कावेरी नदी के पानी को लेकर तमिलनाडु में घमासान
मचा है. आंदोलनकारियों ने आईपीएल मैचों को राज्य से बाहर खदेड़ दिया है. गुरुवार
को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब रक्षा उत्पादों की प्रदर्शनी डेफ-एक्सपो का
उद्घाटन करने चेन्नई पहुँचे तो उन्हें काले झंडे दिखाए गए. पानी के बंटवारे को
लेकर पहले भी हिंसा होती रही है. ऐसी ही जवाबी हिंसा पड़ोसी राज्य कर्नाटक में भी
होती रही है. यह हिंसा कई बार इतना खराब रूप धारण कर लेती है कि दो राज्यों के
निवासी शत्रु-देशों जैसा बर्ताव करने लगते हैं. इस आँच में दोनों राज्यों की
राजनीति रोटियाँ सेंकने लगती है. इसबार भी ऐसा ही हो रहा है. आंदोलनकारियों ने
क्रिकेट को जिस तरह निशाना बनाया, उससे यह भी पता लगता है कि जीवन के नए क्षेत्रों
में इसका प्रवेश होने जा रहा है.
करीब सवा सौ साल पुरानी इस समस्या का समाधान
हमारी राजनीतिक-प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था खोज नहीं पाई है. इसमें किसका दोष है? देश के अनेक राज्य ऐसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. कावेरी–विवाद इस बात को भी
रेखांकित कर रहा है कि हमें पानी की समस्या के बेहतर समाधान के बारे में सोचना चाहिए. केवल बेहतर वितरण पानी की तंगी का स्थायी समाधान नहीं है. हमें
विज्ञान-तकनीक और प्रबंधन के दूसरे तरीकों पर विचार करना चाहिए. पानी से सदुपयोग का रास्ता इस मसले से जुड़े राज्यों के आपसी सहयोग से निकलेगा, न कि टकराव से.
मामले को भड़काने में तमिलनाडु सरकार की भूमिका
भी रही है. आईपीएल मैचों की जगह बदलने की जरूरत इसलिए पैदा की गई ताकि देश का ध्यान
इस तरफ जाए. सुप्रीम कोर्ट ने हाल में अंतरिम आदेश देते वक्त तमिलनाडु सरकार से
कहा था कि जबतक अदालत इस मामले में कोई अंतिम फैसला नहीं कर लेती, तबतक राज्य में
कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी उसकी है. मुख्य न्यायाधीश ने तमिलनाडु के
वकील से कहा था कि 3 मई तक केन्द्र सरकार जल-वितरण की स्कीम तैयार करके देगी. तबतक
जन-जीवन सामान्य बनाए रखने की जिम्मेदारी आपकी है.
कावेरी जल-प्रबंधन बोर्ड का गठन केन्द्र को
करना है, पर केन्द्र सरकार भी इसमें देरी कर रही है. दरअसल कर्नाटक विधानसभा चुनाव
की प्रक्रिया चल रही है. किसी भी संवेदनशील फैसले का असर चुनाव पर पड़ सकता है.
इसलिए केन्द्र भी हाथ खींचकर खड़ा है. अदालत ने 16 फरवरी के अपने आदेश में तमिलनाडु
को मिलने वाले पानी में कटौती की थी और कर्नाटक का हिस्सा बढ़ा दिया था. इस फैसले
के बाद से तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं. अदालत ने कहा था कि केन्द्र सरकार
छह हफ्तों के भीतर बोर्ड का गठन कर दे जिससे तमिलनाडु, कर्नाटक व केरल के बीच कावेरी नदी के जल का बंटवारा उसके फॉर्मूले के
अनुसार हो सके.
तमिलनाडु के लोग चाहते हैं बोर्ड जल्द बनाया
जाए. पर इस बीच केन्द्र सरकार ने अदालत से फैसले पर पुनर्विचार की अर्जी दे दी. इन
सभी बातों के राजनीतिक निहितार्थ हैं. कुल मिलाकर हालात विस्फोटक बनते गए हैं. उधर
तमिलनाडु की राजनीति में हालात को भड़काने में बाजी मारने की होड़ है. अभिनेता से नए-नए
राजनेता बने कमल हासन और रजनीकांत के बीच इस होड़ ने आईपीएल मैचों की बलि ले ली. रजनीकांत
ने पहल करते हुए कहा कि शर्मनाक बात है कि हम आईपीएल सेलीब्रेट करें और आम जनता
प्यासी रहे.
रजनीकांत हालांकि तमिल फिल्मों को सितारे हैं,
पर उनका जन्म बेंगलुरु में हुआ था. वे तमिल मूल के नहीं हैं. इसका फायदा उठाते हुए
कमल हासन ने रजनीकांत पर व्यक्तिगत हमला बोल दिया. उन्होंने रजनीकांत को ‘बाहरी’ घोषित
कर दिया.
दोनों पूर्व अभिनेताओं के बाहरी तौर पर
रिश्ते अच्छे जरूर हैं, पर दोनों को एक-दूसरे से खतरा नजर आता है. इस प्रतिद्वंद्विता
ने स्थितियाँ और बिगाड़ी हैं.
यह विवाद कावेरी नदी के पानी को लेकर है जिसका
उद्गम स्थल कर्नाटक के कोडागु जिले में है. लगभग साढ़े सात सौ किलोमीटर लंबी यह
नदी तमिलनाडु के तट पर बंगाल की खाड़ी में गिरती है. इसके खादर में कर्नाटक का 32
हजार वर्ग किलोमीटर और तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका आता है. दोनों
राज्यों को सिंचाई के लिए पानी की जरूरत है. इसे लेकर दशकों से लड़ाई चल रही है. कर्नाटक
का कहना है कि बारिश कम होने की वजह से कावेरी में पानी कम है. हम तमिलनाडु को
पानी नहीं दे सकते. इसके खिलाफ तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
विवाद मुख्यतः इन दोनों राज्यों के बीच है
लेकिन कावेरी बेसिन में केरल और पुदुच्चेरी के कुछ इलाके शामिल हैं. इसलिए वे भी
इस विवाद से जुड़े हैं. इस विवाद को सुलझाने की पहली कोशिश सन 1892 में हुई थी, जब
तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर रियासत के बीच पानी के बंटवारे को लेकर
समझौता हुआ था. इसके बाद समझौते की कई कोशिशें हो चुकी हैं, पर सभी पक्षों को पसंद
आने वाला समाधान नहीं निकला पाया है.
हमारे देश में नदियों के पानी का बंटवारा, बांधों
का निर्माण और राज्यों के बीच दूसरे विवाद बड़ी समस्या इसलिए बन जाते हैं, क्योंकि
प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग की नई रणनीतियाँ हम विकसित नहीं कर पा रहे हैं. राज्यों
की संकीर्ण राजनीति प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के बहाने जनता की भावनाएं भड़काती
है. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा कर्नाटक के नेता हैं. पूर्व प्रधानमंत्री
होने के बावजूद उनका नजरिया राष्ट्रीय नहीं है. वे स्थानीय राजनीतिक नज़रिए से ही
देखते हैं.
इस साल संसद का बजट धुल गया. गतिरोध के अनेक
कारण थे. एक कारण यह जल-विवाद भी था. अनुभव यह है कि कावेरी-विवाद में जब भी किसी
न्यायाधिकरण या अदालत ने फैसला किया, किसी एक पक्ष ने उसे मानने से इंकार कर दिया.
जरूरत इस बात की है कि ये राज्य आपस में बैठकर जल-संसाधनों के संरक्षण के लिए
कार्यक्रम बनाएं. वर्षा का काफी पानी नदियों में बहकर चला जाता है. उनके भंडारण के
तरीकों को खोजें. यह तभी सम्भव है, जब हमारे राजनीतिक-दृष्टिकोण व्यापक और उदार हों.
क्या कभी ऐसा होगा?
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-04-2017) को ""चुनाव हरेक के बस की बात नहीं" (चर्चा अंक-2943) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एयर मार्शल अर्जन सिंह जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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