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Sunday, August 25, 2019

आर्थिक सुधारों के सूत्रधार जेटली


इस बात को निःसंकोच कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी को केवल आर्थिक मामलों में ही नहीं, हर तरह के विषयों में अरुण जेटली का काफी सहारा था। एनडीए सरकार के पहले दौर में अनेक मौकों पर सरकार का पक्ष सामने रखने के लिए उन्हें खड़ा किया गया। राज्यसभा में अल्पमत होने के कारण सरकार के सामने जीएसटी और दिवालिया कानून को पास कराने की चुनौती थी, जिसपर पार पाने में जेटली को सफलता हासिल हुई। ये दो कानून आने वाले समय में मोदी सरकार की सफलता के सूत्रधार बनेंगे। खासतौर से जीएसटी को लेकर जेटली ने विभिन्न राज्य सरकारों को जितने धैर्य और भरोसे के साथ आश्वस्त किया वह साधारण बात नहीं है।
इस साल मई में जब नई सरकार का गठन हो रहा था, अरुण जेटली ने जब कुछ समय के लिए कोई सरकारी पद लेने में असमर्थता व्यक्त की थी, तभी समझ में आ गया था कि समस्या गंभीर है। जून, 2013 में जब बीजेपी के भीतर प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी को लेकर विवाद चल रहा था, जेटली ने खुलकर मोदी का साथ दिया। बीजेपी और कांग्रेस के बीच जब भी महत्वपूर्ण मसलों पर बहस चली, जेटली ने पार्टी का वैचारिक पक्ष बहुत अच्छे तरीके से रखा। मोदी सरकार बनने के बाद उन्होंने न केवल वित्तमंत्री का पद संभाला, बल्कि जरूरत पड़ने पर रक्षा और सूचना और प्रसारण मंत्रालय की बागडोर भी थामी। वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी मंत्री रहे। उन्होंने वाणिज्य और उद्योग, विधि, कम्पनी कार्य तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय संभाले। वे सन 2009 से 2014 तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे।

वित्तमंत्री के रूप में अरुण जेटली ने कुछ ऐसे कदम उठाए, जिनके दूरगामी परिणाम होंगे। इनमें पहला बड़ा काम है मौद्रिक नीति कमेटी की स्थापना। यह समिति देश में ब्याज की दरें तय करने का काम करती है। इस समिति की बैठकें साल में कम से कम चार बार होती हैं और यह बैठक के बाद अपने निर्णयों की सूचना देती है। इसमें तीन सदस्य रिजर्व बैंक से होते हैं और तीन सदस्य भारत सरकार द्वारा मनोनीत होते हैं। रिजर्व बैंक का गवर्नर इसका ध्यक्ष होता है। यह समिति देश में मुद्रास्फीति की न्यूनतम और अधिकतम सीमा भी तय करती है। इसकी स्थापना सन 2016 में हुई थी, जिसका पूरा श्रेय अरुण जेटली को जाता है।
वित्तमंत्री के रूप में उनकी दूसरी उपलब्धि थी दिवालिया कानून यानी कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड। देश के राष्ट्रीयकृत बैंकों के कर्जों की वसूली नहीं हो पाने की विकराल समस्या सामने आई। भारत में वर्ष 2016 से पहले ऐसा कोई अकेला कानून नहीं था जो 'इनसॉल्वेंसी एवं बैंकरप्सी' को एक साथ परिभाषित करता हो। पहले इसे परिभाषित करने के लिए 12 कानूनों का इस्तेमाल किया जाता था, जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी अधिक पुराने हो चुके थे। नया कानून लागू होने से ऋणों की वसूली में अनावश्यक देरी और उससे होने वाले नुकसानों से बचा जा सकेगा।
उनकी तीसरी उपलब्धि है गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) विधेयक को संसद से पास कराना और उसे लागू भी कराना। इसे संविधान संशोधन अधिनियम 2017 के रूप में पेश किया गया था। इसे पास कराने के लिए एक तरफ कांग्रेस समेत सभी विरोधी दलों को भरोसे में लिया गया और इसके लागू होने के बाद इससे जुड़े अंतर्विरोधों का सामना अरुण जेटली ने किया। इस कानून से जुड़ी तमाम झूठी-सच्ची बातें आज भी हवा में हैं, पर सच यह है कि देश में टैक्स सुधार की यह अबतक की सबसे बड़ी कोशिश है।
देश के आर्थिक विकास में एक बड़ा अड़ंगा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रास्ते में लगी रुकावटों के कारण है। जेटली को उन रुकावटों को कम करने और प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश को बढ़ाने से जुड़ी नीतियों की रूपरेखा तैयार करने का श्रेय जाता है। इसमें फॉरेन इनवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड की समाप्ति एक बड़ा कदम है। मई, 2017 में केंद्रीय कैबिनेट ने 25 साल पुराने विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) को खत्म करने का फैसला किया। इससे विदेशी पूँजी निवेश के प्रस्तावों पर फैसला जल्द हो सकेगा। इसकी जगह अब एक नया तंत्र काम कर रहा है। आर्थिक सुधार एक लम्बी और जटिल प्रक्रिया है। दिवालिया कानून बनने के बाद उसमें भी बदलाव की जरूरत महसूस की गई है, पर काफी बुनियादी काम अरुण जेटली कर गए हैं। इन बुनियादी बातों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।








1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (26-08-2019) को "ढाल दो साँचे में लोहा है गरम" (चर्चा अंक- 3439) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    अरुण जेटली को सादर नमन...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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