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Friday, April 3, 2020

दुनिया का गुस्सा अब चीन पर फूटेगा

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कुछ दिनों में कोरोना संक्रमण के मामले 10 लाख हो जाएंगे और मौतों का आंकड़ा 50,000 तक पहुंच जाएगा. यूरोप के कुछ देशों से ऐसी खबरें भी हैं कि नए मामलों की संख्या में कमी आ रही है, पर अमेरिका को लेकर चिंताएं बढ़ रहीं हैं, जहाँ संक्रमित व्यक्तियों की संख्या सवा दो लाख के आसपास होने जा रही है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अगले दो हफ्ते बेहद मुश्किल होंगे. इस सिलसिले में बने कार्यबल की सदस्य डॉ डेबोरा ब्रिक्स ने ह्वाइट हाउस के एक प्रेजेंटेशन में बताया है कि आगामी 30 अप्रैल तक सोशल डिस्टेंसिंग रखने के बावजूद देश में मरने वालों की संख्या एक लाख तक पहुंच सकती है. ट्रंप ने कहा, हमें बेहद मुश्किल दो हफ्तों का सामना करना है. ये दो हफ्ते बहुत-बहुत दर्दनाक होने वाले हैं.
इतना स्पष्ट है कि अमेरिकी जनता और प्रशासन इस महामारी के बाद बहुत बड़े फैसले करेगा. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद भी वैश्विक राजनीति में इतने बड़े बदलाव नहीं आए होंगे, जितने अब आ सकते हैं. इस नए भूचाल का केंद्र चीन बनेगा. इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इस महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था इस साल मंदी में चली जाएगी. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत और चीन इसके अपवाद हो सकते हैं, पर दुनिया के देशों को खरबों डॉलर का नुकसान होगा.

डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पर कोरोना वायरस संकट को लेकर चीन का पक्ष लेने का आरोप लगाया है. ट्रंप का दावा है कि वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसी के इस रवैये से हम नाराज हैं. ट्रंप ही नहीं अमेरिका के अनेक सांसदों ने चीन और डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रॉस गैब्रेसस की निष्ठा पर सवाल उठाए हैं. अमेरिकी प्रतिनिधि सदन के सदस्य ग्रेग स्टीव ने आरोप लगाया कि महामारी के दौरान डब्ल्यूएचओ ने चीन के मुखपत्र की भूमिका अदा की है. उन्होंने कहा कि महामारी पर नियंत्रण के बाद डब्ल्यूएचओ और चीन दोनों को ही इसके नतीजों को भुगतना होगा.
अमेरिकी सीनेटर मार्को रूबियो और कांग्रेस सदस्य माइकल मैकॉल कहा कि डब्ल्यूएचओ के निदेशक टेड्रॉस एडेनॉम गैब्रेसस की निष्ठा और चीन के साथ उनके संबंधों को लेकर अतीत में भी बातें उठी हैं. इन आरोपों के बावजूद चीन यह बात मानने को तैयार नहीं है. सके विदेश विभाग के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने ट्विटर पर कुछ सामग्री पोस्ट की है, जिसके अनुसार अमेरिकी सेना ने इस वायरस की ईजाद की है. ऐसा ही आरोप ईरान ने लगाया है.
सच यह है कि दिसंबर के अंत में जब वुहान में वायरस के पहले मामले सामने आए थे, तो वहाँ के डॉक्टर ली वेन लियांग ने अपने सहकर्मियों और अन्य लोगों को चीनी सोशल मीडिया ऐप ‘वीचैट’ पर बताया था कि देश में सार्स जैसे वायरस का पता चला है. इसपर पुलिस ने वेन लियांग को धमकियाँ दीं. बाद में उसका इंटरव्यू न्यूयॉर्क टाइम्स पर प्रकाशित भी हुआ. कोरोना की चपेट में आने से उस डॉक्टर की फरवरी में मौत भी हो गई थी. बाद में चीन सरकार ने माना कि इस मामले में हमसे गलती हुई.
कोरोनावायरस के कारण वैश्विक मंच पर पारदर्शिता और व्यवस्थागत कुशलता की पुरानी बहस फिर से शुरू हो गई है. क्या पश्चिमी शैली का लोकतंत्र अकुशल और नाकारा है? क्या ऐसे हालात से निपटने में चीन जैसी कमांड व्यवस्था ही सफल है? व्यवस्था से जुड़े सवालों से ज्यादा अमेरिका और चीन के आर्थिक-राजनीतिक वर्चस्व के सवाल उठ रहे हैं. ये सवाल संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं तक जा रहे हैं. पिछले हफ्ते इस मामले को एस्तोनिया ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाने की कोशिश की, जिसे चीन ने स्वीकार नहीं किया. गत 31 मार्च तक चीन सुरक्षा परिषद का रोटेशन के आधार पर अध्यक्ष था.
चीन पर पहला आरोप यह है कि उसने इस मामले को दुनिया से छिपाया. हालांकि वहाँ कोरोना वायरस के मामले नवम्बर में शुरू हो गए थे, पर चीन कहता रहा कि वे मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण के कारण नहीं हैं. इसके बावजूद डब्लूएचओ ने चीन सरकार को न तो नाराज करना चाहा और न वहां कोई जांच दल भेजा. डब्लूएचओ और चीन की संयुक्त टीम फरवरी के मध्य में वुहान गई और उसने जो रिपोर्ट दी वह चीन सरकार के विवरणों से भरी थी. इतना ही नहीं इस टीम ने चीन की तारीफ के पुल बाँध दिए. 
फरवरी में चीन गई डब्लूएचओ टीम के प्रमुख ब्रूस एलवार्ड ने बीजिंग की प्रेस कांफ्रेंस में कहा, चीन ने महामारियों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई में विजय हासिल की है. यदि मुझे कोविड-19 बीमारी लगे, तो मैं अपना इलाज चीन में कराना चाहूँगा. दूसरी तरफ वॉल स्ट्रीट जरनल में प्रकाशित एक लेख में बार्ड कॉलेज के प्रोफेसर वॉल्टर रसेल मीड ने ‘चाइना इज द रियल सिक मैन ऑफ एशिया’ शीर्षक आलेख में कहा कि इस संकट के दौरान चीन का प्रबंधन निहायत घटिया रहा है और वैश्विक कम्पनियों को अपनी सप्लाई चेन को चीन-मुक्त (डीसिनिसाइज) करना चाहिए.
इस आलेख के वाक्यांश ‘सिक मैन ऑफ एशिया’ ने इतना गहरा घाव किया कि चीन ने अपने यहाँ से वॉल स्ट्रीट जरनल के तीन रिपोर्टरों को निकाल बाहर किया. अमेरिकी की एक कंपनी ने चीन सरकार पर 20 ट्रिलियन डॉलर हरजाने का मुकदमा ठोका है. इस कंपनी का आरोप है कि चीन ने इस वायरस का प्रसार एक जैविक हथियार के रूप में किया है. एक माइक्रोबायोलॉजी लैब वुहान में है जो नोवेल कोरोना जैसे वायरस पर काम कर रही है. कोरोना वायरस का असर खत्म हो जाने के बाद चीन में आर्थिक गतिविधियाँ फिर से शुरू हो गई हैं, पर शेष विश्व में स्थितियाँ सामान्य होने के बाद सब कुछ वैसा ही नहीं रहेगा, जैसा आज है.

2 comments:

  1. बहुत ही आवश्यक था यह आलेख।
    ऐसे समय में, जब पूरा विश्व और पूरी मानवता एक अंजान साजिश का शिकार बन चुकी है तो किसी मानवता विरोधी, गैर जवाबदेह मुल्क की, सत्ता-विलासिता कैसे स्वीकार्य हो सकती है।
    यह एक बड़े विनाशक युद्ध व त्रासदी जैसा है।
    डब्ल्यूएचओ और चीन दोनों को ही, इसके नतीजों को भुगतना ही चाहिए। विश्व समुदाय, इस पर गंभीरता से विचार करे।

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  2. चीनी सामान मिलना बन्द तो शायद फिर भी नहीं होगा? सार्थक आलेख।

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