वैश्विक राजनीति का घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. गत 16 सितंबर को समरकंद में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में नरेंद्र मोदी और व्लादिमीर पुतिन के बीच हुए संवाद से लगा था कि शायद यूक्रेन का युद्ध जल्द समाप्त हो जाएगा. पर उसके बाद पुतिन के बयान और पश्चिमी देशों के तुर्की-ब-तुर्की जवाब से लग रहा है कि लड़ाई बढ़ेगी.
अब व्लादिमीर पुतिन ने अपने राष्ट्रीय प्रसारण
में देश में आंशिक लामबंदी की घोषणा की है और एटमी हथियारों के इस्तेमाल की बात को
दोहराया है. बुधवार 21 सितंबर को उन्होंने कहा कि पश्चिम रूस को ब्लैकमेल कर रहा है,
लेकिन रूस के पास जवाब देने के लिए कई हथियार हैं. हम अपने नागरिकों
की रक्षा के लिए हरेक हथियार का इस्तेमाल करेंगे. रूसी जनता के समर्थन में मुझे
पूरा भरोसा है.
सिर्फ भभकी
दूसरी तरफ यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर
ज़ेलेंस्की का कहना है कि हमें नहीं लगता कि रूस परमाणु हथियारों का इस्तेमाल
करेगा. ज़ेलेंस्की ने जर्मनी के बिल्ड न्यूज़पेपर के टीवी कहा, मुझे नहीं लगता कि दुनिया
उन्हें परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की इजाजत देगी.
पुतिन के इस बयान पर जहां दुनिया भर के नेताओं
ने टिप्पणी की है वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा परिषद
में कहा कि रूस यूक्रेन के एक देश के रूप में बने रहने के उसके अधिकारों को ख़त्म
करने का लक्ष्य बना रहा है. रूसी हमले के विरोध में हम यूक्रेन के साथ खड़े हैं.
बाइडन ने सुरक्षा परिषद में वीटो के इस्तेमाल पर रोक लगाने की बात भी कही और साथ
ही कहा कि अमेरिका सुरक्षा परिषद में सदस्यों की संख्या बढ़ाने का समर्थन करता है.
थक रहा है रूस
यह भी लगता है कि इस लड़ाई में रूस थक गया है, पर अपमान का घूँट पीने को भी वह तैयार नहीं है. दूसरी तरफ उसे मिल रहे चीनी-समर्थन में कमी आ गई है. इस साल जनवरी-फरवरी में रूस-चीन रिश्ते आसमान पर थे, तो वे अब ज़मीन पर आते दिखाई पड़ रहे हैं.
खबरें हैं कि यूक्रेन ने उस ज़मीन को वापस
जीतना शुरू कर दिया है, जिनपर पिछले छह-सात महीनों में रूस ने कब्जा कर लिया था. पर
अब व्लादिमीर पुतिन ने कहा, पश्चिमी देश रूस पर अपनी इच्छा लादना चाहते हैं.
यूक्रेन ने ज़मीन पर कब्ज़ा किया, तो हम नाभिकीय शस्त्रों का इस्तेमाल करने से भी
नहीं चूकेंगे.
आंशिक लामबंदी
रूस ने यूक्रेन के मोर्चे पर सैनिकों की तादाद
बढ़ाने का फैसला किया है. करीब तीन लाख नए सैनिक भेजे जा रहे हैं. रिजर्व सैनिक
बुलाए जा सकते हैं. इस दौरान रूस ने जिस इलाके
पर कब्जा किया है, वहाँ जनमत संग्रह कराया जा रहा, ताकि कहा जा सके कि इस इलाके की
जनता यूक्रेन से अलग रहना चाहती है.
रूस आज भी इस लड़ाई को लड़ाई नहीं कह रहा है.
वह इसे ‘सैनिक ऑपरेशन’ मानता है. क्या
वह अब पूर्ण-युद्ध की घोषणा करेगा? दोनों तरफ से ‘सूचना-युद्ध’ भी चल रहा है.
पश्चिमी मीडिया कहता है कि पुतिन की हार शुरू हो गई है. इसके जवाब में पुतिन और
ज्यादा आक्रामक हो रहे हैं, पर इस आक्रामकता से वे अपने संसाधनों को फूँक रहे हैं.
इस साल फरवरी में जब रूस ने कार्रवाई शुरू की
थी, तब उसका अनुमान था कि कुछ हफ्तों में कहानी खत्म हो जाएगी, पर लगता नहीं कि यह
अगले कई महीनों में भी खत्म होगी. पुतिन कब तक सैनिक झोंकेंगे?
जनमत का दबाव
पश्चिमी देशों की रणनीति है कि पुतिन पर अपनी
जनता का दबाव बढ़े. रिजर्व सैनिक बुलाए गए, तो यह दबाव खुलकर सामने आ जाएगा. 13
सितंबर को खारकीव में रूसी सेना का पराजय के बाद रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव
ने कहा कि फिलहाल पूर्ण-युद्ध घोषित करने और नए सैनिक झोंकने का इरादा नहीं है. पर
उसके बाद पुतिन ने अपने राष्ट्रीय प्रसारण में कहा कि आंशिक लामबंदी की जा रही है.
अनिवार्य लामबंदी की नौबत आई, तो देश के भीतर
वे अलोकप्रिय होने लगेंगे. दूसरी तरफ उनके मित्र-देशों का भरोसा भी टूट रहा है. इसके
विपरीत यूक्रेन को पश्चिमी देशों से लगातार शस्त्र-आपूर्ति हो रही है. साथ ही जनता
का मनोबल बना हुआ है.
रक्षामंत्री सर्गेई शोइगू ने कहा कि करीब तीन
लाख रिजर्व सैनिक बुलाए जाएंगे. अनुमान है कि रूस में 20 लाख रिज़र्व सैनिक हैं.
ये वे लोग हैं जिन्होंने अनिवार्य सैन्य-सेवा के तहत मिलिट्री ट्रेनिंग ले रखी है.
कानून में बदलाव
रूस में सैनिक-प्रशिक्षण अनिवार्य है. पुतिन के
प्रसारण के एक दिन पहले रूसी संसद ड्यूमा में देश के आपराधिक कानून में एक संशोधन
किया गया. इसके अनुसार जो सैनिक युद्ध में समर्पण करेंगे, आदेश की अवमानना करेंगे
या लूटपाट में शामिल होंगे, उन्हें कठोर सजा मिलेगी.
कानून में लामबंदी, युद्ध-काल और मार्शल लॉ
जैसी बातों को स्पष्ट किया गया है. इसका मतलब है कि भगोड़े सैनिकों को कड़ी सजा
मिलेगी. रूस जिसे ‘स्पेशल सैनिक-ऑपरेशन’ बता रहा है, उसे कोई नागरिक युद्ध बताएगा, तो उसे भी
सजा मिलेगी.
आर्म्स फ़ोर्सेज़ का दर्जा हासिल किए सभी
नागरिकों को एकजुट किया जाएगा. यानी कि युद्ध
की घोषणा किए बगैर पुतिन लामबंदी चाहते हैं और उन सैनिकों को मोर्चे पर भेजना
चाहते हैं, जो चार महीने की ट्रेनिंग ले चुके हैं. रूसी सेना अब भाड़े के सैनिकों,
कैदियों और यूक्रेन के जीते गए इलाके में भरती किए गए सैनिकों की मदद लेने की
स्थिति में आ रही है.
पुतिन के आंशिक रूप से रिज़र्व सैनिकों की
लामबंदी पर ज़ेलेंस्की ने कहा उनका ये आदेश सेना के मनोबल में गिरावट के कारण है. लाखों
की संख्या में उन्हें सैनिकों की ज़रूरत है... वे देख रहे हैं कि जिन सैनिकों को
यूक्रेन भेजा था उनका एक बड़ा हिस्सा भाग गया है.
जनमत संग्रह
संसद से इस कानून के
पास होने के साथ ही रूसी कब्जे में आ चुके डोनबास के लुहांस्क और दोनेत्स्क इलाकों
में 23 और 27 सितंबर को जनमत संग्रह कराने की घोषणा की गई है. यहाँ के नागरिकों को
तय करना है कि वे रूस में विलय चाहते हैं या नहीं. सरकारी अधिकारियों का कहना है
कि जल्द ही ऐसा जनमत संग्रह दक्षिण के खेर्सोन और ज़ापोरीज़िया में भी किया जाएगा.
यानी कि जीते गए इलाके को रूस में मिलाने की वैधानिक प्रक्रिया.
रूस ने इस साल फरवरी
में अपना सैनिक अभियान शुरू करने के पहले डोनबास के दो गणराज्यों को स्वतंत्र
राज्यों के रूप में मान्यता दे दी थी. पुतिन ने अपने प्रसारण में कहा कि जो लोग
हमारे हैं, उन्हें हम दुश्मन के हाथों मरने के लिए नहीं छोड़ देंगे.
सन 2014 में रूस ने क्राइमिया प्रायदीप पर
कब्जा करके इसी तरह का जनमत संग्रह कराया था. इसका मतलब है कि यदि अब यूक्रेन
क्राइमिया पर कब्जे की कोशिश करेगा, तो रूस उसे अपनी जमीन पर हमला मानकर युद्ध की
घोषणा कर देगा.
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