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Tuesday, September 18, 2018

मोदी के ‘स्वच्छाग्रह’ के राजनीतिक मायने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 सितंबर से स्वच्छता ही सेवा अभियानशुरू किया है, जो 2 अक्टूबर तक चलेगा. इस 2 अक्टूबर से महात्मा गांधी का 150वाँ जयंती वर्ष भी शुरू हो रहा है. व्यापक अर्थ में यह गांधी के अंगीकार का अभियान है, जिसके सामाजिक और राजनीतिक निहितार्थ भी हैं. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने गांधी, पटेल और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं को अपने साथ जोड़ा है. उनके कार्यक्रमों पर चलने की घोषणा भी की है. यह एक प्रकार की 'सॉफ्ट राजनीति' है. इसका प्रभाव वैसा ही है, जैसा योग दिवस का है. मोदी ने गांधी को अंगीकार किया है, जिसका विरोध कांग्रेस नहीं कर सकती. 
अगले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्टूबर को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति) का प्रतिमा का अनावरण भी करेंगे, जो दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा है. पिछले चार साल में नरेंद्र मोदी सरकार ने न केवल कांग्रेस के सामाजिक आधार को ध्वस्त करने की कोशिश की है, बल्कि उसके लोकप्रिय मुहावरों को भी छीना है. उनके स्वच्छ भारत अभियान का प्रतीक चिह्न गांधी का गोल चश्मा है. गांधी के सत्याग्रह के तर्ज पर मोदी ने स्वच्छाग्रहशब्द का इस्तेमाल किया.

इस स्वच्छता कार्यक्रम के व्यावहारिक अर्थ भी हैं. यह केवल हवाई काम नहीं है. सफाई और सैनिटेशन आधुनिक समाज का अनिवार्य अंग है. गांधी ने स्वच्छता को अस्पृश्यता, स्वास्थ्य और अर्थ-व्यवस्था के कारण राष्ट्रीय आंदोलन  से जोड़ा था. उनके सत्याग्रह अभियान का महत्वपूर्ण अंग था यह स्वच्छता अभियान. इसे उन्होंने भारत आने के पहले दक्षिण अफ्रीका में ही शुरू कर दिया था. उनका कहना था स्वराज हमारी स्वच्छ सड़कों पर से होकर आएगा. दुर्भाग्य से स्वतंत्रता मिलने के बाद हम गांधी के इस अभियान पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाए.  
गांधी ने 2 नवम्बर 1919 के नवजीवन में लिखा, हमारे अनेक रोगों की उत्पत्ति का मूल कारण हमारे पाखाने अथवा हमारे जंगल जाने की आदत में है. प्रत्येक घर में पाखाने की आवश्यकता है...गलियों के बीच में थूकना नहीं चाहिए, नाक साफ नहीं करनी चाहिए...गलियों में कूड़ा नहीं फेंका जाना चाहिए, इस नियम के बारे में समझाने की आवश्यकता नहीं है. गांधी जी ने इस विषय में काफी विस्तार से और कई बार लिखा है, जिससे समझ में आता है कि वे इसे बहुत ज्यादा महत्व देते थे. वे इस सिलसिले में पश्चिमी देशों से सीखने की सलाह भी देते थे.
मोदी सरकार ने अपने पहले साल से ही इसे शुरू कर दिया था. यह सब अनायास नहीं हुआ. जून 2014 में लोकसभा के पहले सत्र में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने अभिभाषण में नई सरकार की जिन प्राथमिकताओं को गिनाया था, उनमें एक थी, ‘स्वच्छ भारतकी स्थापना. नरेंद्र मोदी ने नारा दिया, 'पहले शौचालय, फिर देवालय. ' राष्ट्रपति ने इसी तर्ज पर कहा, देश भर मे स्वच्छ भारत मिशनचलाया जाएगा और ऐसा करना महात्मा गांधी को उनकी 150वीं जयंती पर हमारी श्रद्धांजलि होगी जो वर्ष 2019 में मनाई जाएगी.
मोदी ने 15 अगस्त 2014 को लालकिले के प्राचीर से कहा, क्या हमें कभी दर्द हुआ है कि हमारी मां और बहनों को खुले में शौच करना पड़ता है? गांव की गरीब महिलाएं रात की प्रतीक्षा करती हैं. जब तक अंधेरा नहीं उतरता है, तब तक वे शौच को बाहर नहीं जा सकतीं हैं. क्या हम अपनी मां और बहनों की गरिमा के लिए शौचालयों की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं?’
पिछले साल 9 अगस्त क्रांति दिवस संकल्प दिवसके रूप में मनाने का आह्वान करके मोदी ने कांग्रेस की एक और पहल को छीना था. अगस्त क्रांति के 75 साल पूरे होने पर बीजेपी सरकार ने जिस स्तर का आयोजन किया, उसकी उम्मीद कांग्रेस पार्टी ने नहीं की होगी. मोदी ने 1942 से 1947 को ही नहीं जोड़ा है,  2017 से 2022 को भी जोड़ दिया. मोदी सरकार की योजनाएं 2019 के आगे जा रही हैं. स्वच्छ भारत अभियान भी अगले साल के अक्टूबर तक जा रहा है.
स्वच्छ भारत मिशन ने चार साल पूरे कर लिए हैं. इसके तहत देशभर में सात करोड़ से ज्यादा शौचालय बने हैं. सरकारी दावों के अनुसार 90 फीसदी भारतीयों को शौचालय की सुविधा उपलब्ध है. इन नए शौचालयों की दशा और रख-रखाव को लेकर शिकायतें भी हैं, पर सामाजिक अभियान के रूप ने इसने चेतना जगाई भी है. देश के सवा चार लाख से भी अधिक गांव, 430 जिले और 2800 नगर, शहर और कस्बे और 29 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश खुले में शौच से मुक्त घोषित हो चुके हैं. अब इनके सोशल ऑडिट की जरूरत है कि वास्तव में ये किस तरह काम कर रहे हैं.
सरकार ने 2 अक्टूबर 2019 तक ग्रामीण भारत में 1.2 करोड़ और शौचालयों का निर्माण करके खुले में शौच मुक्त भारत बनाने का लक्ष्य रखा है. यह कार्यक्रम 1 अप्रैल 1999 से शुरू हुए व्यापक ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का पुनर्गठित रूप है. उस कार्यक्रम को यूपीए सरकार ने 1 अप्रैल 2012 को निर्मल भारत अभियान (एनबीए) नाम दिया था. मोदी सरकार ने इस अभियान को बड़ा रूप और आकार दिया, साथ ही गांधी से जोड़कर सांकेतिक रूप से यह भी साबित करने की कोशिश की कि गांधी की विरासत पूरे देश की है.
मोदी की राजनीति में नारों का विशेष महत्व है. उन्होंने देशवासियों को इस संदर्भ में एक नया नारा दिया है,न गंदगी करूँगा और न करने दूंगा. उनका कहना है कि स्वच्छ भारत मिशन के पीछे कोई राजनीति नहीं है, पर इसका परोक्ष राजनीतिक प्रभाव होगा. उनके विरोधी भी इस अभियान की मुखालफत नहीं कर पाएंगे.
चुनाव करीब हैं और अब सरकार के नए कार्यक्रम सामने आएंगे. हाल में किसानों के समर्थन मूल्य के बारे में घोषणाएं हुईं हैं. आयुष्मान भारत के नाम से एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू हो रहा है. उज्ज्वला और मुद्रा जैसी योजनाएं जमीनी स्तर पर चर्चा का विषय हैं. नवम्बर-दिसम्बर में चार या पाँच (तेलंगाना को शामिल करने पर) विधानसभा चुनाव होंगे. स्वच्छ भारत चुनाव जिताऊ कार्यक्रम नहीं भी हो, छवि बनाने वाला तो है.




inext में प्रकाशित

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-09-2018) को "दिखता नहीं जमीर" (चर्चा अंक- 3099) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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