रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर में हुए एक कार्यक्रम में कहा कि हमारी यात्रा उत्तर की दिशा में जारी है। हम पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को भूले नहीं हैं, बल्कि एक दिन उसे वापस हासिल करके रहेंगे। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद से भारत सरकार कश्मीर में स्थितियों को सामान्य बनाने की दिशा में मुस्तैदी से काम कर रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी हुई थी। रक्षामंत्री के इस बयान में लोकसभा के अगले चुनाव के एजेंडा को भी पढ़ा जा सकता है। राम मंदिर, नागरिकता कानून, ट्रिपल तलाक, हिजाब, सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर वगैरह के साथ कश्मीर और राष्ट्रीय सुरक्षा बड़े मुद्दे बनेंगे।
परिवार पर निशाना
बीजेपी के कश्मीर-प्रसंग को राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बरक्स भी
देखा जा सकता है। जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर मसले को अपने तरीके से सुलझाने का
प्रयास किया था, जिसके कारण यह मामला काफी पेचीदा हो गया। अब बीजेपी नेहरू की
कश्मीर नीति की भी आलोचना कर रही है। गत 10 अक्तूबर को नरेंद्र मोदी ने आणंद की एक
रैली में नाम न लेते हुए नेहरू पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद
सरदार पटेल ने रियासतों के विलय के सभी मुद्दों को हल कर दिया था लेकिन कश्मीर का
जिम्मा 'एक अन्य व्यक्ति' के पास था, इसीलिए
वह अनसुलझा रह गया। मोदी ने कहा कि मैं कश्मीर का मुद्दा इसलिए हल कर पाया, क्योंकि
मैं सरदार पटेल के नक्शे कदम पर चलता हूँ।
राजनीतिक
संदेश
प्रधानमंत्री,
रक्षामंत्री और गृहमंत्री के बयानों को जोड़कर पढ़ें, तो मसले का राजनीतिक संदेश
भी स्पष्ट हो जाता है। रक्षामंत्री ने ‘शौर्य दिवस’ कार्यक्रम
में कहा कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सर्वांगीण विकास का लक्ष्य पीओके और गिलगित-बल्तिस्तान
तक पहुंचने के बाद ही पूरा होगा। हमने जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विकास की अपनी
यात्रा अभी शुरू की है। जब हम गिलगित और बल्तिस्तान तक पहुंच जाएंगे तो हमारा
लक्ष्य पूरा हो जाएगा। भारतीय सेना 27 अक्तूबर 1947 को श्रीनगर पहुंचने की घटना की याद में हर
साल ‘शौर्य दिवस’ मनाती है। पिछले दो साल से केंद्र सरकार ने 22 अक्तूबर को
जम्मू-कश्मीर में ‘काला दिन’ मनाने की
शुरुआत भी की है। 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोला था। पाकिस्तान
सरकार हर साल 5 फरवरी को ‘कश्मीर
एकजुटता दिवस’ मनाती है। यह चलन 2004 से शुरू हुआ है। उस
दिन देशभर में छुट्टी रहती है। इसका उद्देश्य जनता के मन में कश्मीर के सवाल को
सुलगाए रखना है।
राष्ट्रीय
संकल्प
भारत सरकार ने ‘काला
दिन’ मनाने की घोषणा करके एक तरह से जवाबी कार्रवाई की थी। पाकिस्तानी लुटेरों ने
कश्मीर में भारी लूटमार मचाई थी, जिसमें हजारों लोग
मारे गए थे। इस हमले से घबराकर कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर 1947 को
भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जिसके बाद
भारत ने अपने सेना कश्मीर भेजी थी। तथाकथित आजाद कश्मीर सरकार, जो पाकिस्तान
की प्रत्यक्ष सहायता तथा अपेक्षा से स्थापित हुई, आक्रामक के
रूप में पश्चिमी तथा उत्तर पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों में कब्जा जमाए बैठी है।
भारत ने यह मामला 1 जनवरी,
1948 को ही संरा
चार्टर के अनुच्छेद 35 के तहत उठाया था। यह मसला वैश्विक राजनीति की भेंट चढ़ गया।
संरा सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव लागू क्यों नहीं हुए, उसकी अलग
कहानी है। जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की वैध संधि की पाकिस्तान अनदेखी करता है।
भारत के नजरिए से केवल पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके)
ही नहीं, गिलगित-बल्तिस्तान भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है। राजनाथ सिंह ने गिलगित-बल्तिस्तान
तक के सवाल को उठाया है, जिसकी अनदेखी होती रही।
370 की वापसी
तीन साल पहले 5 अगस्त, 2019 को भारत ने कश्मीर पर अनुच्छेद 370 और 35 को निष्प्रभावी करके लम्बे समय से चले आ रहे एक अवरोध को समाप्त कर दिया था। राज्य का पुनर्गठन भी हुआ है और लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है। पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का मामला अब भी अधूरा है। कश्मीर हमारे देश का अटूट अंग है, तो हमें उस हिस्से को भी वापस लेने की कोशिश करनी चाहिए, जो पाकिस्तान के कब्जे में है। क्या यह सम्भव है? कैसे हो सकता है यह काम? गृह मंत्री अमित शाह ने नवम्बर 2019 में एक कार्यक्रम में कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर और जम्मू-कश्मीर के लिए हम जान भी दे सकते हैं और देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं, जिनके मन में यही भावना है। साथ ही यह भी कहा कि इस सिलसिले में सरकार का जो भी ‘प्लान ऑफ एक्शन’ है, उसे टीवी डिबेट में घोषित नहीं किया जा सकता। ये सब देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दे हैं, जिन्हें ठीक वैसे ही करना चाहिए, जैसे अनुच्छेद 370 को हटाया गया। इसके समय की बात मत पूछिए तो अच्छा है। इसके पहले संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए भी उन्होंने कहा था कि पीओके के लिए हम जान दे सकते हैं।
संसद का प्रस्ताव
गृहमंत्री के इस बयान के पहले विदेश मंत्री एस
जयशंकर ने सितम्बर 2019 में एक मीडिया कॉन्फ्रेंस में कहा था कि पाकिस्तान के
कब्जे में जो कश्मीर है, वह भारत का हिस्सा है और हमें उम्मीद
है कि एक दिन इस पर हमारा अधिकार हो जाएगा। इन दोनों बयानों के बाद जनवरी 2020 में
तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने सेना दिवस के पहले एक संवाददाता
सम्मेलन में कहा कि यदि देश की संसद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का आदेश
देगी तो हम कारवाई कर सकते है। उन्होंने कहा, संसद
इस बारे में प्रस्ताव पास कर चुकी है कि पीओके भारत का अभिन्न अंग है। इन बयानों
के पीछे क्या कोई संजीदा सोच-विचार था? क्या भविष्य में
हम कश्मीर को भारत के अटूट अंग के रूप में देख पाएंगे? हमारी
संसद के दोनों सदनों ने 22 फरवरी 1994 को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और इस
बात पर जोर दिया कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसलिए पाकिस्तान
को अपने कब्जे वाले राज्य के हिस्सों को खाली करना होगा।
अस्पष्ट विरोध
1994 का प्रस्ताव पीवी नरसिंहराव के नेतृत्व
में बनी कांग्रेस सरकार ने ही पास कराया था, पर कांग्रेस कश्मीर के मामले में
ढुलमुल रवैया अपनाती रही है। धारा 370 हटाए जाते समय हालांकि कांग्रेस समेत
ज्यादातर विरोधी दलों ने संसद में सरकारी प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया, पर बाहर
की बयानबाज़ी और ढुलमुल रुख का लाभ बीजेपी को मिला और भविष्य में भी मिलेगा।
कांग्रेस और विरोधी दलों ने अनुच्छेद 370 को हटाने के तरीके और उसके बाद करीब दो
साल तक चले लॉकडाउन की आलोचना की। बीजेपी ने इस लॉकडाउन का दृढ़ता से न सिर्फ जारी
रखा, बल्कि विदेशी आलोचना का जवाब भी दिया। वह अब अपने इस रुख को राजनीतिक मुनाफे
में बदलने का प्रयास करेगी। साथ ही कांग्रेस की छवि को नकारात्मक साबित करने का
प्रयास भी करेगी। दूसरी तरफ अपना अध्यक्ष चुनने के बाद कांग्रेस पार्टी लोकसभा
चुनाव और उससे पहले होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए कमर कस रही है। विरोधी दलों
की एकता के प्रयास भी हो रहे हैं, पर इन दोनों प्रयासों के पीछे विचारधारा से
जुड़ी एकता अब भी नजर नहीं आ रही है। एकता का एकमात्र सूत्र केवल बीजेपी का विरोध
है। दूसरी तरफ बीजेपी के पास पहले से तैयार मुद्दे हैं, जिन्हें केवल दोहराने की
जरूरत है।
चिंतन शिविर
राष्ट्रीय प्रश्नों को लेकर बीजेपी का दृष्टिकोण
पिछले हफ्ते फरीदाबाद में हुए राज्यों के गृहमंत्रियों के चिंतन शिविर में भी
देखने को मिला। इस शिविर में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के संबोधनों पर ध्यान देने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने वीडियो
कांफ्रेंसिंग के जरिए इस शिविर को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि कानून और
व्यवस्था राज्यों की जिम्मेदारी है, लेकिन ये राष्ट्र की
एकता और अखंडता से भी जुड़े हुए हैं। उन्होंने इसे सहकारी संघवाद से भी जोड़ा। केंद्रीय
गृहमंत्री अमित शाह ने उग्रवाद, आतंकवाद, नारकोटिक्स, साइबर अपराध समेत कई
मुद्दों का जिक्र किया। उन्होंने कहा, 'वामपंथी उग्रवाद से
प्रभावित क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर, जो पहले कभी हिंसा और अशांति के हॉट स्पॉट होते थे, वो अब विकास के हॉट स्पॉट बन रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में
धारा 370 हटाए जाने के पहले के 37 महीनों और बाद के 37 महीनों की अगर तुलना की जाए
तो आतंकवादी घटनाओं में 34 प्रतिशत और सुरक्षा बलों की मृत्यु में 54 प्रतिशत की
कमी दर्ज की गई है।
विरोधी नजरिया
इस आयोजन में विरोधी
दलों के दृष्टिकोण पर भी नजर डालनी चाहिए। इस आयोजन से गैर-भाजपा शासित राज्यों के
पाँच प्रमुख गायब रहे। उनकी जगह पुलिस, सचिव स्तर के अधिकारी
का छोटे मंत्री शामिल हुए। इस चर्चा में ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, हेमंत सोरेन, नवीन पटनायक और एमके
स्टालिन शामिल नहीं हुए, ये सभी अपने राज्यों में गृह-मंत्रालय भी संभालते हैं। केरल
के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और पंजाब के सीएम भगवंत शामिल हुए। जब तक अमरिंदर
सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री थे, राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्नों पर वे केंद्र सरकार
का समर्थन करते थे। पर ज्यादातर राज्य सरकारों का रुख अपने क्षेत्रीय सवालों से
आगे नहीं जाता। इसका लाभ बीजेपी को मिलता है। वोटरों की बड़ी संख्या राष्ट्रीय
सुरक्षा से जुड़ी उसकी नीतियों का समर्थन करती है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-11-2022) को "जंगल कंकरीटों के" (चर्चा अंक-4600) पर भी होगी।
ReplyDelete--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मुद्दे ज़िंदा रहें
ReplyDelete