हार का सामना करना पड़ा। बिहार विधानसभा के 2020 के चुनाव में राजद और भाकपा (माले) का कहना था गठबंधन में कांग्रेस कमजोर कड़ी थी, जिसने अपनी सामर्थ्य से ज्यादा सीटें झटक ली थीं, पर परिणाम नहीं दे पाई। परिणामतः 2021 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में डीएमके ने कांग्रेस को केवल 25 सीटें दीं, जबकि 2016 में उसे 45 सीटें दी गई थीं। एक समय ऐसा भी आया, जब कांग्रेस के केवल दो राज्यों में मुख्यमंत्री थे, जबकि आम आदमी पार्टी के भी दो थे। इसीलिए देखना होगा कि कांग्रेस के पैरों के नीचे कितनी जमीन है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने चुनाव में सफलता का टेंपलेट हासिल कर लिया है, जिसे वह अब दूसरे राज्यों में दोहरा सकती है। पर यह नहीं मान लेना चाहिए कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के प्रति जनता के बदले हुए मूड का यह संकेत है। लोकसभा चुनाव के मुद्दे अलग होते हैं। साल के अंत में तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभाओं के चुनाव भी होंगे। मिजोरम को छोड़ दें, तो शेष सभी राज्य महत्वपूर्ण हैं। कर्नाटक की सफलता कांग्रेस की बड़ी उपलब्धि है, पर अभी काफी कहानी बाकी है। परीक्षा अब शुरू हुई है।

कोलकाता के अखबार दैनिक वर्तमान में प्रकाशित

No comments:

Post a Comment