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Wednesday, October 23, 2019

हरियाणा विधानसभा चुनाव की पाँच खास बातें


हरियाणा में मतदान हो चुका है। गुरुवार को पता भी लग जाएगा कि कौन जीता और कौन हारा। हार और जीत के अलावा कुछ ऐसी बातें हैं, जिनपर गौर करने की जरूरत होगी।
1.भावी राजनीति की दिशा
हरियाणा विधानसभा के 2014 के चुनाव परिणामों से कई मायनों में सबको हैरत हुई थी। लोकसभा चुनाव में बीजेपी में कुल दस में से सात सीटें जीती थीं। प्रेक्षक यह समझना चाहते थे कि यह जीत कहीं तुक्का तो नहीं थी। लोकसभा चुनाव के बाद हुए 13 राज्यों के उप चुनावों से कुछ प्रेक्षकों ने निष्कर्ष निकाला कि ‘मोदी मैजिक’ ख़त्म हो गया। हरियाणा ने इस संभावना को गलत सिद्ध किया था। हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम विस्मयकारी थे। इनके बाद ही लगा कि केवल लोकसभा में ही नहीं उत्तर भारत में राज्यों की राजनीति में भी बड़ा उलट-फेर होने वाला है। गठबंधन सहयोगियों के बगैर हरियाणा में मिली सफलता से भाजपा का आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षाएं बढ़ीं। इसबार का चुनाव भारतीय जनता पार्टी की इस ताकत का परीक्षण है। हरियाणा के जातीय समीकरण पिछले चुनाव में बिगड़ गए थे। उनकी स्थिति क्या है, इस चुनाव में पता लगेगी। राज्य की 90 में से 35 सीटों पर जाट मतदाता का वर्चस्व है। सवाल है कि वह है किसके साथ?
2.विरोधी ताकत कौन?
एक्ज़िट पोल बता रहे हैं कि राज्य में बीजेपी पिछली बार से भी ज्यादा बड़ी ताकत बनकर उभरेगी। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि मुख्य विरोधी दल कौन सा होगा? हरियाणा में पार्टियों के बनने और बिगड़ने का लंबा इतिहास है। यहाँ विशाल हरियाणा पार्टी, हरियाणा विकास पार्टी, हरियाणा जनहित कांग्रेस और इनेलो बनीं और फिर पृष्ठभूमि में चली गईं। पाँच साल पहले तक कांग्रेस और इनेलो दो बड़ी ताकतें होती थीं। पर 2014 के विधानसभा में दोनों का पराभव हो गया। जनता पार्टी के लोकदल घटक की प्रतिनिधि इनेलो सीट और वोट प्रतिशत के आधार पर पिछले विधानसभा चुनाव के पहले तक दूसरे नंबर की ताकत थी। बाद में इनेलो और कांग्रेस दोनों आंतरिक टकराव की शिकार हुईं हैं। इस चुनाव से पता लगेगा कि इन दलों की ताकत क्या है और राज्य की राजनीति किस दिशा में जा रही है। लोकसभा के पिछले चुनावों के पहले उम्मीद थी कि विरोधी दल कोई बड़ा मोर्चा बनाने में कामयाब होंगे। ऐसा नहीं हुआ। चुनाव के ठीक पहले प्रदेश कांग्रेस के शिखर नेतृत्व में हुए बदलाव के परिणामों पर भी नजर रखनी होगी।

3.जेजेपी फैक्टर का असर
इसबार के चुनाव में एक नई जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) भी उतर रही है।  इंडियन नेशनल लोकदल के भीतर दो भाइयों के झगड़े के कारण दुष्यंत चौटाला ने पिछले साल यह पार्टी बनाई है। दुष्यंत चौटाला 2014 के लोकसभा चुनाव में हिसार से चुनाव जीतकर संसद में गए थे। इनेलो में टूट के बाद उन्होंने नई पार्टी बनाई। इस साल जनवरी में हुए जींद उपचुनाव में पार्टी ने दिग्विजय चौटाला को उतारा। हालांकि यहाँ से बीजेपी को जीत मिली, पर जेजेपी प्रत्याशी ने दूसरा स्थान प्राप्त किया। जेजेपी फैक्टर चुनाव को कितना प्रभावित करेगा। यह देखना होगा। क्या दुष्यंत चौटाला देवी लाल परिवार के ध्वज वाहक बनकर उभरेंगे? युवाओं में बेरोजगारी के मुद्दे पर जेजेपी युवकों के बीच जगह बना रही है। कांग्रेस से टूटकर आए अशोक तँवर भी जेजेपी की मदद कर रहे हैं। देखना होगा कि क्या यह पार्टी हरियाणा में दूसरे नंबर की ताकत बनकर उभर सकती है। देखना यह भी है कि आम आदमी पार्टी और स्वराज्य इंडिया की ताकत कितनी है।
4.एंटी इनकंबैंसी  
पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस के प्रति नाराजगी का लाभ मिला था। पर इसबार उसकी सरकार है। क्या उसके खिलाफ एंटी इनकंबैंसी नहीं है? सवाल है कि क्या जनता अपने मसलों पर ध्यान नहीं देगी? हरियाणा में बेरोजगारी एक बड़ा मसला है। आर्थिक मंदी के कारण ऑटोमोबाइल सेक्टर में रोजगार कम हो रहे हैं। हरियाणा में देश की कुछ महत्वपूर्ण कंपनियों के कारखाने हैं। सवाल है कि हरियाणा का स्थानीय मसला  क्या है? भारतीय जनता पार्टी ने तमाम पुराने विधायकों के टिकट काटकर नए लोगों को टिकट दिए हैं। इसकी वजह से पार्टी में भितरघात का खतरा भी है। बीजेपी ने 90 में से 75 सीटें जीतने का टारगेट तय किया है। पर हल्का मतदान एंटी इनकंबैंसी के तर्क का समर्थन नहीं कर रहा है। सन 2014 के चुनाव में 76 फीसदी वोट पड़े थे. जबकि इसबार 65 फीसदी वोट पड़े हैं। ज्यादा मतदान होने पर माना जाता है कि जनता नाराज होकर वोट डालने निकली है। कम मतदान होने पर माना जाता है कि विरोधी दल वोटर को बाहर निकालने में विफल रहे।
5.खट्टर फैक्टर
पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का घोषित मुख्यमंत्री का चेहरा कोई नहीं था। मनोहर लाल खट्टर का तो नाम भी नहीं था। वे 18 वर्ष बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान होने वाले पहले गैर-जाट नेता हैं। राज्य में दस में से छह मुख्यमंत्री जाट रहे हैं, पर खट्टर के आगमन के बाद समीकरण बदल गए हैं। उनके मुख्यमंत्री बनने की कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। पर अब वे न केवल हरियाणा की राजनीति में ताकतवर नेता के रूप में उभरे हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी के बड़े नेताओं में शामिल हो गए हैं। कई मायनों में वे परंपरागत राजनीति से अलग नेता हैं। पार्टी के कार्यकर्ता मानते हैं कि उनकी साफ-सुथरी छवि उनकी सबसे बड़ी मददगार है। हरियाणा में उनकी सफलता भारतीय जनता पार्टी की पंजाब और दिल्ली में सहायता करेगी। दिल्ली में कुछ महीने के बाद चुनाव होने वाले हैं और वे निश्चित रूप से बीजेपी के स्टार प्रचारक होंगे। बहरहाल पहले यह देखना होगा कि हरियाणा का खट्टर फैक्टर कितना प्रभावशाली साबित होता है। किसी भी राष्ट्रीय दल को सफलता दिलाने में क्षेत्रीय क्षत्रपों की भूमिका होती है। मनोहर लाल खट्टर का उदय पार्टी के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।











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