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Monday, November 4, 2019

वॉट्सएप जासूसी के पीछे कौन?


वॉट्सएप मैसेंजर पर स्पाईवेयर पेगासस की मदद से दुनिया के कुछ लोगों की जासूसी की खबरें आने के बाद से इस मामले के अलग-अलग पहलू एकसाथ उजागर हुए हैं। पहला सवाल है कि यह काम किसने किया और क्यों? जासूसी करना-कराना कोई अजब-अनोखी बात नहीं है। सरकारें भी जासूसी कराती हैं और अपराधी भी कराते हैं। दोनों एक-दूसरे की जासूसी करते हैं। राजनीतिक उद्देश्यों को लिए जासूसी होती है और राष्ट्रीय हितों की रक्षा और मानवता की सेवा के लिए भी। यह जासूसी किसके लिए की जा रही थी? और यह भी कि इसकी जानकारी कौन देगा?
इसका जवाब या तो वॉट्सएप के पास है या इसरायली कंपनी एनएसओ के पास है। बहुत सी बातें सिटिजन लैब को पता हैं। कुछ बातें अमेरिका की संघीय अदालत की सुनवाई के दौरान पता लगेंगी। इन सवालों के बीच नागरिकों की स्वतंत्रता और उनके निजी जीवन में राज्य के हस्तक्षेप का सवाल भी है। सबसे बड़ा सवाल है कि तकनीकी जानकारी के सदुपयोग या दुरुपयोग की सीमाएं क्या हैं? फिलहाल इस मामले के भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भ अलग-अलग हैं।

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि भारत सरकार वॉट्सएप पर नागरिकों की निजता के उल्लंघन पर चिंतित है। हमने वॉट्सएप से ये बताने को कहा है कि किस तरह का उल्लंघन हुआ और वह करोड़ों भारतीयों की निजता की सुरक्षा किस तरह कर रही है। वॉट्सएप का कहना है कि हमने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और भारत सरकार को भी मई में ही इस बात की जानकारी दे दी थी। वॉट्सएप ने अपने तकनीकी दोष को भी तभी ठीक कर लिया था। पर मई में जो सायबर सुरक्षा का मामला था, वह अब राजनीतिक जासूसी और व्यक्ति के निजी जीवन की रक्षा का सवाल बन गया है।
भारत सरकार का कहना है कि जनवरी तक इस किस्म के मामलों से निपटने की व्यवस्था तय हो जाएगी। देश की सायबर सुरक्षा नीति घोषित होने वाली है, जिसमें इन बातों का जिक्र भी होगा। शुरू में यह मामला तकनीकी शब्दावली और उससे जुड़े पेचों तक सीमित था। पर बात केवल तकनीकी नहीं है, इसलिए इस मामले की लहरें अब उठ रही हैं।
अब जो हो रहा है, वह उपसंहार है, जिसके राजनीतिक और तकनीकी निहितार्थ हैं। इसमें भ्रम हैं और खतरे भी। लगे हाथ राहुल गांधी ने इसे राफेल मामले से जोड़कर बहती गंगा में हाथ धो लिए हैं। आप निष्कर्षों पर पहुँच चुके हैं, तो फिर पूरे जवाब भी दीजिए। सवाल यह है कि इस अंतरराष्ट्रीय जासूसी का सूत्रधार कौन है? इसरायली कंपनी का नाम आते ही कुछ लोगों ने इसरायल पर जिम्मेदारी डाल दी। भारत में विरोधी नेताओं ने सरकार पर हमला बोला है।
देश के करीब दो दर्जन पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन हैक हुए हैं। क्या कारण है इस हैकिंग का और कौन चाहता है उनकी जासूसी? यह सिर्फ संयोग नहीं है कि यह जासूसी तब हुई जब भारत में लोकसभा चुनाव चल रहे थे। पर क्या ऐसा पहली बार हुआ था? क्या यूपीए सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के दफ़्तर में और सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह के यहां जासूसी नहीं हुई थी? कौन था सके पीछे?
फेसबुक के स्वामित्व वाले वॉट्सएप ने गत 29 अक्तूबर को अमेरिका में कैलिफोर्निया की संघीय अदालत में इसरायली फर्म एनएसओ के खिलाफ मुकदमा दायर किया है कि उसने वॉट्सएप का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका और कुछ अन्य देशों में करीब 1400 लोगों के मोबाइल फोनों और उपकरणों पर मैलवेयर भेजकर उनकी जासूसी की। इस मैलवेयर का नाम पेगासस है। इसमें टार्गेट यूजर के पास एक लिंक भेजा जाता है। जैसे ही यूजर लिंक को क्लिक करता है, उसके फोन पर प्रोग्राम इंस्टॉल हो जाता है।
बताया जाता है कि वायरस के नवीनतम संस्करण में यूजर के क्लिक की जरूरत भी नहीं होती। पेगासस इंस्टॉल होने के बाद यूजर की जानकारियाँ इसे भेजने वाले को मिलने लगती हैं। फोन के माइक्रोफोन और कैमरा का इस्तेमाल भी होने लगता है। एनएसओ की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया है कि हमारा एकमात्र उद्देश्य लाइसेंस प्राप्त सरकारी ख़ुफ़िया और क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों को आतंकवाद और गंभीर अपराध से लड़ने में मदद करने के लिए टेक्नोलॉजी देना है। हमारी तकनीक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने के लिए डिज़ाइन नहीं की गई है और न इसकी इजाज़त है।
पेगासस के बारे में सबसे पहले 2016 में खबरें आई थीं। तब पता लगा था कि यूएई के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता अहमद मंसूर के आईफोन 6 पर एक एसएमएस भेजकर उसे हैक किया गया था। इसके बाद एपल ने अपने ऑपरेटिंग सिस्टम में एक पैच डालकर इस दोष को दूर कर लिया था। सितंबर 2018 में टोरंटो विवि के मंक स्कूल की सिटिजन लैब ने बताया कि यूजर की जानकारी के बगैर और उसकी अनुमति के बगैर भी पेगासस को इंस्टॉल किया जा सकता है। इसे जीरो डे एक्सप्लॉइट कहा गया। यानी कि जैसे ही किसी ऑपरेटिंग सिस्टम में मामूली सा दोष नजर आए, उसी वक्त हमला। उस दोष को दूर करने का समय भी फोन कंपनी को नहीं मिलता।  
स्पाईवेयर पेगासस के शिकार हुए लोगों में वैश्विक स्तर पर राजनयिक, सरकारों के राजनीतिक विरोधी, पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी शामिल हैं। जिनकी जासूसी की गई है उनमें भारतीय पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल हैं। वॉट्सएप ने यह साफ़ नहीं किया है कि किसके कहने पर पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के फ़ोन हैक किए गए। कंपनी ने कहा कि मई में उसे एक ऐसे साइबर हमले का पता चला जिसमें उसकी वीडियो कॉलिंग के ज़रिए एप का इस्तेमाल करने वाले लोगों को मैलवेयर (वायरस) भेजा गया।
अप्रेल से मई के महीने में 20 देशों के यूजर्स के फोन हैक किए गए। कंपनी ने भारत में इससे प्रभावित लोगों की संख्या नहीं बताई है, लेकिन कहा है कि उनमें भारतीय यूजर्स भी हैं। फिलहाल करीब दो दर्जन भारतीयों के नाम सामने आए हैं। कुछ ऐसे सवाल भी हैं, जिनके जवाब गोपनीयता के आवरण में छिपे हैं। इस मैलवेयर का इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी होता है। ऐसा है तो शायद बहुत सारे विवरणों का पता लगाना मुश्किल होगा। जिन 20 देशों के यूजर्स के फोन हैक हुए हैं, क्या उनमें को साम्य है? क्या उनकी सुरक्षा के तार कहीं जुड़ते हैं? फिलहाल हमें सूचनाओं का इंतजार करना होगा।





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