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Saturday, February 2, 2019

बजट में सपने हैं, जुमले और जोश भी!


नरेन्द्र मोदी को सपनों का सौदागर कहा जा सकता है और उनके विरोधियों की भाषा में जुमलेबाज़ भी। उनका अंतरिम बजट पूरे बजट पर भी भारी है। वैसा ही लुभावना और उम्मीदों से भरा, जैसा सन 2014 में उनका पहला बजट था। इसमें गाँवों और किसानों के लिए तोहफों की भरमार है और साथ ही तीन करोड़ आय करदाताओं के लिए खुशखबरी है। कामगारों के लिए पेंशन है। उन सभी वर्गों का इसमें ध्यान रखा गया है, जो जनमत तैयार करते हैं। यानी की कुल मिलाकर पूरा राजनीतिक मसाला है। इसे आप राजनीतिक और चुनावोन्मुखी बजट कहें, तो आपको ऐसा कहने का पूरा हक है, पर आज की राजनीति में क्या यह बात अजूबा है? वोट के लिए ही तो सारा खेल चल रहा है। ऐसा भी नहीं कि इन घोषणाओं से खजाना खाली हो जाएगा, बल्कि अर्थ-व्यवस्था बेहतरी का इशारा कर रही है। इस अंतरिम बजट में सरकार ने सन 2030 तक की तस्वीर भी खींची है। यह वैसा ही बजट है, जैसा चुनाव के पहले होना चाहिए।

इस तस्वीर का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है पाँच साल में पाँच ट्रिलियन और आठ साल में दस ट्रिलियन की अर्थ-व्यवस्था बनना। इस वक्त हमारी अर्थ-व्यवस्था करीब ढाई ट्रिलियन डॉलर की है। अगले 11 साल में भारत के रूपांतरण का जो सपना यह सरकार दिखा रही है, वह भले ही बहुत सुहाना न हो, पर असम्भव भी नहीं है। 

दो हेक्टेयर से कम जोत वाले किसानों सालाना छह हजार रुपये की मदद देने की जो घोषणा की गई है, उसे सार्वभौमिक न्यूनतम आय कार्यक्रम की शुरूआत मान सकते हैं। बेशक यह चुनाव से जुड़ा है, पर इस अधिकार से सरकार को वंचित नहीं कर सकते। अलबत्ता पूछ सकते हैं कि इसे लागू कैसे करेंगे? विशेषज्ञ मानते हैं कि इन्हें लागू करने में कोई दिक्कत नहीं होगी, बल्कि भविष्य में ये स्कीमें ज्यादा बड़े आकार में सामने आएंगी। किसान सम्मान निधि से करीब 12 करोड़ छोटे किसानों का भला होगा। आयुष्मान भारत की तरह यह नई अवधारणा है, जो समय के साथ विकसित होगी। यह स्कीम 1 दिसम्बर 2018 से लागू हो रही है। यानी कि इसकी पहली किस्त चुनाव के पहले किसानों को मिल भी जाएगी।

ज्यादा नाटकीय है पाँच लाख तक की आय का टैक्स-फ्री होना। सायास या अनायास सदन में काफी देर तक मोदी-मोदी हुआ। शायद कुछ ड्राइंग रूमों में भी हुआ होगा। ब्याज पर टीडीएस की सीमा जैसी कुछ और रियायतें भी हैं। इन बातों से मध्यवर्ग को राहत मिलेगी। इस छूट से सरकार पर 18,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा और किसान सम्मान निधि से 75,000 करोड़ रुपये का। सवाल 93,000 करोड़ रुपये के इंतजाम का है।

पिछले चार साल में प्रत्यक्ष करों में 81 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2013-14 में आयकर राजस्व 6.38 लाख करोड़ रुपये था, जो पिछले साल 12 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इसके अलावा जीएसटी भी पिछले साल 97 हजार करोड़ रुपये प्रतिमाह की दर पर आ गया है और जनवरी के महीने में उसने एक लाख की सीमा पार कर ली है। सरकार की वित्तीय स्थिति सुधरी है। कर-अनुपालन सुधरने से बड़े बदलाव सम्भव हैं।

वित्तमंत्री ने कहा कि हमने राजकोषीय घाटे को 3.4 फीसदी के स्तर पर रहने दिया है। हम चाहते तो यह 3.3 फीसदी पर भी रखा जा सकता था, पर इस वक्त छोटे किसानों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए हमने राजकोषीय घाटे को भविष्य में दुरुस्त करने के लिए छोड़ दिया। पता नहीं इसी सरकार को आगे काम देखना है या कोई दूसरा आएगा, पर इसे वापस लेना तो सम्भव नहीं।

बैंकिंग सेक्टर में सुधार हुआ है। 2.6 लाख करोड़ रुपये की पूँजी सरकारी बैंकों में डालने से उनकी हालत सुधरी है। तीन लाख करोड़ रुपये वापस आए भी हैं। इनपर काबू रखने की जरूरत होगी। तीन बैंकों का नाम पीसीए के प्रतिबंधों से हटाया गया है और बाकी बैंक भी दुरुस्त होने वाले हैं। इससे पूँजी निवेश सुधरेगा, पर बड़ा सवाल है कि क्या इनका ढर्रा बदलेगा? पिछले साल के बजट में सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश किया था। इस वक्त हर दिन 27 किलोमीटर हाईवे बन रहे हैं। रेलवे लाइनों पर काम चल रहा है। व्यवस्था का डिजिटाइज़ेशन हो रहा है। दुनिया की सबसे सस्ती मोबाइल फोन सेवा देश में उपलब्ध है। अगले पाँच साल में एक लाख डिजिटल गाँव बनने जा रहे हैं।  टैक्स अनुपालन में सुधार होने से अर्थ-व्यवस्था को गति मिलने की आशा है। इससे टैक्स में भी कमी आएगी। आयकर रिटर्न फाइल करने की व्यवस्था का लगातार सरलीकरण हो रहा है। नोटबंदी का कोई और फायदा हुआ या न हुआ हो, पर 1.06 करोड़ लोगों ने पहली बार रिटर्न फाइल किया। पिछले साल 99.54 प्रतिशत रिटर्न को उसी रूप में स्वीकार कर लिया गया। आने वाले वर्षों में रिटर्न 24 घंटे के भीतर प्रोसेस होंगे और फौरन रिफंड भी हो जाएंगे। ये सारी बातें बदलाव की तरफ इशारा कर रहीं हैं।





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