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Friday, August 19, 2022

आक्रामक बीजेपी और विरोधी गठबंधन-राजनीति की बढ़ती चुनौतियाँ

लोकसभा चुनाव में अब दो साल से भी कम का समय बचा है, पर राष्ट्रीय राजनीति का परिदृश्य स्पष्ट नहीं है। दो प्रवृत्तियाँ एक साथ देखने को मिल रही हैं। भारतीय जनता पार्टी की बढ़ती आक्रामकता और विरोधी-एकता के प्रयासों में बढ़ता असमंजस। महाराष्ट्र में हुआ सत्ता-परिवर्तन विरोधी गठबंधन राजनीति के लिए स्तब्धकारी साबित हुआ। राष्ट्रपति-चुनाव को दौरान भी दोनों प्रवृत्तियाँ एक साथ देखने को मिली।

अब संसद के मॉनसून-सत्र में विरोधी दलों ने तख्तियाँ वगैरह दिखाकर जो आंदोलनकारी रूप अपनाया है, उससे मीडिया की कवरेज जरूर मिली है, पर जनता के बीच इनकी छवि बिगड़ी है। इससे लाभ मिलने के बजाय नुकसान ही होता नजर आ रहा है। इस हफ्ते उपराष्ट्रपति का चुनाव है। हालांकि इस चुनाव में मतदाताओं की संख्या छोटी होती है, पर राजनीतिक दृष्टि से, खासतौर से विरोधी-एकता के संदर्भ में यह चुनाव भी महत्वपूर्ण है। देखें विरोधी एकता किस हद तक सफल होती है।

नेशनल हैरल्ड मामले में सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ की सुर्खियाँ अभी मिटी भी नहीं थीं कि महाराष्ट्र में शिवसेना सांसद संजय राउत को ईडी ने हिरासत में  ले लिया है। उनसे पहले नवाब मलिक और अनिल देशमुख के अलावा दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन ईडी जाँच के बाद जेल में बंद हैं। 27 जुलाई को  उच्चतम न्यायालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मिले अधिकार को उचित ठहराकर सरकार के हाथ और मजबूत कर दिए हैं।

गिरफ्तारी के पहले संजय राउत ने कहा कि हमारी लड़ाई जारी रहेगी। बेशक जो पाक-साफ होंगे, उन्हें फँसाया नहीं जा सकेगा, पर ईडी की पूछताछ को रोकना संभव नहीं है। इस गतिविधि के राजनीतिक निहितार्थ को समझिए। इसका असर विरोधी दलों की छवि पर पड़ेगा। छवि से ज्यादा बीजेपी की दिलचस्पी उन राज्यों में सक्रियता बढ़ाने में है, जिनमें उसकी सरकार नहीं है। इस लिहाज से झारखंड कांग्रेस के तीन विधायकों की गिरफ्तारी के पीछे भी कोई कहानी लिखी हुई लगती है। कांग्रेस ने भी इन विधायकों पर कार्रवाई की है, पर अंदेशा व्यक्त किया है कि सरकार के खिलाफ साजिश रची जा रही है।

हाल में हुए राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान विरोधी दलों की कतार तोड़कर कुछ सांसदों और विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी। यह प्रवृत्ति केवल बीजेपी की सक्रियता को नहीं बता रही हैं, बल्कि विरोधी-एकता के भीतर की कमजोरी को भी व्यक्त कर रही हैं। झारखंड में द्रौपदी मुर्मू को मिले समर्थन से पहली नजर में लगता है कि यह आदिवासी भावनात्मक अभिव्यक्ति थी। पर यह समर्थन दूसरी तरफ इशारा भी कर रहा है।

कांग्रेस का आरोप है कि तीन विधायकों के पास जो नकदी मिली है, उससे बीजेपी के ऑपरेशन कमल की गंध आ रही है। यह हेमंत सोरेन की सरकार को गिराने की कोशिश है। कांग्रेस की झारखंड इकाई ने रविवार को आरोप लगाया कि प्रदेश की झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन सरकार को गिराने के लिए भाजपा ने पार्टी विधायकों को दस करोड़ रुपये एवं आगे बनने वाली भाजपा सरकार में मंत्री पद का लालच दिया था।

झारखंड की गठबंधन सरकार पहले से ही दबाव में है। मुख्यमंत्री के सहायक पंकज मिश्रा को हाल में ईडी ने गिरफ्तार किया है। ईडी ने हेमंत सोरेन के प्रेस सलाहकार अभिषेक प्रसाद को भी पूछताछ के लिए तलब किया है। उधर राज्यपाल रमेश बैस ने मुख्यमंत्री को मिली माइनिंग लीज़ से जुड़ी शिकायत पर चुनाव आयोग से जाँच करने को कहा है। हेमंत सोरेन की सदस्यता संकट में है।

पिछले एक साल से यहाँ की सरकार को लेकर कयास हैं। महाराष्ट्र में सत्ता-परिवर्तन के बाद कहा गया था कि अब झारखंड की बारी है। बीजेपी की दिलचस्पी जनता को यह समझाने में है कि राज्यों के लिए डबल इंजन की सरकार होनी चाहिए। यानी केंद्र और राज्य दोनों में। ऐसे नहीं होगा, तो येन-केन प्रकारेण राजनीतिक-संकट पैदा होगा। कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश में उसे सफलता मिली है। अब झारखंड पर निगाहें हैं। झारखंड उन राज्यों में से एक है, जो संसाधनों के लिहाज से संपन्न हैं, पर जहाँ की राजनीति बड़ी अस्थिर रही है।

सन 2000 के बाद से, जब से यह राज्य बना है केवल एक मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा कर पाया है। यहाँ के राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। बीजेपी के हाथ से यह राज्य निकल गया है, पर उसके मजबूत राजनीतिक संगठन है, जिसकी मदद से वह इसे वापस लेना चाहती है। राज्य में इस समय विधानसभा का सत्र चल रहा है, जो राजनीतिक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। अभी तक सरकार के करीबी निर्दलीय विधायक भाजपा के करीब चले गए हैं। कांग्रेस पार्टी के भीतर भी टकराव हैं। यहाँ यदि सरकार गिरी तो विरोधी दलों की गठबंधन राजनीति को धक्का लगेगा।

अब राजनीति के सबसे व्यावहारिक मंच पर विरोधी दलों की भूमिका को देखें। संसद का मॉनसून सत्र इस समय चल रहा है। 18 जुलाई से शुरू हुआ यह सत्र 12 अगस्त तक चलेगा। सत्र का आधा समय निकल चुका है। 29 जुलाई तक लोकसभा में 26 फीसदी और राज्यसभा में 19 फीसदी काम हुआ था। इस सत्र के शुरू होते समय संसद के सामने 35 विधेयक लंबित थे। इस सत्र में इनमें से आठ को पास करने और 24 नए विधेयक पेश करने का विचार है।

संसदीय कर्म में अवरोध आने या गिरावट के लिए सरकारें आमतौर पर विपक्ष पर आरोप लगाती हैं। अब भी कहा जा रहा है कि विरोधी दलों के हंगामा के कारण  दोनों सदनों की कार्यवाही बार-बार बाधित हुई है। हंगामा करने वाले सांसदों पर कार्रवाई भी हुई, अब तक राज्यसभा से 23 सांसदों को और लोकसभा से चार सांसदों को निलंबित किया जा चुका है।

महंगाई, बढ़ती कीमतों, जरूरी खाने-पीने के सामान पर जीएसटी की दरों में बढ़ोतरी, अग्निपथ भरती योजना और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर लगातार चर्चा की माँग कर रहा है। पर सभी मामलों पर मतैक्य नहीं है। मसलन अग्निपथ स्कीम को लेकर कुछ दल चाहते हैं कि इसे पूरी तरह खत्म कर दिया जाए, जबकि कुछ अग्निवीरों को राज्य सरकारों की नौकरियाँ देने के प्रश्न पर विचार करने का सुझाव दे रहे हैं। संभवतः अग्निपथ पर चर्चा होगी, पर विरोधी दलों के परस्पर विरोधी विचारों से असमंजस भी पैदा हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद आशा थी कि मुख्य विरोधी दलों के बीच गठबंधन को लेकर एकता स्थापित हो जाएगी। चुनाव परिणाम आने के तीन साल बाद भी यह एकता नजर नहीं आ रही। क्या आपको नजर आती है?  

कोलकाता के दैनिक वर्तमान में प्रकाशित यह आलेख बिहार में हुए सत्ता परिवर्तन के पहले का है

 

 

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