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Thursday, December 29, 2022

कोरोना को लेकर अब घबराने की जरूरत नहीं


दुनिया में एक बार फिर तेज़ी से कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ने की खबरें हैं। खासतौर से चीन के बारे में कहा जा रहा है कि वहाँ जिस रफ़्तार से वायरस का एक नया वेरिएंट फ़ैल रहा है, वहां इससे पहले देखा नहीं गया। चीन के अलावा अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, फ्रांस और यूरोप के कुछ और देशों में कोरोना की नई लहर की खबरें हैं। इन्हें लेकर भारत में भी डर फैल रहा है कि शायद कोई और भयावह लहर आने वाली है। चीन में जिस नए वेरिएंट की खबर है, उसका नाम बीएफ.7 रखा गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भारत में तीन नए मामले ओमिक्रॉन के इस सब-वेरिएंट बीएफ.7 के पाए गए हैं।

भारत सरकार ने अपनी तरफ से इस सिलसिले में एहतियाती कदम उठाए हैं, पर विशेषज्ञों का कहना है कि इन खबरों से न तो परेशान होने की जरूरत है और न सनसनी फैलाने का कोई मतलब है। हवाई अड्डों पर चीन से आने वाले और अन्य विदेशी यात्रियों की रैंडम टेस्टिंग शुरू कर दी गई है। कुछ भारतीय चैनलों ने इसे जरूरत से ज्यादा तूल दिया है, जिसके कारण अनावश्यक सनसनी फैल रही है। यह सच है कि दुनिया से कोविड-19 अभी खत्म नहीं हुआ है, पर उस तरह की खतरनाक लहर की संभावना अब नहीं है, जैसी पहले आ चुकी है।

जीरो-कोविड नीति का परिणाम

चीन में हो रहे संक्रमण की एक वजह यह है कि वहाँ ज़ीरो कोविड नीति के कारण संक्रमण रुका हुआ था। हाल में जनता के विरोध के बाद प्रतिबंध उठा लिए गए हैं, जिसके कारण संक्रमण बढ़ा है। पर यह संक्रमण कितना है और उसका प्रभाव कितना है, इसे लेकर अफवाहें ज्यादा हैं, तथ्य कम। वस्तुतः चीन सरकार बहुत सी बातें बताती भी नहीं है, जिसके कारण अफवाहें फैलती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ टेड्रॉस एडेनॉम गैब्रेसस ने कहा है कि व्यापक मूल्यांकन के लिए हमें ये ठीक से पता होना ज़रूरी है कि लोगों में संक्रमण कितना गंभीर है, अस्पताल में भरती हैं और आईसीयू में कितने लोग हैं। इन सब की जानकारी दी जानी चाहिए। भले ही चीन के अधिकारी कह रहे हैं कि प्रभावित लोगों की संख्या 'अपेक्षाकृत कम' है लेकिन आईसीयू में मरीज़ आ रहे हैं। सरकारी आँकड़ों के अनुसार वहाँ मरने वालों की संख्या बहुत छोटी है, पर इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है। दूसरी तरफ समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार बीजिंग में कोरोना से हुई मौतों के लिए निर्धारित किए गए श्मशान के सामने शवों की गाड़ियों की लंबी क़तार लगी हुई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन उन मौतों को भी शामिल करता है जिनकी मौत सीधे तौर पर भले ही कोरोना के संक्रमण के कारण नहीं हुई है, लेकिन उन पर कोरोना के संक्रमण का परोक्ष असर पड़ा हो। इसके विपरीत चीन उन्हें ही कोरोना से होने वाली मौत मान रहा है, जिसमें मरने वाले के फेफड़े संक्रमण से प्रभावित हुए। यह पुष्टि स्कैन के ज़रिए की जा रही है। चीन ने कोरोना से लड़ाई के लिए लॉकडाउन पर ज्यादा भरोसा किया, वैक्सीन पर कम। उनकी वैक्सीन भी कम असरदार है।

अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट ने चीन में आई नई लहर को लेकर एक लेख में कहा है कि चीन की ज़ीरो कोविड नीति ऐसी नीति थी जो टिक नहीं सकती थी और इसे बिना किसी तैयारी और बैकअप प्लान के अचानक से ख़त्म करने के फ़ैसले से एक नई लहर का ख़तरा पैदा हुआ है। अखबार को लगता है कि यह नया संकट पूरी दुनिया को परेशान कर सकता है, जैसा कि वुहान के आउटब्रेक ने तीन साल पहले किया था।

भारत पर असर

चीनी खबरों के बाद भारत में कोरोना के मामलों की संख्या बढ़ी है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि लोग अब ज्यादा टेस्ट करा रहे हैं। भारत में कोविड-19 की औसत राष्ट्रीय दर अभी 0.21 प्रतिशत के सामान्य स्तर पर है लेकिन देश के तीन दर्जन जिलों में यह एक प्रतिशत से अधिक और आठ जिलों में पांच प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई है।

इस सिलसिले में आईसीएमआर के पूर्व विशेषज्ञ डॉ रमन गंगाखेडकर का कहना है कि हमें डरना नहीं, सतर्क रहना है। हमें एक चीज समझनी है। चीन ने ‘शून्य कोविड नीति’ अपनाई थी। उसने अचानक से इसे बंद कर दिया। नतीजा सबके सामने है। जापान की बात करें तो उसने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय आवाजाही से प्रतिबंध हटाए हैं। वहां क्या स्थिति है, इससे हम सब परिचित हैं। हमने धीरे-धीरे करके प्रतिबंध हटाए थे, एक साथ नहीं हटाया था। इस वजह से फायदा यह हुआ कि कम आबादी बाहर निकली और संक्रमण कम फैला। चीन के टीके की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है। वहां कम ही लोगों को बूस्टर खुराक लगाई गई है। वहां उम्रदराज लोगों की आबादी भी अधिक है। इसलिए वहां मृत्यु दर की संभावना ज्यादा है। इसकी तुलना हम अपने देश से करें तो हमारे यहां 65 वर्ष से ज्यादा लोगों की आबादी छह प्रतिशत ही है।

चीन हो या जापान, यह आबादी उनके यहां तीन गुना ज्यादा है। उनके यहां आंकड़े ज्यादा दिखेंगे। वह चाहे संक्रमण के हों या फिर मौत के। इन आंकड़ों को देखकर हमें डरना नहीं है। हमें अभी चिंता करने की जरूरत नहीं है, बल्कि सतर्क रहना है। आज जो स्थिति चीन में है, उससे सारी दुनिया में कोई संकट खड़ा हो जाएगा, ऐसा नहीं लगता। भारत में 'हाइब्रिड इम्युनिटी' विकसित होने के कारण प्राकृतिक प्रतिरक्षा के लाभ की स्थिति है। फिर भी हमें सतर्क रहने की जरूरत है।

मन का डर निकालें

एम्स, नई दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया के अनुसार इसमें कोई शक नहीं है कि चीन में जो नया वेरिएंट है, वह तेजी से फैलता है। ओमीक्रोन भी हमारे यहां तेजी से फैला था, लेकिन वह जल्दी खत्म भी हुआ। 11 महीने में वह कोई नया स्वरूप पैदा नहीं कर सका है। कोई नया वेरिएंट आएगा, यह हमारे मन का डर है। विज्ञान के मुताबिक यह होना कठिन है।

जहाँ तक हवाई यात्रा पर प्रतिबंध लगाने की बात है, जब कोविड-19 की पहली लहर आई थी तो हमने विमानों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया था। विदेश से आने वाले नागरिकों की जांच भी की जा रही थी। यह सब करने के बावजूद क्या कोविड-19 को फैलने से रोका जा सका? नहीं, उससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा। अभी जो कोविड का स्वरूप है वह चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका में है, पर इन देशों ने विमानों की आवाजाही पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। सच्चाई यह है कि हमारे यहां चुनाव हुए और दीपावली और दशहरा जैसे त्योहार भी मनाए गए। इसके बावजूद संक्रमण में कोई बड़ा इजाफा नहीं देखा गया।

भारत में नहीं फैलेगा

चीन में बीएफ.7 के फैलने के पहले दुनिया के 90 देशों में उससे मिलता-जुलता वेरिएंट फैल चुका था। भारत के लिए यह न तो नया है और न अब इसकी वजह से बड़े स्तर पर किसी बड़े संक्रमण का अंदेशा है। आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल ने भारत में कोविड-संक्रमण का सूत्र मॉडल बनाया था, जिसकी गणना एकदम सही साबित हुई थी। उनका कहना है कि हालांकि देश में अभी कोविड खत्म नहीं हुआ है, पर उसके किसी बड़े संक्रमण का अंदेशा अब नहीं है।

मणींद्र अग्रवाल के अनुसार चीन में संक्रमण की वजह यह है कि अक्तूबर के अंत तक वहाँ की जनसंख्या में 5 प्रतिशत लोगों में प्राकृतिक इम्युनिटी थी। नवंबर के अंत में यह 20 प्रतिशत हुई। इस समय वहाँ 60 प्रतिशत से कम आबादी में प्राकृतिक इम्युनिटी है। बीमारी देश के शेष नागरिकों को प्रभावित करेगी और जब 90 फीसदी आबादी तक संक्रमण पहुँच जाएगा, उसके बाद रुकेगी। पर भारत के लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यहाँ 98 फीसदी से ज्यादा लोगों में प्राकृतिक इम्युनिटी पैदा हो चुकी है।

हिंदी विवेक में प्रकाशित

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