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Friday, May 25, 2018

मोदी का एक साल और...



मोदी सरकार के पिछले चार साल से ज्यादा महत्वपूर्ण है अगला एक साल। पिछले चार साल की बहुत सी बातें वोटर को याद रही हैं, बहुत सी भुला दी गई हैं। करीब की बातें ज्यादा याद रहती हैं। इसलिए देखना होगा कि आने वाले दिनों में ऐसी क्या बातें सम्भव हैं, जो मोदी सरकार के पक्ष में या विरोध में जा सकती हैं।

नरेन्द्र मोदी ने अपना राजनीतिक आधार तीन तरह के मतदाताओं के बीच बनाया है। एक, अपवार्ड मोबाइल शहरी युवा और स्त्रियाँ, जिन्हें एक नया आधुनिक भारत चाहिए। दूसरा मतदाता है, ग्रामीण भारत का, जो अपनी बुनियादी जरूरतों को लेकर परेशान रहता है। तीसरा मतदाता बीजेपी के राजनीतिक हिन्दुत्वका समर्थक है। इसे पार्टी का कोर वोटरकह सकते हैं।  पिछले चुनाव में पार्टी की मुख्य अपील विकास और बदलाव को लेकर थी।


पिछले चार साल में नरेन्द्र मोदी की छवि ऐसे नेता की बनी है, जो बदलाव लाना चाहता है, फैसले करता है, उन्हें लागू करता है और बहुत सक्रिय है। तेज-तर्रार और ताकतवर नेता के रूप में बनी मोदी की इमेज बदस्तूर है। तमाम विरोध और आलोचनाओं के बावजूद उनके दीवानों की संख्या कम नहीं है। तमाम वादों के पूरा न होने या अधूरा रह जाने के बावजूद, उनके समर्थक निराश नहीं हैं।

महंगाई में कमी नहीं है। पेट्रोल की कीमतें आसमान पर हैं। नोटबंदी से तमाम दिक्कतें पैदा हुईं, जीएसटी ने परेशान किया। मोदी समर्थकों ने सारी परेशानियों को बाखुशी स्वीकार कर लिया। यों मोदी सरकार पर आरोप है कि उसके दौर में असहिष्णुता बढ़ी, अल्पसंख्यकों और समाज के पिछड़े वर्गों पर अत्याचार बढ़े और मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार हुए। मोदी समर्थकों का पहला वर्ग, यानी शहरी युवा और स्त्रियाँ सामाजिक सद्भाव चाहते हैं। वे आक्रामक गोरक्षकों और स्वयंभू हिन्दुत्ववादी संस्कृति-रक्षकों को पसंद नहीं करते। वे उदार समाज चाहते हैं। क्या वे अब भी बीजेपी का साथ देंगे?     

मोदी का मजबूत पक्ष है दृढ़ राष्ट्रवाद। पिछले चार साल में पाकिस्तान के साथ तकरार जारी रही। पठानकोट और उड़ी के हमले इसी दौर में हुए। भारत ने इसी दौर में सर्जिकल स्ट्राइक भी की, पर कश्मीर में आतंकवाद और पत्थरबाजी जारी है। इस साल राज्य सरकार की सलाह पर केन्द्र ने औपचारिक रूप से आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई रोक रखी है, जिसे युद्ध-विराम कहा जा रहा है।

पिछले डेढ़ साल से कश्मीर में जबर्दस्त फौजी कार्रवाई चल रही है। जनवरी 2017 से 13 मई 2018 तक इस कार्रवाई में 290 आतंकवादी मारे गए हैं। अब सुनाई पड़ रहा है कि भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में फिर से सुधार की सम्भावनाएं हैं। इस साल जुलाई में पाकिस्तान में आम चुनाव भी होने वाले हैं। सम्भव है कि भारत के आम चुनाव के पहले रिश्तों में सुधार हो।

सबसे बड़ी परीक्षा आर्थिक मोर्चे पर होगी। पिछले चार साल में से तीन साल आर्थिक संवृद्धि में लगातार गिरावट के रहे हैं। पिछले साल के अंत में जाकर वह गिरावट रुकी है और अब सम्भावनाएं बन रहीं हैं कि अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2018-19 के वर्ष की संवृद्धि 7.3 या 7.4 रहेगी। पिछले साल यह दर 6.6 रही। इस साल हालात सुधर रहे हैं, पर औद्योगिक उत्पादन में वैसी तेजी देखने में नहीं आ रही है, जिससे भरोसा बढ़े। अलबत्ता नोटबंदी और जीएसटी के दुष्प्रभावों से अर्थव्यवस्था बाहर आ चुकी है।

अनुमान है कि इस साल पूँजी निवेश और रोजगारों के सृजन में तेजी आएगी। पर विशेषज्ञों का अनुमान है पूँजी निवेश में वास्तविक सुधार आने में दो साल लगेंगे। हाल में दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में तेजी आई है। हमारे लिए यह खराब समाचार है। दूसरी ओर वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण हैं, जो हमारे लिए खुशखबरी है।

सबसे महत्वपूर्ण है कृषि क्षेत्र। खबरें हैं कि इस साल सामान्य मॉनसून रहेगा। कृषि उत्पादन बढ़ने से विकास दर पर ही नहीं राजनीति पर भी सकारात्मक असर पड़ता है। इस साल के बजट में कृषि उत्पादों पर लागत के डेढ़ गुने दाम की गारंटी दी गई। सरकार अपने वायदे को पूरा करने में सफल रही तो उसका राजनीतिक लाभ उसे मिलेगा।

खेती-किसानी केवल समर्थन मूल्य तक सीमित नहीं है। देश में 86 फीसदी छोटे और सीमांत किसान हैं। इन छोटे किसानों के लिए 22,000 ग्रामीण एग्रीकल्चरल मार्केट (ग्राम) विकसित करने के लिए 2,000 करोड़ का एक विशेष कोष बनाया गया है। बजट में सबसे बड़ी घोषणा थी 10 करोड़ गरीब परिवारों के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की। सरकार ने इस योजना का विवरण जारी नहीं किया है, पर इस साल 2 अक्तूबर को यह योजना लागू होने वाली है।  

सरकार का अनुमान है कि पिछले चार साल में जन-धन, सौभाग्य, उज्ज्वला, मुद्रा और स्किल इंडिया जैसी योजनाओं से करीब 22 करोड़ परिवारों के जीवन में बदलाव आया है। क्या यह बदलाव वोट के रूप में नजर आएगा?  क्या मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के मुद्दे को लेकर सरकार का समर्थन करेंगी? बीजेपी का सारा जोर अब ग्रामीण इलाकों में जन-सम्पर्क और लोगों को समझाने पर होगा कि आपके जीवन में बदलाव किस तरह आ रहा है और इसमें मोदी सरकार की भूमिका क्या है।

पूरा साल है भी या नहीं?

खबरें हैं कि मोदी सरकार इस साल के आखिर में तीन विधानसभा चुनावों के साथ ही आम चुनाव भी करा सकती है। यह स्पष्ट नहीं है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर बीजेपी सरकार आश्वस्त है या नहीं। वहाँ सफलता की सम्भावना होगी, तो इन राज्यों की जीत के सहारे लोकसभा चुनाव के मैदान में प्रवेश करना बेहतर होगा। एक मायने में बीजेपी ने कांग्रेस-मुक्त भारत का सपना तकरीबन पूरा कर लिया है। देश के 22 राज्यों में उसकी या तो अपनी सरकार है या वह गठबंधन की साझीदार है। दूसरी ओर यह भी सच है कि अब केन्द्र और राज्यों की एंटी इनकम्बैंसी बढ़ेगी। शायद इस वजह से सरकार समय से पहले आम चुनाव करा सकती है।

कर्नाटक में 17 मई को बीएस येदियुरप्पा जब शपथ ले रहे थे, उसी समय दिल्ली में भाजपा के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यक समेत कुल आठ मोर्चे की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों की राष्ट्रीय बैठक चल रही थी। इस बैठक में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे देश के उन 22 करोड़ परिवारों के साथ जुड़ें, जिन्होंने पिछले चार साल के दौरान विभिन्न योजनाओं से लाभ उठाया है।

इस बैठक के एक रोज पहले चुनाव आयोग और विधि आयोग की एक बैठक में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने के विचार का समर्थन किया गया। देश में पूरी तरह से एक चुनाव कराना अभी सांविधानिक नजरिए से सम्भव नहीं है, पर इन चार राज्यों के साथ चुनाव हो सकते हैं। इन तीन के अलावा अप्रैल 2019 में तेलंगाना, आंध्र और ओडिशा के चुनाव भी होने हैं। वहाँ भी चुनाव समय से पहले हुए तो यह मिनी आम चुनाव होगा।











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