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Monday, December 30, 2019

एसपीजी सुरक्षा को लेकर निरर्थक राजनीतिक विवाद


हमारे देश में राजनेताओं की हैसियत का पता उनके आसपास के सुरक्षा घेरे से लगता है। एक समय था, जब देश में बड़े से बड़े राजनेता और जनता के बीच दूरियाँ नहीं होती थीं, पर अस्सी के दशक में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ने के बाद नेताओं तथा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के बारे में सोचा जाने लगा और उसके लिए विशेष सुरक्षा बल गठित किए गए। यह सब सहज भाव से हुआ था, पर सुरक्षा के अनेक प्रकार के घेरों के कारण यह रुतबे और रसूख का प्रतीक बन गया। राजनेताओं की ऐसी जमात तैयार हो गई, जिन पर खतरा हो या न हो, उन्हें सुरक्षा चाहिए। ऐसे अनेक मौके आए, जब राजनेताओं ने माँग की कि हमें अमुक प्रकार की सुरक्षा दी जाए।
सन 2007 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र सरकार से कहा कि मुझे भी खतरा है, मुझे भी विशेष संरक्षा समूह यानी एसपीजी (स्पेशल प्रोटेक्‍शन ग्रुप) की सुरक्षा दी जाए। यह माँग उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से बाकायदा औपचारिक तरीके से की गई थी। इसे लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच विचार-विमर्श के कई दौर चले और अंततः जनवरी 2008 में केंद्र सरकार ने औपचारिक रूप से उत्तर प्रदेश को सूचित किया कि एसपीजी सुरक्षा केवल वर्तमान प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्रियों तथा उनके निकटवर्ती पारिवारिक सदस्यों को ही दी जाती है। कानूनन यह सम्भव नहीं है।

सुरक्षा नहीं रसूख
सुरक्षा के साथ जुड़े इस रसूख और सम्मान की भावना के कारण ही हाल में एसपीजी सुरक्षा से जुड़ा विषय विवाद का विषय बना। एसपीजी सुरक्षा अधिनियम मूलतः केवल वर्तमान प्रधानमंत्री और उनके परिवार की सुरक्षा के संदर्भ में लाया गया था। इसकी जरूरत सन 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद समझी गई थी। बाद में इस कानून में बदलाव करके पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार के सदस्यों की सुरक्षा इसके अधीन कर दी गई। हाल में सरकार ने जब इस नियम में बदलाव का प्रस्ताव किया, तो कांग्रेस पार्टी ने इसे गांधी परिवार के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई साबित करने का प्रयास किया।
नवंबर के पहले सप्ताह में खबर मिली थी कि सरकार ने गांधी परिवार को मिली एसपीजी सुरक्षा वापस लेने का फैसला किया है। इस खबर को इस रूप में पेश किया गया जैसे सुरक्षा ही वापस ले ली गई है। ऐसा नहीं हुआ था, बल्कि राजनेताओं की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की गई थी। यह काम एक अरसे से चल रहा था। खबर यह थी कि सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी को अब एसपीजी के बजाय जेड प्लस सुरक्षा दी जाएगी। इसके तहत सीआरपीएफ के कमांडो इन नेताओं की सुरक्षा करेंगे। गृह मंत्रालय की एक उच्चस्तरीय बैठक में यह फैसला किया गया था। गृह मंत्रालय अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा की समय-समय पर समीक्षा करता है। मंत्रालय की दृष्टि में गांधी परिवार पर फिलहाल कोई खतरा नहीं है और उसके सदस्यों के लिए एसपीजी के बजाय जेड प्लस सुरक्षा पर्याप्त होगी।
गांधी परिवार का सवाल
यह फैसला सुरक्षा एजेंसियों से मिली सूचनाओं के आधार पर किया गया। इसके कुछ समय पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एसपीजी सुरक्षा भी वापस ली गई थी। यानी कि अब एसपीजी सुरक्षा सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास है। संयोग की बात है कि सुरक्षा व्यवस्था बदलने के कुछ दिन बाद ही 25 नवंबर को प्रियंका गांधी के घर पर सुरक्षा उल्लंघन की एक घटना हुई। सीआरपीएफ सुरक्षा के बावजूद काले रंग की एक एसयूवी कांग्रेस महासचिव के घर में बिना किसी रुकावट के प्रवेश कर गई। संयोग से यह कार कांग्रेस के ही एक नेता की थी।
संयोग यह भी था कि घर की रक्षा कर रहे दस्ते को सूचना दी गई थी कि राहुल गांधी एक काली एसयूवी में आने वाले हैं। संयोग से उन्हें उसी समय आना था, जिस समय इस कार ने प्रवेश किया। सुरक्षा दल को गलत फहमी हुई या जो भी कारण रहा हो, उन्होंने इस गाड़ी को बेरोक-टोक भीतर जाने दिया। सीआरपी कमांडो दस्ते की यह चूक फौरन बड़ी खबर बन गई। प्रियंका गांधी के कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि, 'हां, यह (सुरक्षा उल्लंघन) हुआ था, लेकिन कोई भी अनहोनी नहीं हुई। प्रियंका गांधी ने अच्छी तरह से आगंतुकों से बात की, तस्वीरें लीं और वे वापस चले गए। लेकिन इसके बाद कार्यालय में मौजूद अन्य लोगों ने इस मुद्दे को सीआरपीएफ के साथ उठाया।
इसके बाद विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा अपने आप में विमर्श का विषय बनने के बजाय गांधी परिवार की सुरक्षा केंद्रीय विषय बन गई। प्रियंका गांधी के घर पर हुई चूक को इसका माध्यम बनाया गया। इन सब बातों के पीछे सुरक्षा का सवाल होता, तब एक अलग बात थी। यहाँ लगता है कि इसे सम्मान का विषय बना लिया गया। कांग्रेस पार्टी की नेहरू-गांधी परिवार से जुड़ी निष्ठा यहाँ सामने आ रही थी। बहरहाल इस घटना के बाद संसद ने एसपीजी कानून में संशोधन करने वाले विधेयक को गत 3 दिसम्बर को स्वीकृति दे दी, जिसके तहत प्रधानमंत्री तथा पद छोड़ने के पांच साल बाद तक पूर्व प्रधानमंत्री को यह विशिष्ट सुरक्षा घेरा प्रदान किया जाएगा।
सुरक्षा हटी नहीं, बदली
इस कानून के पास होते वक्त सरकार ने स्पष्ट किया कि यह कानून गांधी परिवार के सदस्यों को ध्यान में रखकर नहीं लाया गया है, क्योंकि इसे लाने से पहले ही इस परिवार के तीन सदस्यों की सुरक्षा श्रेणी को एसपीजी से बदलकर जेड प्लस कर दिया गया था। गृहमंत्री अमित शाह ने विशेष संरक्षा ग्रुप (संशोधन) विधेयक 2019 पर राज्यसभा में हुई चर्चा के जवाब में स्पष्ट किया कि यह विधेयक न तो राजनीतिक प्रतिशोध की भावना के साथ और न ही किसी परिवार विशेष को ध्यान में रखकर लाया गया है। उन्होंने कहा कि इस प्रस्तावित कानून के कारण यदि सबसे ज्यादा किसी का नुकसान होगा तो वह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, क्योंकि इस शीर्ष पद से हटने के पांच साल बाद उनसे यह विशिष्ट सुरक्षा घेरा वापस ले लिया जाएगा। सरकार का उद्देश्य एक सुसंगत व्यवस्था को स्थापित करने का है।
गृहमंत्री के स्पष्टीकरण के बावजूद कांग्रेस सदस्य संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने वाम दलों और द्रमुक के सदस्यों के साथ सदन से वॉकआउट किया। विधेयक की धारा 4 में एक उपधारा का प्रस्ताव किया गया है कि प्रधानमंत्री और उनके साथ निवास करने वाले उनके निकट परिजनों को एसपीजी सुरक्षा मिलेगी। इसी के साथ किसी पूर्व प्रधानमंत्री और उनके आवंटित आवास पर उनके निकट परिजनों को संबंधित नेता के प्रधानमंत्री पद छोड़ने की तारीख से पांच साल तक एसपीजी सुरक्षा प्रदान की जाएगी। गृहमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि गांधी परिवार के सदस्यों की सुरक्षा हटाई नहीं गई है, बदली गई है। उन्हें सुरक्षा जेड प्लस सीआरपीएफ कवर, एएसएल (अग्रिम सुरक्षा प्रबंध) और एम्बुलेंस के साथ दी गई है।
उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, वीपी सिंह, इंद्र कुमार गुजराल, पीवी नरसिंह राव आदि के परिजनों की भी एसपीजी सुरक्षा हटा ली गई, लेकिन किसी ने आपत्ति नहीं जताई। यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भी एसपीजी सुरक्षा हटाई गई, किंतु कांग्रेस ने इसका विरोध भी नहीं किया। इसपर गुलाम नबी आजाद ने एक पत्र दिखाया और कहा कि हमने पत्र भेजकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एसपीजी सुरक्षा हटाए जाने पर एतराज व्यक्त किया था। इसपर शाह ने कहा, फ़ॉरमेलिटी (औपचारिकता) एवं विरोध में अंतर होता है आजाद साहब।
सुरक्षा पर राजनीति
कानून में संशोधन हो चुका है, इसलिए अब किसी और बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, पर सवाल है कि क्या विशिष्ट नेताओं की सुरक्षा को लेकर भी राजनीति संभव है? बेहतर हो कि ऐसे सवालों पर राजनीतिक दलों को सरकार के साथ अपने स्तर पर बात करके मामले को सुलझाना चाहिए। दुर्भाग्य है कि आतंकवादी खतरे और देश-विरोधी शक्तियों के सिर उठाने के कारण स्थिति यह पैदा हुई है कि हमें विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए विशिष्ट दल गठित करने पड़े हैं और उनके लिए विशेष उपकरणों की व्यवस्था करनी पड़ी है। इस सुरक्षा व्यवस्था के लिए रक्षकों को चौबीसों घंटे न केवल निगरानी करनी होती है, बल्कि किसी भी समय हमले का सामना करने के लिए तैयार रहना होता है। केवल एसपीजी सुरक्षा ही नहीं अन्य श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्थाओं के लिए भी देश बेशकीमती संसाधनों को खर्च करता है।
सन 1989 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी चुनाव हार गई और विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में नई सरकार बनी। उस सरकार ने राजीव गांधी की एसपीजी सुरक्षा हटा ली। मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद उनके परिवार की सुरक्षा का सवाल उठा। सन 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में बनी सरकार ने अधिनियम में संशोधन करके उनके परिवार के दस साल के लिए एसपीजी सुरक्षा की व्यवस्था कराई। सन 1991 से 1999 तक सोनिया गांधी के परिवार का कोई सदस्य संसद में चुनकर नहीं गया, पर सोनिया गांधी 10-जनपथ वाले बंगले में रहीं और आज भी रहती हैं। एसपीजी केवल सुरक्षा व्यवस्था ही नहीं है। उसके तहत आवागमन के विशेष नियम भी हैं। एसपीजी सुरक्षित व्यक्ति विशेष वाहनों में ही यात्रा कर सकते हैं। वे भारतीय वायुसेना के विशेष हेलीकॉप्टरों और विमानों से यात्रा कर सकते हैं। मूलतः यह व्यवस्था प्रधानमंत्री के लिए है, जो अमेरिकी राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के लिए की गई व्यवस्था जैसी है।
एसपीजी की पृष्ठभूमि
सन 1981 से पहले, भारत के प्रधानमंत्री के आवास पर प्रधानमंत्री की सुरक्षा पुलिस उपायुक्त के प्रभारी दिल्ली पुलिस के विशेष सुरक्षा जिले की जिम्मेदारी हुआ करती थी। अक्टूबर 1981 में, इंटेलिजेंस ब्यूरो ने नई दिल्ली में और नई दिल्ली के बाहर प्रधानमंत्री को सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक विशेष कार्यबल का गठन किया। यह वह समय था, जब देश में खालिस्तानी आंदोलन चरम पर था। अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, समीक्षा सचिवों की एक समिति ने तय किया की प्रधानमंत्री की रक्षा का काम नई दिल्ली और बाहर दोनों जगह एक विशेष समूह के अधीन कर दिया जाए। इसके बाद फरवरी 1985 में गृह मंत्रालय ने बीरबल नाथ समिति का गठन किया।
मार्च 1985 में, बीरबल नाथ समिति ने एक स्पेशल प्रोटेक्‍शन यूनिट के गठन की सिफारिश की। 8 अप्रेल 1985 को यही स्पेशल प्रोटेक्‍शन यूनिट गठित हुई, जिसका नाम था स्पेशल प्रोटेक्‍शन ग्रुप यानी एसपीजी। तीन साल तक इस ग्रुप की स्थापना के लिए विशेष कानून नहीं बना था, पर जून 1988 में इसके लिए विशेष अधिनियम भी पास किया गया। उस अधिनियम के तहत यह ग्रुप प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद इस अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसके तहत पूर्व प्रधानमंत्री और उनके नजदीकी पारिवारिक सदस्यों को 10 वर्ष तक सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की गई। फिर सन 2002 में इसमें एक और एक और संशोधन किया गया जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार को प्रदान की गई सुरक्षा की अवधि को कम करके एक वर्ष कर दिया गया और यह प्रावधान किया गया कि इस अवधि को खतरे को देखते हुए बढ़ाया जा सकता है। सोनिया गांधी और उनके परिवार के मामले को अपवाद मानकर उन्हें लगातार एसपीजी संरक्षण दिया गया।
कौन हैं सुरक्षाकर्मी?
एसपीजी फोर्स कैबिनेट सचिवालय के अन्तर्गत काम करत है। इसमें वर्तमान समय में तीन हजार लोग काम करते हैं। इसके प्रमुख को डायरेक्टर कहा जाता है, जिनका दर्जा कैबिनेट सचिवालय में सचिव का होता है। इसे अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा करने वाली यूएस सीक्रेट सर्विस की पद्धति पर तैयार किया गया है। इसमें शामिल जवान पुलिस, अर्धसैनिक बलों बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीएफ और सीआरपीएफ वगैरह से लिए जाते हैं। प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात एसपीजी के स्पेशल एजेंट काले रंग के पश्चिमी शैली के फॉर्मल परिधान पहनते हैं और आँखों पर काले चश्मे लगाते हैं। उनके पास संचार के विशेष उपकरण और हैंडगन होते हैं। कई मौकों पर वे सफारी सूट भी पहनते हैं। इनके साथ वर्दीधारी कमांडो भी होते हैं, जिनके पास विशेष हथियार होते हैं। इनके जूते भी विशेष होते हैं। इनके हाथों में खास तरह के दस्ताने होते है जो चोट लगने से बचाते हैं।
भारत में एसपीजी के अलावा विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए एक्स, वाई, ज़ेड और ज़ेड+ सुरक्षा की चार श्रेणियाँ हैं। एक्स में दो गार्ड होते हैं, वाई में 11, ज़ेड में 22 और ज़ेड+ में 55 गार्ड होते हैं। जेड+ सुरक्षा देश के करीब 30 विशिष्ट व्यक्तियों को मिली हुई है। इन समूहों में नेशनल सिक्योरिटी गार्ड यानी एनएसजी के कमांडो भी होते हैं। एनएसजी को वीवीआईपी सिक्योरिटी के लिए नहीं बनाया गया था। यह आतंक-विरोधी बल है, जिसका गठन 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद किया गया था। इसके जवानों की काली वर्दी के कारण उन्हें ब्लैक कैट कमांडो भी कहा जाता है।

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