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Sunday, April 5, 2020

कोरोना ‘इंफोडेमिक’ उर्फ नए ज़माने की जंग


दुनियाभर में दहशत का कारण बनी कोविड-19 बीमारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फरवरी में एक नए सूचना प्लेटफॉर्म डब्लूएचओ इनफॉर्मेशन नेटवर्क फॉर एपिडेमिक्स (एपी-विन) का उद्घाटन किया। इस मौके पर डब्लूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रॉस गैब्रेसस ने कहा, बीमारी के साथ-साथ दुनिया में गलत सूचनाओं की महामारी भी फैल रही है। हम केवल पैंडेमिक (महामारी) से नहीं इंफोडेमिक से भी लड़ रहे हैं। सोशल मीडिया के उदय के बाद दुनिया के हर विषय पर सूचना की बाढ़ है। इस बाढ़ में सच्ची-झूठी हर तरह की जानकारियाँ हैं। इसी बाढ़ में उतरा रही है अगले कुछ महीनों में उपस्थित होने वाली वैश्विक राजनीति की झलकियाँ। इंफोडेमिक से लड़ने का दावा करने वाले टेड्रॉस महाशय खुद विवाद का विषय बने हुए हैं।

कोरोनावायरस के कारण वैश्विक मंच पर पारदर्शिता और व्यवस्थागत कुशलता की पुरानी बहस फिर से शुरू हो गई है। क्या पश्चिमी शैली का लोकतंत्र अकुशल और नाकारा है? क्या ऐसे हालात से निपटने में चीन जैसी कमांड व्यवस्था ही सफल होगी? व्यवस्था से जुड़े सवालों से ज्यादा अमेरिका और चीन के आर्थिक-राजनीतिक वर्चस्व के सवाल उठ रहे हैं। ये सवाल संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं तक जा रहे हैं। खासतौर से विश्व स्वास्थ्य संगठन पर सीधे आरोप लग रहे हैं कि उसने न केवल चीन में पैदा हो रहे संकट की अनदेखी की, बल्कि जैसा चीन ने कहा, वैसा दोहरा दिया।
केंद्र में चीन
हालांकि चीन में कोरोना वायरस के मामले नवम्बर में शुरू हो गए थे, पर शुरू में माना गया कि वे मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण के कारण नहीं हैं। चीन ने 31 दिसंबर को डब्लूएचओ को सूचित किया कि विशेषज्ञों का अनुमान के मुताबिक इस वायरस से अक्टूबर में ही मनुष्य का संक्रमण हो गया है। इसके बावजूद डब्लूएचओ ने चीन सरकार को न तो नाराज करना चाहा और न वहां कोई जांच दल भेजा। 14 जनवरी को डब्लूएचओ ने ट्वीट किया कि चीन सरकार के अनुसार मनुष्य में संक्रमण नहीं है। डब्लूएचओ और चीन की संयुक्त टीम फरवरी के मध्य में वुहान गई और उसने जो रिपोर्ट दी वह चीन सरकार के विवरणों से भरी थी। इतना ही नहीं इस टीम ने चीन की तारीफ के पुल बाँध दिए।  
फरवरी में चीन गई डब्लूएचओ टीम के प्रमुख ब्रूस एलवार्ड ने बीजिंग की प्रेस कांफ्रेंस में कहा, चीन ने महामारियों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई में विजय हासिल की है। यदि मुझे कोविड-19 बीमारी लगे, तो मैं अपना इलाज चीन में कराना चाहूँगा। दूसरी तरफ वॉल स्ट्रीट जरनल में प्रकाशित एक लेख में बार्ड कॉलेज के प्रोफेसर वॉल्टर रसेल मीड ने चाइना इज द रियल सिक मैन ऑफ एशिया शीर्षक आलेख में कहा कि इस संकट के दौरान चीन का प्रबंधन निहायत घटिया रहा है और वैश्विक कम्पनियों को अपनी सप्लाई चेन को चीन-मुक्त (डीसिनिसाइज) करना चाहिए।
इसके बाद कई पश्चिमी देशों ने चीन से आने वाले सर्जिकल मास्क की सप्लाई रोक दी है। दूसरी तरफ इस आलेख के वाक्यांश सिक मैन ऑफ एशिया ने इतना गहरा घाव किया कि चीन ने अपने यहाँ से वॉल स्ट्रीट जरनल के तीन रिपोर्टरों को निकाल बाहर किया। प्रागैतिहासिक काल से अब तक महामारियों के किस्से खोद कर निकाले गए। यह साबित किया जा रहा है कि बीसवीं सदी की ज्यादातर महामारियाँ किसी न किसी न किसी रूप में चीन से जन्मीं। इसबार भी कहा जा रहा है कि चीन में हुई मौतों का तादाद कहीं ज्यादा है। चूंकि वहाँ की व्यवस्था अपारदर्शी है, इसलिए सच क्या है, इसका पता लगाना बेहद मुश्किल है।
पश्चिमी विफलता
सवाल है कि क्या बीमारी से निपटने में अमेरिका की भूमिका प्रभावशाली रही है? क्या सच नहीं है कि इटली, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देश भी बुरी तरह इसके लपेटे में हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने ही स्वास्थ्य सलाहकारों की अनदेखी करके पेशबंदी नहीं की और अब पूरा देश घबराया हुआ है। बावजूद इसके ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर कोरोना वायरस को लेकर चीन की तरफदारी का आरोप लगाया है। अमेरिकी सीनेटर  मार्को रूबियो और कांग्रेस सदस्य माइकल मैकॉल कहा कि डब्ल्यूएचओ के निदेशक टेड्रॉस एडेनॉम गैब्रेसस की निष्ठा और चीन के साथ उनके संबंधों को लेकर अतीत में भी बातें उठी हैं।
एक और अमेरिकी सांसद ग्रेग स्टीव का कहना ही कि डब्ल्यूएचओ चीन का मुखपत्र बन गया है। ट्रंप ने कहा है कि इस महामारी पर नियंत्रण पाने के बाद डब्ल्यूएचओ और चीन दोनों को ही इसके नतीजों का सामना करना होगा। पर चीन इस बात को स्वीकार नहीं करता। उसके विदेश विभाग के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने ट्विटर पर कुछ सामग्री पोस्ट की है, जिसके अनुसार अमेरिकी सेना ने इस वायरस की ईजाद की है। ऐसा ही आरोप ईरान ने लगाया है।
जैविक हथियार
अमेरिकी की एक कंपनी ने चीन सरकार पर 20 ट्रिलियन डॉलर हरजाने का मुकदमा ठोका है। इस कंपनी का आरोप है कि चीन ने इस वायरस का प्रसार एक जैविक हथियार के रूप में किया है। टेक्सास की कंपनी बज फोटोज, वकील लैरी क्लेमैन और संस्था फ्रीडम वाच ने मिलकर चीन सरकार, चीनी सेना, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरॉलॉजी, वुहान इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर शी झेंग्ली और चीनी सेना के मेजर जनरल छन वेई पर यह मुकदमा किया है। मुकदमा करने वालों का कहना है कि चीनी प्रशासन एक जैविक हथियार तैयार कर रहा था, जिसकी वजह से यह वायरस फैला है। उन्होंने 20 ​ट्रिलियन डॉलर का हर्जाना मांगा है, जो चीन के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी से भी ज्यादा है।
अमेरिकी कंपनी ने कहा है कि चीन में एक माइक्रोबायोलॉजी लैब वुहान में है जो नोवेल कोरोना जैसे वायरस पर काम कर सकती है। बहुत मुमकिन है कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरॉलॉजी से लीक हुआ हो। चीन ने वायरस के बारे में सूचनाओं को राष्ट्रीय सुरक्षा प्रोटोकॉल का बहाना बनाकर छिपाया। अमेरिकी ने इस सिलसिले में चीन के साथ रूस और ईरान को भी जोड़ा है। अमेरिका के अनुसार इन देशों ने सही जानकारी दी होती तो कोरोना को फैलने से रोका जा सकता था। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने इन तीनों देशों पर कोरोना को लेकर 'दुष्प्रचार' फैलाने का भी आरोप लगाया है।
अमेरिकी पत्रकारों का कहना था कि यदि चीन ने तीन हफ्ते पहले कदम उठाए होते, तो बीमारी फैल नहीं पाती। उन्हीं दिनों ताइवान सरकार ने आरोप लगाया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन की चापलूसी कर रहा है। हमने दिसम्बर में ही डब्लूएचओ को संकेत दे दिया था कि कुछ गलत होने जा रहा है, पर हमारी अनदेखी की गई। डब्लूएचओ केवल चीन को मान्यता देता है, ताइवान को नहीं।
ताइवान का कहना था कि हमें चीन स्थित अपने सूत्रों से खबर मिली थी कि इस बीमारी से जुड़े डॉक्टर भी बीमार हो रहे हैं। इससे लगता है कि यह बीमारी मनुष्यों से मनुष्यों में संक्रमित हो रही है। इस बात की सूचना हमने 31 दिसम्बर को डब्लूएचओ से सम्बद्ध इंटरनेशनल हैल्थ रेग्युलेशन (आईएचआर) और चीनी अधिकारियों दोनों को दी। ताइवान का कहना है कि आईएचआर की आंतरिक वैबसाइट में महामारियों से जुड़ी सभी देशों की सूचनाओं को दर्शाया जाता है, पर हमारी सूचनाएं उसमें नहीं दिखाई जाती हैं।
भावी राजनीति
दिसंबर के अंत में जब वुहान में वायरस के पहले मामले सामने आए थे, तो ह्विसिल ब्लोवर डॉक्टर ली वेन लियांग ने अपने सहकर्मियों और अन्य लोगों को चीनी सोशल मीडिया ऐप वीचैट पर बताया कि देश में सार्स जैसे वायरस का पता चला है। इसपर पुलिस ने वेन लियांग को धमकियाँ दीं। कोरोना की चपेट में आने से फरवरी में उसकी मौत भी हो गई थी। बाद में कम्युनिस्ट पार्टी की अनुशासन मामलों की समिति ने माना कि इस मामले में हमसे गलती हुई।
इस महामारी के पीछे आने वाले वैश्विक आर्थिक रिश्तों की आहट है। नवम्बर 2002 में चीन के ग्वांगदोंग प्रांत में सार्स वायरस ने इसी किस्म का हमला किया था। तब भी चीन ने विश्व समुदाय को यह बताने में देर की कि किस तरह सार्स महामारी सब जगह फैल सकती है। चीनी अर्थव्यवस्था के उठान का वह समय था। सन 2001 में चीन विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना था। सन 2008 में वहाँ ओलिम्पिक खेल होने वाले थे। चीन उसका निर्वाह कर ले गया, पर क्या अब वह हालात को संभाल पाएगा?

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