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Saturday, September 8, 2018

भारत-अमेरिका रिश्तों का अगला कदम

विदेशी मामलों को लेकर भारत में जब बात होती है, तो ज्यादातर पाँच देशों के इर्द-गिर्द बातें होती हैं। एक, पाकिस्तान,दूसरा चीन। फिर अमेरिका, रूस और ब्रिटेन। इन देशों के आपसी रिश्ते हमें प्रभावित करते हैं। देश की आंतरिक राजनीति भी इन रिश्तों के करीब घूमने लगती है। पिछले कुछ हफ्तों की गतिविधियाँ इस बात की गवाही दे रहीं हैं। कश्मीर में घटनाक्रम तेजी से बदला है। उधर पाकिस्तान में इमरान खान की नई सरकार समझ नहीं पा रही है कि करना क्या है। इस बीच न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर दी है कि पाकिस्तानी सेना ने भारत के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। आर्थिक मसलों को लेकर अमेरिका और चीन के रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं। भारत और अमेरिका के रिश्तों में भी कुछ समय से कड़वाहट है। दोनों देशों के बीच लगातार टल रही टू प्लस टू वार्ता अंततः इस हफ्ते हो जाने के बाद असमंजस के बादल हटे हैं।

जून के तीसरे हफ्ते मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के इस्तीफा देने के बाद से कश्मीर में घटनाक्रम तेजी से बदला है। इसके फौरन बाद कश्मीर में एक दशक से जमे जमाए राज्यपाल रहे एनएन वोहरा का कार्यकाल समाप्त हो गया। उनकी जगह अगस्त के तीसरे हफ्ते में सतपाल मलिक ने राज्य के राज्यपाल का पदभार ग्रहण किया। सतपाल मलिक इसके पहले बिहार के राज्यपाल थे। राज्य के पुलिस प्रमुख भी बदल दिए गए हैं। नए राज्यपाल के आने के पहले ही राज्य के शहरी और ग्रामीण निकाय चुनाव इस अक्तूबर और नवम्बर में कराने की घोषणा हो गई थी। उस घोषणा की प्रतिक्रिया में राजनीतिक लहरें बनने लगी हैं।
सवाल है कश्मीर को लेकर सरकार क्या कोई बड़ा फैसला करने वाली है? उधर लोकसभा चुनाव करीब हैं। चुनाव के पहले क्या कोई बड़ा फैसला करना सम्भव है?पर मन यह भी कहता है कि चुनाव के पहले बड़े नाटकीय फैसले सम्भव भी हैं। इस सिलसिले में दिल्ली में गुरुवार को भारत और अमेरिका के रक्षा और विदेश मंत्रियों की बहुप्रतीक्षित टू प्लस टू वार्ताके निहितार्थों को समझने की कोशिश भी करनी चाहिए। भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण तथा अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने इस वार्ता में हिस्सा लिया।

कई किस्म के असमंजस खत्म हुए हैं। कम्युनिकेशंस, कंपैटिबिलिटी, सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कोमकासा) होने से लगता है कि दोनों देश आगे बढ़े हैं। अभी यह सवाल अपनी जगह है कि रूस और ईरान के साथ रिश्तों को लेकर वह भारत के खिलाफ पाबंदियां लगाएगा या नहीं?अमेरिका ने सभी देशों से कहा है कि वे 4 नवंबर तक ईरान से अपने तेल का आयात शून्य कर लें। उसके बाद प्रतिबंध लागू हो जाएंगे।
बदलता वैश्विक परिप्रेक्ष्य
दुनिया के बदलते हालात और खासतौर से भारत-पाकिस्तान और चीन के बदलते रिश्तों के बरक्स यह बातचीत बहुत महत्वपूर्ण है। यह पहला मौका था जब विदेश नीति और रक्षा नीति को एक मंच पर आकर तय किया गया। इस सम्मेलन में दोनों देशों ने कुछ ऐसे समझौते भी किए, जो लंबे समय से लटके हुए थे।इनमें सबसे महत्वपूर्ण है कोमकासा। इसे दोनों देशों के रिश्तों में मील का पत्थर बताया गया है।यह समझौता दोनों देशों के रिश्तों को अगले स्तर पर ले जाएगा।
कोमकासा उन तीन समझौतों में से एक है जिसे अमेरिका फौजी रिश्तों के लिहाज से बुनियादी मानता है। इसके पहले दोनों देशों के बीच लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरंडम ऑफ़ एग्रीमेंट (लोमोआ) पर दस्तखत हो चुके हैं। इन दो समझौतों के बाद अब 'बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फ़ॉर जियो-स्पेशियल कोऑपरेशन (बेका) की दिशा में दोनों देश बढ़ेंगे।दोनों देशों ने अपने रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच हॉटलाइन स्थापित करने का फैसला भी किया है। इन बातों के अलावा हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में दोनों देशों के पारस्परिक सहयोग पर भी बातचीत केंद्रित रही।
भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया चतुष्कोणीय सुरक्षा सहयोग पर बात कर रहे हैं। यह सहयोग स्वाभाविक रूप से चीनी रक्षा-प्रणाली से संतुलन बैठाने की कोशिश है। माइक पोम्पिओ ने संयुक्त ब्रीफिंग में कहा कि हम वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उभरने का पूरी तरह से समर्थन करते हैं तथा हम अपनी साझेदारी के लिए भारत की समान प्रतिबद्धता का स्वागत करते हैं। कोमकासाके तहत भारत को अमेरिका से महत्वपूर्ण रक्षा संचार उपकरण हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा और अमेरिका तथा भारतीय सशस्त्र बलों के बीच अंतर-सक्रियता के लिए महत्वपूर्ण संचार नेटवर्क तक उसकी पहुंच होगी।
संयुक्त बयान में कहा गया है कि तेजी से बढ़ते अपने सैन्य संबंधों की पहचान करते हुए दोनों पक्षों ने तीन-सेनाओं के अभ्यास के साथ-साथ संयुक्त रूप से सैन्य प्लेटफॉर्मों और उपकरणों के विस्तार का दायरा बढ़ाने का भी फैसला किया। दोनों देशों की तीनों सेनाओं (यानी थलसेना, नौसेना और वायु सेना) का अभ्यास अगले वर्ष होगा। व्यावहारिक रूप से यह बड़ा फैसला है।
आतंकवाद पर चोट
इसमें दो राय नहीं कि पिछले 18 साल में अमेरिका ने पाकिस्तान से पैदा होने वाली आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ भारत का साथ दिया है। अमेरिका ने न केवल लश्करे तैयबा और जैशे मोहम्मद पर प्रतिबंध लगाएं हैं,बल्कि हाफिज सईद जैसे लोगों पर इनाम भी घोषित किए हैं। भारत को कई प्रकार की खुफिया जानकारियाँ अमेरिका के माध्यम से मिलती हैं और भारत भी अमेरिका को जानकारियाँ मुहैया कराता है। इसके बावजूद यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वह पाकिस्तान के खिलाफ कोई निर्णायक कार्रवाई करेगा। पाकिस्तान पश्चिम एशिया के साथ रिश्ते बनाए रखने में अमेरिका के लिए सेतु का काम करता है।
रूस से बढ़ती दूरी
भारत एक तरफ अमेरिका के साथ सामरिक समझौते कर रहा है, वहीं उसकी रूस से दूरियाँ बढ़ती नजर आ रही हैं। पर यह इतना सरल बात नहीं है, जितना नजर आ रहा है। भारत की सामरिक शक्ति का तीन चौथाई भाग रूसी तकनीक पर आश्रित रहा है। भले ही अब उसमें कमी आई हो, पर वह एकदम से समाप्त भी नहीं हो सकता। आज भी भारत को जो तकनीक चाहिए, वह पूरी तरह अमेरिकी भरोसे पर पूरी नहीं हो सकता। मसलन हवाई हमलों से रक्षा के लिए भारत जिस एस-400 प्रणाली को खरीद रहा है, उसके समकक्ष अमेरिकी प्रणाली एक तो उतनी मारक नहीं है, दूसरे काफी महंगी है। सम्भवतः अमेरिका ने अपनी पैट्रियट प्रणाली भारत को देने की पेशकश की है। भारत ने अमेरिका के सामने यही दलील दी है कि हमारे सामने विकल्प क्या है?
एस-400 मिसाइलों और अन्य रक्षा प्लेटफॉर्म खरीदने की भारत की योजना पर अमेरिका का कहना है कि हम दशकों से चले आ रहे भारत-रूस रक्षा और सैन्य सहयोग की पृष्ठभूमि को समझते हैं। अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने आश्वासन दिया कि रूस के साथ उसके संबंध भारत-अमेरिका के भावी सहयोग को प्रभावित नहीं करेंगे।
और ईरान से रिश्ते
टू प्लस टू वार्ता को तीन हिस्सों में बाँटा गया था। पहले हिस्से में अगले दस साल का खाका खींचा गया। इसमें एच1बी वीजा और पूँजी निवेश जैसे मुद्दे भी उठे। दूसरे भाग में दोनों देशों के बीच रक्षा समझौते हुए। तीसरे में अन्य देशों से रिश्तों को लेकर बात हुई। यहाँ रूस और ईरान के मुद्दे उठे। अमेरिकी इच्छा के बावजूद भारत ने ईरान से तेल संबंधों में कटौती करने या कम करने के मामले पर किसी तरह का भरोसा या वादा नहीं दिया। वहीं अमेरिका ने इन मुद्दों पर कोई दबाव बढ़ाने का संकेत भी नहीं दिया।
बातचीत के दौरानभारत ने देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए ईरानी कच्चे तेल पर निर्भरता के बारे में अमेरिका को जानकारी दी। साथ ही पूछा कि हम ईरान से तेल नहीं लें, तो कहाँ से लें?इस पर अमेरिकी पक्ष ने कहा कि हम इस स्थिति से निपटने में मदद करेंगे और दोनों पक्ष इस मुद्दे पर बातचीत करेंगे।भारत ने प्रतिबंधों से प्रभावित ईरान में चाबहार बंदरगाह परियोजना में भारत की भागीदारी के महत्व का जिक्र किया, खासकर अफगानिस्तान के साथ व्यापार के लिए।
एनएसजी की सदस्यता
भारत की एनएसजी सदस्यता चीन के विरोध के कारण खटाई में पड़ी है। टू प्लस टू वार्ता के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बताया कि अमेरिका के साथ इस बात के लिए भी सहमति बनी है कि वह मिलकर भारत को एनएसजी सदस्यता दिलवाने की दिशा में प्रयास करेगा। चीन पर अमेरिका असर डाल पाएगा या नहीं, यह अलग सवाल है। अलबत्ता पिछले कुछ महीनों में भारत ने चीन के साथ रिश्तों को भी दुरुस्त किया है। क्या वे इतने दुरुस्त हुए हैं कि भारत को एनएसजी की सदस्यता मिल जाए? कहना मुश्किल है, क्योंकि चीन की प्रतिबद्धता पाकिस्तान के साथ है। बहरहाल सवाल अब भी तमाम बाकी हैं।


नवोदय टाइम्स में प्रकाशित

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