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Thursday, October 10, 2019

स्विस बैंकों की सूची क्या तोड़ेगी काले धन का जाल?


अंततः भारत सरकार को स्विस बैंकों में जमा धन के बारे में आधिकारिक जानकारियों का सिलसिला शुरू हो गया है. इसी हफ्ते की खबर है कि सरकार को स्विस बैंकों में भारतीय खाता धारकों के ब्यौरे की पहली लिस्ट मिल गई है.  यह सूचना भारत को स्विट्ज़रलैंड सरकार ने ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इनफॉर्मेशन (एईओआई) की नई व्यवस्था के तहत दी है. यह जानकारी केवल भारत के लिए विशेष नहीं है, बल्कि स्विट्जरलैंड के फेडरल टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन ने 75 देशों को दी है. भारत भी इनमें शामिल है.

इस सूची से भारत को कितने काले धन की जानकारी मिलेगी और हम कितना काला धन वसूल कर पाएंगे, ऐसे सवालों का जवाब फौरन नहीं मिलेगा. इन विवरणों की गहराई से जाँच करने की जरूरत होगी. अलबत्ता महत्वपूर्ण वह व्यवस्था है, जिसके तहत यह जानकारी मिली है. यह एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य दुनियाभर में टैक्स चोरी को रोकना तथा काले धन पर काबू पाना है. भारत ने काफी संकोच के बाद 3 जून 2015 को स्विट्ज़रलैंड के साथ इस समझौते पर दस्तखत किए थे और यह व्यवस्था इस साल सितंबर से लागू हुई है.

भारत 3 जून, 2015 को पेरिस में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, कोस्टारिका, इंडोनेशिया और न्यूजीलैंड के साथ बहुपक्षीय सक्षम प्राधिकारी समझौता (एससीएए) में शामि‍ल हुआ था. इससे पहले बर्लिन में 29 अक्‍टूबर 2014 को 51 देश एमसीसी में शामि‍ल हुए और स्विट्ज़रलैंड 19 नवंबर 2014 को एमसीसीए में शामि‍ल होने वाला 52वां देश था. दूसरे देशों को जानकारी उपलब्‍ध कराने के दृष्टिकोण से भारत में इन मानकों को लागू करने के लिए भारतीय आयकर अधिनियम 1961 की धारा 285बीए को संशोधित करके जरूरी कानूनी बदलाव किए गए हैं.

इस व्यवस्था की शुरुआत ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने की थी और इसे सामान्यतः कॉमन रिपोर्टिंग स्टैंडर्ड (सीआरएस) कहा जाता है. दुनियाभर में यह चलन है कि बड़ी कमाई करने वाले लोग अपने देश में टैक्स देकर साफ-सुथरे तरीके से धन रखने के बजाय ऐसे देशों में पैसा रखते हैं, जहाँ टैक्स की बचत होती है. ऐसे तमाम टैक्स हेवन दुनिया में बने हैं. जी-20 और ओईसीडी देशों ने मिलकर यह समझौता किया है, जिसके परिणाम धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं. इसमें अमेरिका की भी भूमिका है, क्योंकि 9/11 के बाद यह बात भी सामने आई थी कि आतंकी संगठनों को तमाम काले धंधों से भी पैसा मिलता है.

अब जो जानकारियाँ भारत को दी गई हैं, उनमें स्विट्जरलैंड स्थित सभी वित्तीय संस्थाओं में प्रत्येक भारतीय का एकाउंट नंबर, क्रेडिट बैलेंस, तथा हर प्रकार के वित्तीय लेन-देन की सूचनाएं हैं. जो खाते बंद कर दिए गए हैं, उनकी सूचनाएं भी इनमें हैं. अब ये सूचनाएं हर साल दी जाएंगी. प्रत्येक कैलेंडर वर्ष के पहले नौ महीनों में यह जानकारी दी जाएगी. यानी कि इस व्यवस्था के तहत अगली सूचना सितंबर, 2020 में साझा की जाएगी.

इसके पहले भी वित्तीय अनियमितताओं के आधार पर भारत सरकार 100 भारतीय खातों के बारे में जानकारी हासिल कर चुकी है. सवाल है कि क्या यह जानकारी जनता को दी जाएगी? जुलाई में देश के विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने लोकसभा को एक लिखित उत्तर में बताया था कि जो सूचना प्राप्त होगी वह गोपनीयता की शर्तों से भी जुड़ी होगी. अलबत्ता इस सूचना के बाद यह पता लगाना आसान होगा कि किस ने किस प्रकार की वित्तीय अनियमितता की है. इन सूचनाओं के आधार पर भारत बे-हिसाबी धन रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है.

काला धन एक समस्या जरूर है, पर उसे ज्यादा बड़ी समस्या हमारी संस्थागत शिथिलता है. इन दिनों सहकारी बैंकों के घोटालों की खबरें बता रही हैं कि संस्थाएं मुस्तैदी से काम नहीं कर रही हैं. बावजूद तमाम आरोपों के भारत में काला धन वैश्विक प्रवृत्ति के मुकाबले कम है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट, और नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाएड इकोनॉमिक रिसर्च को देश में मौजूद काले धन के बारे में अनुमान लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. तीनों ने अलग-अलग आकलन दिए.

अलबत्ता स्विस अर्थशास्त्री फ्रेडरिक श्नाइडर के नेतृत्व में किए गए अध्ययन ‘शैडो इकोनॉमीज ऑल ओवर द वर्ल्ड : न्यू एस्टीमेट फॉर 162 कंट्रीज फ्रॉम 1999 टू 2007’ के अनुसार भारत में काले कारोबार का औसत सकल उत्पाद का 23 से 26 फीसदी है जबकि पूरे एशिया में यह 28 से 30 फीसदी है. अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में यह 41-44 फीसदी है. नोटबंदी के पीछे इसी काले धन को बाहर लाने की कामना रही होगी, पर सच यह है कि काले धन वालों का चक्र काफी मजबूत है. नोटबंदी के दौरान उनके नोट सबसे पहले बदले गए.

काले धन का मसला व्यवस्था से जुड़ा है. आम नागरिक के रूप में क्या आपके सामने ऐसे मौके नहीं आए जब किसी जेवर विक्रेता ने आपसे कहा हो कि रसीद लेने पर अँगूठी की कीमत इतनी होगी और रसीद न लेने पर इतनी. क्या यह सच नहीं है कि मकानों की खरीद-फरोख्त में काफी बड़ी रकम काले धन के रूप में होती है? हम निवेश के रूप में सोना खरीदना पसंद करते हैं, जो प्रायः नकद और बगैर पक्की रसीद के खरीदा-बेचा जाता है. क्या यह सच नहीं है कि लगभग सारे के सारे राजनीतिक दल कॉरपोरेट हाउसों से चंदा नकदी में लेते हैं? सारी घूसखोरी नकदी से होती है. चुनाव के वक्त लगभग सभी राजनीतिक दलों का ज्यादातर खर्च काले पैसे से होता है.

हो सकता है कि हम स्विस बैंकों में रखे काले धन का पता लगा लें, पर ज्यादा बड़ा सवाल देश के भीतर बैठे काले धन का है. वही काला धन बाहर जाता है और फिर किसी न किसी रूप में देश में आता है. जिसे हम एफडीआई कहते हैं अक्सर उसमें स्वदेशी काला धन मिला होता है.



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