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Sunday, January 22, 2023

अर्थव्यवस्था की परीक्षा का समय


जनवरी का महीना आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है।
इस महीने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का दावोस में समारोह होता है। इसके ठीक पहले ऑक्सफ़ैम की विषमता से जुड़ी रिपोर्ट आती है, जो परोक्ष रूप से इकोनॉमिक फोरम की विसंगतियों को रेखांकित करती है। विश्वबैंक का ग्लोबल आउटलुक जारी होता है। ये तीनों परिघटनाएं भारत से भी जुड़ी हैं। महीना खत्म होते ही भारत का बजट आता है, जिसमें अब केवल दस दिन बाकी हैं। यह वक्त है अर्थव्यवस्था की सेहत पर नजर डालने का और समझने का कि सामने क्या आने वाला है। दावोस में इकोनॉमिक फोरम के संस्थापक और कार्यकारी चेयरमैन क्लॉस श्वाब ने विभाजित दुनिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ की है। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक संकट के बीच भारत एक ब्राइट स्पॉट है। भारत की जीडीपी वृद्धि दर साढ़े छह से सात प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो दुनिया के दूसरे देशों के लिए सपने जैसा है, फिर भी भारत को 4,256 डॉलर की प्रति व्यक्ति आय की रेखा को पार करने में आठ-नौ साल लगेंगे जो विश्व बैंक की ऊपरी-मध्य आमदनी श्रेणी है। इसपर आज चीन, ब्राजील, मॉरिशस, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देश हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या को देखते हुए फिर भी इसे संतोषजनक आर्थिक-स्तर मानेंगे। वैश्विक स्तर पर इस साल भी पिछले साल जैसी अनिश्चितताएं और जोखिम जारी हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रही हैं।

सबसे तेज अर्थव्यवस्था

विश्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपने ताजा अनुमान में कहा है कि  भारत सात सबसे बड़े उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी की संवृद्धि 6.9 फीसदी रहने का अनुमान है, जो अगले वित्त वर्ष (2023-24) में 6.6 और 2024-25 में 6.1 फीसदी रह सकती है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने जनवरी के पहले सप्ताह में चालू वित्त वर्ष के लिए राष्ट्रीय आय का पहला अग्रिम अनुमान जारी किया। यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण आंकड़ा है क्योंकि इसी के आधार पर केंद्रीय बजट का प्रारूप तैयार करने की शुरुआत होती है। अग्रिम अनुमान इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अगले वित्तीय वर्ष के बजट के लिए आवश्यक इनपुट के रूप में कार्य करते हैं। इस अनुमान के अनुसार वास्तविक संवृद्धि दर 7 प्रतिशत रह सकती है। क्षेत्र-वार विश्लेषण करें, तो सेवा क्षेत्र में तेज सुधार नजर आता है। उच्च इनपुट कीमतों और कमजोर बाहरी मांग के कारण विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में गिरावट नज़र आ रही है। आने वाले महीनों में जिंसों की कीमतों में कमी से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सहायता मिलने की संभावना है, लेकिन कमजोर बाहरी मांग लगातार दबाव बनाए रखेगी।

कैसे पार होगी नैया?

सवाल है कि आने वाले वर्षों में आर्थिक संवृद्धि की नैया कैसे पार लगेगी? पिछले तीन वर्षों के दौरान सरकार ने अर्थव्यवस्था की कमजोरी दूर करने का प्रयास किया है और खपत बढ़ाने पर जोर दिया है। पिछले साल ज्यादातर समय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति छह फीसदी के स्तर से ऊपर रही, जो चिंता का विषय बनी रही। फिलहाल इसका 6 प्रतिशत से नीचे जाना खुशखबरी है, पर अभी इसे लेकर अनिश्चय बना हुआ है। इसके कारण रिज़र्व बैंक ने मई से दिसंबर के बीच रेपो दर में 2.25 फीसदी की वृद्धि की है। वर्ष 2019 के बाद भारत का वस्तुओं का व्यापार घाटा दुगने से ज्यादा हो गया है। नवंबर में यह 24 अरब डॉलर था। पेट्रोलियम और अन्य वस्तुओं के कारण व्यापार घाटा बढ़ा है। डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट रोकने के लिए भारत ने अपने मुद्रा भंडार का उपयोग किया, जो नवंबर में 550 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का 16 फीसदी था। उसके बाद से इसमें सुधार हुआ है और 20 जनवरी को यह भंडार 572 अरब डॉलर का था।

चुनाव की आहट

2024 के चुनावों के लिहाज से यह समय काफी महत्वपूर्ण है। दस दिन बाद आने वाला बजट चुनाव से पहले का अंतिम पूर्ण-बजट होगा। उसके अगले वर्ष यानी 1 फरवरी 2024 को जो बजट पेश होगा, वह पूरे साल का नहीं, कुछ महीनों के लिए होगा और संभवतः जुलाई में पूरे साल का बजट आएगा। इसे देखते हुए सरकार के सामने इसबार के बजट में चुनाव-मुखी लोकलुभावन आर्थिक-नीतियाँ अपनाने का लालच होगा। दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था की बुनियाद को मजबूत करने के लिए आर्थिक-सुधारों को लागू करने की बाध्यता भी उसपर होगी। इस लिहाज से यह बेहद महत्वपूर्ण समय है। चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.44 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। चूंकि, नॉमिनल जीडीपी में अनुमान से अधिक वृद्धि हुई है, इसलिए राजकोषीय स्थिति मजबूत करने की गति तेज बनाने के सरकार के पास महत्त्वपूर्ण अवसर मौजूद हैं।

आर्थिक-सुधार

हालांकि भारत में राजकोषीय और चालू खाता घाटा ऊँचे स्तर पर है, लेकिन पर्याप्त मुद्रा भंडार और बेहतर मुद्रा-नीति के कारण देश के बाहर जाने वाली विदेशी मुद्रा का बेहतर प्रबंधन हुआ है। उर्वरक सब्सिडी में बेतहाशा वृद्धि हुई है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मुफ्त अनाज योजना में हाल के बदलाव से यह संकेत मिलते हैं कि चुनाव का लक्ष्य निश्चित रूप से सरकार के दिमाग में हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना बंद करने से बचत होगी, लेकिन मुफ्त पीडीएस से समस्याएं बढ़ेंगी। उधर चुनाव के करीब आने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने का दबाव भी होगा। भारत का सार्वजनिक ऋण जीडीपी के 84 प्रतिशत के आसपास है। ब्याज का बोझ बढ़ रहा है, जो जीडीपी के तीन प्रतिशत से ज्यादा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि मध्यम अवधि में राजकोषीय मजबूती के बिना निजी-निवेश में सुधार संभव नहीं है। ये सारी बातें आर्थिक-सुधारों से जुड़ी हैं, जो सरकार के लिए चुनौती बने खड़े हैं।

निजी-निवेश की समस्या

भविष्य में 7-8 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि हासिल करने के लिए निजी-निवेश को बढ़ाने की जरूरत है। सवाल है कि क्या हम राजकोषीय घाटे को 3 प्रतिशत या उससे नीचे ला सकेंगे? इसके लिए हमें वित्तमंत्री के बजट भाषण का इंतजार करना होगा। अगली बड़ी चुनौती निजी क्षेत्र को फिर से भारी निवेश करने के लिए प्रेरित करना है। दूरसंचार, डेटा केंद्रों और अक्षय ऊर्जा को छोड़कर, निजी क्षेत्र की नई संयंत्र परियोजनाओं में निवेश करने की रफ्तार में कमी दिखी है। आने वाले वर्षों में अर्थव्यवस्था की गति तेज करने के लिए बैंकिग व्यवस्था में और सुधार करने होंगे, ताकि निजी क्षेत्र में पूँजी निवेश बढ़े। सरकार पीएलआई जैसी स्कीमों के सहारे कारोबार को बढ़ावा देना चाहती है। यह भी सब्सिडी है। वस्तुतः व्यापार की लागत को कम करने के प्रयास करने चाहिए। देश में ऊर्जा और लॉजिस्टिक्स की लागत बहुत अधिक है। कुछ राज्यों को छोड़कर ज्यादातर श्रम कानूनों में सुधार  कागजों पर ही हैं। वैश्विक कंपनियां चीन से बाहर निकल रही हैं, उन्हें आकर्षित करने के लिए ये सुधार जरूरी हैं। हम नहीं कर पाए, तो ये कंपनियाँ वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में चली जाएंगी।

शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अगले 15 वर्षों में शहरी बुनियादी ढांचे में 840 अरब डॉलर निवेश करने की आवश्यकता होगी। उम्मीद है कि 2023-24 के बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश में 33 प्रतिशत की वृद्धि के साथ इस रुझान को जारी रखा जाएगा जिससे इस क्षेत्र के लिए खर्च का दायरा 10 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। गैर-कॉरपोरेट निवेश आमतौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकारी खर्च के रूप में आता है। पिछले दो-तीन वर्षों में ऐसा हुआ भी है, जिससे रोजगार के मोर्चे पर राहत मिली है। इससे ग्रामीण क्षेत्र में पैसा आया है, जिससे उपभोग बेहतर हुआ है। 2024 के चुनावों को देखते हुए दस दिन बाद आने वाले बजट में भी इस मद के लिए घोषणाओं की उम्मीद है। पिछले साल वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने दावा किया कि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण पर खर्च किए गए 1 रुपये से 0.90 रुपये की आर्थिक संवृद्धि होती है, जबकि बुनियादी ढांचे पर खर्च हुए 1.0 रुपये से जीडीपी में 3.0 रुपये जुड़ते हैं।

रोज़गार की स्थिति

इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश निजी-निवेश को बढ़ावा देने में मददगार होता है और बेरोज़गारी दूर करने में भी। नवंबर में लगातार दूसरे महीने नई औपचारिक नौकरियों का सृजन 10 लाख से नीचे रहा। शुक्रवार 20 जनवरी को जारी हाल के पेरोल के आंकड़ों से पता चलता है कि नौकरियों के बाजार में दबाव की स्थिति है। अलबत्ता लगातार तीन महीने की गिरावट के बाद नए औपचारिक रोजगार सृजन में पिछले माह की तुलना में नवंबर में 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योजना में नए मासिक सदस्यों की संख्या नवंबर में बढ़कर 8,99,332 हो गई जो अक्टूबर में 7,68,643 थी। अलबत्ता सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक नवंबर में बेरोजगारी दर (यूआर) बढ़कर 9.03 प्रतिशत हो गई, जो अक्टूबर में 7.8 प्रतिशत और सितंबर में 6.4 प्रतिशत थी। शहरी इलाकों में नौकरी न होने के कारण ऐसा हुआ है। शहरी बेरोजगारी अक्टूबर में 99 लाख से बढ़कर 127 लाख हो गई है, इसमें करीब 28 लाख की बढ़ोतरी हुई है। बजट के ठीक पहले इन सब बातों का सामने आने का मतलब है कि हम इन समस्याओं के समाधानों के बारे में विचार करें।

हरिभूमि में प्रकाशित

 

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